rajonivruti books and stories free download online pdf in Hindi

रजोनिवृत्ति-पूर्व पश्चात

स्त्री जीवन के दो अहम पड़ाव होते हैं-प्रथम रजोदर्शन, द्वितीय रजोनिवृत्ति।एक के बाद प्रकृति स्त्री को मातृत्व वहन करने की क्षमता प्रदान करती है एवं रजोनिवृत्ति के पश्चात प्रजनन क्षमता की समाप्ति हो जाती है।रजोनिवृत्ति 50-60 वर्ष की आयु के मध्य कभी भी हो सकती है।कभी कभी इसके पूर्व भी हो जाती है।
इन दोनों ही प्रक्रियाओं के पूर्व एवं पश्चात शरीर में तमाम शरीरिक तथा मानसिक परिवर्तन होते हैं।वैसे तो इनका विस्तृत वर्णन इंटरनेट एवं पुस्तकों में उपलब्ध है।मैं आज एक महिला के व्यक्तिगत अनुभव एवं मनःस्थिति को शब्द देने का प्रयास कर रही हूं।
मैं उम्र के अड़तालिसवें वर्ष में प्रवेश कर चुकी हूं।इस उम्र तक आते आते पारिवारिक दायित्वों में स्थिरता आ जाती है, अर्थात बच्चे बड़े हो जाते हैं।मेरा विवाह 27वें वर्ष में हुआ था, इसलिए सन्तान अभी पूर्ण व्यवस्थित नहीं हैं, अपनी शिक्षा हेतु दोनों बच्चे दूर दूसरे शहर में में हैं।जब बच्चे पास में थे तो उनके खाने-पीने, शिक्षा व्यवस्था में पूरा दिन यूँ ही निकल जाता था।मैं एक उच्च शिक्षित घरेलू महिला हूँ।
डायबिटीज, ब्लडप्रेशर, हृदय रोग इत्यादि होना तो इस उम्र में सामान्य बात है।वैसे ये सभी व्याधियां औषधियों की मदद से नियंत्रण में रहती हैं।
मेरे पीरियड्स वैसे तो नियमित रहते थे, किंतु कुछ माह से थोड़ी तकलीफ़ रहने लगी थी।डेट से कुछ समय पूर्व ही शरीर में अत्यधिक कमजोरी सी रहने लगती थी, किसी कार्य में मन नहीं लगता था, जरा-जरा सी बात पर चिड़चिड़ाहट होने लगती थी।पेट के निचले हिस्से में बेहद भारीपन हो जाता था।मन में डर उत्पन्न होने लगा था कि कहीं ट्यूमर न हो गया हो।कोई भी बीमारी हो जाना अत्यंत सामान्य सी बात है।वक्ष में भी स्पर्शासह्यता हो जाता था अर्थात कपड़ों के स्पर्श से भी पीड़ा होती थी।किंतु पीरियड्स समाप्ति के बाद इन तकलीफ़ों से आराम मिल जाता था।इन लक्षणों को प्रिमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम कहते हैं।कुछ महिलाओं को इस तरह की परेशानियां पूरे प्रजननकाल में होती हैं।यदि ये समस्याएं ज्यादा हो तो चिकित्सक की मदद लेने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए।
कुछ माह पश्चात माहवारी दो महीने के लिए स्किप कर गई।यूरिन टेस्ट रिपोर्ट निगेटिव था, अतः चिकित्सक के पास नहीं गई, फिर एक सप्ताह के बाद ही पीरियड्स आ गए थे।किंतु इस बार अगला मेंसेज 20 दिन पश्चात ही प्रारंभ हो गया था और ब्लीडिंग भी हर बार से ज्यादा हुई।जब दो-तीन बार पीरियड्स इतनी जल्दी आए तो डॉक्टर के पास गई।डॉक्टर ने अल्ट्रासाउंड किया तो गर्भाशय में कोई विशेष परेशानी नहीं थी, अतः साइकिल को नियमित करने के लिए तीन माह का हार्मोनल ट्रीटमेंट तथा साथ में आयरन, कैल्शियम सप्लीमेंट दे दिया।
