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अनन्या...

अनन्या आज बहुत जल्दी में थी। उसे आज जल्दी अपने काम पे पहुंचना था। आज बाहर से कुछ सेवाभावी संस्था के लोग वहां आनेवाले थे। कल रात उसे ऑफिस का काम करते करते बहुत देर हो गई थी तो सुबह जल्दी उठ ना पाई। फटाफट फ्रेश होकर, नहा-धोकर चाई नाश्ता करके वो निकल पड़ी अपनी स्कूटी लेकर। अनन्या एक वृद्धाश्रम में काम करती थी। वो एक अनाथ लड़की थी जो अनाथालय में बड़ी हुई थी। बचपन से ही उसके अंदर लोगों की मदद करने का गुण था। अनाथालय में वो छोटी थी तबसे लेकर २१ साल तक रही। उसने अपनी पढ़ाई भी वहां रहकर की। वहां रहनेवाले सबका दिल जीत चुकी थी वो इतने सालों में। २१ साल के बाद उसको एक जगह अच्छी नौकरी मिल गई और तब उसने अनाथालय छोड़ा वो भी दिल पे पत्थर रखकर। लेकिन फिर भी वहां हर रविवार सबसे मिलने जाती थी। और साथ में 'आख़री मंज़िल' नाम के वृद्धाश्रम में बिना तनख़्वाह लिए वो सेवा करती थी। ऑफिस से छूटकर शाम ५ से ८ वहां रहती थी। अनाथालय के एक ट्रस्टी के द्वारा ही अनन्या का परिचय इस वृद्धाश्रम के मुनिमजी को मिला था और उसका स्वभाव जानकर वो बड़े प्रसन्न हुए थे। और उन्होंने वृद्धाश्रम के ट्रस्टी को अनन्या को वहां काम पे रखने के लिए प्रेरित किया था और इस तरह वो वहां काम करने लगी थी। बिना तनख़्वाह लिए उसने ऐसा अपना काम किया की एक ही महीने में सभी बुजुर्गों की लाडली बन गई। सबसे अपनी बातें, अपने अनुभव शेयर करती थी। बहुत कुछ बातें वो वहां के लोगों से सीखती थी और अपने जीवन में उतारती थी। सबकी तबीयत का ध्यान रखना और उनको रोज़ नए ज़माने की नई नई बातें बताना और उनको कैसे भी करके हसाना अनन्या का काम था। और यह काम वो बख़ूबी करती थी। और इस तरह यहां पर भी उसने सबके मन में अपनी जगह बना ली थी। ३ साल हो गए थे उसे यहां नियमित रूप से काम करते हुए। आज यहां बहार के कुछ सेवाभावी लोग संस्था में कुछ दान करने के लिए आनेवाले थे और इसीलिए अनन्या को वृद्धाश्रम पहोंचने की जल्दी थी। आनेवाले इन लोगों में एक औरत भी थी लगभग ५५ साल की। और उनका नाम था वृंदा शेखावत। उनके पास काफ़ी दौलत थी और इसीलिए वो यहां दान करने आयी थी। खैर, अनन्या ने बाहर के लोगों को सब बुजुर्गों के बारे में और वृद्धाश्रम के बारे में बहुत अच्छे से जानकारी दी। वहां के लोगों को इतना ख़ुश देखकर और अनन्या को देखकर वो औरत काफ़ी ख़ुश हो गई। उनकी आंखें ख़ुशी से भर आयी और उनका मन नहीं कर रहा था अपने घर जाने का। लेकिन उस दिन तो वो चली गई अपने घर लेकिन दूसरे दिन वापस वो वहां आई। सबसे मिली, बातें की और तब तक अनन्या भी वहां पहुंच गई अपने समय पर। अनन्या ने उनको देखकर प्रणाम किया और उनको यहां आज वापस देखकर खुश हुई। और आज वापस यहां आने का कारण पूछा। तब वृंदाजी ने बताया की वो कल यहां आकर बहुत खुश थी उन्हें यहां बहुत