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एक दूजे के लिए


एक-दूजे के लिए
"ओफ्फो! रश्मि तुम फिर सब्जी लेने नीचे चली गई कितनी बार मना किया है तुम्हें, पर तुम हो कि मानती ही नहीं।"
"अरे! बाबा मैं मास्क लगाकर गई थी और मैं कौनसा दरवाज़े से बाहर निकली थी उसने सब्जी अंदर ही पकड़ा दी थी । "
"पर तुम क्यों गई वो ऊपर जाता ।"
"अनुज मैंने बताया था ना कि दो - तीन दिन पहले उसे कुत्ते ने काट लिया था इसलिए वो ऊपर नहीं आ सकता था ।"
"तो किसी और से ले लेते या ऑनलाइन मंगावा लेते तुम्हें पता है ना कि तुम शुगर पेशेंट हो अगर एक बार कोरोना की चपेट में आ गई तो..... ।"
अनुज की बात सुनकर उसकी माँ बीच में बोल पड़ी।
" अनुज वास्तव में सही ही सुना हैं, कोरोना ने लोगों को संवेदनहीन बना दिया।"
"क्या कहा माँ.. ? "अनुज ने आश्चर्य से माँ को देखते हुए कहा।
" और नहीं तो क्या अनुज! हमें तो कोरोना से इतना डर लगता है कि हम सीढियां भी नहीं उतरना चाहते और बेचारा वो गरीब जो चलने से लाचार है फिर भी गलियों में घूमकर सब्जी बेचने के साथ सब्जी लोगों के घरों में ऊपर तक
पहुँचाता है। "
"हाँ तो माँ ये उसका काम है, काम करेगा तभी पैसे कमाएगा।"
" हाँ, अगर वो अच्छी तरह मास्क आदि लगाकर काम करता है वो हम भी पूरी सुरक्षा और सावधानी के साथ जाकर सब्जी ले सकते हैं ना। वो तो जगह - जगह घूमता है अगर वो ऊपर आए तो जरूर कोरोना.......!"
रश्मि चुपचाप इन माँ-बेटों की बातें सुन रही थी पर वो बीच में नहीं बोली क्योंकि ये आज की नहीं रोज की बात है। अनुज रोज किसी ना किसी को हर किसी काम में टोक दिया करते थे और कई बार उसका इस तरह सबको टोकना माँ को पसंद नहीं आता और वो उसे समझाने लगती थी ।
रश्मि कुछ सोच ही रही थी कि अनुज ने माँ से कहा - "माँ आपको कुछ नहीं पता आप बस.. और पता है रश्मि की सहेली प्राची बनती थी समाज सेविका हो गया ना कोरोना पड़ी होगी घर के एक कौने में । भगवान ना करे कुछ हो गया तो...
अनुज के मुँह से इस तरह की नकारात्मक बातें सुन-सुन कर रश्मि को भी बहुत गुस्सा आता था। वो बहस होने के डर से ज्यादा कुछ नहीं कहती थी। प्राची का नाम आते ही रश्मि ने सोचा चलो प्राची से बात ही कर लेती हूँ क्योंकि उससे बात करके रश्मि को बहुत ही अच्छा लगता था।
वो सोचती है कितनी हिम्मतवाली है प्राची और उसका परिवार कितनी बड़ी मुश्किल से उचित देखभाल के कारण आसानी बाहर निकल आए।
प्राची ने खुद ही तो सबको बताया था कि उसके संपर्क में जो भी आया है कृपया वो स्वयं का ध्यान रखे क्योंकि वो कोरोना पॉजिटिव है।
प्राची ने उसे फोन पर बताया था कि उस दिन जब वो सोकर उठी तो उसे गले में खराश के साथ ही सिर भारी-भारी लगा और थोड़ा बुखार भी महसूस हुआ।
उसने चाय बनाई तो उसे अपनी पसंदीदा अदरक वाली चाय वही बेस्वाद लगी। ना ही कोई खुशबु ना कोई स्वाद। हाथ धोते समय हेंडवाॅश में भी खुशबु नहीं आई तो उसे थोड़ा वहम हुआ और उसने गरममसाला निकालकर अपने हाथ पर डाला।
उसने गरममसाले को बिल्कुल नाक के पास ले जाकर ऊपर खींचा तो वो नाक में चढ़ जरूर गया पर खुशबु नहीं आई।
अब प्राची का शक यकीन में बदल गया। उसने देखा कि बच्चे तो ऑनलाइन पढ़ाई के कारण ज्यादातर हॉल में ही रहते हैं और वहीं सोते हैं इसलिए वो अपना फोन उठाकर फटाफट बच्चों के कमरे में जाकर बैठ गई। उसने फोन करके सभी घर वालों को जगाया और सारी बात बताई और किसी को अपने कमरे में नहीं आने दिया ।
बच्चों को कहकर पूरे घर को सेनेटाइज करवा दिया पतिदेव को खाना बनाने की जिम्मेदारी दे दी। नौ बजते ही अच्छी तरह मास्क आदि लगाकर खुद चली गई कोरोना टेस्ट करवाने।
