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जीवन सफर

अलका जी वनस्पति विज्ञान के प्रोफ़ेसर के पद से अभी पांच माह पूर्व ही सेवानिवृत्त हुई हैं।परिवार में उनका बेटा यश है जो SBI में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत है।नौकरी के प्रारंभ में दूसरे शहर में पोस्टिंग हुई थी।अपने शहर में इसी वर्ष स्थानांतरित होकर आया है।
अलका जी कॉलेज में विद्यार्थियों एवं सहकर्मियों के मध्य समान रूप से लोकप्रिय थीं, वे एक अत्यंत समझदार तथा सुलझी हुई महिला थीं।हर किसी के सुख-दुःख में शामिल होती थीं, परन्तु अनावश्यक न तो किसी के मामले में हस्तक्षेप करती थीं, न ही किसी विवाद में पड़ती थीं।
MSc करते ही अच्छा वर मिल जाने के कारण माता-पिता ने विवाह कर दिया था।उनके पति सुयश चाहते थे कि वे पीएचडी करें, क्योंकि उनका मानना था कि महिलाओं को भी अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिये।शिक्षा का सदुपयोग समाज के लिए एवं अपने आत्मसम्मान के लिए होना ही चाहिए।जबकि अलका जी एक आम नवविवाहिता की भांति अपने वैवाहिक जीवन में रम जाना चाहती थीं।सुयश की इच्छा को देखते हुए उन्होंने पीएचडी करना प्रारंभ कर दिया अभी एक वर्ष बीता ही था कि यश उनकी गोद लेने आ गया।सासू मां तथा सुयश के प्रोत्साहन एवं सहयोग से उनकी पीएचडी पूर्ण हो गई।तभी दिल्ली विश्वविद्यालय में लेक्चरर की वेकेंसी निकली उन्होंने इंटरव्यू में सफलता प्राप्त कर कर शीघ्र ही कार्यभार सम्भाल लिया।उनकी सुविधा को देखते हुए सुयश ने दिल्ली में ही फ्लैट ले लिया एवं स्वयं गुड़गांव अप-डाउन करने लगे।सासुमां की देखरेख में गृह सहायिका घर के समस्त कार्य सुचारू रूप से कर देती थी।अब यश भी स्कूल जाने लगा था।मां के घर में होने से यश को लेकर कोई चिंता नहीं होती थी।
यश अत्यंत कुशाग्र बुद्धि का था, हमेशा क्लास में प्रथम आता था।अलका जी के जीवन के खुशियों की बरसात सी हो रही थी।एक स्त्री क्या चाहती है, प्रेम करने एवं हर क़दम पर साथ देने वाला पति, एक अपना घर, एक प्यारी सी सन्तान।उस पर धन-धान्य से घर भरा हो तो सोने पर सुहागा औऱ परिवार का सहयोग प्राप्त हो जाय तो क्या कहने।समय पँख लगाकर उड़ रहा था।
लेकिन कब भाग्य दुर्भाग्य में बदल जाये पता ही नहीं चलता।उनके सुखी संसार को दुर्भाग्य की नजर लग गई।
ज्यादातर सुयश बाइक को मेट्रो की पार्किंग में खड़ा कर मेट्रो से ही ऑफिस जाते थे, कार घर पर ही रहती थी कि कभी अलका जी को जरूरत पड़ जाए।उस दिन तेज बारिश हो रही थी, अतः सुयश कार से ही ऑफिस के लिए निकल गए।हंसते-मुस्कराते सुयश की जगह निर्जीव सुयश का शरीर वापस आया, वापस आते समय उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त हो गई, दुर्घटना इतनी भयानक थी कि घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई।
उनके सुखों-खुशियों की आयु मात्र 10 वर्ष की रही।यश की खातिर अलका जी ने स्वयं एवं वृद्धा सास को संभाला।अर्थाभाव तो नहीं था, परन्तु किसी अपने के जाने से जो रिक्ति उत्पन्न होती है उसकी भरपाई कदापि नहीं हो सकती है।जीवन तो गतिमान है, अपनी गति से चलता ही रहता है।समय घाव को भर तो नहीं सकता, किंतु उस पीड़ा को सहने योग्य कम तो कर ही देता है।
