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इतना आसान भी नहीं होता है एक लड़का होना

अगर हम बात करें आजकल के जमाने की तो हर क्षेत्र में लड़कियां आगे हैं और हर कोई लड़कियों को ही समझदार होशियार और चालाक समझ रहा है सभी को बस यही लगता है कि सिर्फ लड़कियां ही संघर्ष कर रही है हालांकि बात सच है कि आजकल की लड़कियां किसी लड़के से कम नहीं हैं आजकल की लड़कियां हर एक क्षेत्र में लड़कों की बराबरी और उनकी टक्कर के साथ काम कर रही है, पर इस बीच लड़कों के संघर्ष पर ध्यान नहीं जा रहा, बस उसी को समर्पित मैंने एक कविता लिखी है जो मैं आपके साथ बांटना चाहती हूं. और बताना चाहती हूं कि लड़कों की जिंदगी भी इतनी आसान नहीं होती जितनी वह हमें लगती है.


इतना आसान भी नहीं होता है एक लड़का होना,
बचपन से उसे भी पड़ता है जिम्मेदारियों का बोझ ढोना,
हां होता है वह मां का लाडला पर पापा से जरा दूरी होती है,
घर से बाहर निकल कर रहना उसकी भी मजबूरी होती है,
सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है उसके कंधों पर माता-पिता का बनना सहारा,
और सिखाया जाता है छोटे बड़ों से प्यार और बहन की रक्षा करना,
उसकी सारी ख्वाहिशें पूरी होती हुई सब को दिख जाती है
पर उसके ऊपर कितनी जिम्मेदारियां हैं यह किसी को नजर नहीं आती है,
बचपन से ही सब कहते हैं लड़कों को बेहद छूट मिल जाती है,
पर उस छूट की उसे कितनी कीमत चुकानी है कहां किसी को समझ आती है,
अगर अच्छा अच्छा कमाए तो सब उनके गुणगान गाते हैं,
और अगर पास ना हो कोई नौकरी तो हर कोई ताने मारते हैं,
कोई शौक नहीं उसे अपने घर परिवार से दूर जाने का,
अपने दोस्तों और गली गांव को छोड़कर शहर को अपना बनाने का,
पर उसे जाना पड़ा क्योंकि उसपर बोझ है अपनोंकी जरूरत पूरा करने का,
अपने परिवार की खुशियों के आगे वह अपने सारे शौक भूल जाता है,
कब कौन सा त्यौहार है उसे यह याद तक नहीं होता है,
अपनों और अपनी जिम्मेदारियों के आगे वह इतना बंधा होता है,
कम बात करे अगर वह किसी से तो लोग घमंडी कह देते हैं,
ज्यादा बात कर ले किसी से तो लोग आवारा कह देते हैं,
गलती चाहे किसी की भी हो गलत हमेशा लड़के को ठहरा दिया जाता है,
उनकी बात मानना तो दूर कोई सुनना भी कहा चाहाता है,
लोग बड़ी आसानी से कहते हैं लड़के पत्थर दिल होते हैं,
पर सच बताएं तो वह अंदर ही अंदर बहुत रोते हैं,
पर वह भावनाओं में बहकर अपने आंसू बहा नहीं पाते हैं,
इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं कि लड़कों में जज्बात नहीं होते हैं,
अपने घर और परिवार की खुशी में ही वह खुश हो जाते हैं,
लड़के कभी अपने लिए नहीं अपनों के लिए जीते हैं,
लड़कियों के पास शादी से पहले और शादी के बाद भी घर होते हैं,
पर हमेशा लड़कों को तो अपने घर खुद बनाने होते हैं,
कभी बेटा,भाई,पति तो कभी पिता बनके हर रिश्ते निभाते हैं,
मां और पत्नी के बीच की शिकायतों के बीच अक्सर लड़के पीसते हैं,
पर मजबूरी में ना मां को ना पत्नी को कुछ कह पाते हैं,
इस बीच में लड़कों को ही अक्सर गलत ठहरा दिए जाते हैं,
घरवालों की हर बात माने तो बेटा संस्कारी कहलाता है,
उनकी जरूरतों को पूरा ना कर पाए तो बेकार कहलाता है,
उनसे उम्मीदों का मंजर ही कुछ इस तरह बांधा जाता है,
सबकी खुशियों के चक्कर में वह अपने आप को ही भूल जाता है.
इतना आसान नहीं होता है जनाब एक लड़का होना,
दर्द,तकलीफ को चुपचाप सहना टूट कर बिखर कर फिर से जुड़ जाना,
हजारों तकलीफों के बीच भी होठों पर मुस्कान लाना,
इतना आसान नहीं होता है जनाब एक लड़का होना.
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