Chandra-Prabha - Part (14) books and stories free download online pdf in Hindi

चन्द्र-प्रभा--भाग(१८)

उधर नागदेवता,स्वर्णमहल पहुँच चुके थे,उन्होंने देखा कि स्वर्णमहल का द्वार बहुत ही भव्य है और ना जाने कितने ही द्वारपाल वहाँ पहरा दे रहें हैं, वो तो सर्प रूप में थे,इसलिए उन्होंने द्वार के भीतर सरलता से प्रवेश पा लिया,उन्होंने स्वर्णमहल में नागरानी को खोजना प्रारम्भ किया,परन्तु सभी स्थानों पर पहरा था,तभी उन्होंने किसी को वार्तालाप करते हुए सुना और वो उस ओर गए, उन्होंने देखा कि अम्बालिका किसी दासी से वार्तालाप करते हुए कह रही थी कि ___
मैने तुमसे कहा था ना कि नागरानी को केवल पिटारी में ही बंधक बनाकर रखना है, अम्बालिका बोली।।
देवी! आपने तो ऐसा ही कहा था किन्तु, नागरानी पिटारी मे से बोलीं कि उनको श्वास नहीं आ रहीं हैं, उनके हृदय में पीड़ा हो रही है, यदि मुझे कुछ क्षण के लिए वाटिका की खुली वायु में ले चलो तो,मै ठीक हो जाऊँगी और तुम सोचो,यदि मैं मर गई तो तुम्हारी मालकिन तुम्हारी क्या दशा करेंगी, इसलिए भयभीत होकर मैं उन्हें वाटिका की ओर ले गई और मैने पिटारी खोल दी किन्तु मुझे ज्ञात ना था कि वो मानवी रूप लेकर मेरे ऊपर विष की फुहार मारेगीं और मै अचेत हो जाऊँगी, दासी बोली।।
निर्बुद्धि! ये क्या किया तुमने,कितनी कठिनता से मैं उसे बंधक बना पाई थीं और तूने अपनी मूर्खता के कारण उसे स्वतंत्र हो जाने दिया,अम्बालिका क्रोधित होकर बोली।।
क्षमा कीजिए देवी! मुझे कदापि ये संदेह नहीं था कि ऐसा होगा, दासी बोली।।
अब खड़ी क्या हो? सभी को सूचित करो,नागरानी यहीं कहीं होगी,इतना कड़ा पहरा है वो भाग नहीं सकती,अम्बालिका बोली।।
अब नागरानी को खोजते खोजते प्रातःकाल हो चुकी थी और स्वर्णमहल में कौतूहल मचा हुआ था,सभी पहरेदार दास और दासियाँ नागरानी को खोजने में लगे हुए थे, किन्तु नागरानी ना मिली,महल के एक एक कोने को खगाल लिया गया परन्तु नागरानी ना जाने कहाँ गई, इसी बीच किसी पहरेदार ने पुकारा___
देवी! अम्बालिका, ये देखिए,सर्प का रूपधारण किए नागरानी यहाँ छिंपी हैं।।
कहाँ.... कहाँ है नागरानी? अम्बालिका ने पूछा।।
ये रही देवी! देखिए तो वस्त्रों के पीछे छिपकर बैठी हैं, पहरेदार ने कहा।।
अच्छा! कितना भी छुप लो नागरानी! मैं तुम्हें सरलता से छोड़ने वाली नहीं, अम्बालिका बोली।।
अम्बालिका ने निकट जाकर देखा तो वो अत्यधिक प्रसन्न होकर बोली___
ओहो....आज तो आनन्द ही आ गया, मैं तो समझी थी कि नागरानी हैं किन्तु ये तो नागदेवता निकले और उसने शीघ्र ही दास को आदेश दिया कि नागदेवता को पिटारी में बंद कर दिया जाएं, मैं अभी शीशमहल जा रही हूँ, कुछ आवश्यक कार्य आ पड़ा है,रात्रि तक लौटूँगी, यहाँ मैं अम्बिका को भेजती हूँ, जब तक तुम सब नागरानी को खोजकर मेरे समक्ष प्रस्तुत करना और इतना कहकर अम्बालिका चली गई।।
नागदेवता को पहरेदारों ने बंधक बनाकर पिटारी में डाल दिया,अब नागदेवता के प्राण संकट में आ पड़े,पिटारी से निकलने का कोई मार्ग नहीं दिख रहा था,नागदेवता अत्यधिक चिंतित थे,उन्हें लगा कि नागरानी भी संकट में है और मैं भी संकट में पड़ गया हूँ, हम दोनों के प्राण अब कैसे बचे?
कुछ समय पश्चात स्वर्णमहल मे अम्बिका का प्रवेश हुआ ,जैसे कि अम्बालिका कह कर गई थी कि उसकी अनुपस्थिति मे अब अम्बिका स्वर्णमहल में रहेंगी,अम्बिका आई और उसने पहरेदार से पूछा____
कहाँ है नागदेवता? किस पिटारी में बंधक हैं वो,तनिक मै भी तो देखूँ, अभी मेरा प्रतिशोध पूर्ण नहीं हुआ है जब तक कि नागदेवता को मृत्युलोक ना पहुँचा दूँ,तब तक शांत ना बैठूँगी, नागदेवता ने मुझसे बैर लेकर अच्छा नहीं किया,कहाँ है उनकी पिटारी, तनिक मैं भी उनके दर्शन कर लूँ, अम्बिका बोली।।
