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मे और महाराज - ( तीन नियम - १) 7

" मुझे नहीं जाना वजीर के घर प्लीज़ मुझे वहा मत भेजो।" उसने राजकुमार का हाथ पकड़ते हुए कहा।

" अब ये मासूमियत क्यों? थोड़ी देर पहले तो आप कुछ अलग तरीके से बात कर रही थी।" उसने हाथ छुड़ाते हुए कहा। "कल आपको निकालना है। तैयार रहना।" वो उसे देखे बिना वहा से चला गया। " कहीं में सच मे तुम्हे गलत तो नहीं समझ रहा। जब भी मिलता हू ऐसा लगता है मानो तुम वो राजकुमारी नहीं हो जिसे में बड़े भाई के साथ मिला था। कौन हो तुम?" वो जब पीछे मुड़ा कोई वहा खड़े खड़े जमीन पर अपने पैर पटक रहा था। समायरा को उस हालत मे देख उसे बड़ी हसी आई।

अपने कमरे में जाकर समायरा ने सारी बाते मौली को बताई।

"पर आपको यहां से क्यो जाना है? राजकुमारी......" मौली ने उसके पास बैठते हुए कहा।

" सैम.... सैम..... कितनी बार कहा में कोई राजकुमारी नहीं हू। मुझे नहीं रहना यहां मुझे नहीं पसंद वो राजकुमार।" पैर पटकते हुए उसने कहा " अब जक तक तुम मुझे सैम नहीं कहोगी में तुमसे बात नहीं करूंगी। अगर वो बदसूरत राजकुमार बीच मे नहीं आता तो मैं अब तक यहां से भाग गई होती।"

" पर राजकुमारी । मेरा मतलब सैम सुनो, आपको वो बिस्तर चाहिए ना। याद है आपने मुझे धुड़ने के लिए कहा था। आठवें राजकुमार का महल बोहोत बड़ा है। मुझे यकीन है, वो बिस्तर यही कही पे होगा। आप यहां कुछ दिन रुको हम बिस्तर ढूंढ लेते है फिर आप चले जाना।" मौली ने उसे समझाया।

" हा। ये भी सही है। पहले बिस्तर ढूंढ़ते हैं।" आखिरकार वो वहा रुकने के लिए तैयार हो गई।

दूसरे दिन सुबह सुबह राजकुमारी की आंख खुली।

" क्या आप मेरी राजकुमारी है?" मौली ने पूछा।
बिना कुछ कहे उस ने सिर्फ़ हा मे सर हिलाया। मौली ने उसे तैयार करना शुरू किया।

" आज क्या दिन है।"

" आज आप की शादी के दस दिन हो चुके है। आपको राजकुमार के साथ अपने माता पिता से मिलने जाना होगा।" उसके बाल संवारते हुए मौली ने कहा।

" नाश्ता तैयार करवाओ। हम खुद आज चाई और नाश्ता लेकर राजकुमार के पास जायेंगे।" राजकुमारी शायरा की आज्ञा मिलते ही मौली वहा से चली गई।

कुछ ही देर मे राजकुमार के अध्ययन कक्ष मे घोषणा हुई।

" राजकुमारीजी राजकुमार से मिलने आ रही है।"

" आप को ये सब करने की जरूरत नहीं। हमारे लोग ये कर सकते है।" सिराज ने एक किताब खोली पढ़ने के लिए।

" ये तो एक पत्नी का कर्तव्य है। हम अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे राजकुमार। " उसने अपने हाथ मे चाय का बर्तन लेते हुए सिराज की तरफ बढ़ाया।

" एक पत्नी का कर्तव्य तो शादी की पहली रात से शुरू होता है। तब तो आप को अपने कर्तव्य की याद नहीं थी।" सिराज ने चाय ली और उसे हर तरफ से देखा।

" इस नादान राजकुमारी से कोई गलती हो गई तो हमे माफ कर दीजिए राजकुमार पर हमारे दिल मे आपके लिए कोई मैल नहीं है।" शायरा ने अपने सर को झुकाते हुए कहा।

" चलिए माफ किया। ये चाय पी लीजिए।" अपने हाथ का चाय का ग्लास उसने शायरा को थमा दिया।

" जी । ये आपके लिए हमने खास बनवाई है।" उसने उसे देखते हुए कहा।

" इसीलिए कह रहे है। पीजिए।" उसकी आंखो में नफरत साफ थी।

शायरा ने चाय की एक चुस्की ली।

" बोहोत अच्छे। आप इतनी सुबह यहां आई है। यकीनन कोई जरूरी बात होगी । बताएं क्या बात है?"

