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बैक बेंचर


अनिल जायसवाल

स्कूल में आज बहुत हलचल थी। आधे छुट्टी के बाद सब सेमिनार हॉल मे इकट्ठे होने लगे। चारों तरह शोर था। सब स्कूल का नाम रोशन करने वाले आलोक भैया से मिलना चाहते थे। हाल ही में अमेरिका की नामी इंटरनेट कंपनी ने वह वाइस प्रेजिडेंट बने थे। वह आजकल भारत आए हुए थे। आज टीचर्स डे भी था। प्रिंसिपल बेदी सर ने एक समारोह में सम्मानित करने के लिए आलोक को बुलाया था।
ठीक 11 बजे स्कूल के गेट पर कार आकर रुकी। आलोक कार से बाहर निकला। वह अपने स्कूल को जी भरकर निहारने लगा। फिर झुककर स्कूल की जमीन को प्रणाम किया। अब तक प्रिंसिपल बेदी सर गेट पर आ गए थे। वह आलोक का सम्मान करने लगे, तो आलोक ने बढ़कर उनके पैर छू लिए। अपने लायक शिष्य को उन्होंने गले लगा लिया। आलोक को साथ लेकर बेदी सर गर्व से हॉल की ओर बढ़ने लगे।
स्वागत समारोह शुरू हुआ। आलोक बोलने के लिए खड़ा हुआ। वह बेदी सर की तरफ देखते हुए बोला, "आज अपने स्कूल में शिक्षक दिवस पर पर बोलने का मुझे अवसर मिला है। आज मैं जो भी हूं, अपने प्रिंसिपल बेदी सर के कारण हूं। इन्होंने मुझे जीवन मे आगे बढ़ने और कभी हार न मानना सिखाया।"
"कैसे आलोक भैया।" हमें बताइये न। बच्चों ने एक साथ गुजारिश की।
आलोक पुरानी यादों में खो गया।
आलोक पढ़ने में कमजोर था। घर से भी गरीब था। क्लास में बच्चे उसे तंग करते। टीचर भी होमवर्क न करने पर उसे डांटते और सजा के बाद पीछे बैठा देते। धीरे- धीरे क्लास के जो चार- पांच कमजोर बच्चे थे, उनके लिए पीछे की बेंच फिक्स हो गई। टीचर भी आते, तो जो पढ़ाते, वह आगे वालों ने पूछकर संतुष्ट हो जाते, पीछे बैठे बच्चों पर ध्यान भी नहीं देते। पढ़ने में कमजोर बच्चे भी डरकर चुप बैठे रहते, कुछ पूछते नहीं। इस तरह वे सब पढ़ाई में पिछड़ते जा रहे थे।
एक दिन बच्चे कक्षा में बैठे थे। तभी क्लास टीचर कक्षा में आए। उनके साथ एक और सर थे। “बच्चो, ये तुम्हारे इंगलिश के नए शिक्षक बेदी जी हैं।”
क्लास टीचर चले गए। बेदी सर इंग्लिश पढ़ाने लगे। वह जो पूछते, आगे बैठे बच्चे फटाफट जवाब दे देते। पर पीछे बैठे बच्चे चुप रहते।
“क्या बात है? तुम लोग कोई जवाब क्यों नहीं देते?” बेदी सर ने पूछा।
“सर उन्हें कुछ आएगा, तब जवाब देंगे ना।” आगे बैठे आकाश के कहते ही सारे बच्चे हंस पड़े। पीछे बैठा आलोक शर्म से और सिमट गया।
आगे बैठे बच्चों के मन में पीछे वाले बच्चों के लिए तिरस्कार की भावना बेदी सर से छिपी न रह सकी। उन्होंने मन ही मन कुछ निर्णय लिया।
अगले दिन पहले पीरियड में बेदी सर आए। बच्चे अपनी सीट से उठ खड़े हुए। बेदी सर बोले, “आज से मैं सीट अरेंजमेंट में बदलाव कर रहा हूं। जो बच्चे आगे बैठते हैं, वे बच्चे अब पीछे बैठेंगे, और जो पीछे बैठे है, आज से वे सबसे आगे बैठेंगे।”
सर का हुक्म था, सबको मानना ही था। सब बच्चों ने सीटें बदल लीं। उस दिन आलोक और दूसरे कमजोर बच्चों को कक्षा में पढ़ाया गया पाठ कुछ समझ आया। इस व्यवस्था से कमजोर बच्चे पढ़ने तो लगे थे, परंतु ऐसा नहीं था कि वे एकदम तेज हो गए थे। क्लास में जो बच्चे आगे बैठते थे, वे मन ही मन कुछ चिढ़ने लगे थे। उन्होंने जाकर अपने माता-पिता से शिकायत की, तो पेरेंट्स-टीचर मीटिंग में हंगामा हो गया।
"मेरा बेटा पढ़ने में तेज है और आपने उसे पीछे बैठा दिया। अब वह कैसे पढ़ेगा।'' रोहित के पिता चिल्लाकर बोले।
बेदी सर ने मुसकराकर जवाब दिया,"जैसे आपका बेटा आगे बैठता है, ऐसे ही और बच्चों को भी आगे बैठने का हक है। उनके माता-पिता भी तो यही बात कहते हैं। तो हम उनको क्या जवाब दें? फिर भी मैं कोई और अरेंजमेंट करने की कोशिश करता हूं।"
बात आई-गई हो गई परंतु यह समस्या बेदी सर के दिमाग में घूमती रही।
बेदी सर ने अगले दिन कक्षा में कहा, “अब से जो भी होमवर्क आप लब को मिलेगा, उसे जो करके नहीं लाएगा उसे यहां रुककर होमवर्क करना पड़ेगा। इसलिए सभी पढ़ाई पर ध्यान दें।”
घोषणा सुनते ही कक्षा के कई बच्चे हंस पड़े। एक उठकर बोला, “सर, फिर तो आलोक कभी घर भी नहीं जा पाएगा।”
बेदी सर ने आलोक की ओर देखा। अपमान से उसकी आंखें भर आई थीं। उन्होंने उससे कुछ नहीं बोला। वह बच्चों को पढ़ाने लगे। पर दिमाग कक्षा के बच्चों के व्यवहार पर लगा रहा। पीरियड खत्म होने के बाद उन्होंने आलोक से टीचर्स रुम में मिलने को कहा।
आलोक अकेला नहीं आया। उसके साथ चार बच्चे और आए। बेदी सर ने उन्हें देखकर कहा, “ऐसे आंसू बहाने से क्या तुम सब पास हो जाओगे?”
“सर, हर समय वे लोग हमारा मजाक उड़ाते हैं। ऐसे में पढ़ा हुआ भी हम सब भूल जाते हैं।” आलोक ने धीमे स्वर में जवाब दिया।
“ऐसे तो तुम सब फेल हो जाओगे। ऐसा करो तुम लोगों को पढ़ाई में जहां भी परेशानी होती है, मुझे बताओ, मैं तुम सबकी सहायता करुंगा।”
आकाश जैसे बच्चों के मन से नफरत निकालने के लिए बेदी सर ने अगल तरकीब निकाली। अगले दिन कक्षा में जो पढ़ाने वाले थे, वह उन्होंने वहीं आलोक और उसके साथ आए बच्चों को पढ़ा दिया। बिना तनाव के पढ़ने से उनकी समझ में पाठ आ गया। बेदी सर बोले, “कल जब कक्षा में इस पाठ को पढ़ाउंगा, तो तुम सब जवाब देना, चुप न रहना।”
ऐसा ही हुआ। अगले दिन कक्षा के बाकी बच्चे हैरान थे कि हमेशा पीछे रहने वाले बच्चे आज बाजी कैसे मार रहे हैं। लंच टाइम में आकाश और उसके साथियों ने आलोक को
घेर लिया। आकाश ने पूछा, “आ यह चमत्कार कैसे हो रहा है?”
आलोक ने हंसकर बोला, “तुम लोग डराते थे, तो हम सब पढ़ाई भूल जाते थे। अब बेदी सर ने प्यार दिखाया, तो हमें सब समझ आने लगा।”

