Chandra-Prabha - Part (12) books and stories free download online pdf in Hindi

चन्द्र-प्रभा--भाग(१२)

और फिर उस वृद्ध ने कहा कि मैं अपने घर पहुंचा, मुझे इतने दिनों बाद देखकर घरवालों को अत्यधिक प्रसन्नता हुई,मेरी पत्नी तो फूली ना समाई और बोली, मैं तुम्हें अब से कुछ नहीं कहूंगी,पर तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जाना।।
मैंने रात्रि होने तक प्रतीक्षा की और रात्रि के दूसरे पहर में मैं उठा,देखा तो सब गहरी निंद्रा में लीन थे, मैंने एक कुल्हाड़ी उठाई, सर्वप्रथम अपने माता-पिता की हत्या की इसके उपरांत पत्नी की हत्या करके उसका रक्त एक कलश में भरकर अम्बालिका के लिए लेकर शीशमहल की ओर चल पड़ा।।
अम्बालिका के पास जब मैं पहुँचा तो उसने मेरी पत्नी का रक्त लेकर अपना जादू प्रारम्भ कर दिया एवं उसने उस जादू का प्रयोग स्वयं मुझ पर किया,उसने मेरे धड़ को पत्थर में परिवर्तित कर दिया,मैं बहुत गिड़गिड़ाया,तब वो बोली, मैं तुम्हें तुम्हारे पूर्व रुप में परिवर्तित तो कर दूँगी,परन्तु तुम ये किसी से मत कहना कि शीशमहल में मैं रहती हूँ एवं किसी को ये ज्ञात हुआ कि मैं यहाँ रहतीं हूँ तो तुम्हें मैं क्या दण्ड दे सकती हूँ, ये तुम कभी स्वप्न में भी नहीं सोच सकते और उस रात्रि मैं मैने अम्बालिका से कहा कि जैसा तुम कहोगी,मैं वैसा ही करूँगा और अपने प्राण बचाकर मैं शीशमहल से भाग निकला।।
और वर्षों से मैं इस वन में भटक रहा हूँ, मैनें अपने कुटुम्ब का स्वयं ही नाश कर दिया,उसका दण्ड तो मुझे मिलना ही चाहिए था,ये मेरे ही कर्मो का फल हैं।।
भालचन्द्र बोला___
बाबा! जो हुआ सो हुआ,अब आप हमारे साथ हैं और हम सब आपको कोई भी कष्ट नहीं होने देंगें।।
तो क्या? मैं आप सबके साथ रह सकता हूँ, उस वृद्ध ने पूछा।।
हाँ,क्यों नहीं, सहस्त्रबाहु बोला।।
सबकी सर्वसहमति पर उस वृद्ध को सबके साथ रहने की अनुमति मिल गई, वृद्ध बोला,ईश्वर आप सबका भला करें, एक वृद्ध को आश्रय देने के लिए आप सबका बहुत बहुत आभार।।
साँझ होने को आई थी,सबने निर्णय लिया कि ये ही स्थान उचित होगा, आज रात्रि के विश्राम के लिए,भोजन का प्रबन्ध किया गया।।
रात्रि हुई,सब भोजन करके विश्राम करने लगे,आज सहस्त्रबाहु और भालचन्द्र दोनों ही पहरे पर थे,आज रात्रि वो कोई भी संकट नहीं लेना चाहते, उन्होंने ये तय किया था कि आज वे सबके प्राणों की रक्षा करेगें,नागदेवता भी दोनों के निकट आकर बोले___
आज रात्रि मैं भी विश्राम नहीं करूँगा, मैं नहीं चाहता की पुनः निर्दोषों के प्राण जाएं,मैं भी अब देखना चाहता हूँ कि भला अम्बालिका और उसकी बहन अम्बिका कितनी शक्तिशाली हैं।।
नागदेवी भी बोली कि मैं भी विश्राम नहीं करूँगी, भला कौन सा संकट आ पड़े,हम सभी को साथ में ही इस संकट से सबको उबारना होगा।।
