Mukhauta - 11 books and stories free download online pdf in Hindi

मुखौटा - 11

मुखौटा

अध्याय 11

'मैं हत्यारिन हूं' ऐसा मेरी मां अपने शब्दों से व्यक्त कर रही है, मेरे कोमल मन में आघात हुआ। उस आघात की याद आज भी मेरे मन में वैसा का वैसा ही है। मेरे पिताजी जब बिस्तर पकड़ लिए थे मेरी मां ने ही उनकी एक छोटे बच्चे की जैसे देखभाल की. मुझे लगा जैसे कमजोर क्षणों में मुझसे जो एक बात कही दी उसका प्रायश्चित ढूंढ रही है ।

संपूर्णता को प्राप्त कर लिया जैसी एक भावना के साथ बैठी सुभद्रा को देख मुझे आश्चर्य हुआ। इसको लगता है कि इसका इसके पति के साथ जो रिश्ता है वह शॉक प्रूफ है। मुझे लगता है कि इसका ऐसा सोचना सिर्फ एक भावना है।

"क्यों हंस रही हो ?", सुभद्रा ने पूछा।

"कुछ नहीं। मुझे लगता है हम सब आदिकाल से ही आज तक कोई एक भावना के सहारे ही जिंदगी को चला रहे हैं ।"

"तुम एकदम बोर हो मालिनी !", एक लापरवाही से सुभद्रा बोली। "विद्वानों की भाषा में ही तुम फंसी हो। कृष्णन के जाने के बाद ऐसे अलग खड़ी हो जैसे पुरुषों की दोस्ती ही नहीं चाहिए । प्रेम में धोखा खाने से कुछ दिनों तक विरक्ति आती ही है। परन्तु उसके लिए अपनी खुशी को तुम्हें क्यों त्यागना चाहिए ? जस्ट रिलैक्स एंड एंजॉय ! बाय फ्रेंड्स रखो। हैव सेक्स। तुम बदल जाओगी। तुम्हारी सोच में सेक्स एक ख़राब चीज है ! सेक्स पाप है, ऐसी सोच तुम्हारे अंदर है। तुम्हारी नानी अभी भी तुम्हें काबू में रख रही है।"

मुझे हंसी आई। कृष्णन ने भी तो यही कहा था । मैंने कोई जवाब नहीं दिया। बस मेरे पूर्वजों के साथ 'रिंग-अ-रिंग-अ-रोजेज' नाची। उन सब की मानसिकता का दबाव मुझे महसूस हुआ । परंतु उनमें और मुझे में अंतर है, यह मैं अच्छी तरह जानती हूँ। मुझे स्वयं ही सोचना आता है। ये पाप-पुण्य की बातें मेरे साथ नहीं चलेगी। कृष्णन के साथ मेरा जो रिश्ता था वह बिल्कुल शुद्ध था सोच कर अपने को छोटा करने का कोई प्रयास मेरे द्वारा नहीं। परंतु सेक्स को खेल जैसे लेना भी मेरे लिए संभव नहीं। मुझे कोई चोट नहीं लगी यह दिखाने के लिए मुझे कुत्ते जैसे फिरने की क्या जरूरत ? बल्कि वैसा करना ही मुझे कमजोर बताएगा, छोटा दिखाएगा। मेरी हार की जिम्मेदारी मेरी नानी या नारायणी बड़ी मां, कोई भी कारण हो सकता है। परंतु यह पुराना वाद-विवाद नहीं है। यह मेरी स्वतंत्रता है।

सुभद्रा कुछ बात कर रही थी। यह जो कुछ भी कर रही है, वह सिर्फ एक खेल ही खेल रही है। एक सिद्धांत के विरुद्ध है। अपने जीवन में उत्साह भरने के लिए उसने जो रास्ता निकाला है अगर उसे ही वह एक आन्दोलन कहती है तब तो मैं ही एक मूर्ख हूँ ।

"और तुमको जो वो मानसिक बीमारियां हैं, उनका कारण उन्हें दबा के रखना ही हैं", वह बोली। मुझे मेरी पड़ –नानी याद आई जिन्हें भूत ने पकड़ा था‌।

"मुझे कोई बीमारी नहीं होगी, फिकर मत करो।", हंसते हुए मैं उठी । वह भी उठ खड़ी हुई ।

"आने से पहले एक अच्छे आदमी को देख कर बताती हूं।" वह बोली।

"देखने वाले सभी अच्छे आदमियों को तू ही अपनी तरफ खींच ले तो फिर तुझे मेरी याद कहां से आएगी ?", कहकर मैं रवाना होने लगी तो वह खिलखिला पड़ी ।

