ये क्या कर रहे हो तुम?
मन्नत माँग रहा हूँ!
मन्नत!
हाँ मन्नत!अपना हाथ दो,इधर।
ओह्ह!तुमनें यहाँ मन्नत का धागा बाँधा है क्या?
हाँ!
हाँ,मैंने एक मूवी में भी देखा था।उसमें न ताले लगाकर मन्नत मांगते थे,प्यार के ताले।
तुमनें कब देखा?
मेरा मतलब है कि सुना था,शिखा ने अपना हाथ बड़ी ही मायूसी से हटाते हुए कहा।
सॉरी मेरा वो मतलब नहीं था!
मुझे पता है शिव कि तुम्हारा वो मतलब नहीं था।मैं भी न कुछ ज्यादा ही बोलती हूँ और तुम्हें हमेशा ऐंसे ही बेवजह परेशान कर देती हूँ,हैं न!!
बिल्कुल नहीं मैडम,आप बोलती तो ज्यादा नहीं हैं लेकिन सोचती कुछ ज्यादा ही हैं बल्कि कुछ नहीं बहुत ही ज्यादा सोचती हैं।अब जल्दी से गाड़ी पर बैठिए और निकलिए क्योंकि बादलों का मिजाज़ कुछ ठीक नहीं लग रहा।
ओफ्फो ये सर्दी की बारिश!!
हे भगवान!ये सर्दी की बरसात जल्दी जल्दी चल बिटिया एक तो ये मरे रिक्शे वाले ने गली के मोड़ पर ही छोड़ दिया और उसपर ये बूंदाबांदी!कितनी बार तेरे पापा से कहा है कि एक चार पहिया खरीद लें मगर मेरी सुनता कौन है,अरे अगर उनकी तबियत ठीक नहीं रहती तो क्या हुआ?आज अगर घर में गाड़ी होती तो तू ही सीख लेती।
हम्म,मम्मी!क्या कहा आपनें?शिव के बारे में सोचती हुई शिखा ने अपनी माँ से पूछा।
हे भगवान!!तू भी न बिल्कुल अपने पापा की तरह ही है,जब देखो तब न जाने किन ख्यालों में खोयी रहती है?
अरे बेटा तुम्हारा सिर तो भीग गया है।मैं बस छाता लेकर निकल ही रहा था।
अरे तो जल्दी क्या था सिंह साहब?महूर्त निकलवा कर निकलते न,शिखा की माँ ने मुँह बिचकाते हुए कहा।
पापा!
हाँ बोलो बेटा,क्या बात है?
पापा क्या कोई किसी से ऐंसा वादा करता है कि उस वादे को निभाने के लिए उसे उसको भी भुलाना पड़े जिससे उसनें वो वादा किया है और उसके लिए वो खुद को भी भूल जाये!!
बेटा मैं बहुत अच्छे से समझ रहा हूँ कि तुम मुझसे क्या और क्यों पूछ रही हो,शिखा बेटा मैं बहुत दिनों से तुम्हारी उलझन महसूस कर रहा हूँ।आज मैं तुम्हें,तुम्हारे हर एक सवाल का जवाब दूँगा मगर बेटा पहले तुम कपड़ें बदल लो।मैं तब तक तुम्हारे और तुम्हारी मम्मी के लिए चाय बनाकर लाता हूँ,इतना कहकर मिस्टर सिंह ने शिखा के सिर पर एक प्यारभरा हाथ रख दिया!
पापा,आपनें तो कहा था कि चाय पीने के बाद आप मेरे सवाल का जवाब देंगे और अब तो हमारा डिनर भी हो गया।अब आपके सोने का समय हो गया है पापा,चलिए अब आप सो जाइए!
तुम्हारी मम्मी सो गयीं क्या?
जी पापा!
