Bitwa aa Gwa ... Lockdown books and stories free download online pdf in Hindi

बिटवा आ गवा... लॉकडाउन


पूनम की रात में जवान होने को आतुर चाँद को एकटक देखती रजनी के देखते ही देखते चाँद आसमान में अपनी आभा बिखरे चुका था। लंबे समय से पैदल चलने की वज़ह से रजनी का गौर वर्ण भी कांतिहीन हो गया था। बदन पर पहने सलवार कमीज भी अब तो मैले हो गए थे। कमर के पास से फटे कुर्ते से झांकते नौ महीने जे गर्भ को छुपाती रजनी के आँसुओं से भरे मृगनयना बीच- बीच में ट्रक के साथ से निकलते हर वाहन को देख रहे थे ।
गौरवर्ण कोमल-कंचन काया के कारण कभी सौंदर्य में चाँद को टक्कर देती रजनी बहुत थकी -थकी और और उदास है।चेहरे की आभा भी ना जाने कहाँ खो गई है।
ट्रक पर रखे सामान पर अधलेटी रजनी पीठ के नीचे चुभते घास से हुई खारिश को हाथ से सहलाकर फिर खो गई चाँद के सौंदर्य को निहारने में। चाँद की मस्त चाल को देखकर वो सोचने लगी - "कैसा है ये चाँद अपनी चाँदनी के साथ बेफिक्र होकर आसमान में घूम रहा है। इसे धरती पर रहने वालों की पीड़ का ज़रा भी अंदाजा ही नहीं। अगर इसे मेरी पीड़ा का ज़रा भी आभास होता तो मुझ गर्भवती के पति से अलग होने पर यों आकाश में बैठा ना मुस्कुराता ।"
गहराती रात और अल-सुबह पिया मिलन की आस में मन ही मन मुस्कुराती रजनी ने पेट पर हाथ रखकर धीरे से करवट बदलने का असफल प्रयास किया। पर ट्रक में इतने लोग थे कि सबके लिए गठरी बनकर बैठने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। झटके से घूमता हुआ ट्रक सड़क छोड़कर एक पुल पर चढ़ा तो उसने झटके से बचने के लिए एक हाथ अपने पेट पर रख लिया ।
पुल से गुज़रते हुए रात की रानी चाँदनी के आगोश में लिपटे धरती- आकाश को देखकर उसे अपना ये विचार त्यागना पड़ा कि चाँद अपने-आप में ही गुम है।उसने देखा कि ये चाँद खुद के लिए नहीं बल्कि धरतीवासियों को राह दिखाने के लिए ही मुस्कुराकर, चाँदनी लुटाता खुशियाँ बाँटने की कोशिश करता लगा ।
रद्दी कपड़ों की गठरियों की तरह ट्रक में बैठे लोगों लोगों के बीच सिमटी-सकुचाई गठरी बनकर बैठी रजनी।
लॉक डाउन ना होता तो सबकुछ ठीक ही चल रहा था। वो भी पति बिसन के साथ ही बंबई में एक फैक्ट्री में मजदूरी करती थी। सातवां महीना शुरू होने पर रजनी ने नौकरी छोड़ दी और पति की नौकरी छुड़वा दी मुए कोरोना ने।
लॉकडाउन में महीनाभर तो बंबई रहे पर खोली का किराया,खाने-पीने की समस्या और रजनी की दवाई-दारू की व्यवस्था न हो पाने के कारण बिसन और रजनी ने भी पलायन का रास्ता चुना और निकल लिए पैदल ही गाँव की ओर।
उनके साथ निकले उन्हीं के गाँव के रहने वाले चंदा और संकर जो अपने दो छोटे-छोटे बच्चों के साथ पास ही की खोली में रहते थे और वो भी नौकरी चले जाने से परेशान थे।
भला बंबई से बरेली पैदल जाया जा सकता है क्या? फिर भी वो खूब चले.. चलते गए.. चलते गए... बच्चों की परेशानी और रजनी पूरे महीने पेट से होने की तकलीफ़ देखकर कई बार वो बात करते - 'उंही पड़े रहते खोली में बचियन अउर रजनी तो परेसान ना होते।'
लेकिन रास्ते में झुंड के झुंड मजदूरों के देखकर उन्हें बंबई छोड़ने के अपने फैसले पर पछतावा ना होता।
'चल बिसनवा ऊ टरक बाले भईया से पूछते हैं का जाने ऊ हमको गाँव छोड़ने को राजी हो जाएं।' पर इस तरह उन्होंने कई ट्रक वालों से पूछा और सभी मना करते गए या पहले से वो भरे हुए थे।
