Mukhauta - 15 - last part books and stories free download online pdf in Hindi

मुखौटा - 15 - अंतिम भाग

मुखौटा

अध्याय 15

हम सबको वहां देख "व्हाट ए प्लेजन्ट सरप्राइज !" कृष्णन बोला। मैं जानती थी वह जानबूझकर आया है । "मीट माय वाइफ !", उसने बड़ी अदा से अपनी पत्नी उषा का हम सबसे परिचय कराया। मेरे आशानुरूप ही उषा एकदम किसी गुड़िया जैसी थी। कृष्णन रोहिणी की तारीफ़ में "यू लुक ब्यूटीफुल" बोल रहा था। दुरैई संकोच भरी नज़रों से मुझे देखा। जैसे कह रहा हो ‘मैंने नहीं बुलाया’।

"हम आपके साथ बैठे सकते हैं क्या?", आकर्षक शैली में कृष्णन बोला।

"ओ श्योर, प्लीज !", दूसरा कोई चारा ना देख दुरई बोला। कृष्णन, रोहिणी और नलिनी के बीच जा बैठा। "तीन साल पहले तुम छोटी लड़की थी। अब अपनी दीदियों जैसे तुम भी सुंदर और बड़ी हो गई हो ।", कृष्णन अब नलिनी से मुखातिब था । उषा को अच्छा नहीं लगा, यह बात मेरी नज़रों से छुप नहीं सकी ।

"दूसरे आदमी को देखो कृष्णन", उसने उसे बीच ही में काटा। "मैं धोखा नहीं खाऊंगी।"

मैं मुस्कुराकर उषा की तरफ घूमी।, "अमेरिका में रहना कैसा लग रहा है? आपको पसंद आया न? "मैं बोली।

"हां पसंद है !" उसके चेहरे पर प्रसन्नता के भाव आ गए थे। "वहां सब सुविधाएं हैं। जीवन की सुविधाएं अधिक हैं। दो गाड़ी, दो टीवी इत्यादि साधारण लोगों के पास भी हैं ।"

श्रीकान्त के मन में जो असमंजस था वैसा इसके मन में नहीं है ।

"दूर देश में हैं ऐसा कभी नहीं लगा। हर 15 वे दिन में इंडिया में फोन कर लेते हैं।"

मैं हल्के मुस्कुराहट के साथ उसकी बातों को सुन रही थी। अमेरिका की बढ़ाई करते हुए लगता है वह बिल्कुल नहीं थकेगी । परंतु हो सकता है यह भी पर्दा ही हो । कृष्णन की रोहिणी से निकटता से बात करने को भी वह देश से हुई बात बता रही थी। मेरे बारे में कृष्णन ने कुछ नहीं कहा होगा मुझे लगा। उषा एक दीर्घ श्वास ले अपने चारों तरफ देखने लगी।

"वहां रहते समय बहुत इच्छा हो रही थी कि इंडिया आना है । यहां आने के बाद कब लौटेंगे ऐसा लग रहा है।"

"क्यों?" मैंने बिना ध्यान दिए पूछ लिया ।

"कुछ अलग सा हो गया ऐसा कुछ समझ में नहीं आ रहा।" सीधी लड़की है। जोड़ी सीधी रहते-रहते दूसरे की बदमाशी अधिक हो जाती है। पुरुष, महिला दोनों की ही समान नीति है। जिसके पास नहीं होता है-जिसके पास होता है दोनों के बीच लड़ाई जैसे।

"परंतु अभी सिर्फ 1 दिन ही है", मैं बिना समझे उसे देखा।

"कल रात हम न्यूयॉर्क के लिए रवाना हो रहे हैं।"उसके चेहरे में एक प्रकाश दिखाई दिया, जैसे बच्चे बोलते हैं न - कल से स्कूल जाने की जरूरत नहीं है ।

खाना खत्म कर उठते ही कृष्णन ने सबसे हाथ मिलाया। उसने बताया कि कल रवाना होंगे। और यह भी कि दोबारा 3 साल बाद आना होगा ।

"उसके पहले दुनिया शायद उलट जाएं।", मैं तपाक से बोली। उस पर बिना ध्यान दिए सबसे हाथ मिलाकर कृष्णन सपत्नी रवाना हो गया ।

"इसमें शर्म-वरम कुछ नहीं है ! नीरा बेशर्म आदमी है ये।" नलिनी बडबडा उठी, "आकर ऐसे खड़ा हो गया जैसे आमंत्रित हो !" मैंने भी रोहिणी की तरफ ना देख कर चुपचाप आकर कार के अंदर बैठ गई। लगा जैसे एक अध्याय खत्म हुआ ।

