Mukhauta - 8 books and stories free download online pdf in Hindi

मुखौटा - 8

मुखौटा

अध्याय 8

"सख्त मतलब ?"

"उश्श..! थोड़ा धीरे बात कर! वे सुन न लें।"

"सुन ले तो ?"

उसने परेशान होकर मुझे देखा।

"उनको, सासु मां को, जोर से बात जोर से बातें करना, जोर से हँसना पसंद नहीं।"

सासू मां से, पति से उसके डर के बारे में मैं नहीं समझ सकी। पीहर वाले उनके घर जाएं तो वह स्वयं कॉफी बना कर नहीं लेकर आती है। सासु मां यदि देने को बोलें तो ही अपने को कॉफी मिलेगी। यहाँ कोई समस्या तो नहीं, उससे पूछ भी नहीं सकते। उन्होंने उसे कभी पीहर भेजा ही नहीं। उनके घर में उसे अकेले में मिलकर पूछो तो भी ‘उश्श..!’ कहकर हमें डरा देती। क्या यह स्नातक पढ़ी हुई है, मुझे आश्चर्य होता। ओरिजिनल कप्पू मर ही गई बोले तो भी वह कभी अपना मुंह खोलकर अपने पति के बारे में या सास के बारे में बुराई नहीं की।

एक बार उसके ‘उश्श..!’ को सहन न करने के कारण मैं बोली, "क्या है रे! ये जेल में रहने वाले कैदी जैसे डरती है? मैं होती तो कब की भाग गई होती।"

उसने तुरंत मुझे सर उठाकर देखा।

"भागकर ?"

उसकी बात में जो तेजी थी उसे देख मैं हड़बड़ाई।

"भाग कर कहां जाएँ ?", वह आगे बोली "मैं यहां हूं तभी तक मेरा गौरव है। लात मार के आ जाऊं, मेरे भाई लोग एक दिन भी मुझे सहन नहीं करेंगे। अकेले खड़ी रह कर क्या हासिल कर लूंगी ? अगर मैं चहुँ कि मेरा बेटा कल अच्छी तरह रहे, उन्नति करता रहे तो मुझे सभी बातों के लिए मुंह बंद करके ही रखना है। अब बता इसमें क्या कमी है ?"

"यह आत्महत्या है कप्पू?"

"तुम इसे चाहे जो कहो!"

"लड़की हो तो उसे कप्पू जैसे ही रहना चाहिए।", मामा लोग बड़े तृप्ति से बोलते। नानी अपना मुंह नहीं खोलती। कप्पू के मामले में पूरे कुटुंब के लोग आंखमिचौनी खेल रहे हैं, ऐसा मुझे लगता। ‘भाग कर कहां जाए?’ कप्पू के इस सवाल से बचने का खेल।

यह अच्छी बात है कि मैं इस तरह की किसी बात में नहीं फंसी । अरेंज किया हुआ मैरिज मुझे नहीं चाहिए, मैंने नानी को पहले ही बता दिया था । नानी थोड़ी देर कुछ नहीं बोली। थोड़ी देर बाद धीमी आवाज में कहा, "हां, जो शादियां करके रखी सब कौन अच्छे हैं? तुम्हें जो पसंद है देख कर शादी कर लो। यहीं से मैं तुम्हें आशीर्वाद दे दूंगी।"

शादी के नाम से ही उनको निराशा हो गई, ऐसा मुझे संदेह है। उनके मरने तक मेरी शादी नहीं हुई इसके बारे में वह ज्यादा परेशान नहीं हुई।

अचानक मुझे कृष्णन की याद आई। कृष्णन से दोस्ती होते समय तुरंत ही शादी कर ली होती तो क्या हुआ होता यह कल्पना मुझमें एक विनोद की भावना उत्पन्न करती है। 'तुम खुश हो ऐसा नाटक कर रही हो।' ऐसा बोलकर जो डंक मारते हैं वे ऐसा नहीं बोलते तब । मेरी मां का अचानक हार्ट फेल नहीं हुआ होता । एक बच्चा भी हो गया होता । चराचर कुटुंब की लड़की जैसे। बाहर की घंटी बजी तो अपने में डूबी हुई मैं दरवाजा खोलने गई।

"हेलो !", बड़े बेतकल्लुफ़ी के साथ कृष्णन अकेले अंदर आ गया।

अपने आप को संभालने में मुझे कुछ क्षण लगे। अभी तो इसका ध्यान मुझे अंदर उद्वेलित कर रहा था कि सामने देखते ही मुझे थोड़ी शर्म आई।

