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मे और महाराज - ( तीन नियम _२) 8


" लगता है। वजीर साहब की बीवी राजकुमारी को किसी चीज़ की सजा दे रही है। क्या आप अंदर जाना चाहेंगे मेरे राजकुमार?" हाथ जोड़े रिहान ने राजकुमार सिराज से पूछा।

" नही। उन्हे अपना नाटक खत्म करने दीजिए। हम किसी तरह की कोई जल्दबाजी नहीं करना चाहते।" राजकुमार सिराज ने रथ में बैठे हुए जवाब दिया।

वजीर के महल के अंदर शायरा बेहोश हो चुकी थी।

" राजकुमारी जी। राजकुमारी।" मौली उसके पास रोए जा रही थी।

बड़ी मां ने ठंडे पानी का पूरा पतिला उस पर उड़ेल दिया। जिस से शायरा को होश आने लगा।
" देखा वजीर साहब। मैंने नहीं कहा था, ये हमेशा बेहोश होने का नाटक करती है।"

" आ मुझे इतना दर्द क्यो हो रहा है?" शायरा की आवाज़ और चेहरे के भाव बदल गए थे ।

" सैम क्या ये तुम हो ?" मौली ने पूछा।

" हा। लेकिन में हू कहा???" उसने अपने आस पास देखा " तुम दोनो। बूढ़े बुढ़िया अब अपने घर बुलाकर मुझे सता रहे हो तुम्हे तो आज मे छोडूंगी नहीं।" वो अपने जगह पर से उठी और उसने बड़ी मां को धक्का दिया। जिस से वो जमीन पर जा गिरी।

" तुम्हारी इतनी हिम्मत। दासियो उसे अपने घुटनों पर लावो।" उन्होंने हुक्म दिया। चार दासियो ने समायरा को पकड़ घुटनो पर बैठा दिया। तभी दरवाजे पर दस्तक हुईं।

" आठवें राजकुमार महल मे पधार चुके है।"


" आठवें राजकुमार महल मे पधार चुके है।"

वजीर और उसकी बीवी के चेहरे पर एक डर उभर आया।

" जल्दी उसे उठावो। उसे खड़ा करो।" वजीर ने आदेश दिया। दसिया जैसे ही समायरा को छूने गई ।उसने उन्हे मार कर दुर कर दिया। राजकुमार के आने तक वो मौलि के साथ वहीं बैठी रही ।

" ये सब क्या हो रहा है ? हमे पता चल सकता है, हमारी प्यारी बीवी ऐसी हालत मे जमीन पर अपने घुटनो के बल क्यो है ?" राजकुमार सिराज ने कड़ी आवाज मे पूछा।

" आप कहे तो बता दूं राजकुमार को के ऐसा क्यों है......
ब....ड़ी मां।" समायरा ने उसे चिढ़ाते हुए कहा।

राजकुमार सिराज ने उसे अपना हाथ दे उठने मे मदद की। अपना चोला उतार उसके आस पास लपेटा और समायरा को अपनी बाहों में खींच लिया।
" अगर हमारी बीवी से कोई भी गलती हो गई हो, तो उनकी तरफ़ से हम माफी मांगते है। हमने अपने प्यार से उन्हे कुछ ज्यादा ही बिगाड़ दिया है । लेकिन आगे से आपको उन पर हाथ उठाने का कोई हक़ नहीं है ये याद रखियेगा। अब हम आपसे मिल चुके है, इसलिए ये रस्म यही पूरी हुई। हमे इजाजत दीजीए।" इतना कह राजकुमार समायरा और मौली के साथ वहा से चले गए।

रथ मे बैठ समायरा अपने कपड़े सुखाने की कोशिश कर रही थी। उसने दुपट्टा निकाला और उस मे से पानी निचोड़ने लगी।

" बिल्कुल तमीज नहीं है। ऐसे कोई लड़की किसी और के सामने दुप्पटा निकलती है क्या ? बेवकूफ।" सिराज ने सोचा।

" हम आपको एक और मौका देना चाहते है। बताए बड़े भाई क्या करना चाहते है ? आपका हम से शादी करने के पीछे क्या इरादा है ?" उसने पूछा।

" कौन बड़ा भाई? मेरा कोई भाई नहीं है। शादी उस वजीर ने कराई आगे की बात तुम उस से पूछ लेना।" समायरा ने नाराजगी जताते हुए कहा।

" आपको अगर ये नाटक जारी रखना है तो रखये। लेकिन क्यों की अब आप हमारी पत्नी है, इसलिए आपको कुछ नियम मानने पड़ेंगे।" सिराज आगे कुछ कहे उस से पहले समायरा ने उसे रोका।

" हा, हा में जानती हूं। पति की बात मानो, अगर वो मर जाए तो ......"
आगे वो कुछ कहती उस से पहले सिराज ने उसे बड़ी बड़ी आंखे दिखाई जिन से डर उसने अपने शब्द वही रोक लिए। " कहिए में सुन रही हूं।"

"पहला नियम, वो ना देखे जिसे आपको देखना नहीं चाहिए और वहा ना जाए जहा जाने से आपको रोका जाए।

दूसरा नियम, अब आप महल के सारे स्त्री नियमों से बंध चुकी है। हमारे अलावा और किसी भी मर्द से किसी तरह के संबध रखने की आपको इजाजत नहीं है। हमे धोका देने के बारे में सोचना भी मत।

तीसरा नियम, जो भी आपका पति कहे वही करो और उसकी हर बात मानो। समझ गई आप।" सिराज ने अपनी बात साफ कर दी।

" अच्छा। अगर मैने इन मे से एक भी नियम तोड़ा तो आप मुझे तलाक दे देंगे ना ? सही कहा ना मैने , कहिए। बताएं" समायरा ने पूछा।

" नहीं । में इसके बदले तुम्हारी जान ले लूंगा।" सिराज ने उसके पास आते हुए कहा।