इधर आओ बेटा!मेरे पास बैठो,मिस्टर सिंह ने बड़े ही प्यार से शिखा को हाथ पकड़कर अपने पास बिठाया।
बेटा,मैं तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब देने से पहले तुम्हें अपने जीवन की एक घटना के बारे में बताना चाहूँगा!शिखा बेटा तुम्हें तो पता है न कि मेरे पिताजी मतलब कि तुम्हारे दादाजी मेरे जन्म के कुछ सालों बाद ही चल बसे थे तो मेरा पालन पोषण मेरी माताजी यानि कि तुम्हारी दादी ने अकेले ही किया था।
जी पापा!
बेटा मैं अपनी माँ के बेहद करीब था।तुम्हें पता है कि मैं बहुत बड़े तक अपनी माँ की गोद में ही चलता था और पता है बेटा मेरे सारे दोस्त मुझे इस बात के लिए चिढ़ाते थे कि जब मैं दीपावली या होली के त्यौहार में अपने मौहल्ले के किसी घर में जाता था तो जब सब बच्चे खेलते थे तो मैं चुपचाप अपनी माँ की गोद में बैठ जाता था,इस बात पर खिलखिला कर हंस पड़ी शिखा और शिखा को इस तरह से हँसता देख मिस्टर सिंह भी हँस पड़े!
मैं पढ़ाई में बचपन से ही बहुत अच्छा था और मुझे पढ़ने लिखने का शौक भी बहुत था,मिस्टर सिंह ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा।गणित मेरा सबसे प्रिय विषय था और मेरी माँ इससे खुश भी बहुत थीं मगर उनकी एक और भी इच्छा थी।बेटा दरअसल तुम्हारी दादी भजन लिखा करती थीं और स्वयं उन भजनों को गाया भी करती थीं।बेटा वो जो हारमोनियम है न हमारे घर में,वो तुम्हारे दादाजी का है।
मेरे पिताजी हारमोनियम बहुत अच्छा बजाते थे और शायद इसी वजह से मेरी माँ का रुझान भजन लिखने व गाने की तरफ़ हुआ।मेरी माँ की बहुत इच्छा थी कि मैं भी हारमोनियम सीखूँ और अपने पिताजी की तरह ही उसे बजाऊँ भी मगर मुझे हारमोनियम में जरा सी भी दिलचस्पी नहीं थी।फिर एक दिन अचानक मैंनें अपनी माँ को मेरी मौसी से बात करते सुना,जिसमें वो अपनी इसी प्रबल इच्छा के बारे में बोल रही थीं।पता नहीं बेटा मुझे वो बात सुनकर ऐंसा लगा कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गयी।मुझे अपनी माँ की ये बात नहीं टालनी चाहिए थी और उसके बाद मैंनें अपनी माँ को बिना बताए चोरी चुपके हारमोनियम की क्लास ज्वाइन कर ली। दरअसल मैं अपनी माँ को सरप्राइज़ देना चाहता था।मैंनें सोचा था कि उनके जन्मदिन पर मैं उनके साथ हारमोनियम बजाकर उन्हें खुश कर दूँगा।छह महीने की कड़ी मेहनत और मशक्कत के बाद जब मैं अपनी माँ को सरप्राइज़ देने के लिए पहुँचा तो,कहते कहते मिस्टर सिंह का गला रूँध गया!
क्या हुआ पापा?पानी लाऊँ?
कुछ नहीं बेटा!तुम बैठो,मिस्टर सिंह ने फिर से बोलना शुरू किया।उस दिन मेरी माँ का जन्मदिन था और मैं अपने कॉलेज का लेक्चर बंक करके,यही कहते हैं न तुम्हारी भाषा में,मिस्टर सिंह ने मुस्कुराते हुए कहा जिसपर शिखा भी हल्का सा मुस्कुरा दी।
मगर मुझे क्या पता था कि मुझसे पहले मेरी माँ ही मुझे सरप्राइज़ दे देंगी,इतना कहकर फूट फूटकर रो पड़े मिस्टर सिंह!
पापा!!आप ठीक तो हैं न पापा!
हाँ बेटा मैं ठीक हूँ!सॉरी,मिस्टर सिंह ने अपने गालों पर बहते हुए आँसुओं को पोंछते हुए कहा।
कोई बात नहीं पापा!
