Meet we strangers in Hindi Love Stories by Rama Sharma Manavi books and stories PDF | मिले हम अजनबी

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मिले हम अजनबी

एक मिनट में डोरबेल 4 बार बज चुका था,बेल बजाने वाले की असभ्यता पर झुंझलाती हुई नियति दरवाजा खोलने के लिए आती हुई बड़बड़ा रही थी ,कहाँ तो आज थोड़ा जल्दी निकलना चाहती थी,आज ही अलार्म ने धोखा दे दिया,सुबह आंख देर से खुली,उसपर सुबह-सुबह न जाने कौन आ गया, आज ऑफिस में इंस्पेक्शन है, हेड ऑफिस से टीम आ रही है,जब मुसीबत आती है तो चारों ओर से आती है।दरवाजा खोलकर देखा तो सामने 6 फिट लम्बा,सुदर्शन सा युवक खड़ा था, नियति ने थोड़ी रुखाई से कहा,"आपको इतनी समझ तो होनी चाहिए कि एक बार घण्टी बजाकर जरा वेट कर लेते,फिर आपको फोन करना चाहिए था, आपको गार्ड ने ऊपर कैसे आने दिया।लाइए,कुरियर दीजिए।"
आगन्तुक बातों की बौछार से पहले थोड़ा अचकचा गया,फिर माजरा समझ में आते ही मुस्करा कर कहा,"सॉरी, मेरी वजह से आपको तकलीफ हुई।मैं मानव,आपके पड़ोसी सिंह आँटी का भतीजा हूँ।किसी आवश्यक कार्य से शहर में आया हूँ, चूंकि वे यहाँ नहीं हैं, उन्होंने मुझे बताया कि चाभी आपके पास है उनके फ्लैट का,मुझे लेट हो रहा था, इसीलिए मैंने बार-बार घण्टी बजाने की असभ्यता की।वैसे,यहाँ पहले सिंघल फैमिली रहती थी, वे मुझे पहचानते थे,इसलिए मैंने आँटी से कुछ पूछने की जरूरत नहीं समझी थी।मुझे नहीं पता था कि वे जा चुके हैं।"
अब झेंपने की बारी नियति की थी,उसने माफी मांगते हुए कहा कि मैं उन्हीं की जगह यहाँ आई हूं,उसी कम्पनी में अप्वाइंट हुई हूँ, अभी 6 माह पूर्व। मैं आपको नहीं पहचानती, अतः पहले मैं आँटी से कन्फर्म कर लेती हूं,कहकर नियति ने आँटी को फोन लगाकर मानव के बारे में पूछा, कन्फर्म होने पर चाभी दे दी।धन्यवाद कहते हुए मानव ने चाभी लेते हुए कहा,"आप ऑफिस जा रही हैं, शायद शीघ्र ही फिर मुलाकात होगी।"हल्की सी स्माइल देते हुए नियति ऑफिस के लिए निकल गई।वह स्कूटी से ही जाती थी।
टाइमली ऑफिस में अपनी सीट पर पहुंच कर नियति ने राहत की सांस ली,गनीमत रही कि आज रास्ते में जाम नहीं मिला।इत्मीनान से बैठने के बाद सुबह की घटना जेहन में पुनः आ गई।न जाने क्यों मानव से फिर से एक बार मिलने की इच्छा ने मन में सिर उठाया,जिसे झटककर अपनी रिपोर्ट फाइल को ध्यान से वह देखने लग गई, अभी लैपटॉप बन्द ही किया था कि बॉस का कॉल आ गया मीटिंग हॉल में इकट्ठा होने का।
सभी हॉल में एकत्रित होकर इंस्पेक्शन अधिकारियों की प्रतीक्षा कर रहे थे, तभी 3 अधिकारियों ने हॉल में प्रवेश किया, उनमें मानव को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई, लेकिन विस्मय भाव को चेहरे पर नहीं आने दिया।मानव ने ऑफिस मर्यादा के अंतर्गत हाथ मिलाते हुए सभी को अपना परिचय प्रदान किया।मीटिंग समाप्त होने के पश्चात वह भी सभी के साथ वापस लौट गया।ऑफिस अविधि समाप्त होने के बाद जब नियति बाहर निकल रही थी तो उसे देखते ही मानव उसकी तरफ आकर पूछा,"आप घर जा रही हैं शायद।एक जगह ही जाना है, इसलिए मेरे साथ ही चली चलिए।"