आखिर में बहुत मिन्नतें करने पर ट्रकवाला उन्हें गाँव छोड़ने को राज़ी हुआ पर दुगना किराया लेकर। लेकिन वो पहले से ठसाठस भरा हुआ था इसलिए वो सबको बिठाने को राजी नहीं हुआ। तभी पीछे से दूसरा ट्रक आया जो उन्हीं के गाँव जा रहा था। जगह तो उसमें भी नहीं थी क्योंकि एक तो बोरे भर-भर सामान दूसरा उन बोरों पर बैठे इतने लोग। फिर भी ट्रकवाले ने दोनों आदमियों को उसमें बिठाने की हाँ कर ली। अब दोनों औरतें और बच्चे एक ट्रक में बैठ गए और दोनों पुरुष दूसरे ट्रक में
लंबे समय से पैदल चलने के कारण। दोनों ट्रक आगे पीछे ही चल रहे थे। कभी कोई सा आगे तो कभी कोई सा पीछे।
पैदल चलने से आई थकान के कारण रजनी को ट्रक में बैठते ही नींद आने लगी। कई बार झपकी आई भी पर पति से अलग ट्रक में बैठी रजनी के चंचल मगर उदास मृगनयना अपने ट्रक के आगे-पीछे चलते ट्रकों में बिसन को ढूंढने की कोशिश करते इसलिए थकान के बावजूद वो नहीं सो पा रही थी ।
मुँह पर मास्क तो नहीं पर बार - बार में फटी हुई चुन्नी को मुँह के आगे कर शरीर पर आए पसीने को पोंछ रहीं रजनी का हाथ बार-बार गहरी नींद में सोई अधलेटी चंदा के चेहरे पर लग रहा था। कई बार चंदा ने उसके हाथ को हटाया पर...अबकी बार हाथ नहीं गरम पानी की बूंद उसके के चेहरे पर गिरी तो वो सो न सकी और बोली - ' काहे जिया जलावत हो रजनी सुबह होते ही तोहरा बिसनवा ही उतारेगा तोहे इस टिरक से देख हम ऊ इहां बचियन के साथ कले हैं ना ।'
चंदा की बात सुनकर रजनी थोड़ा लजाई पर दूसरे ही पहल उसने चंदा से पूछा - 'और हमाई सास और ससुर, का हम जाते के साथ मिल सकेंगे ऊ सबन से। '
'नहीं रे, रजनी अभी थोड़े दिन नहीं मिल सकत हैं, हम अपन परिबार से। सब कहत रहे थोड़े दिन हम सबन को कवांटनवा..(क्वारेंटाइन) की होवत है ऊके साथ गाँव के कोनो सकूल में ठहरी का पड़ी।'
'जिज्जी अब तो हम बहुते थक गए हैं चल चल के बस सीधे घर जाई का चाही।'
'अच्छा घर जाई का चाही या अपन मरद से मिली का चाही, का रजनी पाँचे घंटा ही हुआ है बिसनवा को तुमसे दूर हुए और तुम हो के इत्ती देर में ही पगला गई।'
चंदा की बात सुनकर रजनी शरम से लाल हो गई और बोली -' का जिज्जी आप भी... ऊ हमका बहुते पीआर करत हैं '
रजनी की बात सुनकर हँसते हुए चंदा बोली - 'सबन के मरद अपन जोरु को पीआर करत हैं रजनी.. पर तोहरे बिसनवा की बात ई कछु अउर है।'
चंदा की बात पर रजनी थोड़ा इतराई और बोली - - 'हाँ जिज्जी ऊ तो है... पर हमार सास - ससुर कैसन है आप तो जानत हो ऊका।'
' हम बताये तो बहुते ही अच्छे लोग हैं ऊ.. बैसे तुम भी तो बात करत रही हो उन लोगन से। '
' जिज्जी बात तो रोज ही होवत है अउर अम्मा तो ई फोनवा में हमका रोज ई देखत है और ई खा, ऊ खा.. कहत रही, बस पहली बार ऊ से मिलेंगे ना एेसा सोचकर घबरा रहे हैं ।'
रजनी की बात के जबाव में चंदा ने कहा 'रजनी तोको घबराने और डरने की कोनों जरूरत नाही। तोहार सास यानी कि हमार चाची बड़ी खुस होगी तुम्हें बिसनवा के साथ देख के ऊ हमार अम्मा को कहत रही कि बिसनवा बिना बताए सहर में सादी कर ली तो का लड़की तो हमार गाँव की है, हम ढूंढत तो भी हम बिसनवा खातिर रजनी जैसी दुल्हिन ना ला पाते।'
'सच्ची जिज्जी हम बहुते खुशनसीब हैं।'
तभी ट्रक में सिमट कर सोई एक बूढ़ी अम्मा बोली - 'बहुते रात हो गई सोई जाओ बचियन का हमार तरफ सुलाय दो अउर खुद तनिक आराम करलो।'
अम्मा की बात सुनकर दोनों चुप हो गईं और
गहराती रात के साथ ही दोनों की आँखों में नींद चढ़ने लगी। ट्रक के अचानक ब्रेक लगाने से सोये हुए सभी लोग एक दूसरे पर गिर गए। झटके से बूढ़ी अम्मा जोर उछली और से रजनी पर गिरी। रजनी दर्द से कराह उठी। ट्रक में बैठे सभी लोग अपना दर्द भूलकर दूसरी तरफ का दृश्य देखकर चीख पड़े क्योंकि मजदूरों से भरा एक ट्रक सड़क पर पलटा हुआ था। इनका ट्रक ड्राईवर ने ट्रक रोका तो सभी लोग दुर्घटनाग्रस्त ट्रक की ओर जाने लगे पर पुलिस ने उन्हें ट्रक के ज्यादा करीब नहीं जाने दिया। चारों तरफ चीखने-कराहने की आवाज़ों के बीच ट्रक ड्राईवर ने पहचान लिया कि ये वही ट्रक है जिसमें इस ट्रक वालों के कुछ रिश्तेदार भी थे।