बेटा उस दिन मैंने तय किया कि मैं अब कभी भी हारमोनियम नहीं बजाऊँगा क्योंकि जब मैं अपनी माँ के सामने उनकी इच्छा पूरी नहीं कर पाया तो अब उनके बाद भी मैं कभी हारमोनियम नहीं बजाऊँगा!
उसके बाद जब तुम्हारी मम्मी इस घर में आयीं तब उन्हें वो सामान जो मेरी माँ ने अपनी बहू के नाम से रख छोड़ा था देने के लिए जब मैंने तुम्हारी दादी का संदूक खोला तो उसमें मुझे एक डायरी मिली जिसे पढ़कर मुझे ये एहसास हुआ कि मेरी माँ की आखिरी इच्छा भी यही थी कि मैं अपने पिताजी की तरह ही किसी दिन अपनी माँ के द्वारा लिखे हुए भजनों को हारमोनियम पर गाऊँ!
बेटा उस दिन मैंने अपने आप से एक वादा किया जिसे मैं आज तक निभा रहा हूँ!शिखा मैं उस दिन से आज तक रोज़ सवेरे अपने दिन की शुरुआत अपनी माँ द्वारा लिखे हुए भजन को गाकर ही करता हूँ और बेटा मुझे पता है कि तुम क्या सोचती रहती हो!तुम्हारी उलझन में एक अपराधबोध भी शामिल है कि जिसके साथ तुमनें इस दुनिया को देखने का सपना देखा था,आज तुम उसी की आँखों से ये दुनिया देख रही हो मगर बेटा मुझे उम्मीद है कि मेरे जीवन के इस निजी अनुभव को सुनने के बाद तुम्हें मेरी बात समझ में ज़रूर आयी होगी।
पापा मैं क्या करूँ मेरी आँखों के सामने से वो मंज़र हटता ही नहीं जब अस्पताल में मैंने शिव को आखिरी बार उसकी आखिरी साँसें लेते हुए देखा था।मैं भला उसकी आँखों से ये दुनिया कैसे देखूँ?कैसे उसकी आँखों के सामने गुजरते हुए हर एक खूबसूरत लम्हे को जिऊँ?मैं कैसे उसे भूलकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ूँ?बताइए न पापा,प्लीज़ बताइए!!कहते कहते शिखा की हिचकियाँ बँध गयीं।
शिखा बेटा,सम्भालो अपने आपको।बस बेटा चुप हो जाओ और कुछ मत बोलो!मेरी ही गलती थी,मैंने सोचा था कि शायद मैं अपना उदाहरण देकर तुम्हारी कुछ मदद कर पाऊँगा मगर मैंने तो तुम्हें और भी दुखी कर दिया।सॉरी बेटा!!
नहीं पापा,प्लीज़ आप सॉरी मत बोलिए!आज मुझे बोल लेने दीजिए पापा। आज मुझे मत रोकिए!शिखा ने आगे बोलना शुरू किया।पापा आपको पता है कि शिव हमेशा मुझसे कहता था कि अगर उसके वश में हो तो वो अपनी ही आँखें मुझे लगवा दे ताकि मैं ये दुनिया देख सकूँ और मैं उसे इस बात का हमेशा यही जवाब देती थी कि मैं उसी की आँखों से तो दुनिया देख रही हूँ!शिखा की आँखों से आँसू लगातार बहते जा रहे थे।
पापा,शिव के आखिरी शब्द आज भी मेरे कानों में गूँज रहे हैं जो उसने मेरे हाथों को अपने हाथों में लेकर बोले थे!
शिखा!मैं जानता हूँ कि तुम मुझे खुद से भी ज्यादा प्यार करती हो और मैं ये भी जानता हूँ कि तुम मुझसे किया हुआ वादा हमेशा निभाओगी,हैं न!!गहरी गहरी साँसें लेते हुए शिव की जबान लड़खड़ा रही थी मगर वो बोलता ही जा रहा था।शिखा तुम्हें याद है कि तुमनें एक मूवी में वो ताले वाली मन्नत सुनी थी?शिखा मैं चाहता हूँ कि अब तुम वो मन्नत न कि सिर्फ सुनो बल्कि देखो भी!!
