Aag aur Geet - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

आग और गीत - 13

(13)

तमाम मामला राजेश के समझ में आ गया था मगर वह चुपचाप खड़ा रहा, फिर जब उस आदमी ने उस औरत का बाल पकड़ लिया और उसे अपने साथ ले जाने के लिये खींचने लगा तो उससे सहन न हो सका और उसने आड़ से निकलते हुये वहां की पहाड़ी भाषा में ललकारा ।

“खबर्दार ! औरत को छोड़ दे ! ”

“भाग आओ नहीं तो मारे जाओगे ।” पुरुष ने कहा ।

उस आदमी ने भी स्थानीय भाषा ही में कहा था मगर उसका न तो स्वर स्थानीय लोगों जैसा था न उसकी भाषा ही वैसी थी ।

और जब राजेश उन दोनों के निकट पहुंचा तो एक बार ख़ुद कांप उठा । दूर से जो दो वस्तुयें धरती पर पड़ी हुई थीं उनमें एक भेड़ थी और दूसरी वस्तु एक बूढा आदमी था । भेड़ का पेट फटा हुआ था और बूढ़े के सीने के आस पास का कपड़ा खून से तर था ।

वह आदमी राजेश को देख कर एक क्षण के लिये रुक गया था मगर औरत के बाल नहीं छोड़े थे । राजेश ने उस आदमी को भी पहचान लिया था । वह उसी कन्सर्ट का एक आदमी था जो उसके नगर में डांस का प्रोग्राम देने के लिये कासीनो होटल में गया था, और औरत वह भी औरत नहीं थी बल्कि जवान लड़की थी ।

लड़की ने भी राजेश को देख लिया था । उसने प्रार्थना भरे स्वर में राजेश से कहा ।

“मुझे इस पापी के हाथों बचाओ ।”

“लड़की को छोड़ दो ।” राजेश ने उस आदमी से कहा ।

“जहां से आये हो वहीँ वापस चले जाओ वर्ना इसी बूढ़े के समान तुम भी दूसरी दुनिया में पहुंच जाओगे ।” उस आदमी ने कहा !

राजेश ने छलाँग लगाईं । उसका भरपूर घूँसा उस आदमी की ओर उठा था । वह यह नहीं देख सका था कि उस आदमी के दुसरे हाथ में कटार है । वह राजेश का वार बचाने के लिये लड़की के बाल छोड़ कर पीछे हटा था और साथ ही पैतरा बदल कर राजेश पर कटार खींच मारी थी ।

निशाना दिल का लिया गया था, राजेश ने झुकाई देकर अपने को बचाना चाहा था मगर कटार की नोक बाई भुजा के कपड़े को फाड़ती हुई धंस गई ।

राजेश क्रोध और पीड़ा से पागल हो गया ! उसने कटार की परवाह नहीं की ओर फिर उस आदमी पर छलांग लगाईं और इस बार उसे लिये ज़मीन पर आ रहा और उसके जबड़ों पर घूंसे बरसाने लगा ।

“बस इसे छोड़ दो । यह मेरा शिकार है ।” लड़की ने कहा और राजेश ने मुड़ कर लड़की की ओर देखा । वह हाथ में डंडा लिये वार करने को तैयार खाड़ी थी ।

राजेश उसे छोड़ कर हट गया और फिर प्रथम इसके कि लड़की उस पर वार करती वह उठा कर भागा ।

राजेश भी उसके पीछे दौड़ा ।

“रुक जाओ ।” लड़की भी राजेश के पीछे दौड़ती हुई चीखी “रुक जाओ । तुमको मेरी कसम रुक जाओ ।”

राजेश रुक गया और मुड़ कर लड़की से पूछा ।

“तुमने मुझे रोका क्यों ? ”

“इसलिये कि उसके पीछे जाना बेकार है ।” लड़की ने कहा ।

“मगर क्यों ? ”

“उधर ऐसी ऐसी खाइयाँ और गुफायें है कि हजारों आदमी छिप जायें तब भी पता नहीं चल सकता ।”

