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मुखौटा - 7

मुखौटा

अध्याय 7

"दीदी, कौन आ रहा है देखो !" नलिनी बड़े उत्साह से बोली। मैं अपने विचारों को झटक कर उस तरफ देखने लगी। दुरैई आ रहा था । उसके साथ कोई और भी था। हम लोगों को देखकर हाथ हिलाता हुआ मुस्कुराता पास आ गया।

"हेलो !" बोला। "छुट्टी एंजॉय कर रहे हो क्या? नलिनी के कंधे को धीरे से थपथपाया, छोटी साली कैसी है?" बड़े अपनेपन से बोला ।

"बड़ी होती जा रही है।" कहकर मैं हंसी।

फिर जैसे कुछ याद आया, दुरई ने अपने दोस्त से हमारा परिचय कराया।

"श्रीकांत, सैन फ्रांसिस्को में रहता है। छुट्टियों में यहां आया हुआ है। गिण्डी में हम दोनों साथ ही पढ़ते थे ।"

श्रीकांत ने हाथ जोड़कर 'नमस्ते' किया ।

"क्यों दुरैई, आज तुम्हारा ऑफिस नहीं है क्या?" नलिनी बोली ।

"है ना। आज इसको अमेरिकन एंबेसी में काम था। खाने का समय हो गया। इसलिए यहीं खा लेंगे सोच दोस्त को यहाँ ले आया।"

"घर में खाना खिलाने में दुरैई डरता है।" कुर्सी में बैठते हुए श्रीकांत मजाक में बोला।

"अचानक मेहमान को लेकर जाओ तो रोहिणी से रात को मार खाना पड़ेगा।", कहकर आंख मिचकाते हुए दुरैई भी मजाक में साथ दिया ।

"रोहिणी कैसी है ?”

“उन्हें देखने से बहुत सीधी दिखाई देती हैं।“ श्रीकांत बीच ही में बोल कर फिर हंसा।

"अय्यो उस पर विश्वास मत करो, देखने में गाय झपट्टा, मारने में शेर है।“

"अभी तो तुम झपट्टा मार रहे हो दोरैई" कहकर मैं हंसी।

"झपट्टा नहीं मार रहा हूं। इसको भी तो सब मालूम होना चाहिए ना ?", दुरैई कम हाज़िरजवाबी नहीं है । आगे बोला, “दस साल से अमेरिका में रह रहा है। सोचता है कि हमारे देश की औरतें अभी भी अपने मां के जमाने जैसे मुंह बंद करके रहती हैं । बहुत कम बदली होंगी, ऐसा यह सोचता है।“

"मनुष्य बिना बदले कैसे रह सकते हैं ?" नलिनी मोर्चा सँभालने के मूड में आ गई थी, "बिना बदले रहे हैं का अर्थ है कि समाज मर गया ।"

"बदलाव तो हुआ होगा। परंतु अभी तक कोई नुकसान नहीं पहुंचा।" श्रीकांत बोला।

"जितना होना चाहिए उतना बदलाव नहीं हुआ यही तो आघात का विषय है।" नलिनी जोश में बोली जा रही थी । “शिक्षा कितनी लड़कियों को मिली है ? पढ़ी-लिखी लड़कियों में से कितनी लड़कियां स्वयं से सोच- समझ कर फैसला कर सकती हैं या करना जानती हैं?"

"श्रीकांत, तू इससे मत उलझ ।", फटाक से दुरैई बोला। “सब बातों के लिए यह झंडा उठा कर चल देगी। आधा घंटा इसके साथ रह जाये तो तेरे विचार ही बदल जाएंगे।"

"कौन से विचार?" मेरी हंसी में व्यंग की झलक थी।

"इसका विचार है कि जैसी इसकी मां है, सभी लड़कियां वैसी होती हैं । इसके पिता जी जो बोलें उसको आँख मूंद कर मानने और करने वाली स्त्री थीं इसकी अम्मा । अपने बारे में कोई विचार न रखें सब कुछ पति ही, पति ही संसार है मानने वाली लड़की।" दुरैई बोले जा रहा था।

"साधारणतया सभी अम्मा और नानी- दादी ऐसी ही रही होंगी दुरैई!" नलिनी ने बीच में टोका ।

"कहां चली गई वह भीड़ ?" दुरैई ने अपनी आवाज में दुःख भरने का नाटक किया ।

नलिनी तेज हंस दी। श्रीकांत बिना बीच में बोले चुपचाप मुस्कुराता हुआ बैठा रहा । बीच में मुझे देख कर मुस्कुराया। अभी यह भारतीय लड़की से शादी करने के लिए ही भारत आया है मैं समझ गई। विदेशी लड़कियों की स्वतंत्रता से यह डर गया होगा। भारत की लड़की है तो परेशानियां नहीं होगी। अच्छी तरह से जीवन यापन की सुविधाएं दे दो तो मुंह बंद कर रहेंगी।