आकाश को खुद पर शर्म आने लगी। वह और उलके साथी नहीं समझ पा रहे थे कि उनके खिल्ली उड़ाने से किसी बच्चे की जिंदगी भी बर्बाद हो सकती है। आज वह यह देखकर दंग रह गया था कि जिन्हें वे सब बैंक बेंचर्स कहते थे, वे पढ़ाई के मैदान में साथ मिले तो फ्रंट रनर बन सकते हैं। खासतौर पर आलोक के आत्मविश्वास को देखकर वह दंग था।
आकाश ने आलोक का हाथ थामा और बोला, “मुझे माफ कर दो। आज से कक्षा में कोई बच्चा ना तेज है ना कोई बच्चा कमजोर, हम सब सिर्फ विद्यार्थी हैं, जो पढ़ने के लिए स्कूल में आते हैं। हम सब मिलकर पढ़ा करेंगे।”
बेदी सर दूर से यह देखकर खुश थे कि अब बच्चों के मन से तेज और कमजोर बच्चे की भेदभाव वाली बात खत्म हो रही है।
परीक्षा के बाद जब रिजल्ट आया, तो सारे बच्चे अच्छे नंबरों से पास हुए थे और आलोक तो कक्षा के पांच टॉपर्स में से एक था। अब वह बैकबेंचर न होकर जिंदगी की दौड़ में भागने के लिए तैयार था।
आलोक ने बात खत्म करते हुए कहा, "अगर बेदी सर मुझे बैक बेंच से उठाकर आगे बढ़ने को प्रेरित न करते, तो शायद मैं आज दुनिया की भीड़ में खो गया होता।"