चार साल पश्चात सासुमां भी दुनिया छोड़कर अपने बेटे के पास चली गईं।यश ने बीकॉम श्रीराम कॉलेज से पूर्ण किया एवं बैंकिंग प्रतियोगिता की तैयारी में जुट गया।प्रथम प्रयास में ही उसने प्रतियोगिता निकाल लिया,एवं उसकी पोस्टिंग लखनऊ में हो गई।यश उन्हें अकेले छोड़ना तो नहीं चाहता था,परन्तु अलका जी का कार्यकाल अभी शेष था, अतः वे साथ तो जा नहीं सकती थीं।वैसे,अब उन्हें अकेले रहने में कई परेशानी थी भी है क्योंकि उन्होंने स्वयं को परिस्थितियों के हिसाब किताब अत्यंत मजबूत बना लिया था, फिर कॉलेज एवं आसपड़ोस से भी उनके सम्बंध ऐसे थे कि उनकी एक आवाज पर सभी सहायता हेतु तत्पर रहते थे।सदैव सभी के लिए जितना बन पड़ता था, वे सहयोग के लिए कभी पीछे नहीं हटती थीं।
पांच वर्ष व्यतीत हो गए, इसी वर्ष अलका जी का रिटायरमेंट था।सौभाग्य से यश भी स्थानांतरित होकर नोएडा ब्रांच में आ गया।अब वह दिल्ली से मेट्रो से अप-डाउन करने लगा।
अब अलका जी चाहती थीं कि यश विवाह कर ले क्योंकि उसकी विवाह की उम्र हो चुकी थी।एक दिन उन्होंने यश से कहा कि बेटा, अब तुम्हें विवाह के बारे में सोचना चाहिए।यश की मौन स्वीकृति के उपरांत उन्होंने कहा कि यदि तुम्हें कोई लड़की पसंद हो तो मुझे बताओ,मैं उसके परिवार वालों से बात करती हूं।
यश ने कहा,"मां, बहू खोजने की जिम्मेदारी तो आपको ही उठानी पड़ेगी।"
अलका जी ने पुनः पूछा कि कोई विशेष बात जो तुम अपनी जीवनसंगिनी में चाहते हो तो बताओ।
यश ने हंसते हुए कहा कि अपने जैसी देख लो मां।अलका जी भी मुस्कुरा उठीं।
यश की सहमति प्राप्त होते ही अलका जी की निगाह हर सुकन्या पर ठहरने लगी थी।अपने कुछ खास परिचितों से जिक्र भी कर दिया था यश के लिए सुयोग्य कन्या बताने के लिए।देखते ही देखते रिश्तों की लाइन लग गई।आखिर यश जैसे सुदर्शन, संस्कारी,अच्छे सरकारी नौकरी वाले दामाद को कौन नहीं पाना चाहेगा।
एक दिन अलका जी किसी कार्यवश विश्वविद्यालय गईं, क्योंकि रिटायरमेंट के बाद की तमाम औपचारिकताओं में समय तो लगता ही है।कार्य से निबटने के बाद उन्होंने अपनी मित्र सरिता जी से भी मिलने का निश्चय किया जो मनोविज्ञान विभाग की HOD थीं, जिनका कार्यकाल अभी एक वर्ष शेष था।जब वे सरिता जी के कक्ष में पहुंचीं, तो वे अपने कक्ष में नहीं थीं।एक युवती वहां बैठी हुई थी जो कुछ नोट्स बना रही थी।अलका जी ने उससे सरिता जी के बारे में पूछा तो युवती ने बताया कि वे अभी लेक्चर ले रही हैं,अभी आधे घंटे में आ जाएंगी,तबतक आप चाहें तो यहां बैठकर इंतजार कर सकती हैं।अलका जी ने इंतजार करना उचित समझा।वे उस युवती को देखने लगीं।
वह एक गेहुँए रंग की गोल चेहरे वाली, मध्यम कद की युवती थी।अत्यंत सुंदर तो नहीं थी,किंतु उसके चेहरे पर स्थित बड़ी,गहरी, काली आंखों में एक ऐसा आकर्षण था जो सहज ही किसी को आकर्षित करने की क्षमता रखते थे।कंधे से थोड़ा नीचे तक के कटे बालों की उसने पॉनीटेल बना रखी थी।उस युवती के व्यक्तित्व में एक ऐसी सौम्य झलक थी जिससे वे अनायास प्रभावित हो गईं थीं।अलका जी ने उससे वार्तालाप प्रारंभ करने के उद्देश्य से उसका परिचय पूछा, तो उसने बताया कि मेरा नाम नव्या है, मैंने अभी दो माह पूर्व ही यहां लेक्चरर के रूप में ज्वाइन किया है।उन्होंने भी अपना परिचय दिया, फिर थोड़ी देर अन्य सामान्य सी बातें हुईं, तबतक सरिता जी आ गईं।वे अलका जी से मिलकर अत्यधिक प्रसन्न हुईं।नव्या अपनी क्लास लेने वहां से चली गई।
