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फिर आएगा वसंत

आएगा वसंत
चम्पा चमेली, गेंदा, गुलाब..... ना जाने कितनी तरह के पौधे लगे हैं, इस बगीचे मेंं।
हर क्यारी फूलों से गुलजार है हर डाली पर फूल खिले हैं । इठलाते गुलाब और शान दिखाते गेंदे को छोड़कर बगीचे में जिधर भी नज़र घुमाकर देखें तो लगता है हम स्वर्ग में ही आ गए हैं।इतनी सुन्दर क्यारियां,पौधों की इतनी सुन्दर कटिंग, कहीं झांकते नव-पल्लव तो कहीं कलियाँ और फूल।
हँसती हुई कलियों और फूलों के बीच चंदा की पायल सी खनकती हँसी और साथ ओहो..कहते हुए चंदा के पिताजी की बहुत ही शांत हँसी ने वातावरण में मनुष्य की उपस्थिति का अहसास करवाया है।
भाई के किए का मजाक बनाते हुए बाबा की लाडली चंदा बाबा को एक गुलदस्ता दिखाकर कहती हैं - ‘‘बाबा देखों ना मन्नू ने क्या किया है। (हँसते हुए) गुलाब में गेंदेओर गेंदे में गुलाब के फूलों को मिलाकर रख दिया। पागल कहीं का। ऐसे भी भला कोई गुलदस्ता बनता है।
लाडली चंदा बिटिया की बात पर हँसते हुए झाबर बोला- ‘‘कहाँ खोये रहते हैं ये माँ-बेटे चल अब कोई बात नहीं, आज ही किया है ना तो तू इसे सही कर दे।’’
‘‘हाँ बाबा, अभी लगा देती हूँ। आप उस बुद्धू को ऐसा काम देते ही क्यों हो।’’
चंदा को नहीं पता था कि मन्नू पीछे खङा सारी बातें सुन रहा है क्या इसलिए जैसे ही चंदा की बात खत्म होती है, हाथ मं झाडू लेकर खड़ा मन्नू उसके पीछे दौड़ते हुए कहता है -‘‘बताऊँ क्या तुझे, तुझे बड़ा आता है गुलदस्ता बनाना । काम करते हैं बाबा और क्रेडिट ले लेती है तू। ’’
भाई की बात सुनकर चंदा भागकर बाबा के पीछे छिप जाती है और कहती है -‘‘चुपकर जा जा ... झाडू....लगा । माँ अकेली फूल- पत्ते साफ कर रही है। तू वही करते अच्छा लगता है।’’
इतना सुनते ही मन्नू गुस्सा करते हुए चंदा को पकड़ने की कोशिश में उसकी तरफ बढ़ता है।
मन्नू को अपने इतना पास देखकर चंदा बाबा को पकड़ लेती और बाबा को भी अपने साथ कभी इधर कभी उधर खींचने लगी।
ये इनका रोज का ही काम था कॉलेज से आकर दोनों भाई-बहन रोज माँ-बाबा की मदद करते और बाबा के साथ मिलकर चंदा रोज भाई की टांग खींचा करती थी।
दोनों का बचपना देख बाबा को हँसी आ जाती है और कहते है दोनों जवान हो गए हो पर अभी तक बचपना नहीं गया।
मन्नू जाओ माँ के पास काम करवाओ नहीं तो गुस्सा करेगी।’’
बाबा की बात सुन मन्नू मुँह झंझलाकर बच्चों की तरह पैर पटकता है क्योंकि चंदा उसे चीभ
ये देख मन्नू फिर हाथ उठाता पर बाबा बीच में ही बोल उठते है- ‘‘मन्नू क्या बेटा ये तो बच्ची है इसकी बराबरी करोगा क्या? छोटी बहन पर गुस्सा नहीं करते ।’’
‘‘ऊँह ... बच्ची है तेईस साल की बच्ची है तो मैं कौन-सा ज्यादा बड़ा हूँ। आप तो इसे ही सर पर बिठाकर रखो।’’बड़बड़ता हुआ मन्नू माँ की तरफ बढ़ गया, जहाँ माँ ने अमलतास के गिरे हुए फूलों को इकट्ठा कर लिया था।
ज्यादा बोले बिना माँ ने पलाश की तरफ इशारा करते हुए कहा- ‘‘उन सारे पेड़ों के नीचे का कूडा इकट्डा कर लियो।’’
‘‘माँ मै सारा कूड़ा और पत्ते इकट्ठा कर लूंगा आप बैठ जाओ एक जगह ।’’- अस्थमा की मरीज माँ के कंधों पर हाथ रखते हुए मन्नू ने कहा।