जैसा कि उसे लग ही रहा था दूसरे दिन टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आई तो उसे कुछ खास फर्क़ नहीं पड़ा। उसने उसने अपने सभी मित्रों को आईसोलेट हो जाने के लिए कहा।
रश्मि नियमित रूप से उससे बात करती थी कभी वॉयस कॉल करती या प्राची का खुद का ही वीडियो कॉल आ जाता।
वो बताया करती किउसके कमरे के बाहर एक टेबल रख दिया गया जिस पर वो लोग प्राची की जरूरत का सारा समान रख देते थे और प्राची वहाँ से वो समान ले लेती।
वो अपने कमरे के दरवाज़े को हल्का सा खोलकर अंदर बैठी रहती है और उसके बच्चे व पति हॉल में बैठकर सारे दिन मज़ाक करते रहते। उन लोगों ने कभी प्राची के होंठों से मुस्कान जाने ही नहीं दी।
कभी वो लोग बाहर से आवाज लगाते महारानी साहिबा की खिदमत में अगर कुछ कमी रह जाए तो गुलामों को बख्श दिया जाए।
कभी- कभी तो बच्चे प्राची के सलवार - सूट पहनकर उसका दरवाज़ा खटखटाते और कहते
"महारानी जोधा ज़रा गौर फरमाएं पेशे खिदमत है कनीज़ो का.... डांस। "
शानदार उर्दू के बीच अंग्रेजी छोंक की खुशबु से महक उठता पूरा घर और बच्चों के पहने हुए कपड़ों की नुमाईश तो फिर होती। प्राची हमेशा गूगल मीट का लिंक तैयार रखती थी। जैसे ही बच्चे कोई नई नौटंकी करते वो अभी जॉइन करने का लिख कर वो लिंक को पोस्ट कर देती थी फेमेली ग्रुप में। सभी एक बार जुड़ जाते तो हँसी मज़ाक करते हुए कब घंटे दो घंटे निकल जाते पता ही नहीं चलता था।
उसने अपने कमरे के लिए अलग से झाड़ू और पोंछा मँगवा लिया था इसलिए वो दिन में दो बार अपने कमरे में झाड़ू-पोछा करती और कमरे के अंदर रखे हर सामान को पोंछती रहती थी। बच्चों ने एक उपन्यास पकड़ा दिया उसे भी उसने तीन दिन में खत्म कर दिया।
वो अंदर बैठी-बैठी ही पति और बच्चों को खाना बनाने की विधि बताती रहती है। ऐसे माहौल में भी कितनी सकारात्मकता है उसके घर में। यही सोचते हुए प्राची वो फोन करने के लिए रश्मि ने मोबाइल उठाया ही था कि उसका फोन बज उठा।
" अरे! प्राची का ही आ गया फोन.." - कहते हुए उसने फोन उठाया और लग गई दोनों सहेलियाँ गप्पे मारने। कई देर तक दोनों सहेलियाँ हा-हा- ही-ही करती रही उधर अनुज के चेहरे के बनते-बिगड़ते एक्सप्रेशन देख रश्मि की सास ने रश्मि को फोन को स्पीकर पर करने का इशारा किया।
रश्मि ने जैसे ही फोन को स्पीकर पर किया उधर से प्राची की आवाज़ आई - "अरे भई! रश्मि पहले सुन लो बच्चे कुछ कह रहे हैं।"
"अच्छा क्या कह रहे हैं, उन्हें बोलो जोर से बोलें कुछ सुना नहीं। "
"अरे बाबा! अभी उन्होंने कुछ बोला ही नहीं मैं फोन का मुँह को गेट के बाहर करती हूँ तब सुनेगा तुम्हें।"
" अच्छा तो बच्चो बोलो कैसे हो.. " रश्मि ने कहा।
दूसरी तरफ से प्राची के बच्चों की आवाज़ आई --"आंटी कैदी नंबर चार सो बीस यानी आपकी खास सहेली श्रीमती प्राची वर्मा के अच्छी देख-भाल और उचित खान-पान के साथ ही डॉ की हर सलाह मानने के कारण कोरोना की कैद से आज़ादी मिल गई है और डॉ के द्वारा की गई जांचों में ये लगातार नेगेटिव पाई गई हैं।
इसी कारण हमने भी दो दिन बाद इन्हें अपने कमरे को खाली करने का दबाव बना लिया जिस पर आपने डॉ के कहने पर अतिक्रमण किया हुआ था...सूचना समाप्त हुई धन्यवाद।
बच्चों की बातें और प्राची के ठीक हो जाने से रश्मि और उसकी सास तो खुश थी ही बल्कि उस समय अनुज के चेहरे पर सकारात्मक भाव देखकर दोनों बहुत खुश थीं।

सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर