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दहेज बना अभिशाप

एक बहुत पुराने समय की बात है.एक छोटे से गांव में एक छोटा सा परिवार रहता था. परिवार के मुखिया का नाम हरीश जी था और उनकी पत्नी का नाम विभा देवी था.हरीश जी एक निजी का निजी कंपनी में कार्यरत थे,और विभा देवी जी एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका थी.हरीश जी और विभा देवी जी के दो बच्चे थे. एक लड़का जिसका नाम विनय था और एक लड़की जिसका नाम कुमुद था.4 जन का छोटा सा परिवार अपने आप में बहुत मशगूल रहता था.चारों लोग अपनी एक दूसरे को देख देख कर अपनी जिंदगी जीते थे. अपनी छोटी सी जिंदगी में वह बड़ी-बड़ी खुशियां बटोरते थे.विभा देवी और हरीश जी की बेटी कुमुद बचपन से ही बहुत सुशील, संस्कारी ,होशियार और समझदार थी.बचपन से ही कुमुद को पढ़ना लिखना बहुत पसंद था.वह पढ़ लिख कर अपनी जिंदगी में कामयाब इंसान बनकर आत्मनिर्भर बनना चाहती थी और अपना अपना और अपने परिवार का नाम ऊंचा बनाना चाहती थी.हरीश जी और विभा देवी जी ने भी उसकी पढ़ाई को लेकर और उसके सपने को लेकर उसे पढ़ने लिखने की छूट दी और उसे जो करना चाहे वह कर सकती है वे लोग उनके साथ है ऐसा कह कर उसका हौसला बढ़ाया 1 दिन कुमुद को बड़े होत्ते देखते हुए कुमुद के माता पिता हरीश जी और विभा देवी जी को उसकी शादी की चिंता होने लगी कि अब उम्मीद कुमुद भी बड़ी हो चुकी है उसके लिए भी लड़का देखा जाए.बातों ही बातों में उन्होंने कुछ रिश्तेदारों से कह रखा था कि बिटिया अब बड़ी हो रही है उसके लिए अब लड़का देखना शुरू कर दीजिए और कोई अच्छा रिश्ता हो तो हमें बताइए यह बात सुनकर हरीश जी के मित्र सुखदेव जी ने कुमुद के लिए एक मित्र के लड़की का जिक्र किया जिसका नाम रोहन था. सुखदेव जी हरीश जी से कहा कि रोहन एक अच्छा लड़का है और उसका परिवार भी मैंने देख रखा है आप कहे तो मैं उन्हें बुलवा लेता हूं आप दोनों परिवार एक दूसरे से मिल लीजिए और कुमुद बिटिया को भी रोहन बेटे से मिलवा दीजिए और आपको पसंद आए तो हम यह रिश्ता पक्का करवा दे यही सुनकर हरीश जी ने कहा ठीक है मिलवा दीजिएगा. दोनों परिवार फिर एक दूसरे से मिले और बातचीत हुई रोहन के परिवार को भी कुमुद पसंद आई और हरीश जी और विभा देवी जी को भी रोहन पसंद आया. उन्होंने कहा चलो हम रिश्ता पक्का कर लेते हैं सभी हरीश जी और विभा देवी जी ने उनसे कहा कि हमारी एक शर्त है वैसे हमारी बेटी बहुत सुबह बहुत संस्कारी हैं सारे घर के काम जानती है पर उसे अपने सपने भी पूरे करने हैं और वह पढ़ लिख कर आत्मनिर्भर बनना चाहती है और वह अभी भी सरकारी नौकरी के लिए प्रयास कर रही है परीक्षाओं का और यदि वह सफल हुई तो वह नौकरी भी करेगी. यह सुनकर रोहन के पिता जी थोड़े से सोच में पड़ गए फिर उन्होंने कहा ठीक है कोई बात नहीं यह बात सुनते ही सब लोग खुश हो गए और रिश्ता पक्का कर दिया गया. बहुत सालों की सगाई रखने के बाद रोहन के पिताजी ने आग्रह किया कि अब हम रोहन की शादी करवाना चाहते हैं तो कृपया आप भी इस पर विचार कीजिए सुनकर हरीश जी और विभा देवी जी ने भी कहा ठीक है हम शादी की तैयारियां शुरू करते हैं. और फिर अच्छा सा मुहूर्त देखकर कुमुद और रोहन की शादी कर दी गई. जब कुमुद उस घर में शादी कर कर उस घर में गई तब उसने सारा घर संभाला. कुमुद की शादी में हरीश जी और विभा देवी जी ने जितना उनसे बन पड़ा सब कुछ दिया और खूब धूमधाम से उसकी शादी की थी फिर भी जब को मुझ ससुराल में आई उनकी सास और ससुर ने उसे ताने मारना शुरू कर दिया रोज-रोज वह उसे सुनाने लगे 1 दिन कुमुद ने अपने ससुराल वालों से कहां की इतना मेरे माता-पिता से हो सकता था उन्होंने सब कुछ मुझे दिया और वैसे भी जब मेरे पति कमाएंगे अभी वह अपना घर बसा पाएंगे मेरे माता-पिता का दिया वह कितने दिन चलाएंगे यह सुनकर तो कुमुद की सास ने उसे थप्पड़ ही मार दिया और कहा कि तुम्हें तमीज और संस्कार नहीं दिखाए गए हैं ऐसे बात करते हैं क्या? कुमुद ने उनसे कहा कि मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा पर फिर भी अगर आपको बुरा लगा है तो उसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं और ऐसा सुनकर कुमुद की सास और भड़क गई रोज कुमुद को डांटने और परेशान करने लगी और कुमुद का पति भी उसे मारने पीटने लगा 1 दिन परेशान होकर कुमुद ने अपने पिता से कहा पापा यह लोग मुझे दहेज के लिए यहां पर मारपीट रहे हैं यह सुनकर कुमुद के पिताजी तुरंत उसके ससुराल पहुंचे और कहां जितना हम से बन पाया हमने वह सब कुछ दिया फिर भी आप मेरी बच्ची को इतना परेशान क्यों कर रहे हो? तो उन्होंने कुमुद के माता-पिता को भी खरी-खोटी सुनाई और कुमुद यह सब बर्दाश्त नहीं कर ना कर पाए और उसने अपने सास-ससुर को बोल दिया कि मुझे अब इस घर में नहीं रहना या बोलकर वह अपने पिता के साथ अपने मायके आ गई आज जब वह मायके में आ गई तो कई तरह की बातें बनाने लगे और हरीश जी और विभा देवी जी को भी कई बातें सुनाने लगे कुछ लोगों ने तो कुमुद को भी गलत गलत कहा यह सब विभा देवी जी बर्दाश्त ना कर पाए और हालिटेक से उनकी मृत्यु हो गई और यह सदमा कुमुद के पिताजी भी सह नहीं पाए और वह भी चल बसे. अब कुमुद और उसका भाई अकेले हो गए एक छोटे से दहेज की वजह से कुमुद का घर टूट गया उसका विश्वास टूट गया और उसके माता-पिता भी उसे छोड़ कर चले गए और वह इस दुनिया में बिल्कुल अनाथ हो गई. कहां वह कुमुद थी जिसे पढ़ लिखकर कुछ बनना था नाइस दहेज के एक शब्द ने उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी. छोटा सा दहेज शब्द इस तरह से कुमुद की जिंदगी में अभिशाप बन गया.