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जाल

जाल

‘अरे विकास, आज इतनी जल्दी क्यों मचा रहे हो? अभी तो टाइम भी नहीं हुआ है।’-विनोद ने झल्लाते हुए कहा। सच भी था। विकास काम को बीच में छोड़ कर जाने की तैयारी कर रहा था जबकि आज महीने का अंतिम दिन था। बॉस का हुक्म था, क्लोजिंग किए बिना घर नहीं जाना।

‘यार, दोस्त के लिए तू इतना भी नहीं कर सकता। तुझे तो मालूम है आज प्रीति को लेकर जाना है।’-विनोद को लगभग पुचकारते हुए विकास अपना सामान समेटने लगा।

प्रीति उसकी सहेली थी। प्रेमिका कहना मुश्किल है क्योंकि विनोद को उससे प्रेम नहीं था। कालेज से वह सीखकर आया था कि लड़कियां चीज होती हैं, जिसका जितना इस्तेमाल करो, दोस्तों की नजर में स्टेटस बढ़ता है। दोनों साथ-साथ चार्टर्ड बस में आते थे। विकास पहले चढ़ता था। दो स्टाप बाद प्रीति चढ़ती थी। फिर दोनों साथ-साथ आफिस तक आते थे। दोनों का आफिस भी पास-पास था। यूं ही आते-आते प्यार हो गया। अब इस प्यार का उपयोग करने के लिए विकास बेचैन था। आज वह इसी ताक में था। उसके मित्र के यहां पार्टी थी। जहां हर लड़का अपनी गर्लफें्रड लेकर आने वाला था। उसके बाद के दृश्य की कल्पना करते ही उसके शरीर में बिजली भर गई।

‘यार, कब तक तू यूं लड़कियों के पीछे पड़ा रहेगा? इससे अच्छा तो तू शादी ही कर ले।’-कहते हुए विनोद फिर काम करने लगा।

विकास ने बैग उठाया। चपरासी को बताया और यह जा, वह जा। अभिसार की कल्पना ने उसके पांवों में बिजली भर दिए थे। ‘आज तो महीनों की भड़ास निकालूंगा।’-सोचते हुए विकास बस स्टाप तक पहुंचा।

प्रीति अभी आई नहीं थी।

थोड़ी देर बाद उसे प्रीति आती दिखाई दी। साथ में कोई था। ‘अरे... यह तो उसके साथ काम करने वाली सोनिया है। यह इसके साथ कहां आ रही है?’-सोचते हुए विकास परेशान होने लगा। उसकी सारी कल्पनाएं उसका साथ छोड़ने लगीं। प्रीति ने भी उसे देख लिया था। वह हलके से मुसकराई। जब प्यार है, तो मुसकराना तो पड़ेगा ही। चाहे झूठा ही सही।

‘हाय प्रीति, कैसी हो?’-जबरन हंसते हुए विकास ने कहा फिर अपनी नजरें सोनिया पर गड़ा दी।

‘वो क्या है विकास, सोनिया के हसबैंड दिल्ली से बाहर गए हैं। अत: सोनिया घर में अकेली है। उसने रिक्वेस्ट की कि मैं उसके साथ रह जाऊं, इसलिए हम साथ ही जा रहे हैं।’-कहते हुए प्रीति मुसकराई।

-‘और वो मेरी पार्टी? मेरे फ्रेंड्स हम दोनों का इंतजार कर रहे होंगे।’-विकास बोला। उसके स्वर में तड़प थी, पर प्यार की अथवा सपनों के भंग होने की, यह वही ज्यादा अच्छी तरह जानता था।

‘हां मैंने सोनिया को बताया था। वह कह भी रही थी कि मैं तुम्हारे साथ पार्टी में जाऊं। पर क्या हमें इतना खुदगर्ज बनना चाहिए। पार्टियां तो होती रहेंगी। पर सोनिया को अकेले छोड़ना न मुझे शोभा देगा न तुम्हें। क्यों है न?’- प्रीति ने समझाने की कोशिश की।

विकास को मछली जाल सेे निकलती दिखाई दे रही थी। पर वह भी छोटा-मोटा मछुआरा नहीं था। इतने दिनों की मेहनत ऐसे कैसे बर्बाद होने देता। बातें करते-करते वे एक समोसे वाले के स्टाल तक आ गए। विकास ने तीन प्लेट समोसे लिए और सब खाने लगे। विकास को दिमाग तो प्रीति पर ही लगा था। शायद समोसे में भी उसे प्रीति नजर आ रही थी, अत: उसने झट से समोसे चट कर लिए और नजरें प्रीति पर टिका दीं। प्रीति भी उसे देखकर हौले से मुसकाई, और फिर खाने में मशगूल हो गई।

‘सुनो, सोनिया के घर में तुम दोनों अकेले रहोगी। कोई मर्द भी तो चाहिए सुरक्षा के लिए। क्यों न मैं भी तुम दोनों के साथ चलूं। तुम्हें कंपनी भी मिल जाएगी और सुरक्षा भी।’-विकास ने नया पासा फेंका। पता नहीं, शायद उसे अब सोनिया भी मछली नजर आने लगी थी।