राजेश ने फिर कुछ नहीं कहा और चलता हुआ लड़की के निकट आया ।

“अरे ! तुम्हारी भुजा से तो खून निकल रहा है, कपड़ा हटाओ देखूं । अरे ! तुमने अभी तक कटार भी नहीं निकाली ।” लड़की ने कहा फिर कटार की मूठ पकड़ कर कटार खींच ली । खून और तेजी से बहने लगा ।

“इसीलिये मैंने कटार नहीं निकाली थी ।” राजेश ने कहा और जल्दी से दुसरे हाथ की हथेली घाव पर रख दी ।

“ऐसे ही दबाये रखो, मैं अभी आती हूँ ।” लड़की ने कहा और दौड़ती हुई पास वाली चट्टान की ओर भागी ।

राजेश घाव दबाये खड़ा था । उसे ऐसा लग रहा था जैसे भुजा में अंगारे भरे गये हों ।

लड़की वापस आ गई । उसके हाथ मैं एक जलता हुआ चिराग था । उसने चिराग ज़मीन पर रख दिया और राजेश से कहा ।

“बैठ जाओ ? ”

राजेश चुपचाप बैठ गया ।

लड़की ने घाव वाली भुजा आस्तीन से बहार निकाली । कपड़े से जख्म साफ़ किया फिर कपड़ा जला कर उसकी राख बनाई और वही राख उठा कर घाव में भर दी और ऊपर से पट्टी बांध दी ।

खून बहना बंद हो गया ।

फिर लड़की उठी और बूढ़े के पास पहुंच कर बैठ गई और रोने लगी ।

राजेश घाव की पीड़ा के कारण सब कुछ भूल गया  था । लड़की को रोता देख कर बड़े जोर से चौंका – फिर वह भी उठ कर बूढ़े के पास पहुंचा और बैठ कर उसकी नाडी देखने लगा ।

कुछ ही क्षण बाद उसने लड़की से कहा ।

“चुप हो जाओ । यह मरे नहीं है जिन्दा है ।नाडी चल रही है ।”

“क्या ! ” लड़की उछल पड़ी ।

“मैं सच कह रहा हूँ । ” राजेश ने कहा “अगर जल्द ही इनका इलाज किता जा सका तो यह बच जायेंगे ।”

“ओह । तप मेरे घर चलो, मरे पास दवा है । ” लड़की ने कहा और झुक कर बूढ़े को अपने हाथों पर उठाने लगी ।

“अरे अरे ! यह क्या कर रहो हो ।” राजेश ने कहा “तुमसे न उठेंगे । हट जाओ । मैं उठा कर ले चलता हूँ ।

“मैं तुमसे कमजोर नहीं हूँ, और फिर तुम्हारा हाथ ज़ख्मी है ।” लड़की ने कहा और दोनों हाथों पर बूढ़े को उठा लिया और एक पेड़ की ओर बढ़ने लगी ।

पेड़ के पास ही दो चट्टाने थीं और एक बड़ी चट्टान उन पर कुछ इस प्रकार झुकी हुई थी कि एक कमरा सा बन गया था । नीचे घास बिछी हुई थी । लड़की ने बूढ़े को उसी घास पर लिटा दिया और राजेश  चिराग लिये हुये था, उसने चिराग ऐसी जगह रख दिया कि उसकी रोशनी बूढ़े पर पड़ती रहे ।

“तुम इनके घाव पर कपड़े की राख तैयार केके बांधो तब तक में दवा तैयार करती हूँ । ” लड़की ने कहा और थोडा सा कपड़ा राजेश की ओर फेंक दिया और ख़ुद एक प्रकार की घास लेकर पत्थर पर पिसने लगी ।

राजेश अपना काम भी करता जा रहा था और लड़की की ओर देखता भी जा रहा था ।

राजेश जख्म पर राख भरने के बाद पट्टी बाँधने ही जा रहा था कि लड़की ने कहा ।

“नहीं, पट्टी अभी न वान्धो ।”