तो मैं क्यों पीछे रहूँ, मैं भी आप सब के साथ जागकर पहरा दूँगी, सोनमयी बोली।।
हाँ... हाँ..ये आईं,जैसी की ये बहुत बड़ी योद्धा हैं,इनके कहने से ही तो सारा संसार चलता हैं, ये तो ब्राह्मण्ड संचालिका हैं, हैं ना देवी जी,सहस्त्रबाहु ने सोनमयी को चिढ़ाते हुए कहा।।
और नहीं तो क्या, मैं तो हूँ ब्राह्मण्ड संचालिका और जैसे आप बड़े आए वीर बहादुर विक्रम सिंह हैं, सोनमयी गुस्से से बोली।।
अरे, हमारे गुण तो सारा संसार गाता है,बड़े बड़े वीर साहसी योद्धा हमारे चरण धो धोकर पीते हैं, सहस्त्रबाहु बोला।।
हाँ...हाँ..मुँख तो देखों वीर योद्धा का,जैसे की वृक्ष की शाखा पर बैठा कोई काले मुँह वाला लंगूर,अभी अम्बालिका सामने आ जाए तो महाशय की घिग्घी बँध जाएं,सोनमयी बोली।।
अरे,छोड़िए देवी जी! ऐसी बहुत सी जादूगरनियों से सामना हुआ हैं हमारा और हमने सबको धूल चटाई है, सहस्त्रबाहु बोला।।
अरे,बस भी करो,तुम दोनों, जब देखो तब झगड़ते रहते हो,ये सोचो कि कौन कौन किस स्थान पर पहरा देगा,भालचन्द्र बोला।।
कुछ समय पश्चात सबने अपना अपना पहरा देने का स्थान तय कर लिया, सब सो चुके थे और चारों दिशाओं में भालचन्द्र, सहस्त्रबाहु, नागदेवता और नागदेवी एवं सोनमयी एक साथ थीं, सब पहरा दे रहें थें, कुछ कुछ समय पश्चात सब अपना अपना स्थान बदल कर पहरा देने लगते एवं आपस में वार्तालाप भी करते रहतें,आज सबने तय किया था कि सैनिकों और इच्छाधारी सर्पों पर कोई भी संकट नहीं आनें देंगें।।
तभी एकाएक वो वृद्ध उठा और नागदेवता की ओर बढ़ चला,चन्द्रमा का श्वेत प्रकाश था इसलिए सब सरलता से दिखाई दे रहा था,सहस्त्रबाहु को कोई संदेह हुआ कि ये वृद्ध नागदेवता की ओर क्यों बढ़ा चला जा रहा हैं, जब तक सहस्त्रबाहु उस वृद्ध के निकट पहुँचता, वो वृद्ध नागदेवता के निकट आ पहुँचा और एक बड़े से नेवले का रूपधारण कर लिया, सहस्त्रबाहु ने शीघ्रता से अपनी तलवार निकली और उस नेवले पर आक्रमण कर दिया, परन्तु नेवले का आकार अत्यधिक बृहद था उसने सहस्त्रबाहु पर झपट्टा मारा और सहस्त्रबाहु धरती पर गिर पड़ा परन्तु सहस्त्रबाहु ने हार नहीं मानी और उसने पुनः नेवले पर प्रहार कर दिया और इस बार नेवले ने सहस्त्रबाहु को दूर धरती पर पटक दिया जिससें सहस्त्रबाहु रक्त से डूब गया,अब उसकी अवस्था अत्यधिक गम्भीर थी।।
सोनमयी ने जाकर सहस्त्रबाहु को सम्भाला और नागमाता, भालचन्द्र एवं नागदेवता नेवले पर प्रहार पर प्रहार प्रारम्भ कर दिया कुछ ही समय में वो नेवला अचेत सा होकर अपने पूर्व रूप में आ गया,वो कोई और नहीं अम्बालिका की बहन अम्बिका था जो वृद्ध का वेष धरकर रहस्यों को ज्ञात करनें आईं थीं, परन्तु नागदेवता को देखकर वो धैर्य ना रख सकीं।।
नागदेवता बोलें, इसें मुझसे प्रतिशोध चाहिए था,इसलिए ये धैर्य ना रख सकीं।।
भालचन्द्र ने पूछा, लेकिन क्यों नागदेवता?
