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नव प्रभात

जिंदगी के आसमान में खुशियों के पंख लगाकर वह उन्मुक्त परिंदे की मानिंद उड़ान भर रही थी कि किस्मत ने अचानक उसके पंख काटकर उसे हकीकत के पथरीले उजड़े जमीन पर पटक दिया।
नैना तीन भाइयों से बड़ी अपने माता पिता की इकलौती बेटी थी।बचपन के 5-6 वर्ष तो थोड़ी कठिनाई में बीतेे थे,परन्तु उसके बाद उसे जििंदगी की हर सुुुख सुविधा उपलब्ध हुई। नैना एवं उसके भाई पिता के क्रोधी स्वभाव के कारण उनसे बेहद डरते थे, कििन्तु उनकी माँ ने उन्हें अपनी ममता के आँचल तले छिपाकर बड़े स्नेह से पाला। नैना के प्रति अनुराग थोड़ा अधिक था क्योंकि हर मां अपनी बेटी के आगामी भविष्य के लिए चििंतित रहती है कि पता नहीं विवाह के बाद कैसा परिवार मििले,किितना संघर्ष करना पड़े।नैना जो भी इच्छा व्यक्त करती, वह हर सम्भव पूर्ण करने का प्रयास करतीं।
वह पढ़ने में काफी अच्छी थी, पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती थी।इंटर के बाद बायोटेक से इंजीनियरिंग करने के लिए शहर से बाहर भेजने के लिए पिता बड़ी मुश्किल से तैयार हुए।बीटेक पूरा होने के बाद गेट में सेेेलेक्शन हो जाने से एमटेक भी पूर्ण कर लिया। कैम्पस सेलेक्शन में अत्यंत अच्छी कम्पनी में जॉब मिलने सेे वह कुछ समय जॉब करना चाहती थी, परन्तु पिता इसके लिए कदापि तैयार नहीं थे।अब वे नैना का विवाह कर देना चाहते थे अतः लड़के देखने लगे। नैना अच्छी तरह जानती थी कि पििता के निर्णय का विरोध करने की सामर्थ्य घर में किसी में भी नहीं है अतः उसके पास उनके फैसले को मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है।
नैना एवं उसकी माँ एक उच्च पदस्थ सरकारी नौकरी करने वाला वर चाहते थे ,परंतु पिता को अपनी तरह अत्यंत धन सम्पन्न परिवार चाहिए था।खैर, जहां रिश्ता जुुुड़ना भाग्य तय करता है परिस्थितियां हमेंं उसी ओर ले जाती हैं।एक वर्ष के भीतर नैना का विवाह केेेशव के साथ धूम धाम से सम्पन्न हो गया।पिता ने डेढ़ करोड़ ख़र्च किए थे विवाह में,शानदार दावत,सबसे मंहगा बेंक़वेट हॉल, कपड़े जेेवर,हर तरह का प्रदर्शन।
केशव ने प्राइवेट कॉलेज से एमबीबीएस किया था।तीन। भाइयों में मध्य का था, सीधा साधा, सुदर्शन युवक।नैना के ससुराल में पेट्रोल पंप एवं कोल्ड स्टोरेज था जिसे ससुर एवं जेेठ देखते थे, घर में जिठानी एवं सास का पूरा दबदबा था।
केशव ने दूसरे शहर में एक बड़ा हॉस्पिटल ज्वाइन कर लिया था, अतः नैना के साथ ही रहने के कारण ससुुुराल तीज त्योंहार पर ही जाना होता था।फिलहाल ससुराल में पहनने ओढ़ने पर विशेष बाध्यता नहींं थी।
नैना लाड़ दुलार के कारण थोड़ी शार्ट टेम्पर्ड थी, किन्तु केेशव अत्यंत धीर गम्भीर ,समझदार व्यक्ति थे, इसलिए पति पत्नी के मध्य कोई बात बिगड़ने नहीं पाती थी।परिवार को आगे बढ़ाने का। विचार फिलहाल दो तीन साल के लिए स्थगित कर दिया था जिससे वैवाहिक जीवन का आनन्द बिना विघ्न बाधा के उठाया जा सके।
