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वटवृक्ष

आज मानसी को अवसादग्रस्त हुए एक वर्ष से अधिक हो गए।अभी कुछ माह पूर्व तक जब भी वह अपने पति से अपनी मानसिक,शरीरिक तकलीफों के बारे में बात करना चाहती थी तो उसके पति वरूण के पास न तो उसकी बातों को सुनने में इंटरेस्ट होता था, न समय ही था।वह यही मानता था कि औरतों को सिर्फ घर के काम रहते हैं, आराम से कूलर,पंखे में बैठकर टीवी देखती हैं, फोन पर गप्पें मारती हैं, उन्हें भला क्या परेशानी होती है।हम पुरुषों को तो पैसे कमाने के लिए न जाने कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं,भविष्य की प्लानिंग करनी पड़ती है, तमाम तरह के लोगों को हैण्डल करना पड़ता है।
अवसादग्रस्त होने से पूर्व मानसी खुश थी अपनी गृहस्थी में।वरुण अत्यंत एक्टिव बन्दा था, दुनियादारी में भी निपूर्ण, एवं व्यवहारकुशल।हर तरह के केलकुलेशन में एक्सपर्ट।परिचित, रिश्तेदार भी उससे सलाह लेते रहते थे।अपने परिवार के लिए बेहद प्रोटेक्टिव था वह।मानसी उसके हर निर्णय को आँख बंद कर मानती थी क्योंकि उसे भी वरुण की अक्लमंदी पर पूर्ण विश्वास था।घर से बाहर अकेले मात्र अपने बेटे को स्कूल से लाने के लिए निकलती थी।रिश्तेदारी या बाजार में केवल वरुण के साथ निकलती थी।ऐसा नहीं था कि वह कर नहीं सकती थी।पढ़ी-लिखी, शहर में पली-बढ़ी समझदार महिला थी।किन्तु वरुण को अपने सिवा किसी का काम पसन्द ही नहीं आता था।कोई सलाह, कोई निर्णय करने का अधिकार नहीं था मानसी को,उसे केवल वरुण के आदेशों का अनुपालन करना था।विवाह के बाद 18 वर्ष तक उसे विशेष परेशानी हुई भी नहीं।बल्कि इस सुरक्षा आवरण में वह निश्चिंत थी।
समस्या प्रारंभ हुई जब बेटा इंटर करने के बाद ग्रेजुएशन करने के लिए बाहर जाना चाहता था, किन्तु पिता का कहना था कि शहर में कई डिग्री कॉलेज हैं, यहीं से ग्रेजुएशन करो,फिर आगे की देखेंगे।दबाव में उसने एडमिशन तो ले लिया, एक सेमेस्टर का इक्जाम भी पास कर लिया, लेकिन वह समझ गया था कि यदि बाहर जाना है तो किसी ऐसे प्रोफेशनल कोर्स का चुनाव करना होगा जो यहां न हो।यह भी कटु सत्य है कि विशाल बरगद के पेड़ के छत्रछाया में अन्य पौधों का समुचित विकास नहीं होता है।पिता-पुत्र के मध्य बढ़ते मतभेद में मानसी सेन्डविच बन गई थी। बेटे का विरोध अब विद्रोह में परिवर्तित हो चुका था।वह अपनी भड़ास मां पर निकलता था।दूसरे सेमेस्टर की परीक्षा उसने सबके समझाने के बावजूद नहीं दिया।उस वर्ष उसके वांछित कोर्स में भी उसका सेलेक्शन नहीं हो सका।घर में अत्यधिक तनाव का माहौल था।मां-बेटे कैरियर खराब होने के भय से अवसादग्रस्त होने लगे थे।वरुण तो ऑफिस चला जाता था।मानसी अपनी व्यथा किसी से बांट भी नहीं पाती थी।समस्याएं तो सभी के जीवन में आती हैं लेकिन कुछ लोग तो उनसे उबर जाते हैं, किन्तु कुछ लोग अवसादग्रस्त हो जाते हैं।यदि समय से निराकरण नहीं होता तो यह बीमारी में परिवर्तित हो जाती है, तब बिना औषधि के ठीक नहीं हो सकती।
मानसी के सर में खिंचाव महसूस होता था, थोड़े कार्य करने में भी बदहवास हो जाती थी, मन से उत्साह समाप्त हो गया था, बेचैन रहती थी, वजन भी तेजी से कम हो रहा था।नींद भी नहीं आती थी।जब तब रोने लगती थी। चुपचाप निराशा में डूबी नकारात्मक बातें सोचती रहती थी।मिलने वाले भी मानसी के स्वास्थ्य के लिए टोकने लगे थे।लेकिन वरुण योग और उपदेश से उसे ठीक करना चाहता था।जब मानसी अवसाद के दूसरे चरण में प्रवेश कर गई, तब भी वरुण की आंख पूरी तरह से नहीं खुली।किसी परिचित चिकित्सक से सलाह लेकर कुछ दवा देना प्रारंभ कर दिया, जबकि मानसी को मनःचिकित्सक की सख्त आवश्यकता थी।जब इंसान स्वयं को सर्वबुद्धिमान समझने लगता है तो मात भी बुरी तरह खाता है।ऐसा व्यक्ति किसी के सलाह को मानता भी नहीं है।
खैर, वरुण के बड़े भाई-भाभी से देखा नहीं गया।उन्होंने हस्तक्षेप कर बेटे को कई फॉर्म भरवाया,जिससे उसका एक अच्छे कॉलेज में दिल्ली में एडमिशन हो गया।अब प्रॉपर ट्रीटमेंट हो रहा है मानसी का।उम्मीद है शीघ्र ही वह पूर्ण स्वस्थ होकर पहले की तरह हंसने-मुस्कुराने लगेगी।
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