"हम आइसक्रीम लेकर आते हैं।“, कहकर नलिनी और दुरैई उठ गए।

उनके जाते ही श्रीकांत मुझे से मुखातिब हुआ ।

"नौकरी करती हैं क्या ?" पूछा।

"हां । यूनिवर्सिटी में लेक्चरर हूं। नलिनी पीएचडी की तैयारी कर रही है।"

"आप लोग दिल्ली में ही रहे हैं क्या ?"वह बोला।

"रोहिणी और नलिनी दिल्ली में ही पढ़ें हैं। हमारे अप्पा बहुत सालों से दिल्ली में ही थे। मेरी स्कूलिंग बेंगलुरु में ही हुई और नानी के घर ही रही।"

उसने आश्चर्य से मुझे देखा।

"आपको कन्नड़ आती है?"

"हां, आती है।"

"मैं कन्नड़ ही हूं !" खुश होकर, "हमारे पिताजी की सर्विस थी चेन्नई में, इसीलिए वहां रहना पड़ा। तुम्हारे अम्मा-अप्पा यहीं रहते हैं क्या?"

"अभी दोनों जने ही नहीं रहे ।"

आइसक्रीम के कप उठाए दुरई और नलिनी आ गए थे ।

"तुम्हारे देश के आइसक्रीम खा कर देखो", कहकर दुरैई ने छेड़ते हुए एक कप श्रीकांत की तरफ बढ़ाया।, "खराब नहीं होगा।"

"अमेरिका मेरा देश नहीं है।"

"ऐसा बात करने वाला ही 10 साल से वहां बैठा है क्या?" दुरैई मुझे देखकर हंसा।

"उस वेतन में मुझे यहां एक काम ढूंढ कर दे दो।,"

सुन कर नलिनी हंस दी ।

"आप क्यों हंस रही हैं ?", श्रीकांत पूछे बिना नहीं रह सका ।

"आपको अमेरिका का रुपए चाहिए, वहां की सुविधाएं चाहिए, मुंह बंद रखने वाली भारतीय लड़की पत्नी होनी चाहिए। कितने लालची हैं आप !"

श्रीकांत के चेहरे पर अब भी मुस्कान थी । "मुझे भारतीय पत्नी ही चाहिए। तभी घर में भारतीय संस्कृति होगी और बिना मुसीबत के रह सकेंगे। मुंह बंद करके रहने वाली पत्नी की मुझे जरूरत नहीं। परस्पर एडजस्टमेंट के लिए होशियार जरूर होना चाहिए..….."

"बेस्ट ऑफ लक !", कहकर नलिनी हंसी।, "अमेरिका जाने के लिए कितनी लड़कियां तैयार होंगी। वे अक्लमंद भी होगी क्या, आपको देखना पड़ेगा।"

श्रीकान्त को भी हंसी आ गई ।" मैं पहले ही बहुत असमंजस में हूं। आप मुझे और भी असमंजस में डाल रही हैं।"

"क्या असमंजस ?"

"फिर किसी और दिन इसके बारे में बात करते हैं। अभी हमारे पास समय नहीं है। यू मस्ट एक्सक्यूज अस।"

वह उठा। साथ में दुरई भी । "मालिनी, आपकी तो छुट्टियां है ना, रोहिणी और आप दोनों कहीं हॉलीडे के लिए जाकर आइएगा। बेचारी रोहिणी को बदलाव की आवश्यकता है । ऑफिस छोड़कर मैं निकल नहीं पाता।" दुरैई बोला।

"तुम दोनों ही का जाना जरूरी है दुरैई ।"

"छुट्टी मिलना बहुत मुश्किल है। मिले तो सब मिलकर चलेंगे ।"

मैंने दयनीय दृष्टि से उसे देखा।

उनके रवाना होते ही मैं और नलिनी ऑटो पकड़ कर घर आ गए।

अचानक मुझे रोहिणी की याद आई। मुझे लगा दुरैई का सबसे इतना प्रेम से मिलना-जुलना, सामाजिकता निभाना ही रोहिणी को जीवन से निराशा देता है क्या ? इसके प्रेम में कोई कठोरता नहीं है। बहुत सुसंस्कृत है इसका प्रेम । वह चाहती है कि एक मैच्योर पुरुष हो जिसमें पुरुषत्व ज्यादा दिखाई देता हो; जबरदस्ती कर मेसोस्टिक ( Masochist) प्रेम दर्शाने वाला पति हो. जिसमें कठोरता भी हो। मिल्स एंड बूंस वाली उम्र में ही वह अभी भी चल रही है। अपने आप को फंसाया हुआ रोमांस मे फंसी हुई है।