‘नही रे बेटा तू अकेला कैसे करेगा, आज कुछ ज्यादा ही पत्ते बिखरे है।’
‘‘अपनी लाडली चंदा को बुला लो वो कुछ नहीं करती बस लगी रहती है बाबा के पीछे पूंछ की तरह। काटा-छांटी का बहाना कर के।’’
नहीं... नहीं आजकल वो पौधों की बहुत अच्छी कटाई- छंटाई करती है बिल्कुल तेरे बाबा की तरह।
अभी -अभी तो कॉलेज से आई है। अभी उसे बुके बनाने है, फूलों को पैक करना है।’’
बेटी का पक्ष लेती हुई माँ की बात से नाराज मन्नू बोला- ‘‘मैं भी तो अभी कॉलेज से आया हूँ, वो फूलों को पैक करेगी तो क्या हुआ डिलीवरी तो मैं ही करके आऊँगा ना।’’

‘ओ हो ! बस मन्नू अब बड़ा हो जा वैसे भी इस बगीचे के फूलों -पेड़ों का आखरी वसंत है। मालिक कह रहे थे। बस इस के वसंत के बाद यहाँ अपार्टमेंट.... ’’ कहते - कहते माँ की आँखों में आँसू आ गए।
मन्नू जानता था ये बगीचा माँ की जान है कभी कभी तो ईर्ष्या होने लगती है कि माँ इस बगीचे को हमसे ज्यादा प्यार करती है। इसलिए मन्नू ने माँ की भावनाओं को समझ कर उनकी आँखों से आँसू पौंछते हुए कहा - ‘‘माँ आप चिंता मत करो आप तो जानती हैं कि जमीन हमारी नहीं, मालिक जो चाहे करें हम होते कौन हैं बोलने वाले। आप ज्यादा विचार मत करो बीमार हो जाओगे, जो होगा देखा जाएगा। आप बैठो यहाँ चलो मैं ये कचरा उठा लेता हूँ।’’
बेटे की बात सुनकर खुद को संभालते हुए माँ ने कहा-'‘नहीं बेटा तू अकेले इतनी सफाई नहीं कर पाएगा हम दोनों मिलकर पहले सारा कचरा इकट्ठा कर ले फिर बैठेंगे ।’’
मन्नू जानता था माँ के मन में बस ये बगीचा और बार - बार बगीचे को देखने आने वाले बिल्डरों की बातें ही चल रही हैं पर उसने बात को आगे ना बढ़ाते हुए जल्दी-जल्दी पेड़ों के नीचे बिखरे हुए फूल-पत्ते चुनते हुए सफाई करना शुरू कर दिया ।
माँ ने अभी दो ही पेड़ों के नीचे सफाई की थी कि उसकी साँस फूल गई वो हाँफने लगी। पर उन्होंने पास ही काम कर रहे बेटे को यह अहसास नहीं होने दिया और लगी रही धीरे-धीरे पत्ते समेटने।
बगीचे में चारों तरफ नए पुराने हरियाले पेड़ लाल पीले रंग में रंगे मुस्कुरा रहे थे।
उधर चंदा ने कटाई-छंटाई करके बुके बनाने के लिए फूल इकट्ठे कर लिए और भाई की मदद के लिए आ गई।
चंदा ने जल्दी-जल्दी सारे फूल-पत्ते इकट्ठे कर लिए आखिर में वो माँ की तरफ आई,उसे माँ दिखी नहीं पर आवाज लगाने पर हाँफती हुई आवाज माँ ने हाँ मेंं जवाब दिया तो चंदा ने भागकर उन्हें संभालते हुए कहा - "आपका पम्प कहा है माँ ।’’
" तुझे ही दिया था"- कहते-कहते ग्यारसी यानि चंदा की माँ ज्यादा हांफने लगी तो चंदा ने अपने पेंट की जेब टटोल कर जेब से पंप निकालकर माँ के मुँह में पंप करते हुए कहा-‘‘अरे माँ आप पंप तो मेरे पास ही छोड़ आई,सॉरी मुझे भी याद नहीं रहा। ’’
‘मन्नू माँ को संभाल इधर आ’’- चंदा के इतना कहते के साथ ही मन्नू वहाँ दौड़ आया। झाबर को भी बेटी की आवाज सुनाई दी थी इसलिए वो भी काम छोड़कर वहीं आ गया। पम्प लेने के थोड़ी देर बाद ग्यारसी सामान्य हो गई और दोनों बच्चों ने मिलकर इधर का सारा काम भी खत्म कर लिया ।
अब सभी चल दिए लाल और नारंगी फूलों से लदी हरी-भरी बेल के पीछे बगीचे के कोने में बने अपने घर में।