जब भी उसे देखती हूँ तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है. अत्याधुनिक लड़कियों की प्रतिनिधि हो जैसे ! युवाओं जैसे वह मन के नियंत्रण में नहीं है वह ! मन के कैद से बाहर आ गई एक साफ-सुथरे छवि दर्शाती उसकी बातें मुझमें भ्रम पैदा करती है। लड़कियों के अधिकार की परिभाषा ही बदल गई है। कोख की रक्षा का दायित्व सिर्फ लड़कियों का नहीं आदमियों का भी है, यह वाद-विवाद का विषय नहीं रहा अब । बाहरी संबंध रखने की छूट यदि पुरुष को है तो यह स्वतंत्रता लड़कियों को भी है, सिंपल लॉजिक।

"कोख की पवित्रता के बारे में तिरूमंपावै" की पढ़ी बात याद आई। बार-बार चाबुक से कोई मार रहा जैसे याद आ रही थी वह बात और आघात कर रही थी । इसके साथ 'गोविंद हाडू' की पुण्यकोटी की याद आई। पवित्रता का मतलब वही है। इस पवित्रता में आदमी-औरत का कोई भेद नहीं है। मेरे गुस्से और विश्वास का यही एक आधार होना चाहिए।

घर पहुंचते ही ताला लगे दरवाजे के सामने श्रीकांत खड़ा हुआ मिला ।

अपने आश्चर्य के भाव छुपाते हुए मैंने उससे हंस कर 'हेलो' कहा ।

संकोच के साथ उसने भी 'हेलो' कहते हुए मुस्कुराया। या फिर इसके मुस्कुराने का तरीका ही यह है मुझे लगा।

"आप कब आए?" ताले को खोलते हुए मैंने पूछा।

"अभी-अभी" वह थोड़ा संकोच से बोला। "इस तरफ़ एक दोस्त से मिलने आया था । फिर याद आया कि आप यहीं रहती हैं ।"

"गुड ! अंदर आइये !”, कह कर मैंने जल्दी से पंखे का स्विच ऑन किया और कूलर सोफे की तरफ घुमाया, ठंडा पानी लाकर मेज पर रखा। उसने 'थैंक्स' कहकर पानी लिया और पी कर सोफे पर बैठ गया।

"मैं तो भूल ही गया था कि दिल्ली में इतनी गर्मी है ।" कुम्हला गए अपने चेहरे को रुमाल से पोंछते हुए बोला।

"मुझे लगा था आप बेंगलुरु चले गए होंगे ।" मैंने हंसते हुए कन्नड़ में बोला।

उसके चेहरे पर आश्चर्य भरी मुस्कान तैर गई ।

"कल जा रहा हूं। यहां कुछ लोगों से मिलना था।"

'कितनी लड़कियों को देखा होगा इसने इस हफ्ते में', मैंने मन ही मन हिसाब लगाया।

"अमेरिका में इतने वर्षों से रह रहे हो। कॉमेडी और कन्नड़ फिर भी आप नहीं भूले!" मैंने बातचीत आगे बढाते हुए मैंने कहा ।

"मेरे जनरेशन के लोग नहीं भूलेंगे। बशर्ते किसी अमेरिकन से शादी ना करें ।", कहकर वह हंसा ।

"इस बार शादी करने के लिए ही आए हैं लगता है।"

"विचार तो है ।", कहने में संकोच किया। दो पल ठहर कर, "सच्ची बात कहूं, मैं बहुत बड़े असमंजस में हूं। मुझे यहां के इस संस्कृति में पली-बढ़ी भारतीय लड़की से शादी करने की इच्छा नहीं है। यहां की लड़की से शादी करने में सोचना पड़ रहा है।"

"क्या सोचना ?"

"अमेरिका में एडजस्ट करके रहना इतना आसान नहीं है। अपने को जो जरूरत है वह इमोशनल एडजस्टमेंट वहां नहीं है। वहां, आपको पता है, कई भारतीय लड़कियों को परेशान होते मैंने देखा है।"

"आपकी अम्मा जैसे लड़की होनी चाहिए, ऐसी आप उम्मीद रखते हैं तो आप परेशान होंगे ही।"

"दुरैई बेकार बकवास करता है।", कहकर वह हंसा। मेरी अम्मा जैसी पत्नी मुझे नहीं चाहिए। क्योंकि मैं अपने अप्पा जैसे नहीं रहूंगा।"