सचमुच में मन का दबाव कुछ कम हुआ सा लगा। कृष्णन के चले जाने के कारण होगा शायद। बेवजह ही एक तूफान खड़ा करने आया हो जैसे । अचानक आकर खड़ा हुआ वैसे ही रवाना भी हो गया। और 'अभी कुछ भी नहीं हुआ' ऐसे उसके छांव में रहने वाली उसकी पत्नी है। रोहिणी हमेशा जैसे रहने लगी है । एक नए उत्साह के साथ कुल्लू-मनाली जाने के लिए जब दुरैई ने उसे कहा तो रोहिणी बड़े उत्साह के साथ रवाना हुई । यह जानकर मुझे शांति हुई । बीच में श्रीकांत की याद भी आई। उसके पास से कोई जवाब ही नहीं आया था । इस विषय में मुझे कोई आश्चर्य भी नहीं है। कुल्लू-मनाली जाने के पहले दुरई ने मुझसे कहा था -

"श्रीकांत के पास से कोई समाचार नहीं आया। अभी भी कोई लड़की पसंद नहीं आई लगता है।", मैं चुप रह गई । फिर जैसे कुछ अचानक याद आया हो -

"उसके अप्पा और अम्मा कैसे थे ? तुम्हें पता है ?"

"हां, अब दोनों जने नहीं रहे। उसके पिताजी बहुत गुस्से वाले थे। उसकी अम्मा बहुत सुंदर थी। उसकी मां बेचारी बहुत ही सहनशील और धैर्यवान थी। उनके पास वह बहुत कष्ट पाई है ऐसे श्रीकांत बोलता है। उसे वह बात अभी भी परेशान करती है।"

मैं मौन रह गई। मेरे घर में भी ऐसी कहानियां नहीं है क्या। लड़कियों के रहने वाले सभी घर में कहानियां होती है। महिला और पुरुष के रिश्ते से कहानियां पैदा होती है। मन को परेशान करने वाली वे कहानियाँ अगली पीढ़ी को भी परेशान करती है।

“उसके अप्पा शंकालु स्वभाव के थे। इसीलिए बेटा भी जल्दी से किसी को पसंद नहीं कर सका।“ मेरा ऐसे कहना सुन दुरैई हिचकिचाया होगा। भारत की लड़कियां ऐसे भी बिना संकोच के बात कर सकती हैं क्या श्रीकांत ने सोचा होगा। हो सकता है उसे सदमा भी लगा होगा। उसे भूलने के लिए उसको एक अच्छे लड़की की जरूरत है। इस बार नहीं मिली तो अगली बार...... वह अच्छा है। ‘वह एक नियर परफेक्ट को ढूंढ रहा है, ऐसा लगता तो नहीं’- उस दिन नलिनी बोली। नियर परफेक्ट लड़की कैसी होगी सोचने में भी इंटरेस्टिंग लग रहा था। निश्चय ही वह मैं नहीं हूं ऐसा मुझे आभास हुआ। परफेक्शन तो एक माया है। मनुष्य के विरोधी है। सोने का शाल ओढाकर तख्त पर बैठाने जैसे हुआ। तख्त-शॉल की मुझे जरूरत नहीं। मेरे पुरानी पीढ़ी जिस तरह फंसी हुई थी वैसे फंस कर मुझे परेशान नहीं होना है।

आज सुबह उठते समय पूरा घर धूल से भरा हुआ था। कल रात में आंधी आई होगी। नलिनी ने सभी खिड़कियों को हमेशा की तरह बंद कर दिया होगा। मैं गहरी नींद में सो रही होंगी। परंतु अब वह बेशर्म सपने नहीं आते। मैं सचमुच में नारायणी बड़ी मां जैसे स्थिति में आ गई लगता है।

'यह एक बेकार सिटी है"। कहती हुई लक्ष्मी झाड़ू और डस्टिंग के लिए कपड़ा लेकर आई। ठंड भी मार डालती है और गर्मी भी मारती है।

"तुम्हारा कौन सा गांव है ?"

"परणी के पास। गर्मी तो वहां पर भी पड़ती है। परंतु ऐसी नहीं।"

"यहां क्यों आई फिर ?"

"क्रोध !", कहकर हंसी। "पति कोई दूसरी औरत को घर में लेकर आया। मैं तुरंत वहां से रवाना हो गई।"

"यहां है जो ? मैं असमंजस में पूछी। "यहां दूसरे से शादी कर ली। जबान का तो अच्छा चाहिए ना!"

ठीक नहीं रहा तो यह भी छोड़ने वालों में से नहीं, मैंने मन ही मन सोचा। नलिनी करीब-करीब इसके जैसी ही होगी। मिडिल क्लास मेंटेलिटी से बाहर आने की एक सोच है यह।

दोपहर को रोहिणी का फोन आया। “कुल्लू-मनाली से आए 2 दिन हो गए । तुम्हें एक जरूरी बात बतानी है। घर आओ !”

"क्या बात है?, " मैंने पूछा ।

"घर आओ !", उसने जिद की । क्या बात होगी मैं अंदाजा नहीं लगा पा रही थी । मुझे फिक्र हुई। हो सकता है दुरैई और उसके बीच में कुछ तकरार हुई होगी। पश्चाताप की भावना के कारण उसे लगा होगा ‘अब मैं इसके साथ नहीं रह सकती’ ऐसा फैसला किया होगा। मैं धूप की परवाह किए बगैर ही उसके घर पहुंची। वह कुछ थकी हुई, कुछ कमजोर नजर आई।

"क्या बात है?", मुझमें धैर्य कहाँ था ।

"मैं गर्भवती हूं ।" वह बड़े साधारण ढंग से बोली।

मेरा दिमाग ठनका । अचानक मुझे कुछ समझ में नहीं आया, झट से मेरे मुंह से अंग्रेजी में एक प्रश्न फिसल गया -

"वह भाग्यशाली अप्पा कौन हैं?"