प्लीज़ शिव!तुम आराम करो।पहले तुम ठीक हो जाओ,फिर हम आराम से बात करेंगे।शिखा अपने आँसुओं को छुपाने का असफल प्रयास कर रही थी।
नहीं शिखा तुम मेरी बात ध्यान से सुनो,मेरे पास समय बहुत कम है!शिव ने फिर से बोलना शुरू किया,हाँ मैं तुमसे वादे की बात कह रहा था तो शिखा आज मैं तुमसे एक वादा चाहता हूँ!मैं चाहता हूँ कि शिखा तुम अब ये दुनिया मेरी आँखों से देखो और इस दुनिया में गुजरते हुए हर एक मंज़र को न सिर्फ महसूस करो बल्कि उसे अपनी नजरों से देखो भी!गुजरते हुए हर एक खूबसूरत लम्हे को जीभरकर जियो!!शिखा मुझसे वादा करो कि तुम्हारी दुनिया मेरे जाने से रुकेगी नहीं बल्कि तुम मेरी आँखों को अपना साथी बनाकर अपनी जिंदगी में आगे बढ़ोगी और जिंदगी में कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखोगी!! वादा करो शिखा,वादा करो!!
शिव को इतना बेबस देखकर शिखा भी कमजोर पड़ गयी।हाँ शिव मैं,मैं वादा करती हूँ कि तुम जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूँगी मगर तुम पहले,शिखा की बात को बीच में ही काटते हुए शिव बोल पड़ा!
शिखा,वादा रहा!!
हाँ शिव,वादा रहा!!
शिवववववववववव...शिखा की चीख के साथ ही सबकुछ शांत हो गया!!
शिवववववववववव...
क्या हुआ बेटा?
आज एक बार फिर वो ही चीख और शिखा फूट फूटकर रो पड़ी!
पापा मैं,मैं आज आपकी बात सुनकर ये समझ गयी हूँ कि मुझे अब अपनी खुशी मेरे शिव से किये गए वादे में ढ़ूढ़नी होगी!अब यही मेरी आगे की जिंदगी जीने की प्रेरणा बनेगा।सॉरी!पापा अब मैं आपको कभी परेशान नहीं करूँगी।
अरे!बेटा तुम ऐंसा क्यों कह रही हो?मैं तो हमेशा हर कदम पर तुम्हारे साथ हूँ और फिर बच्चों की परेशानियों में अगर माता पिता उनका साथ नहीं देंगे तो भला फिर और कौन देगा?मिस्टर सिंह ने अपनी कुर्सी से उठकर शिखा को अपने गले से लगा लिया।पिता और बेटी दोनों ही आज एक अजीब से संतोष और सुकून का अनुभव कर रहे थे।
अच्छा बेटा,रात बहुत हो गयी है और अब हमें सोना चाहिए!
गुडनाइट पापा!
गुडनाइट बेटा!
मिस्टर सिंह अपने कमरे में जाने के लिए मुड़े ही थे कि शिखा ने उन्हें पीछे से आवाज लगा दी।
पापा!
हाँ बेटा बोलो!
पापा,वो मम्मी इलाहाबाद वाले रिश्ते की बात कह रहीं थीं न तो पापा आप मम्मी को बोल दो कि मैं उस रिश्ते के लिए तैयार हूँ!
ओके बेटा,गुडनाइट!! मुस्कुराते हुए मिस्टर सिंह अपने कमरे में चले गए!
कभी कभी हमें ये जिंदगी अपने लिए नहीं बल्कि अपनों के लिए भी जीना सिखाती है और इस सफ़र में हमारी राह जो आसान करते हैं,वो होते हैं वादे!हमारे अपनों से हमारे अपनों की खुशी और हमारी खुशी के लिए किये गए वादे!!
निशा शर्मा...