अगले साल नैना के छोटे भाई का विवाह भी हो गया। अब वे चारो लोग हर 5-6माह में देेेश विदेेेश में घूमने का प्रोग्राम बना लिया करते थे।
हंसते खेलते दो वर्ष और व्यतीत हो गए।इसी बीच नैना एक भतीजे की बुआ भी बन गई।अब मायके ससुराल वाले नैना केेेशव से भी बच्चे के बारे में सोचने के लिए कहने लगे।
केशव ने पिता की सलाह पर अपने ही शहर में नर्सिंग होम प्रारंभ कर लिया, साथ ही वे अब गम्भीरता से बच्चे के बारे में भी सोचने लगे।5-6माह पश्चात भी अपेक्षित परिणाम न प्राप्त होने पर उन्होंने डॉ से मिलकर चिकित्सा भी प्रारंभ कर दिया।नर्सिंग होम को स्थापित करने में केेेशव ने जी जान लगा दिया।जहां चार बरतन रहेंगे तो टकराएँगे ही।परिवार में साथ रहने से कुछ पारिवारिक तनाव भी प्रारंभ हो गए भाइयों के मध्य, फिर उसपर नर्सिंग होम एवं बच्चे की चिंता।केेेशव की सलाह पर मैनेेेजमेंन्ट एवं मेंडिकल स्टोर की देेखरेख नैना ने संभाल लिया।
कुछ ही माह में नर्सिंग होम अच्छा खासा चलने लगा था। बस तभी भाग्य ने कुठाराघात कर दिया।एक दिन केेेशव ने सीने में हल्का सा दर्द बताया, तथा थोड़ी सी हरारत भी थी। चिकित्सक भी हल्की फुल्की परेशानियों को तो पहले नजरअंदाज कर ही देते हैं।तीसरे दिन जब परेशानी बढ़ती सी प्रतीत हुई तो आनन फ़ानन में एक बड़े अस्पताल में ले जाया गया, परन्तु उसी रात केशव सबको रोते बिलखते छोड़ कर चले गए।नैना की तो दुनिया ही वीरान हो गई। उसे तो होश ही नहीं था कि कब,क्या,कैसे हुआ।
किसी अपने का जाना जो घाव देता है वह नासुर के समान ताउम्र रिसता रहता है।बस समय थोड़ी तकलीफ़ कम कर देता है।केशव के जाते ही जीवन के रंग तो समाप्त हो ही गए थे कि रिश्तों ने भी रंग बदलना शुरु कर दिया।दुनिया की कठोर वास्तविकता अब उसके समक्ष उजागर हो रही थी।
समाज दोहरे चरित्र वाला है।यदि पत्नी की मृत्यु हो जाय तो कोई बात नहीं।पति की असमय मृत्यु का दोष पत्नी के भाग्य पर मढ़ दिया जाता है।सन्तान न हो तो स्त्री के कोख में कमी।उसपर कष्टप्रद सबसे ज्यादा तो यह है कि इस तरह के ज्यादातर आरोप एक औरत ही दूसरी स्त्री पर लगाती है।
नैना के नन्द का विवाह इस हादसे के कारण टल गया था, कििंतु ज्यादा देर करना उचित न समझ 4 माह पश्चात ही कर देंंने का निश्चय कर लिया गया।विधवा होने के कारण उसे किसी भी शुुुभ-सगुुन के कार्यों से दूर रखा गया। वैसे ही मन की व्यथा अभी चरम पर थी अतः वह भी स्वयं को विलग ही रखना चाहती थी।
मां ने अपनी ममता की छावं तो दी थी परन्तु जमाने का विरोध करने का साहस उनमें नहीं था।पिता चाहते थे कि विवाह में ख़र्च की गई धनराशि ससुराल वाले नैना के नाम जमा कर दें,जबकि ससुरालियों का कहना था कि ज्यादातर पैसा तो दोनों पक्षों ने विवाह के समय ही प्रदर्शन में खर्च कर दिया था।केशव के पास जो थोड़ी बहुत जमा पूंजी थी वह भी उन लोगों ने निकाल लिया।बीमे की नोमनी भी सास थीं अतः उसपर भी उन लोगों ने अधिकार कर लिया।