‘तुम्हारे पिताजी कैसे हैं’ मैंने नहीं पूछा। इसमें कृष्णन जैसा आकर्षण नहीं है। बातें भी नपा-तुला ही करता है । बोलने में और देखने में दिखावटी नहीं है। एक सम्माननीय आदमी जैसा दिखाई देता है।

'भारत में सदमा देने लायक बदलाव मैंने अभी तक नहीं देखा', इसने जो बोला था वह मुझे याद आ रहा है। पता चले कि सुभद्रा जैसी लड़कियां यहां रहती हैं तो यह विश्वास भी नहीं कर सकता।

"कितने दिनों तक भारत में रहोगे?”, बात जारी रखने के लिए मैंने पूछा।

"एक महीना। मद्रास जाकर, वहां से मैसूर, बेंगलुरु जाना है। दिल्ली आकर ही अमेरिका जाऊंगा।"

"वाइफ के साथ!"

"आई एम नॉट शोर ! एक लड़की के बारे में कुछ भी नहीं जानते हुए उससे शादी करना असमंजस जैसे लगता है। शादी के बाद तुरंत उसे दूसरे देश लेकर जाना उसे कैसा लगेगा ?"

“आप ऐसे असमंजस में मत पड़ो । वरना आप शादी ही नहीं कर सकते।"

"ऐसा ही हो होगा लगता है।" तपाक से जवाब आया ।

"पढ़ी-लिखी होशियार लड़कियां होंगी बेंगलुरु, मैसूर में । बात करके देखोगे तो कुछ हद तक स्वभाव का भी पता चल जाएगा।", मैंने समाधान करते हुए कहा।

"आपने अभी तक क्यों नहीं की शादी?”, मैंने जिस प्रश्न के बारे में सोचा भी नहीं था श्रीकांत वही प्रश्न पूछ बैठा ।

मैंने हड़बड़ा कर उसे देखा। उसका चेहरा साधारण था। मैंने जरा मुस्कुराते हुए कहा: "किसी से करने का सोचा था मैंने । आखिर में वह हुआ नहीं। उस आदमी ने दूसरी जगह शादी कर ली।"

श्रीकांत कुछ सोचते हुए मुझे देखा। "सॉरी, मुझे आपसे पर्सनल प्रश्न नहीं पूछना चाहिए था।“ वह कुछ धीमी आवाज में बोला और मेरे किसी प्रतिक्रिया से पहले ही वह आगे बोल पड़ा, "आप उसी धोखे में अब तक है क्या ?"

'मैं आपको आपके दुःख से अलग करूंगा, आपसे शादी करूंगा।', कहीं वह ऐसा तो कहने नहीं जा रहा ! यह बात मुझे गलत लगी । इसी सदमे को बर्दाश्त कर थोड़ा संभल कर धीरे से बोली-

"नहीं, थोड़े दिन तो मैं सदमे में थी। परंतु अब ठीक हो गई हूँ ।", मुझे लग रहा था कि वह कुछ सोचते हुए मुझे देख रहा है । कुछ तवं सा महसूस हुआ । उस उत्पन्न हुए कठिन वातावरण को टालने के लिए मैं हंसते हुए उठी।

"थोड़ा जूस लेकर आती हूं, ठहरिए।" कहकर अंदर जाकर कांच के गिलासों में फलों का रस भरा। रसोई के सिंक में हाथ धोकर आते समय खिड़की के कांच में अपने चेहरा पर नज़र पड़ी। मैंने बिखरे बालों को हाथों से ठीक किया, ठंडे पानी से चेहरे को सिंक में धोकर पोंछा। फिर से स्टिकर बिंदी को ठीक किया तो लगा चेहरा एक नयापन लिए हुए है। अचानक बहुत साल पहले देखी 'दी स्ट्रीट कार नेम डिजायर' फिल्म की याद आई। टिनेसी विलियमस नायिका विवियन लिविंन द्वारा घंटी बजाने पर दरवाज़ा खोलने के पहले जल्दी से कांच में अपना चेहरा देख थोड़ा पाउडर लगाती है। नायिका मेरी जैसे बिना शादी किये बड़ी उम्र की होती है.....

मुझे अभी देखते समय श्रीकांत को विवियन लिविंन की याद नहीं आनी चाहिए, मुझे फिक्र होने लगी । यह मेरी बुद्धि को क्या हो गया है ! मैं आश्चर्य से मेरे अंदर उठते सवालों के स्वयं ही जवाब दे रही थी ।

"बहुत गर्मी है!", कहते हुए उसको फलों का रस दिया।

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