दूर से देखने पर पता नहीं चलता कि बगीचे में घर भी बना है, क्योंकि फूलों की क्यारियाँ और पेड़ों के आगे तारों के सहारे बेल इस तरह ऊपर चढ़कर फूल-पत्तों से लदी है कि पास आकर भी मुश्किल से ही पता चलता है कि इसके पीछे घर है भी है और उस घर के चार प्राणियों के साथ रहती हैं श्यामा गाय और उसकी बछिया पूनम... पूनम इसलिए क्योंकि ये पैदा हुई थी पूनम के दिन इसलिए चंदा ने इसे यह नाम दिया। इसके अलावा इनके साथ रहता है लेब्रा प्रजाति का मोती जो यों तो सारे घर का लाडला रखवाला है पर पक्का दोस्त है मन्नू का। सब घर वालों के सामने लाङ में आकर सो जाता है और थोड़ा आलसी भी है पर घर के सब लोगों के सो जाने के बाद पूरा चौकन्ना रहकर घर का ध्यान रखता है।
और घर की तरफ हलचल होते ही जहांँ श्यामा और चंदा रंभाने लगी वहीं मोती भी खुशी से कूं-कूं करने लगा।
मन्नू माँ को सहारा देकर धीरे-धीरे घर ले आया,जहाँ चंदा ने पहले ही चारपाई बाहर निकाल कर रख दी थी।
माँ को चारपाई पर बिठाकर मन्नू ने थोड़ी देर उनके पैरों को मसला फि खूंटे से बंधी श्यामा और चंदा को चारा देने के लिए खड़ा हुआ तो मोती उसके पीछे-पीछे घूमने लगा । तभी चंदा ने चाय की घंटी बजा दी - ‘‘चाय आ रही है यात्री अपनी सीट पर सीधे होकर बैठ जाएें।’’
ये सुनकर सभी हँसने लगे और माँ भी बैठ गई। सब चाय पीने में व्यस्त हो गए पर बगीचा हाथ से जाने की सोचकर माँ की आँखों में रह रहकर आँसू आ रहे थे वो वो चाहकर भी अपने आँसू नहीं रोक पा रही थी।
हालांकि दुखी और परेशान तो झाबर भी था पर वो सबके सामने अपना दुख प्रकट नहीं करता था। वो खुद को यह कहकर समझा लेता था कि यह जगह हमारी थी ही नहीं इसलिए एक दिन तो हमारे हाथ से जानी ही थी।
दीनदयाल जी कारोबार के सिलसिले में मुंबई आते-जाते रहते थे,पीछे घर में माँ - पिताजी पत्नी और दोनों बेटे रहते थे। माँ - पिताजी की मृत्यु के बाद वो सपरिवार मुंबई बस गए। हर तीसरे चौथे महीने उनका जयपुर आना होता था। इसलिए घर की रखवाली के उन्होंने लिए एक चौकीदार नियुक्त कर दिया।
बच्चों का अपने घर के प्रति अनुराग रहे इसलिए वो हर साल परिवार सहित दीपावली पूजन के लिए यहाँ आया करते थे।
दीनदयाल जी के दोनों बेटे बड़े मेहनती और होशियार थे दोनों का अच्छा काम चल रहा था। छोटा बेटा मुंबई में ही कपड़ों का व्यापार करता था और बड़े बेटे ने सूरत में कपड़ों की मिल शुरू कर ली थी। बड़े बेटे की शादी तय करने की खुशी में दीनदयाल जी आखरी बार जयपुर आए थे। उन्हीं दिनों सूरत में प्लेग फैल गया था और उसकी चपेट आकर में दीनदयाल जी के बड़े बेटे की मौत हो गई थी। और दीनदयाल जी इस दुख से उबर नहीं पाए और उन्होंने खाट पकड़ ली लगभग दो महीनों बाद उन्होंने ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। अब मुंबई और सूरत सारे कारोबार की सारी जिम्मेदारी छोटे बेटे श्याम सुंदर पर आ गई।काम की अधिकता के कारण दिपावली पर उसे जयपुर आने का समय नहीं मिलता था। पर माँ की खुशी के लिए जब भी समय मिलता साल में एक बार माँ बेटे जयपुर आते।इसी बीच माँ के प्रयासों से श्याम की शादी हो गई। श्याम सुंदर अब अपने परिवार के साथ सूरत रहते हैं उनका का छोटा बेटा नरेश अमेरिका बस गया और बेटी की शादी भी वहीं सूरत में ही हो गई। बड़ा बेटा सुरेश पिता के कारोबार में मदद करता।