" आज हमारी शादी को दस दिन पूरे हो गए है।" शायरा आगे कुछ कहे उस से पहले राजकुमार ने उबासी लेना शुरू कर दिया। " हमे मेरे माता पिता के घर जाना है। रस्म के लिए।"

" जैसा अभी आपने देखा, हमे नींद आ रही है। हम अभी आराम करेंगे। आप यहां से जा सकती है।" उसने किताब बंद की।

" हमे माफ़ कर दीजिए, हम आपको तकलीफ दे रहे है। लेकिन क्या हम अकेले वहा जा सकते है। हमे इजाजत है?" उसने सर झुकाते हुए कहा।

" आप को जो करना है करिए। हमे आप से कोई मतलब नहीं है।" सिराज ने अपना सर दूसरी तरफ घूमा लिया।

" आपकी उदारता के लिए धन्यवाद।" वो वहा से चुपचाप चली गई।


" आपने उन्हे मनाया क्यो नही राजकुमारी??? आपको ज्ञात है ना बिना राजकुमार के वहा जाना आपके लिए खतरनाक है।" मौली ने उस से पूछा।

" राजकुमार का बर्ताव साफ बता रहा था, उन्हे हम मे कोई दिल चस्पी नहीं है। हमे उनसे ज़बरदस्ती करने का कोई हक़ नहीं। चलो जो होगा देखा जायेगा।" दोनो वहा से चली जाती है।

वजीर साहब के महल में जैसे ही वो पोहोची आठवें राजकुमार को वहा ना पा कर बड़ी मां ने उसे पिटना शुरू किया।

"हमने आपसे कहा था ना वजीर साहब ये बदजात, मन्हुस हमेशा ऐसी ही रहेगी। जन्म होते ही अपनी मां को खा गई, यहां तक अपने पति को भी काबू नहीं कर सकती। सच बताओ क्या तुम अब भी कुंवारी हो????" उसने हाथ का चाबुक लहराते हुए कहा।

" हमे माफ़ कर दीजिए बड़ी मां, पिताजी। हम राजकुमार का दिल नहीं जीत पाए। हमने कोशिश की लेकिन उन्हे हम मे कोई दिलचस्पी नहीं है।" उसने रोते रोते कहा।

" नीच कहीं की। सच बताओ तुमने ये इसलिए किया ना ताकि तुम बड़े राजकुमार के साथ रह पावो। अपनी ही बहन के पति के बारे मे ऐसे सोचते हुए शर्म नहीं आती।" उसने चाबुक चलाना जारी रखा।

"नहीं मालकिन राजकुमारी की कोई गलती नहीं है। उन्हे माफ कर दीजिए।" मौली रोते रोते शायरा के आगे आ गई।
बड़ी मां की एक आंख से उनकी दासियो ने आगे आकर दोनो को एक दूसरे से अलग कर दिया।

" नहीं बड़ी मां। हम कसम खाते है हमारे और बड़े राजकुमार के बीच कोई संबंध नहीं है। नाही कभी होगा। हमे माफ कर दीजिए।" दर्जनों चाबुक के वार से वो वहीं बेहोश हो गई।


महल के बाहर।

" लगता है। वजीर साहब की बीवी राजकुमारी को किसी चीज़ की सजा दे रही है। क्या आप अंदर जाना चाहेंगे मेरे राजकुमार?" हाथ जोड़े रिहान ने राजकुमार सिराज से पूछा।