वो रहस्य मैं बाद में बताऊँगा, पहले सहस्त्रबाहु की दशा देखें कि कैसी हैं?
भालचन्द्र बोला,हाँ ! ये अधिक आवश्यक हैं।।
सबने जाकर देखा तो सहस्त्रबाहु अचेत सा पड़ा था,विभूतिनाथ जी ने उसका उपचार प्रारम्भ कर दिया था,परन्तु सहस्त्रबाहु की नाड़ी की गति मन्द होती जा रही थी,उसकी हृदयगति भी सुप्त होती जा रही थीं, भालचन्द्र ने जैसे ही सहस्त्रबाहु की दशा देखी तो उसका हृदय द्रवित हो आया, उसे सूझ नहीं रहा था कि वो क्या करें।।
उधर सोनमयी भी आँखों में अश्रु लिए उदास बैठी थी,सब प्रार्थना कर रहे थे कि सहस्त्रबाहु स्वस्थ हो जाएं, परन्तु जब विभूतिनाथ जी हार मान चुके कि वो अब सहस्त्रबाहु के प्राण नहीं बचा सकतें तब नागदेवता बोले,मैं यज्ञ पर बैठता हूँ परन्तु याद रहें कि इस यज्ञ पर बैठते ही कोई भी विघ्न ना पड़े,इस यज्ञ से प्राप्त होने वाली विभूति से ही सहस्त्रबाहु के खोए हुए प्राण लौट सकते हैं।।
और उधर अम्बिका शीशमहल पहुँची,उसने अम्बालिका से सब कहा कि मैं सफल ना हो सकीं, उन सब के रहस्य ज्ञात करने में शेषनाग को देखकर मैने अपना धैर्य खो दिया,मैं उससे वर्षों पहले हुए अपमान का प्रतिशोध लेना चाहती थी।।
इतनी भी शीघ्रता क्या थी तुम्हें, कुछ धैर्य ना रख सकतीं थीं,अम्बालिका क्रोधित होकर बोली।।
क्षमा करो बहन अब से ये कभी ना होगा, अम्बिका बोली।।
कैसे विश्वास करूँ तुम पर अम्बालिका बोली।।
मैने कहा ना अब ऐसा कभी ना होगा, अम्बिका बोली।।
ठीक है, मैं अब वाटिका में जा रहीं हूँ, देखूँ तो माँ बेटी की दशा कैसीं हैं और इतना कहकर अम्बालिका वाटिका में आ गईं।।
वाटिका में जाकर देखा तो रानी जलकुम्भी बेड़ियों से बँधी हुई वृक्षों के पत्रों पर सो रहीं हैं और मैना बनी सूर्यप्रभा पिंजरे में टहल रहीं हैं, सूर्यप्रभा ने जैसे ही अम्बालिका को देखा तो शांत हो गई।।
अम्बालिका पिंजरे के निकट पहुँचकर मद्धम स्वर में बोली___
राजकुमारी सूर्यप्रभा! बड़ी भाग्यशाली हो जो इतना प्रेम करने वाला राजकुमार मिला हैं,तुम्हें बचाने यहाँ तक आ पहुँचा और ना जाने अपने संग कैसे कैसे महावीरों को लाया हैं।।
इतना सुनकर राजकुमारी की आँखों से प्रसन्नता के आँसू बह निकले....

क्रमश__
सरोज वर्मा...