कुछ लोगों ने तो यह भी सलाह दिया कि नैना का विवाह उसके देवर से कर दिया जाय जो उसका हमउम्र ही था।नैना की स्थिति बिना नाव के पतवार की भांति हो गई थी जो परिस्थितियों के तूफानी सागर में बिना मंजिल के इधर उधर भटक रही थी। मायके ससुुुराल दोनों जगह धन सम्पदा की कोई कमी नहीं थी, कमी थी तो सिर्फ नियत की।
हमारे समाज की क्रूर विडम्बना है कि यदि स्त्री को सन्तान होती है तो उसकी सन्तान को पूर्ण अधिकार प्राप्त हो जाता है, किन्तु वह सदैव अधिकार विहीन रह जाती है।इसलिए आज की औरत अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है जिससे वह ससम्मान अपना जीवन व्ययती कर सके।कुछ ही समय में नैना इस बात को समझ।चुकी थी।अतः अब उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि चाहे जो हो अब अपना रास्ता वह स्वयं चुनेेेेेगी।अपने को मजबूत कर उसने अपना फैसला सुना दिया कि वह जॉब करेगी।पिता ने तो थोड़ा विरोध जताया परन्तु ससुुुराल वालों ने राहत की सांस कि चलो बलाा टली।ज्यादातर जगह बेटे के गुुुजरते ही बहू बोझ समान हो जाती है, ससुराल वाले येेन केन प्रकारेण छुटकारा पाने का प्रयास करने लग जातेे हैं एवं मायके में बेटों को तो बराबर का हक प्राप्त होता है लेकिन विधवा या तलाकशुदा बेटी को रखना भारी पड़ जाता है।
सर्वप्रथम तो उसनेे प्राइवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में आवेदन किया। शीघ्र ही एक अच्छे कॉलेज में लेक्चररशिप प्राप्त हो गया। कॉलेज कैम्पस में ही वह हॉस्टल में शिफ्ट हो गई, एक तो सुरक्षा थी, दूसरे लड़कियों के मध्य उसे अपना दुख भूलने में मदद मिलता, साथ ही उसने UGC-CSIR -NET की तैयारी शुरू कर दिया।अब उसका अगला लक्ष्य था अच्छे स्कोर सेे NET क्वालीफाई करना।मेधावी तो वह थी ही,उसने प्रथम प्रयास में ही NET क्वालीफाई कर लिया, ततपश्चात उसी कॉलेज में PHD भी करना प्रारंभ कर दिया। जहां से उसने शिक्षा ग्रहण की थी।दो वर्षों में उसकी थीसिस पूरी हो गई, इसी मध्य उसकी उसी कॉलेज में लेक्चरर के पद पर नियुक्ति हो गई।
अब उसके जीवन में नव प्रभात आया था ।आज वह बेहद प्रसन्न
थी कि अपने जीवन का प्रथम महत्वपूर्ण निर्णय उसने अपनी मर्जी से लिया था एवं उसे इसमें पूर्ण सफलता प्राप्त हुई थी।इस सफलता ने उसके व्यक्तित्व को अभूतपूर्व आत्मविश्वास से भर दिया था और वह जिन्दगी केे नूतन राह पर चल पड़ी थी।
फिलहाल उसने केशव की यादों को दिल में छिपाकर मन के द्वार को कस कर बन्द कर दिया था, परन्तु जब रोशनी को प्रवेश करना होता है तो समय केे बनाए अत्यंत बारीक दरार से भी वह प्रवेश कर घनघोर तम को भी परास्त कर उजाला फैला देती है।हम भी प्रतीक्षारत है नैना के जीवन मेंं नए इन्द्रधनुषी रँगों वाले प्रकाश के प्रवेश की।

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