"क्या कारण बताऊँ ? कौन सा कोर्ट मुझे डाइवोर्स दिलाएगा ?", उसके ये वाहियात प्रश्न याद आते ही मेरे अंदर एक आघात लगता है। यह क्या हो रहा है ? मेरे समझ में तो ये नहीं आता कि जो अपने पैरों पर खड़ी ना हो उस महिला में ऐसी एक सोच कैसे आ सकती है ? जो चीज नहीं है उस स्थिति को महसूस करना ही इस आंसुओं का एक कारण था। 'छुडा के कहां जाऊं?' यह प्रश्न के पूछे जाने पर मुझे कप्पू की याद आई। कप्पू को मैं जितना पहचान सकी मुझे लगता है मैं रोहिणी को इतना भी नहीं पहचान सकी ।

कप्पू और मैं करीब-करीब एक साथ ही बड़े हुए। फिर भी असमानता अच्छी तरह दिखाई देती है। वह बहुत ही फुर्तीली है। वह बाहर के काम हो चाहे घर के काम, सभी में बहुत होशियार थी। बहुत बढ़िया मिमिक्री करती थी। मैं उसके जितना होशियारी नहीं थी इसलिए शायद मैं हमेशा पढ़ाई में डूबी रहती ।

जब-जब मुझे कप्पू की याद आती है तब-तब मुझे कन्नड़ का एक गाना याद आता है। उसी ने मुझे पहले-पहल गा कर सुनाया था और मेरे आंखों से आंसू आ गए। शायद इसका कारण रहा होगा 'गोविंद हाडू' नाम की कविता का गाना। पुण्यकोटी नाम की एक गाय घास चरते-चरते रास्ता भूल कर जंगल की तरफ चली जाती है, वहां भूखा शेर अपने भोजन का इंतजार कर रहा था तो वह उसे अपनी ओर झपटते देख गाय पुण्यकोटी बड़ी नम्रता से विनती करती है,

'मेरा एक छोटा बछड़ा है। उसे मैं दूध पिला कर किसी के पास छोड़ कर आती हूं, तब तक तुम मेरा इंतजार करना।'

“तुम और वापस आओगी ? मुझे बेवकूफ बनाना चाहती हो ?”

“अपने दिए हुए वचन को मैं नहीं तोड़ती। तुम मुझ पर विश्वास करो ।” पुण्यकोटी के ऐसा कहने पर शेर कुछ सोच कर उसे छोड़ देता है। अपने झुंड में आने के बाद बछड़े को दूध पिला पुन्यकोटी सब विस्तार से बताती है। दूसरी गायों से कहती है, 'तुम जैसे अपने बछड़ों को संभालती हो, वैसे ही दूध पिला कर मेरे इस बछड़े को भी संभाल लो।' सब गाएं बोलती हैं, 'तुम वापस जंगल में उस शेर के पास मत जाओ।‘

‘मैंने जो वचन दिया है उसे नहीं तोडूंगी।‘ ऐसा कहकर पुण्यकोटी शेर के पास वापस चली जाती है। वह वापस आएगी ऐसा शेर ने नहीं सोचा था। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ।

"तुम जैसे उत्तम प्राणी को मारने की मैंने सोचा ! मैं हीं पापी हूं।" ऐसा कहकर शेर पुन्यकोटी को छोड़ देता है।

मुझे लगता है यह कहानी बताने वाले कप्पू में और उस पुण्यकोटी के बीच कोई संबंध है । 'मुझे बली के लिए बुला रहे हो, अभी आ रही हूं।‘ ऐसा ही कप्पू ने बोला होगा- 'थोड़ा ठहरो मैं अपनी आत्मा को खत्म करके आती हूं।'

वयोवृद्ध नानी- नाना अपने लड़कों के दया पर रह रहे थे उस समय कप्पू की शादी हुई। शादी होने के 2 महीने बाद मैंने कप्पू को देखा। मैं एकदम चौंक गई। उसकी पर्सनैलिटी ही बदल गई थी। पंख को तोड़कर बगल में रख लिया हो जैसे । उसकी आंखों में एक डर दिखाई दिया। उसकी भाषा ही बदल गई। पालघाट की भाषा बोल रही थी।

"क्या हुआ रे कप्पू ? तेरी भाषा तो बदल गई !"

"उनके घर जाने के बाद उनके जैसे ही मुझे बात करनी चाहिए, सुनी ?", ज्ञानी जैसे मुस्कुराते हुए उसने कहा ।

"मौसा जी कैसे हैं ? तुम्हारे साथ प्रेम से रहते हैं?"

"हां, थोड़े सख्त हैं।"

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