‘नहीं, नहीं, मेरे घर में रात में लड़का! पड़ोसियों ने उन्हें बता दिया, तो मैं घर से निकाल दी जाऊंगी। वैसे भी मैं सोसायटी फ्लैट्स में रहती हूं। वहां की सिक्योरिटी काफी अच्छी है। आपको चिंता करने की जरूरत नहीं है। मैं तो प्रीति को कंपनी के लिए साथ ले जा रही हूं।’-सोनिया जल्दी से बोली।

‘अरे विकास , कम आन, तुम भी कैसी बातें कर रहे हो, वो देखो, तुम्हारी बस। फटाफट निकल जाओ, तुम भला पार्टी क्यों मिस कर रहे हो। हम लोग फिर कभी कोई पार्टी शेअर कर लेंगे।’-सोनिया ने बातों से विकास को सहलाया। हालाकि उसके स्वर में खीझ साफ महसूस की जा सकती थी। पर प्यार में अंधे को इससे क्या! विकास तो सावन का अंधा बन गया था। उसे प्रीति ही प्रीति सूझ रही थी।

पर इतनी बात के बाद भी वह कब तक अड़ा रहता! मन मारकर उसने दोनों को बाय किया। फिर भारी कदमों से जाकर बस में बैठ गया। बस उसे लेकर बढ़ चली।

‘अरे यह तो कुछ ज्यादा ही चिपकू है। तू झेलती कैसे है’-झल्लाती हुई सोनिया बोली।

‘बस, ऐसे ही है। पर क्या करूं, इस एक चिपकू से चिपकने से फायदा यह है कि आफिस से लेकर इस बस तक और बड़े बड़े चिपकुओं से मैं बच जाती हूं।’

‘क्या मतलब! क्या तू इससे प्यार नहीं करती। अगर नहीं करती, तो भला तेरे बस से लेकर अपने आफिस तक, सब लोग इसे तेरे ब्याय फ्रेंड के रूप में कैसे जानते हैं?’- सोनिया हक्की-बक्की थी।

प्रीति के चेहरे पर दर्द उभर आया। वह धीरे से बोली-‘कॉलेज से ही यह सीख मिली थी कि किसी एक का पल्ला थाम लो, फिर दूसरा तंग नहीं करता। लोग खाली लड़की में ज्यादा दिलचस्पी लेते हैं। बस में कोई मुझे छेड़ता नहीं। सबको मालूम है कि मैं इस उल्लू से इंगेज्ड हूं। ऐसे ही आफिस में भी इसे इंट्रड्यूज कराने के बाद से वह अपना हरामी डायरेक्टर है न, उसने मुझमें दिलचस्पी लेनी छोड़ दी। तुझे तो याद ही होगा, जब मैंने ज्वायन किया था, तब कैसे उसकी नजरें मुझ पर टिकी रहती थी। ऐसी भेदने वाली नजरों से वह देखता था कि मैंने क्या और कितने कपड़े पहने हैं, मुझसे ज्यादा उसे पता होता था। पर विकास का नाम सामने आते ही उसकी दिलचस्पी मुझमें खत्म हो गई। अब कम से कम वह मुझे बात-बात पर तंग तो नहीं करता।’

‘पर यह तो कोई हल नहीं है, इस समस्या की। अपने को बदनाम कर दूसरों से बचने से क्या फायदा।’-सोनिया ने असहमति जताई।

‘बदनामी, जिस दिन घर छोड़कर हम महिलाएं बाजार में आती हैं खरीदने या कमाने, उसी दिन से बदनामी हमारे पीछे-पीछे चलती है। किसे शौक होता है अपनी बदनामी कराने का। जो घर से निकलकर कमाने जाती है, वह अपनी मर्जी से नहीं जाती। घरेलू औरतों की तरह मेरा मन भी करता है कि घर में रहूं। अपनी इज्जत बचाने का डंका पीटूं। पर अपनी जिम्मदारियों का क्या करूं, भाई नहीं है, तो माता-पिता को क्या उनके हाल पर ही छोड़ दूं। बदनामी तो उसमें भी मिलेगी। पर उस खाली बदनामी से यह बदनामी ज्यादा अच्छी है क्योंकि इससे मैं अपने परिवार का पेट तो भर पाती हूं।’-कहते-कहते प्रीति की आंखों में आंसू छलक आए। पर जल्दी ही उसने चेहरे को साफ कर लिया।

‘हां, यह तो है। अब क्या इरादा है? तेरा बहाना तो चल गया। तेरा चिपकू तो गया।’-कहते हुए सोनिया मुसकाई।

‘हां वह तो गया। तू भी जा अपने घर अपने पति के पास जो घर पर तेरा इंतजार कर रहे होंगे। मैं भी चलूं, अपने घर।’-प्रीति भी मुसकराई।

‘आज तो मेरा बहाना बनाकर तू बच निकली। कल फिर वह कहीं ले जाने की तिकड़म करेगा, तब तू क्या करेगी?’-बस पर चढ़ते-चढ़तेे सोनिया बोली।

‘फिर कोई नया बहाना ढूंढ लेंगे। उसका काम है जाल फेंकना, और मेरा है बच निकलना, जब तक कोई मन को सचमुच नहीं भा जाता, तब तक चूहे बिल्ली का यह खेल तो चलता ही रहेगा।’-कहते हुए प्रीति ने हाथ हिलाया और अपनी बस की ओर चल दी।