सरिता जी के जब यश के विवाह के बारे में पूछा तो अलका जी ने बताया कि रिश्ते तो बहुत हैं लेकिन अभी बात कहीं विशेष आगे बढ़ाई नहीं है।फिर उन्होंने नव्या के बारे में जिज्ञासा जाहिर की एवं कहा कि वह अविवाहित प्रतीत हो रही है, मुझे वह अच्छी लगी।अतः आप मुझे उसके बारे में जानकारी प्राप्त करके बताओ,साथ ही यह भी पता चल सके कि वह कहीं वचनबद्ध तो नहीं है।
सरिता जी ने शीघ्र ही सब पता करने का आश्वासन दिया और बताया कि वह उन्हें भी काफी समझदार युवती लगी,एवं अविवाहित तो है ही।
एक माह बाद सरिता जी स्वयं उनके घर मिलने आईं।उन्होंने नव्या की सारी जानकारी उन्हें प्रदान की।नव्या अपने परिवार में बड़ी बेटी है, उससे छोटी एक बहन है, जो इस वर्ष इंजीनियरिंग की तैयारी कर रही है, घर में माँ हैं, पिता का तीन साल पहले देहांत हो गया था, वह अपने परिवार की जिम्मेदारी के कारण अभी विवाह नहीं करना चाहती है।
अलका जी विवाह न करने की बात जानकर थोड़ी निराश तो हुईं,परन्तु वे इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थीं।उन्होंने सरिता जी से नव्या का मोबाइल नंबर लेकर उसे फोन किया एवं कहा कि बेटा मैं एक बार तुमसे एवं तुम्हारी माँ से मिलना चाहती हूं, अतः अपनी सुविधानुसार अपने घर आने का समय दे दो।
नव्या ने उन्हें रविवार को घर आने का निमंत्रण दे दिया।अलका जी तय समय पर सरिता जी के साथ नव्या के घर पहुंच गईं।दो कमरों का छोटा सा सुव्यवस्थित घर था।नव्या की मां एक सीधी सादी घरेलू महिला थीं।पिता प्राइमरी स्कूल में प्राध्यापक थे,इसलिए जमां-पूंजी अधिक नहीं थी,इसलिए मां तथा बहन की जिम्मेदारी नव्या पर ही थी ज्यादातर ससुराल वाले विवाहोपरांत बहू की तनख्वाह पर अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं, इसी भयवश अपनी बहन की जिम्मेदारी पूर्ण होने तक अपना विवाह स्थगित रखना चाहती थी।
अलका जी स्पष्ट वार्तालाप की पक्षधर थीं, अतः बिना लाग लपेट के अपना मंतव्य स्पष्ट करते हुए सर्वप्रथम अपने परिवार का विवरण दिया, उसके बाद कहना प्रारंभ किया कि अपने बेटे यश के लिए जीवनसंगिनी के रूप में नव्या बेहद पसंद है।मैं पूर्ण आश्वासन देती हूं कि हमारी तरफ से नव्या के कर्तव्य निर्वहन में कभी भी कोई बाधा कदापि नहीं आएगी, अपितु मैं एवं यश पूर्ण सहयोग ही करेंगे।इसलिए आप लोग एक बार अच्छी तरह सोच-विचार करने के बाद मुझे अतिशीघ्र सूचना देने का प्रयास करें क्योंकि मुझे अन्य लोगों को भी जबाब देना है।
दूसरे दिन विभाग में पहुंचने पर सरिता जी ने नव्या से कहा,"बेटा, मैं अलका जी के परिवार को 30 वर्षों से जानती हूं।विवाह तुम्हारा व्यक्तिगत निर्णय है लेकिन मेरी यही सलाह है कि इस रिश्ते को अपनाकर तुम्हें जिंदगी में कभी पछताना नहीं पड़ेगा, यह आश्वासन मैं तुम्हें देती हूं।"
