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बाप दादा की इज्जत

लघु कथायें

1. बाप दादा की इज्जत

स्ुाबह जब सुदेश सोकर उठा तब पत्नी सरला अपनी रसोई के बरतनों को सम्बोधित करके कह रही थीं-‘अरे! महिनों से खाली पड़े हो। आज तुम्हारे भी बिकने का नम्बर आ गया है। तुम्हारे धैर्य की दाद देनी पड़ेगी। वे भी क्या करें, मेहनत मजूरी करने में बाप- दादों की इज्जत जाती है। अब जोर - जोर से मत बजो , नहीं तो वे कहेंगे सोने नहीं देती।

यह सुनकर सुदेश में चेतना का संचार हुआ। वह उठा और निवृत होकर नगर के चौराहे पर काम पाने की तलाश में मजदूरों की पंक्ति में जाकर खड़ा हो गया।

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2. .लाल बस्ता

नवल किशोर ने दादा जी की लाल बस्ता में बंधी पौराणिक कथाओं में पढ़ लिया था कि कर्मफल भुगतना ही पड़ते हैं। जब- जब कोई संकट आता है तब ये ही पौराणिक आख्यान सांत्वना प्रदान करने उसके मानस में आ जाते हैं।

एक रात कुछ शराबी उसके घर में घुस कर श्राब के लिए पैसे माँगने लगे। नवल किशोर ने उनसे कहा-‘तुम लोग देख रहे हो कि मेरी माँ बीमार पड़ी है। आज उसके इलाज के लिए मजदूरी करके कुछ पैसों की व्यवस्था कर पाया हँूं।

यह सुनकर वे घर में आतंक मचाते हुए कहने लगे-‘तेरी माँ को तो मरना ही है। ला पैसे दे, नहीं तो तेरे लड़के को गोली मार देंगे- यह कह कर एक शराबी ने उसके बच्चे के सीने से पिस्तौल अड़ा दी। विवश होकर उसे पैसे देने पड़े। वे जाते- जाते कह गये- यदि तूने पुलिस में इस बात की रिपोर्ट की तो हम तुझे देख लेंगे।

यह सुनकर नवलकिशोर को लगा यह तो कायरता है। कर्मफल की बातें सब मन गढ़न्त हैं। अब कर्मफल के नाम पर माँ को मरने दूँ। नहीं नहीं यह सहन नहीं किया जा सकता है। मुझे इस घटना की रिपोर्ट थाने में करना ही पड़ेगी।

यह सोचकर नवलकिशोर ने कर्मफल के सिद्धान्त को हमेशा- हमेशा के लिए उसी लाला बस्ते में बांधकर रख दिया।

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लधु कथा-

ना समझ

धीर परिवार ने टेक्सी से उतरकर चित्रकूट घाम में रामघाट पहुँचने के लिये सामान ढोने वाले को तलाशा, एक आदमी मिल गया। उस आदमी के कुरते-पायजामे पर कई जगह थेगरे लगे थे। उस की हालत देखकर श्रीमती धीर कचपचाईं किन्तु अन्य विकल्प न होने से सारा सामान उसके ऊपर लाद दिया और बोलीं-‘घीरे घीरे चलना, ऐसे लोग भीड़ भाड़ में जल्दी जल्दी चलकर सामान लेकर चम्पत हो जाते हैं।

उसने उत्तर दिया’-‘ माँ जी मैं यदि उठाईगीर होता तो ये फटे पुराने कपड़े न पहने होता।

यह सूनकर वे उसके मुँह की तरफ देखतीं रह र्गइं।

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1. बाप दादा की इज्जत

स्ुाबह जब सुदेश सोकर उठा तब पत्नी सरला अपनी रसोई के बरतनों को सम्बोधित करके कह रही थीं-‘अरे! महिनों से खाली पड़े हो। आज तुम्हारे भी बिकने का नम्बर आ गया है। तुम्हारे धैर्य की दादा देनी पड़ेगी। वे भी क्या करें, मेहनत मजूरी करने में बाप- दादों की इज्जत जाती है। अब जोर - जोर से मत बजो , नहीं तो वे कहेंगे सोने नहीं देती।

यह सुनकर सुदेश में चेतना का संचार हुआ। वह उठा और निवृत होकर नगर के चौराहे पर काम पाने की तलाश में मजदूरों की पंक्ति में जाकर खड़ा हो गया।

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