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दो लघुकथाएं...1- मैं कौन हूँ।। 2- इन्द्रधनुष।।

1- मैं कौन हूँ!!!


माँ.. माँ... माँ...

अरी क्या हुआ ?क्यों गला फाड़ रही है?

माँ मैं कौन हूँ? बताओ न माँ कौन हूँ मैं ?

अरी हुआ क्या?

माँ तुम झूंठ बोलती हो,तुम तो मुझे परी कहती हो और कभी कभी तो तुम मुझे अपनी रानी भी कहती हो मगर माँ आज मैं जब मेमसाब के घर में पोंछा लगा रही थी तब मैंने टीवी में देखा था कि परी तो बहुत अमीर होती है, उसके पास जादू की छड़ी भी होती है और माँ रानी तो बहुत सुंंदर सुंदर कपड़ें पहनती है और माँ मेरी फ्राक तो फटी हुई है
तुमनें झूंठ क्यों बोला, क्यों बोला ? ऊं हूं...

अरे बिटिया इतना काहे रो रही है, चुप हो जा रानी ।

फिर से झूंठ, मैं नहीं हूँ कोई रानी वानी और मुझे पता है कि मैं कौन हूँ ,मुझे हरिया काका ने बताया है बस वो ही सच बोलते हैं।

क्या बताया तुझे उस हरिया कपटी ने,हां बोल क्या बताया?

मैं जब भी मेमसाब के घर से काम करके लौटती हूँ न तो हरिया काका की दुकान पर हरी लाल टाफियां देखकर खड़ी हो जाती हूँ मगर मेरे पास कभी भी टाफी लेने के पैसे नहीं होते हैं ऊं हूं...

फिर से रोने लगी,बता फिर।

फिर हरिया काका बोलते हैं ऐ भिखमंगी जब देखो इधर उधर फुदकती रहती है तेरा ये रोज का नाटक है चल भाग यहाँ से भिखमंगी कहीं की,फुट्ट ।
माँ क्या मैं सचमुच भिखमंगी हूँ ?

रोती हुई बिटिया को तो माँ ने अपने ममतामयी आंचल में छुपा लिया मगर एक गरीब के हालातों से लड़ती हुई उसकी पहचान जो इस समाज द्वारा उसपर जबरन थोप दी जाती है, उसे वो अभागी माँ कहाँ और कैसे छुपा पायेगी ???
निशा शर्मा...


2- इन्द्रधनुष...

इन्द्रधनुष,यही नाम है न जीजा जी का ?
धत्त पागल ,धनुष नाम है उनका ।
ओहो उनका और खिलखिलाकर हंस पड़ी थीं दोनों सहेलियाँ ।

आज अनायास ही सुधा को याद आ गयी वो अपनी शादी वाली रात और ये बात । आज शिखा की शादी में जाने के लिए तैयार हो रही सुधा ने जब खुदको आईने में देखा तो याद आ गयी शिखा द्वारा बोली गयी बात और सुधा सोचने लगी ठीक ही तो कहा था शिखा ने कि इन्द्रधनुष का आधा धनुष तो है ही न जीजा के पास तो माना कि पूरे सात रंग न सही पर कुछ दो चार रंग तो रखते ही होगें न देखना रंगीन कर देंगे वो तेरा जीवन, उफ्फ कहकर लाज से भर गयी थी सुधा और एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी थी शिखा ।

आज तैयार होते समय अपने शरीर के खुले हिस्सों पर लगे लाल नीले काले रंगों के निशानों को छुपाने का असफल प्रयास करते हुए अनायास ही उसके मुंह से निकल जाते हैं ये शब्द...

सचमुच इन्द्रधनुष के कुछ रंग तो रखते हैं तेरे जीजा जी और सही तो कहा था तूने रंगीन कर दिया इन्होंने मेरे जीवन के साथ साथ मेरा, कहते कहते सुधा की हिचकियों की आवाज उसके गले में ही घुट कर रह जाती है ।

निशा शर्मा...