इसके बाद 5-6 माह तक कोई विशेष परेशानी नहीं हुई।किन्तु कभी कभी हृदय की धड़कन अति तीव्र हो जाती थी, बाइं तरफ़ सीने में लगातार चुभन सी बनी रहती थी।अचानक कभी कभी बेचैनी बेहद बढ़ जाती, ब्लड प्रेशर नापती तो अक्सर सामान्य निकलता।शुगर एवं ब्लड प्रेशर नापने की ऑटोमैटिक मशीन इसीलिए आजकल हर घर में अत्यंत आवश्यक हो गया है।
हृदय की धड़कन बढ़ने एवं चुभन तथा बेचैनी-घबराहट के कारण मेरी स्त्री रोग विशेषज्ञ ने हर्ट स्पेशलिस्ट को दिखाने की सलाह दी।हृदय रोग विशेषज्ञ ने ECG, TMT, इकोकार्डियोग्राफी, कोलेस्ट्रॉल, थायरॉइड इत्यादि कुछ अन्य टेस्ट कराए।हालांकि मेरा वजन ज्यादा नहीं है, किन्तु इस उम्र में लिवर में वसा का जमाव ज्यादा असामान्य नहीं है,साथ ही थोड़ा बहुत कोलेस्ट्रॉल भी बढ़ा हुआ होता है।इसलिए सादा, सुपाच्य एवं पौष्टिक खाना प्रौढ़ स्त्री-पुरुषों के लिए आवश्यक हो जाता है।
शेष रिपोर्ट लगभग सामान्य थे,अतः डॉक्टर ने कहा कि ये सब लक्षण कुछ तो तनाव और कुछ हार्मोनल डिस्टर्बेंस के कारण हैं।नियमित टहलना,योग,हल्का व्यायाम तथा स्वयं को चिंतामुक्त रखने की सलाह लेकर मैं वापस आ गई।
हथेलियों एवं पैरों के तलवों में बेहद जलन रहता, इसीलिए पैरों पर अक्सर पानी डालती रहती।कभी कभी तो ऐसा लगता कि पूरे शरीर से गर्मी बाहर निकल रही है, चेहरा ज्वर होने के समान तपने लगता, गाल रक्तवर्ण हो जाते, माथे पर पसीना आने लगता।आधे-पौन घंटे में ये लक्षण शांत हो जाते।इन्हें हॉट फ्लशेज कहते हैं।रजोनिवृत्ति के पूर्व काल में ये लक्षण ज्यादातर महिलाओं में पाये जाते हैं।
3 माह के हार्मोनल ट्रीटमेंट के बाद 4-5 माह पीरियड्स नियमित एवं नियंत्रित रक्तस्राव के साथ आते रहे।कुछ स्त्रियों में जब रक्तस्राव नियंत्रित नहीं हो पाता,तो उनकी बच्चेदानी को निकालना पड़ता है।
जैसे-जैसे रजोनिवृत्ति का समय निकट आ रहा था, एक नई समस्या सामने आने लगी थी, वैजाइना अर्थात योनि में ड्राईनेस बढ़ने लगी थी।हार्मोन की कमी से योनिस्राव घटने लगती है, परिणामस्वरूप बढ़ती शुष्कता के कारण जहां कभी कभी इचिंग प्रारंभ हो जाती है, वहीं इसके साथ प्रणय क्रिया बेहद कष्टप्रद हो जाती है।सेक्स हार्मोन की कमी होने से यौनेक्षा में भी अत्यंत कमी आ जाती है।एक साथ इतने परिवर्तनों के कारण जहां महिलाएं प्रणय क्रिया से विरत होने लगती हैं, वहीं पति इसे न समझ पाने के कारण इसे अपनी अवहेलना समझ क्रोधित या आक्रामक हो जाते हैं।जबकि इस दौरान महिला को औषधियों के साथ साथ पति के सहयोग एवं सहानुभूति की अत्यधिक आवश्यकता होती है।