अब श्याम सुंदर जी भी नहीं रहे इसलिए सुरेश अपने परिवार के साथ साल में एक बार जरूर आता है। शहर के बीचों-बीच अड़तालीस सौ वर्ग गज ज़मीन होना बहुत बड़ी बात है,और जब उस ज़मीन के मालिक यहाँ न रहते हों तो जमीन पर बिल्डर नामक गिद्ध मंडराते रहते हैं।
ऎसा ही कुछ दीनदयाल जी की इस ज़मीन के साथ भी हो रहा है।दादा और पिताजी के बाद अब झाबर इस घर और जमीन की रखवाली करता है। झाबर की शादी से पहले श्यामसुंदर जी ने ज़मीन के एक कोने में दो कमरे बनवा दिए थे जिसमें झाबर अपनी नवविवाहिता पत्नी को लेकर आया था। झाबर ने इस जमीन पर फल-फ़ूलों के पौधे उगा लिए और मौसमी सब्जियाँ उगा लिया करता था। धीरे-धीरे पति पत्नी ने मिलकर इस जगह का काया कल्प कर दिया। जहाँ सुरेश जी चौकीदारी के बदले उन्हें मासिक तनख्वाह दिया करते वहाँ अब झाबर उन्हें बगीचे के फल-फ़ूलों से कमाकर देने लगा।
सुरेश जी यहाँ आते पर हर बार वो जल्दबाजी में रहते,पर अपनी जमीन की सुंदरता देखकर झाबर का को धन्यवाद कहकर गले से लगा लेता और पूछता कि किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो बताना।
इस बार कुछ बिल्डरों ने उसे अपने जाल में फंसा लिया और वो उस जमीन पर अपार्टमेंट बनाने को राज़ी भी हो गया। और उसने फ़ोन करके यह बात झाबर को बता दी।
झाबर और ग्यारसी दोनों का इस ज़मीन से बहुत जुड़ाव था वो ये सुनते ही सुन्न हो गए उन्हें लगा कि कोई उनसे उनकी ज़िंदगी छीनने वाला है। पर उन्होंने मालिक से इस वसंत काम शुरू ना करने की मोहलत मांगी जिसे मालिक ने स्वीकर कर लिया।
पर ग्यारसी इस बात को एक क्षण भी दिमाग से नहीं निकाल पा रही थी कि ये वसंत इस बगीचे का आखरी वसंत है। यही सोच-सोचकर वो बीमार सी हो गई, उसकी अस्थमा की बीमारी भी दिनों दिन बढ़ती जा रही है।
ग्यारसी को दुखी और परेशान होते देख झाबर और मन्नू ने उसे बहुत समझाया पर वो थी कि इस घर, इस बगीचे को इतना अपना मान बैठी थी कि इससे दूर होने का डर उसकी जान पर भारी पड़ता दिख रहा था।
झाबर और दोनों बच्चें उसे बहुत समझाते थे कि - "अब हम बड़े हो गए माँ हम नौकरी करेंगे और बहुत अच्छे घर में रहेंगे, बस आप चिंता मत करना।" बच्चों की बात सुनकर हिचकियाँ भरती हुई माँ उनके सिर पर हाथ फेरती है तो हँसते हुए मन्नू बोल पड़ा है - "ओहो! माँ थोड़े आँसू चंदा की शादी के लिए भी बचाकर रखो, क्या तब रोने का इरादा नहीं है। वैसे इसकी शादी में रोयेगा भी कौन?"
भाई की बात सुनकर चंदा गुस्से में मुँह फुला लेती है और कहती है - " हाँ मन्नू माँ नहीं रोयेंगी मेरी शादी में इनके बच्चे तो ये सारे पेड़ पौधे हैं.. और ये माँ को हमसे प्यारे लगते हैं।"
बच्चों की बात सुनकर माँ कहती हैं -
‘‘तीस बरस से यहाँ रह रही हूँ हर पेड़ को बच्चे की तरह पाला है ..... ’’ तभी बगीचे के दरवाजे पर एक बड़ी गाड़ी आकर रूकती है। बैल बजने की आवाज सुनकर मन्नू और मोती दौड़कर दरवाजें के पास जाते है मन्नू पहले झांक कर देखता है कि कौन है?