नियति- नहीं सर, अभी कुछ सामान लेना है अतः मॉल जा रही हूं,मैं स्कूटी से हूँ।फिर शिकायती लहजे में कहा कि सुबह आपने बताया नहीं, आप मेरे ऑफिस में ही जा रहे हैं।
मानव- तब हमारी मुलाकात जिन हालातों में हुई थी कि यदि यह बात बताता तो भी आप उसे अन्यथा ही लेतीं।
नियति- हाँ, यह तो है।मैं आपसे उस वाकए के लिए माफी मांगती हूँ सर।
मानव- मैम,वैसे,गलती तो हम दोनों में से किसी की भी नहीं है।चलो,इसी बहाने दो अजनबी मिले तो सही।माफी मांगने के लिए साथ में एक कप कॉफी पी लेते हैं तो अधिक अच्छा होगा।मैं कल वापस जाने वाला हूं, रास्ते में ऑफिस छोड़ते हुए निकल जाऊंगा,कल आप स्कूटी से वापस हो लेना।
नियति को हिचकते हुए देखकर मानव ने कहा,"भई, हम अभी दोस्त न सही,सहकर्मी तो हैं ही,फिर भी मैम,यदि आपको ऑड लग रहा है तो कोई बात नहीं,आप स्कूटी से ही चली चलिए या कॉफी उधार रहने देते हैं।
कुछ पल सोचने के बाद के बाद नियति ने कहा कि चलिए, चलते हैं लेकिन मेरी एक शर्त है कि कॉफी का पेमेंट मैं ही करूंगी।एक बात और,ये क्या आपने मैम-मैम लगा रखा है।
हंसकर मानव ने जबाब दिया कि अगर आप सर सम्बोधित करेंगी तो मुझे भी तो सम्मानजनक सम्बोधन देना होगा।उसकी बात सुनकर नियति खिलखिला उठी,बोली,"अच्छा, अब हम दोनों नाम से बुलाएंगे।"
मानव ने सहमति में सिर हिला दिया।दोनों ने पहले कॉफी और सैंडविच लिया,फिर नियति ने अपनी शॉपिंग पूरी की,इतने में 2-3 घँटे कब निकल गए, पता ही नहीं चला।दोनों को ही एक दूसरे का साथ रास आ रहा था।फिर मानव ने डिनर का प्रपोजल रखा, जिसे नियति ने बिना ना-नुकुर के स्वीकार कर लिया।
अगले दिन मानव को वापस जाना था, नियति को ऑफिस छोड़ते हुए एयरपोर्ट निकलना था।रास्ते में मानव ने नियति से कहा कि क्या हम इस परिचय को मित्रता में परिवर्तित कर सकते हैं?नियति की स्वीकारोक्ति पाकर मानव ने अपना मोबाइल नंबर दिया और कहा कि पहला कॉल तुम करना,जिससे मैं समझ लूंगा कि तुमने हमारी मित्रता को दिल से स्वीकार किया है।ऑफिस पर नियति को ड्रॉप कर मानव चला गया।
आज घर आने पर पहली बार नियति का मन नहीं लग रहा था, कहीं कुछ तो खालीपन सा था,ऐसा प्रतीत हो रहा था कि कुछ खो सा गया है। मानव के प्रति अपने आकर्षण को वह महसूस तो कर रही थी लेकिन स्वीकार नहीं करना चाहती थी।अभी वह अपने कॅरियर पर पूर्णतया ध्यान देना चाहती थी लेकिन मन कुछ धोखा सा देता प्रतीत हो रहा था।वह एक नजर के प्यार को बिल्कुल नहीं मानती थी लेकिन यह क्या है, वह सोच में पड़ गई थी।एक अजनबी इतना अपना सा लगने लगा था कि वह तबसे सिर्फ उसके बारे में सोचे जा रही थी।
कुछ ऐसा ही हाल मानव का था,वह उहापोह की स्थिति में था कि क्या नियति उसे कॉल करेगी?कहीं वह किसी से अटैच तो नहीं है।एक दिन की मुलाकात में यह पूछा तो नहीं जा सकता था,अतः प्रतीक्षा के अतिरिक्त और कोई चारा भी तो नहीं था।