देवी! ये रही पिटारी,पहरेदार बोला।।
अच्छा!तनिक खोलकर तो दिखाओ,अम्बिका ने कहा।।
पहरेदार ने खोलकर दिखाया तो सच में उसमें नागदेवता विराजमान थे।।
बहुत अच्छा! मैं ये पिटारी लेकर शीशमहल जा रही हूँ, ऐसा अम्बालिका का आदेश है, कुछ आवश्यक कार्य आन पड़ा है इसलिए वो रात्रि को यहाँ नहीं आ पाएंगी, इसलिए मैं नागदेवता को वहाँ ले जा रही हूँ, अम्बालिका बोली।।
अब तो नागदेवता को पूर्ण विश्वास हो चला था कि आज तो उनके प्राण गए।।
अम्बिका पिटारी लेकर स्वर्णमहल के बाहर आई और घनों वनों के मध्य पिटारी खोलकर बोली___
अब कहिए नागदेवता! कैसी मृत्यु चाहते हैं।।
तभी नागदेवता मानव रूपधारण कर बोले___
तू सरलता से मुझे मृत्यु नहीं दे सकती,मैं अपनी रानी को अवश्य स्वर्णमहल से लेकर आऊँगा,नागदेवता बोले।।
वैसे नागदेवता! आपको मेरा अभिनय कैसा लगा,अम्बिका ने पूछा।।
अभिनय !तो क्या नागरानी ! आप सुरक्षित हैं... हा...हा...हा...नागदेवता हँसकर बोले तो पुनः अपने रूप में आ जाइए।।
और अम्बिका का रूप छोड़कर नागरानी ने स्वयं का रूप धारण कर लिया।।
अब हमें शीघ्रता से भालचन्द्र के पास पहुँचना होगा,सभी चिंतित होंगें, नागदेवता बोले।।
हाँ! नागदेवता! चलिए चलते हैं, इतना कहकर नागदेवता और नागरानी अपने गंतव्य की ओर चल पड़े।।
और उधर अम्बिका जैसे ही स्वर्णमहल में पहुँची तो उसे देखकर सब आश्चर्यचकित हो उठे,सबने सोचा,ये अभी तो यहाँ आई थीं और इतने शीघ्रता से शीशमहल होकर लौट भी आई।।
अम्बिका ने भी मन में सोचा कि उसे सब ऐसे क्यों देख रहे हैं,क्या मैं कुछ विचित्र दिख रही हूँ और अम्बिका ने पहरेदार से पूछा___
कहाँ हैं नागदेवता!
जी देवी! क्या कहा आपने नागदेवता! पहरेदार बोला।।
हाँ नागदेवता, अम्बालिका ने कहा है कि नागदेवता को हम बंधक बनाकर रखेगें तभी नागरानी भी उन्हें स्वतंत्र कराने उनके निकट अवश्य आएंगी तभी हम नागरानी को भी बंधक बना लेंगें,अम्बिका बोली।।
परन्तु,देवी! अम्बिका, अभी कुछ समय पूर्व ही तो आप उनकी पिटारी को अपने हाथों में लेकर वन की ओर निकल गईं थीं, पहरेदार बोला।।
इतना सुनकर अम्बिका पहरेदार के गाल पर जोर का झापड़ देकर बोली___
दिन में मदिरा पी रखी है क्या?मैं कब आई यहाँ?
जी कुछ देर पहले ही तो,अब की बार दासी बोल पड़ी।।
इसका तात्पर्य है कि नागरानी मेरा वेष धरकर नागदेवता के पिटारे को यहाँ से ले गई, अम्बिका बोली।।
क्या कहा देवी!अब क्या होगा,पहरेदार ने पूछा।।
अरे,ये क्या किया ? तुम सबने ,आप अम्बालिका तुम सब के प्राण ले लेंगी,अम्बिका बोली।।
तो अब हम क्या करें, पहरेदार ने पूछा।।
कुछ नहीं,बस ऐसे ही हाथ पे हाथ धरे बैठे रहो,मै अभी शीशमहल जाकर अम्बालिका को सूचित करती हूँ, इतना कहकर अम्बिका, शीशमहल के लिए प्रस्थान कर गई।।
और उधर अम्बालिका वाटिका पहुँची, जलकुम्भी को सूचित करने___
रानी जलकुम्भी! तुम भी सोच रही होगी कि मैं दिन के समय यहाँ क्या कर रही हूँ, अम्बालिका बोली।।
और तुम कर भी क्या सकती हो,आई होगी कोई अशुभ समाचार देने,जलकुम्भी बोली।।
तुम अत्यन्त बुद्धिमान हो रानी जलकुम्भी, हाँ मैं ये कहने आई थी कि नागरानी तो ना जाने कहाँ चली गई परन्तु हमने नागदेवता को बंधक बना लिया है वो नागरानी को बचाने वहाँ पहुँचे थे,अम्बालिका बोली।।
और तुमसे आशा भी क्या की जा सकती है, अम्बालिका! जलकुम्भी क्रोधित होकर बोली।।
तभी अम्बिका भागते हुए आईं और उसने एक ही श्वास में सारा वृत्तांत कह सुनाया___
कि नागरानी ने मेरा रूपधरकर स्वर्णमहल में प्रवेश किया और नागदेवता की पिटारी को ले गई।।
जलकुम्भी हँस पड़ी...हा...हा...हा...हा...मैने कहा था ना कि तुम कभी सफल नहीं होगी....

क्रमशः___
सरोज वर्मा...