रजनी और चंदा भी जैसे तैसे बच्चों के साथ ट्रक से उतरी तो किसी के मुँह से सुना कि ये वही ट्रक है जो हमारे साथ ही हमारे गाँव जा रहा था। दोनों औरतें चीखती दुर्घटनाग्रस्त ट्रक की तरफ दौड़ पड़ी। क्योंकि उन्होंने भी ट्रक को पहचान लिया। पुलिस के रोकने के कारण वो छुड़ाकर घायलों को देखने के लिए छटपटा रहीं थीं माँ की हालत देखकर बच्चे भी जोर-जोर से रोने लगे। रजनी और चंदा तो जैसे बेसुध हो गईं थीं इसलिए ट्रक में साथ बैठो अम्मा ने बच्चों को संभाल लिया।
घायलों को एंबुलेंस में चढ़ाते समय अचानक चंदा को संकर की सी आवाज सुनी पुलिस के लाख रोकने पर भी वो छुड़ाकर भाग गई एंबुलेंस के पास और खून में लथपथ पति को देख दहाड़े मार कर रोने लगी। अब तक विरहिणी रजनी भी दर्द से तड़पती पेट को पकड़े वहाँ तक पहुँच गई। पर उसे बिसन कहीं नहीं दिखा।
रोती हुई हुई पत्नी चंदा और रजनी को देख दर्द से कराहता हुआ संकर बोल पड़ा-
'साहेब हमें जादा चोट नहीं लगी हमार दोस्त बिसन ट्रक के नीचे दबा है उका निकालिए ना जल्दी..उका बी ले चलिए अस्पताल।'
'हाँ-हाँ.. सभी को अस्पताल ले जा रहे हैं तुम भी बैठो ' एक पुलिसकर्मी बोला।
लेकिन बिसन की बात सुनते ही दहाड़े मारकर रोती हुई रजनी दौड़ पड़ी ट्रक के पास जहाँ घायल मजदूर गिरे पड़े थे
लेकिन पुलिस के डंडों की दीवार ने उसे आगे नहीं जाने दिया,घायलों के बीच लाशो को देखकर वो चीखती रही चिल्लाती रही अपने बिसन का नाम ले लेकर।
तभी 'चलो हटो यहाँ से,सब पीछे हो जाओ.. मास्क लगाओ अपने-अपने मुँह पर।' कहते हुए पुलिस का डंडा उस गर्भिणी गाय के पेट पर लगा तो आह! के साथ बैठ गई नीचे अपने नौ महीने के गर्भ को संभालतीi।
पति के एम्बुलेंस में बैठ जाने के बाद निर्जीव बिसन को स्ट्रेचर पर देखकर चंदा चीख पड़ी
'ई तो हमार बिसन है रुकिए भईयाजी ई का बीवी उधर है
-' ओ बिसन उठा.. उठा बिसनवा...रज्जी.. रज्जी तोहार बिसन कहती हुई चंदा दर्द से तड़पती ज़मीन गिरी रजनी की तरफ भागती है।
उधर रजनी भी चंदा की आवाज सुनकर खड़ी होने की कोशिश करती है जिसे चंदा सहारा देकर होकर एम्बुलेंस की तरफ ले आती है...पुलिस वाले भी शांत होकर चुपचाप रजनी को इधर आने देते हैं।
स्ट्रेचर पर पड़े निर्जीव बिसन को जगाने के जतन करती,.. मछली सी तड़पती रजनी होश खो बैठती है पति की मृत देह से लिपट कर।
खून से सने रजनी के कपड़े देखकर चंदा समझ गई कि प्रसव का समय आ गया पर रजनी को तो प्रसव पीड़ा का अहसास भी नहीं हो रहा।
ट्रक सवार लोगों ने बच्चों को संभाल रखा है पर वो उनसे छुड़ाकर माँ के पास आने के लिए चिल्ला रहे हैं। रजनी को भी उसी एंबुलेंस में अस्पताल ले गए।
ठगी सी खड़ी चंदा को बूढ़ी अम्मा ने सहारा दिया-'रो नहीं बिटिया...बचियन को चुप करा जरा।' परिस्थितियों से अनजान बच्चे माँ के पास आ जाने से बच्चे चुप हो गए।
ट्रक ड्राइवर पर पुलिस रवाना होने का दबाव बना रही थी। चंदा को अस्पताल जाना था पर इसलिए वो गाँव नहीं जा सकती पर बच्चों के साथ कैसे...वो सोच ही रही थी कि बूढ़ी अम्मा बोल पड़ी - ' बिटिया ई हमार बेटा - बहू, हम तोहार गाँव के ही है, दस साल से हम बंबई रहते हैं। ई बीमारी ने रोजगार छीन लिए तो गाँव जा रहे हैं अब कभी बंबई नहीं आएंगे गाँव दूर नाही अब।हम तोहार साथ अस्पताल चलते हैं..