काफी देर सोचने के बाद अंततः नियति ने मानव को कॉल कर ही दिया।उसकी आवाज सुनते ही मानव ने राहत की सांस ली कि कम से कम वार्तालाप तो प्रारंभ हुआ।खैर, बातें शुरू हुईं तो शीघ्र ही मित्रता गहराने लगी उनकी।अब रोज रात को एक घण्टा बात करना उनकी नियमित दिनचर्या में शामिल हो गया।6-7 माह बीतते-बीतते वे एक दूसरे के प्रति अपने प्यार को महसूस करने लगे थे, बस स्वीकारोक्ति शेष थी।इस बीच में मानव के दो चक्कर लग चुके थे नियति के शहर में।आँटी की अस्वस्थता के कारण वे काफी समय से अपने बेटे के पास थीं लेकिन उन्हें मानव -नियति के साथ का अंदाजा लग चुका था।
आज नियति का मन बेहद उदास था,क्योंकि आज उसका जन्मदिन था,रात में एक बजे तक मानव से बात होती रही थी लेकिन उसने विश नहीं किया।वह सोच रही थी कि मानव को शायद याद ही नहीं रहा।पिछली बार तो मानव से मिले कुछ ही दिन हुए थे,तबतक तो ठीक से मित्रता भी नहीं हुई थी,लेकिन इस बार वह कुछ विशेष की अपेक्षा कर रही थी।जबकि उसे तो याद भी नहीं।वह आज का पूरा दिन मानव के साथ बिताना चाहती थी।एक बार तो मन में आया कि वही चली जाय मानव के पास।लेकिन फिर सोचा कि बिना बताए जाना उचित नहीं, यह सोचकर उसने अंततः मानव को फोन मिला ही लिया।मानव ने बताया कि किसी अत्यावश्यक कार्यवश वह शहर से बाहर जा रहा है।नियति मन मसोस कर रह गई।शाम होने को आ गई,मां-पापा सहित कई लोगों के गिफ्ट आ चुके थे,खिन्नता के कारण किसी को खोलकर देखने की भी इच्छा नहीं हुई।वह कॉफी बनाकर बॉलकनी में खड़ी होकर सड़क देखते हुए अनमने ढंग से पीने लगी।तभी डोरबेल बजी,नियति ने पूछा,"कौन है?"आवाज आई,"मैडम कोरियर।"
" आज गार्ड की शिकायत अवश्य करूंगी,ऊपर कैसे भेज दिया कोरियर वाले को,"बड़बड़ाते हुए दरवाजा खोलकर हाथ बढ़ा दिया,"लाओ,दो।"
बड़े से पैकेट से उसका चेहरा ढंका हुआ था।सामने वाले ने हाथ पकड़कर कहा,"मैडम, आज देने नहीं बल्कि आपको लेने आया हूँ।"
मानव की आवाज सुनकर हर्ष मिश्रित आवाज में चीख पड़ी नियति।फिर रूठते हुए कहा कि तुमने तो डरा ही दिया मुझे।
अंदर आकर मानव ने एक लिफाफा बढ़ाते हुए कहा कि यह लो पहला गिफ्ट।नियति के प्रश्नसूचक निगाह को देखकर मानव ने बताया कि तुम्हारा प्रमोशन हो गया है,मैंने तुम्हारा स्थानांतरण अपने शहर में करवा लिया है।खुशी के कारण नियति मानव से लिपट गई,फिर झेंपकर अलग होते हुए पूछा कि दूसरा उपहार क्या है?
मानव ने उसके दोनों हाथों को प्यार से थामते हुए पूछा कि क्या तुम मुझे अपना जीवनसाथी बनाना स्वीकार करोगी।नियति के हां कहते ही मानव ने जेब से एक प्यारी सी हीरे की अंगूठी निकालकर नियति को पहना दी।आज का दिन मानव ने इतना अनमोल,यादगार बना दिया कि प्रसन्नता से नियति की आंखें भर आईं।शीघ्र ही दोनों विवाह के पवित्र बंधन में जीवनभर के लिए बंधकर अपने सुखद सफर पर बढ़ चले।
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