"वाइफ को साथ में नहीं लाये ?", बोलते समय मेरे जबान लड़खड़ाई।

"यहां की गर्मी उससे सहन नहीं हो रही। थकावट के कारण लेटी हुई है।", कह कर वह हंसा। दीवार का सहारा लेकर दीवान पर बड़े धृष्टता के साथ पैरों को फैलाकर लेटा। मुझे सिर से लेकर पैर तक घूर कर बेशर्मी से देखा। उसके चेहरे पर थोड़ा व्यंग भी दिखाई दिया।

"नलिनी नहीं है क्या?", निगाहों को चारों तरफ घुमा कर देखता हुआ पूछा ।

"नहीं।"

"मुझे थोड़ा पानी चाहिए मालिनी।", उसकी आवाज में संतुष्टि उभर आई ।

मैंने फ्रिज में से पानी ला कर उसे दिया। उसने एक ही बार में वह पीकर गिलास को मेज पर रख दिया और उठा।

‘रख कर आती हूं’ कह कर मैं गिलास लेने झुकी तो उसने तुरंत मुझे झटके से खींच कर अपनी बाहों में भर लिया, अपने से चिपका लिया । क्षणांश ही में उसके अधर मेरे अधरों पर थे। उसकी जिह्वा मेरे अधरों के बीच से जगह बनाने में सफल हो रही थी । ऐसा लगा कि मेरा शरीर मेरे वश में नहीं है । उसकी अमेरिकन सेंट की खुशबू से मुझे बेहोशी छाने लगी। मेरे अधर उसके अधरों का स्वाद लेते समय सब पुरानी यादें मेरे सामने आने लगी। जैसे सब कुछ मालूम हो, इसे नॉर्मल तरीके से उसने अपने हाथों को मेरे ब्लाउज के अंदर डाला। उसका गरम स्पर्श मेरे छाती पर पड़ते ही मेरा वश अपने शरीर पर बिल्कुल ही नहीं रहा, वह फिसलता चला गया। वह झुका तो मेरे मुंह से उसका सर टकराया। मुझे दर्द हुआ। उसने "सॉरी" बोला। यह सब कुछ इतना जल्दी हुआ कि उसका भ्रम टूट गया। उसकी कड़ी पड़ी नसे क्षण भर में ढीली पड़ गई। मैं तुरंत अपने आपको उससे अलग कर खड़ी हो गई। ब्लाउज को ठीक करके उसे मैंने गुस्से से देखा ।

"इसी के लिए तुम आए हो तो कृपया तुम यहां से चले जाओ कृष्णन।" मेरी आव़ाज थरथरा रही थी ।

वह हंसा।

"ओह ! कमॉन ! वी आर नॉट स्ट्रेंजर्स। सच बोलो। तुम्हें चाहिए था या नहीं?"

"इसके लिए क्या। यह तो बेशर्म शरीर है। उसे जरूरत है।"

"फिर उसको धोखा मत दो। यदि धोखा दोगी तो वह प्रकृति के खिलाफ होगा। ऐसा होना तुम्हें एक हिप्पोक्रेट साबित करता है ।"

"नहीं ! इसका अर्थ है कि मैं एक मनुष्य हूं । इसका यह अर्थ है मैं कुत्ते या सूअर की जाति की नहीं हूं।"

कृष्णन मुझे देख कर व्यंग भरी हंसी हंसा।

"तुम्हारी नानी तुम्हारे अंदर से अक्सर झांकती रहती है।"

अचानक मुझे उस पर बहुत तेज गुस्सा आया।

"कृष्णन, तुम्हारे बारे में और बुरा मेरा अभिप्राय हो उससे पहले तुम यहां से निकल जाओ ! चले जाओ।"

मेरे पास आकर उसने फिर से मुझे आलिंगन में लेना चाहा।

"मुझे मत छू!", मैं उग्र होकर उस पर चिल्लाई। "बिना मेरी जानकारी के तूने किसी दूसरी से शादी कर ली। उसको बिना बताये मेरे पास आ गया। हम दोनों का तुम अपमान कर रहे हो। तुम्हें कैसे मैंने उस समय एक आदर्श पुरुष समझा मेरी समझ में नहीं आ रहा है।

थका हुआ सा वह फिर से पैरों को फैला कर बैठ गया।

"मैंने तो अपने ही साथ बहुत बड़ी गलती की है। मानता हूं । परंतु मुझे एक कठिनाई में ऐसा करना पड़ा मालिनी।"

"नहीं। मुझे ये सिनेमा की कहानियां जानने की कोई इच्छा नहीं है।"

"करीब-करीब सिनेमा की कहानी जैसे ही है। मेरे पिताजी का देहावसान हुआ तब मैं गांव गया था ना..."