"क्या बक रही हो?", गुस्से के साथ रोहिणी बोली। "इतनी कठोर मत बनो मालिनी। दो महीने का गर्भ है, ऐसा डॉक्टर ने आज ही कंफर्म किया है।"

दो महीने। कृष्णन आने के पहले का समय। सच हो सकता है। धीरे-धीरे मेरे घबराहट जाती रही।

"दुरई ने क्या बोला ?", कमजोर आवाज़ में मैंने बोला।

"उसको तो बहुत खुशी हुई। अभी से वह सपने देखने लगा है।"

मैं थोड़ी देर तक कुछ नहीं बोली। फिर "गुड, तबीयत का ख्याल रखना ।" उसने कुल्लू मनाली में लिए हुए फोटो दिखाए । वह और दुरैई सब में बड़ी खुश नजर आ रहे थे। उसने जो कॉफी बनाई तो पीकर मैं उठ खड़ी हुई। मैं रवाना होने लगी तब वह धीरे से बोली: “फोन में बात बताती तो तुम्हारे समझ में नहीं आता । इसीलिए यहां बुलाया।“

मैंने कुछ जवाब नहीं दिया, चल दी। मैंने अपने आप को अचानक अकेला पाया। लगा जैसे बहुत अधिक थकावट मेरे अंदर आ गई है । ‘इट इज ऑल ए गेम ऑफ ब्रिटेन’ कह रही है रोहिणी। सब कुछ आंख मिचौली का ही खेल है है। किसी की पकड़ में न आने वाले अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार बचते हैं । मैं अपनी सोच में डूबी हुई घर पहुंची। मेरा मन अपनी ही इच्छा से जाने कहाँ कहाँ घूम रहा था। 'आइशा हूइशा वी ऑल फॉल डाउन '- सब लोग देख रहे हैं-अम्मा, नानी, सुंदरी बुआ, कप्पू-

शाम को मैं अपनी धुन में पुण्यकोटी की कहानी के गाने को गा रही थी। गंगे पारे, गौरी पारे, तुमभद्रे, तायु पारे-इडियन आओ आओ, सब को बुला लिए... गायों से मेरा रिश्ता है एक भ्रम उत्पन्न हुआ। मेरे साथ हाथ पकड़ कर नाचने वाली मेरी पूर्व पीढ़ी के साथ... गंगे, गौरी, तुगभद्रा बेबी सब आकर मेरे साथ डांस करने लगे ...शेर की सामना कर रहे हो जैसे। मैं इसमें अकेली हूं। पुण्यकोटी पशु जैसे। ऐसी कोई पागल होगी क्या ? भीड हंस रही है! मुझे जीने के लिए एक नई चीज मिल गई। उसे मैं क्यों खराब करूं?

"अभी तक भी तुम्हें यह गाना याद है?", कहकर नलिनी आश्चर्यचकित हुई। मेरी स्थिति में खड़े हो कर और कितनी ही बातों के बारे में उसे बताऊं तो वह विश्वास भी नहीं करेगी। संकेत की असर बहुत गंभीर होता है। मैं कई लड़कियों को जानती हूं, उन सब का एक-एक संकेत है। मैं जो भी बनी हूं इन विचारों के परिणाम स्वरूप ही बनी हूं। विचारों का एक परिणाम होता है। गोविंदा हाडू भी मेरे मन में एक संकेत दिया ही है। झूठे चेहरे से नफरत करने का एक सबूत ही है।

"बहुत सुंदर गाना है यह।", नलिनी बोली। इसको जब-जब सुनती थी तो उस छोटी-सी उम्र में मैं रोती थी।“

"एक असंभव कहानी है यह नलिनी", मैं अपने आप में बात कर रही थी जैसे। "यह सच नहीं है, इसीलिए आंखों में आंसू आ जाते हैं।"

सत्य को सामने देखने की हिम्मत अब शेर में भी नहीं है।

कॉल बेल बजी । लाली ही दरवाजा खोलने दौड़ी। वहीं से जोर से आवाज दी, "दीदीss ! कौन आए हैं देखो!" ।

मैं बैठक में गई तो देखा वहां श्रीकांत खड़ा था। "हेलो!" हँसते हुए बोला ।

मेरी भावनाएं उमड़-घुमड़ कर उठने लगी । मुझे जैसे विश्वास ही नहीं हो रहा था सो पूछ ही लिया, "मेरा लेटर मिला क्या?"

"मिला। इसीलिए तो आया हूं।" वह बोला।

शेर की जगह अब मैं हूं ऐसा भ्रम मुझ में पैदा हो गया।

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