राजेश ने हाथ रोक लिया और लड़की की ओर देखने लगा ।

लड़की पिसी हुई घास हथेली पर उठाये हुये आई और बैठ कर घाव के इधर उधर वही पिसी हुई घास लगाने लगी । लेप करने के बाद उठी और फिर एक बर्तन ले आई जिसमे कोई तरल पदार्थ था । बूढ़े के पास बैठ के वही तरल पदार्थ बूढ़े के कराठ में टपकाने लगी ।

राजेश खामोशी के साथ देखता रहा और सोचता रहा कि अभी यहां ज्ञान का प्रकाश नहीं पहुंचा है, विज्ञान के चमत्कारों का अभी यहाँ गुजर नहीं, न इंजेक्शन है, न गोलियां है और न यहां सर्जरी है मगर इनकी उपचार पध्धति में कितना कितना आत्म विश्वास है ।

अचनाक लड़की ने कहा ।

“अब यह बच जायेगा ।”

राजेश कुछ नहीं बोला । बस लड़की को देखता रहा । लड़की ने भी कुछ नहीं कहा । उसके कराठ में वही तरल पदार्थ टपकाती रही ।

अचानक बूढ़े ने कराह कर करवट बदली और लड़की के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ आई । उसने फिर बूढ़े को चिट किया और उसके कराठ में वही तरल पदार्थ टपकाने लगी, फिर राजेश की ओर गर्दन मोड़ कर कहा ।

“देखा, मैं कहती थी न कि अब यह बच जायेगा ।”

“यह कौन है ? ” राजेश ने पूछा ।

“मेरा बाबा है ।” लड़की ने कहा और फिर उठती हुई बोली “तुम्हारे घाव में पीड़ा हो रही है ना ? ”

“हां मगर पहले से बहुत कम है ।” राजेश ने कहा ।

“अच्छा ठहरो । मैं दवा पीस कर लगा देती हूँ, एक दम ठीक हो जायेगा ।”

“नहीं, ठीक है ।” राजेश ने कहा ।

“पनीर खाओगे ? ”

“नहीं ।”

“अच्छा तो दूध ही पी लो, मेरी भेड़ से अधिक गाढ़ा और मीठा दूध कही नहीं मिल सकता ।” लड़की ने कहा और फिर एक ओर मुड़ गई ।

कुछ ही देर में वह एक बर्तन में गर्म दूध लाई और बर्तन राजेश की ओर बढ़ाती बोली ।

“लो पिओ । मीठा भी है, गधा भी है और गर्म भी है ।”

वह लड़की इतनी मासूम थी कि राजेश से न तो कोई मूर्खता हो रही थी, न घाव की पीड़ा की अनुभूति हो रही थी और न यही ख्याल रह गया था कि जो आदमी निकल भगा था वह उसके लिये परेशानियाँ भी खड़ा कर सकता था और न अब उससे इन्कार करते बना । उसने उसके हाथ से बर्तन ले लिया और दूध पीने लगा ।

खाली बर्तन उसे वापस करते हुये पूछा ।

“तुम्हारा नाम क्या है ? ”

“निशाता ।” लड़की ने कहा ।

“ओह ।” राजेश के मुख से निकला । उसे नायक का बयान याद आ गया था । उसने लड़की से कहा “एक बात पूछू ?”

“एक क्या, सौ बात पूछो ।”

“सच बताओगी ना ? ”

“ए सुनो....हम लोग झूठ नहीं बोलते ।” निशाता ने कुछ बुरा मानते हुये कहा ।

“अच्छा अच्छा ।” राजेश ने कहा “पूछना यह है कि कुछ दिन पहले तुम किसी आदमी को पहाड़ियों के उस पार सै इस पार लाई थी ? ”

“हां, लाई थी ।” निशाता ने कहा “और अब वह फिर यहाँ आ गया है मगर अब वह मुझे पहचानता ही नहीं ।”

“तुम उसे क्यों लाई थी ? ”

“उसी उजली भेड़ ने कहा था ।”

“कौन उजली भेड़ ? ”

“अरे वही जो मोबरानी के ऊपर सवार है ।”