कुछ दिनों के सोच-विचार के बाद नव्या ने अपनी मां को स्वीकृति दे दी।उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा।उन्होंने तुरंत अलका जी को फोन लगाकर कहा कि नव्या ने हां कह दिया है, अतः मैं शीघ्र मिलना चाहती हूं।
अलका जी ने कहा,"शुभस्य शीघ्रम।आप दोनों बेटियों के साथ हमारे घर आकर यश से भी मिल लें एवं घर भी देख लें।"
नव्या अपनी मां, बहन के साथ अलका जी के घर पहुंची।मां-बेटे ने उनका मुस्कुराते हुए स्वागत किया।अलका जी ने फोन कर सरिता जी को भी बुला लिया।चाय-नाश्ते के साथ बात-चीत होने लगीं।
थोड़ी देर बाद अलका जी ने कहा कि नव्या बेटा, तुम सोच रही होगी कि तुम्हें मैंने क्यों बुलाया?बेटा, मेरा मानना है कि लड़की का आश्वस्त होना ज्यादा आवश्यक है।यश की सहमति पाकर उन्होंने कहा कि नव्या मैं चाहती हूँ कि तुम दोनों एक दो माह एक दूसरे को थोड़ा जान-समझ लो।अब यह तुम्हारी इच्छा है कि परिचय सगाई के पूर्व करना चाहती हो या बाद में।
कुछ देर चुप रहकर नव्या ने हिचकते हुए कहा कि मैम, यह अरेंज मैरिज है, अतः मैं पहले सगाई करना पसंद करूंगी।अलका जी ने मुस्कुरा कर कहा,"बेटा, अब मैम की जगह मां या मम्मी कहो।खैर, यश-नव्या की सहमति से एक सप्ताह पश्चात उनकी सगाई एवं दो माह बाद सादे समारोह में उनका विवाह संपन्न हो गया, उसके बाद सभी परिचितों के लिए रिसेप्शन रखा गया।
विश्वविद्यालय में परीक्षाएं होने वाली थीं, अतः यश-नव्या ने बाद में छुट्टियों में हनीमून पर जाने का निश्चय किया।नव्या के विश्वविद्यालय से आने के बाद अलका जी अपने हाथों से चाय बनातीं, दोनों साथ में पीते हुए दिन भर की बातें बांटती।यश बाद में आता था, तब नव्या चाय-नाश्ता बनाती, तीनों बातें करते।गृहकार्य के लिए पुरानी सहायिका थी ही,अतः कभी-कभार शौक में सास-बहू मिलकर कुछ विशेष बना लेतीं थीं।
विवाहोपरांत प्रथम सैलरी मिलने पर नव्या अलका जी के लिए साड़ी एवं यश के लिए घड़ी लेकर आई।अलका जी ने उपहार लेते हुए नव्या को आशीर्वाद दिया, फिर यश से कहा कि यश तुम्हें भी नव्या की मां-बहन के लिए गिफ्ट लाना चाहिए।यश ने हंसते हुए ATM कार्ड नव्या को देते हुए कहा कि महिलाओं के वस्त्रों के बारे में मुझे नहीं पता,अतः यह जिम्मेदारी नव्या को ही उठानी पड़ेगी।समय हंसी-ख़ुशी पँख लगाकर उड़ता रहा।
इसी वर्ष नव्या की बहन का सेलेक्शन IIT दिल्ली में ही हो गया।दो साल के अंदर नव्या की गोद में नन्हा आशय आ गया।अलका जी बेहद प्रसन्न थीं।
शिक्षा समाप्त होते ही नव्या की बहन की जॉब बेंगलुरू में लग गई।एक वर्ष पश्चात उसके सहयोगी के साथ उसका विवाह भी सम्पन्न हो गया।
एक दिन अलका जी ने नव्या से कहा,"बेटा, अब तुम्हारी माँ की जिम्मेदारी पूर्ण हो चुकी है, अतः अब वहां अकेले रहने का कोई विशेष कारण नहीं है, इसलिए उन्हें अपने पास लेकर आओ।नव्या की मां ने थोड़ी अनाकानी की,किंतु नव्या-यश के समक्ष एक न चली।अब नन्हा आशय दादी-नानी के स्नेह एवं संरक्षण में पल रहा है।नव्या ईश्वर को धन्यवाद करते नहीं थकती उसकी झोली खुशियों से भर देने के लिए तथा इतने समझदार एवं स्नेही परिवार से रिश्ता जोड़ने के लिए।
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