" अरे यह तो वही बिल्डर है जो रोज आ - आ कर जो बगीचे में नक्शे को फाइनल करता है।" बिल्डर को देखकर तो मन्नू को गुस्सा आया। पर तभी गाड़ी से छोटे मालिक को उतरते देखकर वो खुश होने की बजाय निराश हो गया। हाँ छोटे मालिक यहाँ आते रहते इसलिए वो उन्हें पहचानता है। इसी कारण उसने झट से दरवाजा खोल दिया और आगे बढ़कर छोटे मालिक के पैर छुए।
छोटे मालिक ने बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा- ‘‘ कैसे हो बेटा, पिताजी कैसे है ?’’
‘‘सब बिल्कुल ठीक है, अंकल आइए’’... कह कर मन्नू ने उन्हें अन्दर बुलाया।
तभी पीछे से एक गाड़ी और आकार रुकी जिसमें छोटी मालकिन और उनका बेटा था।
गाड़ी रुकने के बाद छोटे मालिक उन्हें सही तरह गाड़ी पार्क करने का निर्देश देकर आगे बढ़ गए।
प्रोपर्टी मालिक अर्थात्‌ सुरेश जी से पहले ही बिल्डर बाग में अन्दर पहुँच चुका था पर मोती को देखकर उसके कदम रुक गए।
मन्नू ने मोती को समझाकर अंदर जाने को कहा पर वो था कि एक - एक कर दोनों को सूंघने लगा। छोटे मालिक ने बड़े प्यार से मोती के सिर पर हाथ फेरा तो मोती उनका स्नेह पाकर गदगद हो गया।
इधर बिल्डर पीले गुलाब की क्यारियों के पास खड़ा होकर वो सुरेश जी को कुछ कहता है पर सुरेश जी तो मंत्रमुग्ध से बगीचे के सौन्दर्य मेंं खो जाते है। इसलिए वो बिल्डर की बात पर ध्यान नहीं देते ।
वो इस रंग-पाश में इस तरह जकड़ चुके थे जैसे मोहिनी को देखकर सारे दानव।
‘‘अहा! अद्भुत... ’’ बस उनके मुख से ये दो ही शब्द निकले।
‘‘मन्नू कौन आया है... ? ’’ पूछती हुई चंदा छोटे मालिक को देखकर चुप हो गई।
चंदा की खनकती आवाज ने छोटे मालिक की तंद्रा भंग की।
चंदा ने आगे बढ़कर उनके पैर छुए तो सुरेश जी उसे देखकर स्तब्ध रह गए।’’ गौरा रंग, बड़ी-बडी चंचल-चपल आँखें, कमर तक लटकते काले बाल, कानों में बड़े-बड़े गोल रिंग। गले में गोल्डन चेन, नारंगी रंग के लोंग टॉप के साथ ब्राउन रंग की नान डेनिम पेंट। एक हाथ में घड़ी और दूसरे में दो पतली-पतली सिल्वर की चूटियाँ और पैरों में स्पोर्ट्स शूज।
वो बुदबुदाए ‘‘ तलाश पूरी हुई..... ’’ प्रणाम अंकल कहाँ- कहाँ खो गए कहती हुई चंदा मुसकुराई तो लगा चारों ओर चांदनी बिखर गई।
अंकल कैसा लगा अपना बगीचा सुन्दर है ना, देखिए अब लगभग बसंत आ ही गया है। हर क्यारी में रंग-बिरंगे फूल खिलते है। अंकल आप ‘अचानक ! ओह आप इन बिल्डर अंकल के साथ आए है। पर इस वसंत कुछ नहीं करना अंकल आप ने बाबा से प्रोमिस किया था। ’’
चंदा थी कि बोलती ही जा रही थी अगर मन्नू बीच में ना बोलता तो वो चुप ही ना होती।
‘अंकल वो भइया और आंटी ?’’