पिछले एक वर्ष में मात्र दो बार पीरियड्स आए,वह भी अत्यंत अल्प मात्रा में।रजोनिवृत्ति काल में, यहां तक कि अंतिम पीरियड के बाद भी वर्ष भर तक सावधानी बरतने की अत्यंत आवश्यकता होती है, इसलिए यदि ट्यूबेक्टोमी नहीं हुई है तो हर दो माह के बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट करते रहना चाहिए।
योनिशुष्कता के लिए समागम के दौरान लुब्रिकेंट का प्रयोग करने से पीड़ा से निजात प्राप्त किया जा सकता है।लुब्रिकेंट अच्छी कम्पनी का एवं चिकित्सक की सलाह से लेना चाहिए।
रजोनिवृत्ति की प्रक्रिया के दौरान मानसिक अस्थिरता भी अत्यधिक बढ़ जाती है।किसी भी कार्य में मन एकाग्र नहीं होता।कभी कभी अचानक रोने का मन करने लगता है।छोटी छोटी बातों पर झुंझलाहट आती है।कभी कभी तो जीवन निरर्थक सा प्रतीत होने लगता है, जी चाहता है कि सब कुछ छोड़कर कहीं एकांतवास के लिए चले जाएं।इसे मूडस्विंग कहते हैं।यदि आप वर्किंग हैं तो फिर भी बाहर जाकर आपकी मनःस्थिति कुछ बेहतर हो जाती है।किन्तु घरेलू महिला को पति बच्चों से एक उपाधि और मिल जाती है कि आप आजकल "अजीब"हो गई हैं।सही है,"जाके पावँ न फ़टी बिवाई,सो का जाने पीर पराई"।
बच्चे अभी हमारे उम्र की परेशानियों को क्या समझेंगे एवं पति एक स्त्री की मनःस्थिति को न समझ सकते हैं, न समझना चाहते हैं।हालांकि कुछ लोग संवेदनशील होते हैं, वे संवेदना एवं सहयोग की भावना रखते हैं।फिर पीड़ा तो शरीर की होती है,जो स्वयं को ही सहन करनी होती है,बस सहानुभूति के दो शब्द, तनिक सा सहयोग एवं मानसिक सम्बल प्राप्त हो जाय तो किसी भी तकलीफ से पार पाया जा सकता है।
खैर, लगभग ढाई साल के उतार चढ़ाव के पश्चात मेरी रजोनिवृत्ति हो गई।हालांकि मूडस्विंग्स, हाथ-पैरों में जलन, थकावट, हॉट फ्लशेज, दिल की धड़कनों का बढ़ना, घबराहट,बेचैनी एवं वेजाइनल ड्राईनेस जैसी समस्याएं कमोबेश यथावत हैं, किन्तु धीरे से इनकी आदत पड़ जाती है।हड्डियां भी कमजोर होने लगती हैं, अतः चिकित्सक की सलाह से मल्टीविटामिन, कैल्शियम वगैरह नियमित लेते रहना चाहिए।
अपने आप को किसी शौक की पूर्ति में व्यस्त रखना चाहिए।बच्चों को उनके सपनों के आकाश में उड़ने दीजिए।पूरी जिंदगी हमने अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने में निकाल दिया,अब शेष जीवन अपने लिए, अपनी खुशियों के लिए समर्पित कीजिये।यदि पति साथ देते हैं तो अति उत्तम, अन्यथा अकेले हैं तो क्या गम है, हम क्या किसी से कम हैं।हंसिए,मुस्कुराइए,ठहाके लगाइए, गॉसिप कीजिये, यदि सम्भव हो तो भ्रमण कीजिये।
मैं इस दौर से गुजर रही समस्त महिलाओं को सलाह देना चाहूंगी कि कोई भी परेशानी होने पर उनके प्रति लापरवाही उचित नहीं होती है, न ही यह कोई बीमारी है, यह एक प्रक्रिया है।अतः चिकित्सक की सलाह लेते हुए बिना किसी दुविधा एवं संकोच के इस दौर को व्यतीत होने दें।यह हम स्त्रियों के जीवन के तृतीय अध्याय का प्रारंभ है।
*******