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मे और महाराज - 6 - (शक)

" मुझे बताओ मौली ये दोनो कौन है?" उसका बात करने का लहज़ा और आंखे बता रही थी। जो निचे गिराई गई थी वो राजकुमारी शायरा थी, लेकिन जो उठ खड़ी हुई वो समायरा है।

मौली ने उसे पहचानते हुए उसके पास जाकर कहा, " ये आठवें राजकुमार की हरम की औरते है।"

" हरम की औरते ये क्या रिश्ता हुआ ? जरा साफ साफ बताओगी।" उसने उन्हे घूरते हुए पूछा।

" वो औरते जिन्हें किसी राजा ने दूसरे राजा को भेट दिया हो। या यूं कह लीजिए जीती हुई औरतें। जिनके सारे हक़ उनको रखने वाले राजा के पास होते है।" मौली ने विस्तार मे समझाया।

" ओ तो ये आठवें राजकुमार की रखी हुई औरते है।" उसने उनके पीछे घूम कर उनके कंधे पर हाथ रखा।

" इस जगह इस वक्त मे क्या तुमने कभी एक बीवी को अपने पति की प्रेमिकाओं पीटते हुए देखा है मौली।" समायरा ने पूछा ।

मौली ने ना मे सर हिला कर जवाब दिया। " आज देख लेना। जब एक बीवी अपना हक़ लेने पर आएगी तो क्या होगा।" उसने गौर बाई और चांदनी बाई को सारी दासियो के सामने पीटा। पिट पिट कर उन्हे उसके कमरे से बाहर धकेल दिया।

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उधर राजकुमार के अध्ययन कक्ष में रिहान ने कदम रखा।

" क्या तुम ने अपनी आंखो से देखा?" सिराज ने उस से सवाल किया।

" हा । मैंने अपनी आंखो से देखा, उन्होंने अपने हाथो से पिट कर दोनो औरतों को बाहर कर दिया।" रिहान

" आपको नहीं लगता भाभी कमाल की है भैया। वो बाकी औरतों जैसी बिल्कुल नहीं है।" विरप्रताप ने शतरंज की चाल चलते हुए कहा।

" तूम कब सीखोगे दुश्मनों की ये चाल समझना।" सिराज ने अपनी चाल चली।

" आपको क्यो लगता है, की वो कोई जासूस है। उनकी हरकते कुछ और बात केहती है।" विरप्रताप ने अगली चाल चली।

" यही तो बात है। इंसानी हरकते उनकी फितरत बताती है। यही इंसान फितरत कपड़ों के जैसे बदलते हैं। बिल्कुल मेरे घोड़े की तरह। शय और मात।" उसने आखिर ये बाजी जीत ली। " देखा, उनकी बातो ने तक आपका ध्यान भटका दीया।"

" आप से जितना मेरे लिए तो ना मुमकिन है भाई। अब ये तो बत्ताए भाभी से कब मिलवाएंगे।" वीर प्रताप ने पूछा।

" सही वक्त आने पर" एक नजर के साथ वीर प्रताप ने सिराज की हा मे हा मिलाई।

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शाम का वक्त , ठंडी हवा खूबसूरत चांदनी, ऐसा मौसम जिसमे प्रेमी युगल बाहर घूमना पसंद करेंगे, लेकिन आठवें राजकुमार के महल के पिछे कुछ हरकते हो रही थी।
वो आई, उन्होंने आस पास नजर उठाकर देखा कहीं कोई उन्हे देख ना ले। फिर पास ही रखी हुई सीढ़ी जमीन पर से उठाकर महल की दीवार से लगाई और वो दीवार पर चढ़ गई। वहा वो बैठने ही वाली थी कि पीछे से राजकुमार ने आवाज दी । " संभाल कर कहीं आप गिर ना जाए।"

अचानक आई आवाज से वो डर गई। " ओ तुम हो। में तो डर ही गई।"

" क्या हमे पता चल सकता है कि इतनी रात आप दीवार पर चढ़ कर क्या रही है?" आठवें राजकुमार ने सीधे सवाल किया।

" मुझे चांद पसंद है इसलिए उसे करीब से देखना था। तो मे ऊपर चढ़ गई।" उसने कहा।

" आप को अब ये हरकते छोड़ देनी चाहिए इस तरह दीवारों पे चढ़ना महल की रानी को शोभा नहीं देता। और तो और सारी जरूरी बाते आप वजीर साहब को कल घर जाकर बता सकती है। इसमें इतनी जल्दबाजी किस काम की। " सिराज ने उस के पास आते हुए कहा।

" क्या ? उस वजीर के घर मुझे नहीं....." वो आगे और कुछ कह पाए उस से पहले उसका पैर फिसल गया। वो जमीन पर गिरे उस से पहले सिराज ने उसे पकड़ लिया।

" आप आंखे खोल सकती है।" उसने उसकी तरफ देखते हुए कहा। जैसे ही समायरा ने आंखे खोली अपने आप को सही सलामत देख चैन कि सांस ली। फिर एक नजर राजकुमार को देखा और बस देखती रही।

" कितनी गहरी भुरी आंखे है इनकी। खूबसूरत चेहरा। पर दिल पुरा काला।" ये बाते दिमाग में आते ही उसने राजकुमारी पर अपनी पकड़ छोड़ दी। राजकुमारी जमीन पर जा गिरी।
" आ... ऐसा क्यों किया? मुझे लगी ना इडियट।" समायरा ने उठते हुए अपने हाथ पैर की मिट्टी साफ की। " मुझे नहीं जाना वजीर के घर प्लीज़ मुझे वहा मत भेजो।" उसने राजकुमार का हाथ पकड़ते हुए कहा।
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