‘ओ हाँ....... शानू इधर आओ, ये मेरा बेटा समीर बहुत सालों के बाद आया है ना इसलिए वो तुम लोगों को नहीं जानता।
'अरे ये चंदा है क्या कितनी बड़ी हो गई, और प्यारी भी।' मालकिन ने चंदा को देखकर आश्चर्य चकित होते हुए कहा।
मन्नू तो आंटी और समीर से दरवाज़े पर ही मिल लिया था पर आंटी के मुँह से अपनी तारीफ सुनकर मुस्कराती हुई चंदा ने उनके पैर छूते हुए कहा - "आंटी आप बहुत दिनों बाद आए।"
इधर समीर का ध्यान पेड़ों पर बैठे पक्षियों, फूलों पर मंडराते भंवरे-तितलियों पर था।इसलिए सुरेश जी ने जब जब चंदा का परिचय दिया तो उसकी तंद्रा भंग हुई और वो चौंक गया।
मन्नू ओर चंदा से मिलकर समीर को बहुत अच्छा लगा और वो उन दोनों से अपनेपन से बाते करते।
‘‘छोटे मालिक प्रणाम ‘‘ कहते हुए झाबर और ग्यारसी ने सुरेश जी और मालकिन कविता जी के आगे हाथ जोड़ दिए।
‘‘कैसे हो भाई झाबर और भाभी आपकी तबीयत कैसी है।’’
हमेशा की तरह सुरेश जी ने हाथ जोड़कर उनका संबोधन स्वीकार कर विनम्रता से कहा "समीर पैर छुओ अंकल- आंटी के।"
समीर तो मन्नू और चंदा के साथ गार्डन देखने में व्यस्त हो गया था इसलिए उसने अपने पिताजी की बात नहीं सुनी।
‘ कोई बात नहीं मालिक देखने दो लल्ला को बगीचा वैसे भी आखरी वसंत है इस बगीचे का। बतियाने दो बिटवा को बच्चों के साथ जाने फिर हम कहाँ आप, कहाँ। ’’ ग्यारसी की बात ने जैसे सुरेश जी के मुँह पर तमाचा जड़ दिया।
वो मन ही मन बड़बड़ाता उठा - "नहीं..नहीं मैं राक्षक नहीं.... मैं ऐसा पाप नहीं कर सकता, इतने पक्षियों से उनका आसरा नहीं छीन सकता।, नहीं मार सकता किसी प्राणी को.... ’’
लेकिन उनकी भावनाओं को नजरअंदाज करते हुए बिल्डर बोला
‘‘सर अब ऑफिस चलते हैं मैं आपकों बिल्डिंग का पूरा नक्शा दिखाता हूँ।’’ बिल्डर ने जैसे उनके सिर पर पत्थर मारा। उन्होंने पत्नी कविता की तरफ देखा तो वो हमेशा की तरह उसकी आँखों में यही बात नज़र आई कि मत उजाड़ो इतने प्राणियों का घर। मत छीनो माँ धरती की हरियाली। मत छीनो किसी का रोज़गार।"
सुरेश जी ने पत्नी कविता के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा - "नो.. नो सॉरी आई एम रियली सॉरी मिस्टर रिपुदमन।"
आप बताइए मैप बनाने में क्या खर्चा आया। फ़िलहाल हमने यहां अपार्टमेंट बनाने का प्लान कैंसिल कर दिया।
‘व्हाट’’ बिल्डर आश्चर्य से लगभग चीख पड़ा
‘‘यस मिस्टर रिपुदमन। मैंने पहली बार अपने बगीचे में वसंत को खिलखिलाते देखा है। इस बगीचे ने एक परिवार को रोजगार दिया है, बच्चों को अच्छी शिक्षा,सुख और समृद्धि दी।
मैं इन सबसे इनकी दुनिया नहीं छीन सकता।’’
सुरेश जी की बात सुनकर बिल्डिर हडबडा कर बोला ‘ सर.... दस मिनिट...
नो .... आई एम सॉरी..... प्लीजी यू में गो नाऊ... सुरेश जी की बात सुनकर बहुत खुश हुई पर इतना सुनते ही बिल्डर गुस्से में भर कर वहाँ से निकल गया। झाबर और ग्यारसी आश्चर्य से एक दूसरे का मुँह देखने लगे।
चंदा और मन्नू के साथ घुलमिलकर बाते करते हँसतें और चंदा के सौन्दर्य पर रीझते बेटे समीर को देखकर सुरेश जी और कविता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा।
कविता ने आगे बढ़कर ग्यारसी को कहा ये आखरी वसंत नहीं इस बगीचे का आगे भी यहाँ आएंगे वसंत। सुरेश जी भी बोले हाँ कविता सही कह रही है यहाँ हरदम आएँगे वसंत.... चलिए इसी खुशी में चाय तो पिला दीजिए।
"आएगा वसंत.. हाँ हमेशा आएगा वसंत" बुदबुदाती ग्यारसी जैसे सपना देख रही थी...
सुनीता बिश्नोलिया