“यह मोबरानी कौन है ? ” राजेश ने अनजान बनते हुये पूछा ।

“मोबरान की घर वाली ।”

“और मोबरान कौन है ? ”

“यहाँ का सरदार ।”

“वह कहाँ है ? ”

“पता नहीं कहां है ? ” निशाता ने कहा “कोई कहता है मर गया, कोई कहता है मार डाला गया और कोई कहता है कि जिन्दा है ।”

“अच्छा जिस आदमी को तुम लाई थी उससे फिर मिली थी या नहीं ? ” राजेश ने पूछा ।

“नहीं ।”

“क्यों ? ”

“उसी उजली भेड ने मना कर दिया था ।”

“तो वही आदमी फिर आया है ? ”

“हां ।” निशाता ने कहा ।

“यह बता सकती हो कि उसे यहाँ क्यों लाया गया था ? ”

“बिलकुल बता सकती हूँ । मैं सब जानती हूँ ।”

उसकी इस सादगी पर राजेश को हंसी आ गई फिर उसने पूछा ।

“तो फिर बताओ कि उसे यहाँ क्यों लाया गया है ? ”

“उसे मोबरान बनाने के लिये ।” निशाता ने कहा “और उसे मोबरान बना भी दिया गया है ।”

“और वह आदमी कौन था जो तुमको जबरदस्ती कहीं ले जा रहा था ? ”

“वह ।” निशाता ने धृणा के साथ धरती पर थूकते हुये कहा “वह नम्बरी हरामी है ।”

“मैंने पूछा था कि वह कौन है ।”

“उन्हीं विदेशियों में सै एक था जो लाल कपड़ों वाली उजली भेड़ अपने साथ रखती है ।”

“वह तुम्हें कहां ले का रहा था ? ”

“क्या बताऊँ कि कहां ले जा रहा था ।”

“जाने दो । मत बताओ ।”

“नहीं, मैं तो ज़रूर बताउंगी ।” निशाता ने कहा “वह मुझसे जबरदस्ती शादी मांगने आया था । जब मैंने इन्कार किया तो उसमे धमकी के तौर पर पहले मेरी एक भेड़ मार डाली फिर बाबा पर वार किया था और उसके बाद जबरदस्ती मुझे अपने साथ ले जा रहा था ।”

“तुमने अभी कहा था कि तुम मुझसे कम्जोर नहीं हो तो फिर तुमने उसकी पिटाई क्यों नहीं कर दी थी ? ”

“अजी क्या बताऊ, बस उसके हाथ में कटार देख कर डर गई थी वर्ना डंडो से उसे पीट कर रख देती ।”

“सुना है यहां कोई सफ़ेद इमारत भी है ।”

“हा, है तो । क्यों ? ” निशाता ने पूछा ।

“तुम उस इमारत तक पहुंचने का रास्ता जानती हो ? ”

“हां, अरे मैं क्या नहीं जानती । जो पूछो वह बताऊ ? ”

“अच्छा बताओ तुम्हारे सर पर कितने बाल है ? ”

“इतने ! ” निशाता ने अपने बाल मुठ्ठी में पकड़ कर उसके सामने कर दिये ।

“शाबाश ! ” राजेश ने कहा “अच्छा यह बताओ कि तुम मुझको उस सफ़ेद इमारत तक पहुंचा सकती हो ? ”

“ज़रूर पहुंचा सकती हूँ ।”

“मगर इस तरह पहुंचाना होगा कि मुझे कोई देख न सके । क्या ऐसा कर सकती हो ?”

निशाता ने कुछ नहीं कहा । शायद वह कुछ सोचने लगी थी ।

“क्या सोचने लगी ?” राजेश ने टोका ।

“पहले यह बताओ कि तुम हो कौन ?”

“एक अच्छा आदमी ।” राजेश ने कहा ।

“यह तो मैं उसी समय समझ गई थी कि तुम एक अच्छे आदमी हो जब तुमने मुझे उस हरामी से बचाया था ।” निशाता ने कहा “मैं यह जानना चाहती हूं कि...।”