तोहार ऊ बिटिया के घर से जब कोई आ जाएगा तो हम गाँव चले जाएंगे।
चंदा कुछ बोल नहीं पाई पर उसके चेहरे आश्चर्य मिश्रित स्वीकारोक्ति देखकर अम्मा बोली -' बिटिया गरीब ही गरीब का साथ देवत है, अमीरों की तरह इक दूजे का गला नाही काटत।'
मुश्किल से अस्पताल जाने की व्यवस्था हुई।
वो बच्चों को लेकर अस्पताल पहुँचे पर
कोरोना के डर से उन्हें अस्पताल के भीतर नहीं जाने दिया गया। चंदा के लिए भी बिसन की मौत किसी आघात से कम नहीं थी। पति और रजनी को देखने की गुहार लगाती चंदा ने अम्मा जी के परिवार के साथ अस्पताल के बाहर ही डेरा डाल लिया तो उसे पति से फोन पर बात करने की इजाजत मिली संकर का फोन तो जाने कहाँ गया इसलिए उसने अस्पताल के कर्मचारियों की मिन्नतें करके अपना फोन पति संकर के पास भेज दिया और अम्माजी के बेटे राधे के फोन से पति से बात की।
एक व्यक्ति को रजनी के पास रहने की इजाजत मिली इसलिए रजनी के पास अम्माजी ने बहू चम्पा को रजनी के पास भेजा। जो अपने फोन से रजनी के समाचार दे सके।
संकर ने दूसरे दिन चंदा को बताया कि रजनी को बेटी हुई है। बिसन के माँ-बाप को बेटे की मौत और रजनी के बेटी होने की सूचना दे दी गई है। उसके पिता बेटे का शव और माँ अपनी बहू को लेने यहाँ आ रहे हैं।
'अम्माजी हमार चाची ऊ बिसन की माँ आय रही हम कैसे मिलें उनसे, का बात करेंगे, कैसे सामना करेंगे उका।'
'बिटिया भगवान सुख पचाय की ताकत देता है तो तो दुख सहने की हिम्मत भी देगा।'
अम्माजी यों तो हमार चाची बहुत बड़े दिल की है पर ऊ रजनी से कभी नहीं मिली। रजनी तो पहली बार ससुराल जाय रही .और बिसन..' कहती हुई चंदा फफक पड़ी।
तभी राधे के फोन पर संकर का फोन आया - ' तोहार चाची आय गई है मेरे पास ऊका
फोन आया'है, अउर हमका भी आज ईहाँ से छोड़ रहे हैं।'
लॉकडाउन के कारण अस्पताल के आसपास इक्की-दुक्की गाड़ियां ही दिख तभी एक गाड़ी से चाचा-चाची उतरे उन्हें देखकर चंदा दौड़ पड़ी। चाची ने रोते हुए चंदा को गले लगाया। चाचा को बता दिया कि एंबुलेंस में बेटे की लाश है। चाचा रो-रोकर पहले ही पत्थर हो चुके थे सो अब वो चुप रहे।
संकर को भी एम्बुलेंस में ही बिठाया गया और अंदर से रोती-बिलखती रजनी को थामे चम्पा भी बाहर आ गई नर्स बच्ची को गोदी में लेकर आई और बच्ची को चंदा को थमा दिया।
चंदा कुछ कहे इससे पहले बिसन की माँ ने पोती को देखा और रजनी को गले लगाते हुए हुए कहा - ' रो नहीं बहुरिया ई देख हमार बिटवा आई गवा.. देख हमार बिसनवा बापस आई गवा हमार बचवा।'
सुनीता बिश्नोलिया