सुकून मिला सबसे। और बताया की वो अकेली एक बड़े से बंगले में रहती थी। उनके पति का देहांत ३ साल पहले हो चुका था। उनका एक बेटा था और बहू थी लेकिन बहू की ज़िद थी कि वो अकेले रहना चाहती थी और उसके सामने ना तो बेटे की चली और ना ही वृंदा जी की। और शादी के एक ही साल में बेटे को अपना घर छोड़ना पड़ा और वृंदाजी अकेले रह गई इस बड़े से बंगले में। हर रोज़ बेटा अपनी मां से फोन पे बात करता था और हर हफ़ते उनसे मिलने आता था।इस तरह एक साल गुजर गया। पूरा दिन वो इस बंगले में रो रो के दिन काटती थी। अकेले उनका मन कहीं नहीं लगता था। तब उनकी एक दोस्त ने उन्हें इस वृद्धाश्रम के बारे में बताया। और उन्होंने ते किया कि वो यहां अपने जैसे अकेले बुजुर्गों के लिए कुछ दान करेंगी। और वो यहां आयी । लेकिन यहां का वातावरण देखकर और सबको इतना खुश देखकर उन्हें यहां आकर रहने का मन हुआ और इसीलिए वो दूसरे दिन ये बात करने वहां आयी थी। और उसने ये सब बात अनन्या को बताई और कहा कि ज़िंदगी के आखरी पल वो 'आख़री मंज़िल' में गुजारना चाहती है। और वहां के ट्रस्टी से बात करके वो यहां रहने लग गई। उनको यहां सुकून, शांति और ख़ुशी मिल रही थी। उन्होंने वृद्धाश्रम की बात अपने बेटे को नहीं बताई थी। इसीलिए जब उनका बेटा उनको मिलने आता था उस दिन वो सुबह से अपने बंगले पर चली जाती थी और बेटे के लिए कुछ पसंद का खाना बनाकर रखती थी और उसे खिलती थी। और मां- बेटा दो तीन घंटे साथ में रहकर अलग होते थे। इस तरह समय बीतता गया। एक दिन इसी तरह जब वृंदाजी बेटे के आने के दिन बंगले पर जानेवाली थी तब अनन्या भी कहीं जा रही थी और उसने वृंदाजी को कहा कि वो उनको उनके घर छोड़ देगी। तब वृंदा जी भी उनके पीछे बैठ गई और अनन्या ने उनको उनके घर पे छोड़ दिया। जब अनन्या वहां से निकल रही थी उसी समय वृंदाजी का बेटा भी बंगले की तरफ आ रहा था। उसने पिछे से अनन्या को देखा और घर पहुंचकर वृंदाजी को पूछा की हमारे घर से अभी कौन बाहर निकला? वो कौन थी? तब वृंदा जी ने कहा कि वो उनकी दोस्त की बेटी थी। फ़िर मां- बेटे ने बातचीत कि और वृंदा जी किसी बात पर रो पड़ी। बेटे ने उन्हें संभाला और कहा कि, मां अगर आपने मुझे अपनी ज़िद छोड़कर अपनी पसंद की लड़की से शादी करने दी होती तो शायद आप यहां अकेली ना होती और इस तरह से रोती नहीं। लेकिन आपने मेरी बात ना मानी और अपनी ज़िद पे अडी रही। आपने उसको बिना देखे, बिना कुछ जाने सिर्फ वो अनाथ है इस बात से नाराज़ होकर मुझे अपनी कसम दे दी उससे शादी ना करने की। काश आप उससे एकबार मिलती... खैर, यहां मेरी अलमारी में आज भी उसकी फ़ोटो है अगर आप देखना चाहें तो देखना। बेटे के जाने के बाद वृंदा जी ने बेटे कि अलमारी खोली और एक फ़ोटो निकाली.. फ़ोटो देखकर वो चौंक गई.... ये क्या??? ये अनन्या थी..... अनन्या की फ़ोटो देखकर वो अपने किए पे पछता रही थी... रो रही थी...