“कृष्णन, मुझे कुछ भी जानने की जरूरत नहीं।"

"मुझे बोलने दो ! मेरे पिताजी मेरे सर पर बहुत सारा कर्ज रखकर चले गए।"

"उस कर्ज को चुकाने के लिए बड़े घर की एक लड़की से शादी करके अमेरिका जाने का प्लान तुमने बना लिया ! ऐसी लड़की मिले तो कैसे छोड़ सकते थे, हैं न ?"

"तुम कठोरता से बात कर रही हो मालिनी।"

मैं हंसी।

"कठोरता के बारे में बात करना तुम्हें शोभा नहीं देता है कृष्णन। एक पत्र लिखे बिना, एक शब्द बात किये बिना तुमने अपने मामा के द्वारा समाचार भेज दिया ! मुझे कैसा लगा होगा… सोचा तुमने ?"

"सब दोषों को मैं मानता हूं। इन सब को भूल जाओ। कोई अच्छा आदमी देख कर शादी कर लो। तुम ऐसे ही रहोगी तो मुझे दर्द होता है।"

मैं फिर से हंसी।

"मेरे लिए दर्द महसूस करने की जरूरत नहीं है। मेरे शादी ना करने का कारण तुम नहीं हो।"

"आई एम ग्लैड।"

"सब आदमी तुम्हारे जैसे नहीं होंगे, फिर भी मैं संभल कर रहती हूं।"

"बहुत ही 'सिनिकल' बातें कर रही हो।“

यह अब भी घमंड से बोल रहा है देख कर मुझे गुस्सा आया।

"तुम्हारी पत्नी को मेरे बारे में पता है?"

"पता नहीं है। मैंने उसे नहीं बताया ।"

मैं हंसी।

“अमेरिकन इंग्लिश भाषा ही आई है। इंडियन हिप्पोक्रेसी नहीं गई !”

"बताया नहीं ! इसका मतलब नहीं है कि छुपा रहा हूं । कुछ बातें पत्नी को नहीं बोलना ही ठीक रहता है।"

"तू सिर्फ हिप्पोक्रेट ही नहीं है। तू एक डरपोक भी है ।"

"तुम्हें मेरी वाइफ के लिए फिक्र करने की जरूरत नहीं है। वह बहुत सिंपल गर्ल है। हम अब भी फ्रेंड्स रह सकते हैं।"

वह मुझे कुछ इस तरह देख रहा था जैसे शोध कर रहा हो कि जिस विषय में वह बात कर रहा है वह मुझे कुछ समझ आया भी या नहीं। मैंने जिसे प्रेम किया था यह वह नहीं है। मुझे सदमा लगा । पहले जो चेहरा मुझे दिखा था वह एक झूठा चेहरा रहा हो सकता है। नहीं तो हो सकता है मेरी ही दृष्टि में कोई खराबी रही होगी। अब मुझे उस 'सिंपल गर्ल' पर दया आ रही थी। मेरा धैर्य खत्म होने लगा।

"प्लीज कृष्णन गो अवे।" मेरे स्वर में पर्याप्त घृणा झलक रही थी.

वह उठा।

"फिर एक दिन आऊंगा। मुझे एकदम से नफरत करके मत हटाओ, हम लोग परिस्थितियों के अधीन हैं। एक दिन तुम समझोगी।" वह अंग्रेजी में कह रहा था ।

मैंने कोई जवाब नहीं दिया। उसके रवाना होते समय वह मुझे एकदम ही अपरिचित लगा। दरवाजा बंद करके मैं दीवान पर आ कर धम्म से पड़ गई । उसमें से आने वाली अमेरिकन सेंट की बू से मेरा दम घुटने लगा। मैं उठकर बेडरूम में जाकर कूलर ऑन करके लेट गई। मुझे बहुत ज्यादा गुस्सा आ रहा था, दुख से गला भर आया था । वह मुझे दोबारा छूने आया ? यह उसका अहंकार है या अमेरिकी स्वछंदता के लक्षण ? यह सब कुछ ने मुझे बहुत ही असमंजस में डाल दिया।

.......................................................