UJALE KI OR - 21 books and stories free download online pdf in Hindi

उजाले की ओर - 21

उजाले की ओर

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आ.स्नेही एवं प्रिय मित्रो

नमस्कार

प्रतिदिन घर के मुख्य द्वार पर खटखट होती है |कोई निश्चित समय नहीं ,सुबह-सवेरे ,दोपहर अथवा शाम व कभी कभी रात को भी लगभग दस बजे तक | न जाने कोई कुरियर हो,कोई मिलने आया हो अथवा कोई किसी महत्वपूर्ण कार्य से आया हो |अत: उठकर तो जाना ही पड़ता है |दिन में दो-चार बार तो कम से कम ऐसे लोग होते ही हैं जो मन का पूरा स्वाद कसैला कर जाते हैं |वे आपके व हमारे सभी के द्वार पर पहुँच जाते हैं |आजकल फ़्लैट बनने लगे हैं और अत्यंत आधुनिक फ्लैटों में चौकीदार की व्यवस्था भी होती है |किन्तु हम जैसे काफ़ी लोग ऐसे हैं जो सोसाइटी के बंगलेनुमा घरों में रहते हैं |इन सोसाइटियों में चारदीवारी होती हैं ,गेट भी लगे होते हैं किन्तु चौकीदार किसी एक गेट पर होता है और दिन में सभी गेट खुले रहते हैं |रात में अवश्य 11/12 बजे इनमें से केवल एक गेट खोलकर अन्य बंद कर दिए जाते हैं |

प्रतिदिन सुबह-सवेरे कोई बाबा जी अथवा कोई संत महात्मा दर्शन देने पधार जाते हैं| हमें लगता है कहीं कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति न आया हो और हम अपने हाथ का काम छोड़कर बाहर जाकर क्या देखते हैं कभी कोई महात्मा खड़े हैं अथवा कोई साधू महाराज कमंडल लिए अनेकानेक आशीर्वादों की झड़ी लगाए किसीके बाहर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं |ये लोग स्वयं को इतना सिद्ध पुरुष मानते हैं मानो इनके शब्दों से हमारे सब कष्ट दूर हो जाएँगे |कभी-कभी हमें लगता ह यदि इनके पास खाने-पीने की समस्या न होती तो ये इतना कष्ट उठाकर प्रतिदिन क्यों दर-दर भटकते ?हमारा ह्रदय पसीज जाता है किन्तु जब हम देखते हैं कि लंबे-चौड़े युवा साधू के भेष में आशीषों की वर्षा कर रहे हैं,न जाने कौन कौनसे आशीर्वाद दे रहे हैं,हम पीड़ित हो जाते हैं |पीड़ा का सबसे बड़ा कारण यह है कि ऐसे लोग किसी न किसी को अपने मुख से निसृत वाग्जाल में फँसा ही लेते हैं |फिर प्रारंभ हो जाता है भक्त और गुरु का आदान–प्रदान,जिसका परिणाम अधिकांश रूप से कष्टकर ही निकलता है |ये साधू-संत अथवा बाबा जी बड़ी चतुराई से लोगों को अपना भक्त बनाने की चेष्टा करते हैं और कुछ लोग इनके झांसे में आ भी जाते हैं |

अधिकांशत: मध्यम वर्ग के लोग इन साधू-संतों के चक्कर में पड़ जाते हैं जिसका मूल कारण यही होता है कि हमारे द्वार से कोई हमें अशुभ बोलकर न जाए |लोग जिस प्रकार इन लोगों के आशीषों से प्रभावित होते हैं ,उतना ही उनके मुख से निकले हुए अपशब्दों से भी घबराते हैं |कभी-कभी तो ये लोग इतने ढीठ हो जाते हैं कि बारंबार मना करने पर भी अपने मुखारविंद से कुछ न कुछ बोलते ही रहते हैं जैसे वे कुछ दान देने का मोल-भाव चुकता कर रहे हों|अरे भई ! जब किसीने अपनी श्रद्धा के अनुसार कुछ दे दिया तो वह आपसे कुछ पाने की अपेक्षा नहीं करता |वह देकर भूल भी जाता है किन्तु ये साधू महाराज भुलाने दें तब न !ये कुछ न कुछ बोलते ही जाते हैं और इनकी अपेक्षा से कुछ कम देने पर इनके आशीर्वाद के स्थान पर अपशब्दों के भंडार खुल जाते हैं |

इस विषय पर मेरी कई मित्रों के साथ बहुत बार चर्चा हुई है |डॉ. मालती दूबे जो ‘गुजरात विद्यापीठ’ में हिन्दी विभाग की अध्यक्ष पद से अवकाश प्राप्त हैं और मेरी अभिन्न मित्र हैं ,उनसे भी काफी चर्चा हुई | मालती जी वाराणसी के एक मध्यम किन्तु संस्कारी परिवार की सुपुत्री हैं जिन्हें अपने माता-पिता से धार्मिक संस्कार प्राप्त हुए जिनका पालन वे आज तक सहज,सरल रूप में कर रही हैं |उन्होंने बताया ;

‘धार्मिक संस्कारों से व्यक्तित्व बनता है जिससे मनुष्य एक अच्छा मनुष्य बनता है ,समाज के लिए उदाहरण स्थापित करता है और सरल व सहज मार्ग से समाज के हित में कार्यरत रहता है |’उन्होंने केवल पंडित विद्यानिवास मिश्र जी जो उनके पी.एचडी के मार्गदर्शक थे केवल उनको अपना गुरु स्वीकार किया ,केवल उनकी चरण वन्दना की | धार्मिक परिप्रेक्ष्य में रहकर आज भी उनमें सरलता व सदाचारिता के सारे गुण विद्यमान हैं जिन पर वे उम्र भर चलती रही हैं किन्तु ऐसे लोगों के बारे में वे कहती हैं;

‘इस प्रकार के तथाकथित साधू व गुरु वास्तव में लोगों को बरगलाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं और कुछ सरल लोग इनके बहकावे में भी आ जाते हैं | त्योहारों के मौसम में इनकी और भी झड़ी लग जाती है और ये किसी न किसी प्रकार अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं | अत: इस प्रकार के लोगों से बचने तथा सावधान रहने की आवश्यकता है|’

अज्ञानों के दूर अँधेरे ,हो जाएं हर मन के,

त्रास किसीके मन में न हो स्नेह पले हर मन में ||

सबके मन के अन्धकार दूर हों

आप सबकी मित्र

डॉ.प्रणव भारती