Chandra-prabha--part(23) books and stories free download online pdf in Hindi

चन्द्र-प्रभा--भाग(२३)

सबने सहमति जताई कि महाराज अपार शक्ति के पुतले को अब शीघ्र ही उनके पूर्व रूप ले आना चाहिए, अब वो ही कोई सुझाव बताएंगे भालचन्द्र को स्वर्णमहल से मुक्त कराने का,सहस्त्रबाहु अत्यधिक चिन्तित हो उठा,उसे बस ये चिंता खाएं जा रही थी कि भालचन्द्र को बंधक बनाने के उपरांत अम्बालिका ना जाने उसके संग कैसा व्यवहार करें, इसलिए उसने नागदेवता और विभूतिनाथ से प्रार्थना की कि वे शीघ्र है महाराज अपारशक्ति को उनके पूर्व रूप मे लाने का कष्ट करें।।
विभूतिनाथ जी बोले,भोर होते ही इस कार्य को पूजा अर्चना के समय पूर्ण किया जाएगा,मैं ही इस कार्य को सम्पन्न करूँगा और तब तक सब इन अस्थियों की सुरक्षा हेतु कोई ना कोई तत्पर रहेगा और सब भोर होने की प्रतीक्षा करने लगें कि कब महाराज अपार अपने पूर्व रूप मे आएं और हम सब भाल चन्द्र को स्वर्णमहल से मुक्त कराने की योजना बना सकें।।
और उधर अम्बालिका के सैनिकों ने अम्बालिका को सूचना दी कि उन्होंने किसी राजकुमार को बंधक बना लिया और उसने अपना नाम भालचन्द्र बताया है, ये सुनकर अम्बालिका की प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना रहा और उसने अपने सैनिकों से कहा कि वो उन्हें इस कार्य के लिए पुरस्कार देंगी,बहुत ही साहस भरा कार्य किया है आज उन सबने और ये समाचार वो शीघ्रता से जलकुम्भी को बता देना चाहती थी और वो ये समाचार देने वाटिका पहुँची____
रानी जलकुम्भी..... रानी जलकुम्भी.. अभी तक निंद्रा में मग्न हो,अम्बालिका ने जलकुम्भी को पुकारते हुए कहा॥
क्यों? अब तुम्हें इस बात का भी कष्ट होने लगा अम्बालिका! ,रानी जलकुम्भी निंद्रा से जागते हुए बोली।।
ना! मैँ तो तुम्हें यहाँ एक शुभ समाचार देने चली आई थी,अभी मेरा सैनिक स्वर्णमहल से आकर ये समाचार देकर गया है तो मैने सोचा प्रसन्नता वाली बात है तो क्यों ना तुमसे भी बाँटकर तुम्हें प्रसन्न कर दूँ,अम्बालिका ताना मारते हुए बोली।।
तुम और मेरी प्रसन्नता के विषय में सोचो,ये कभी नहीं हो सकता अम्बालिका! तुम तो कोई ऐसा समाचार देने आई होगी जिससे मेरी रातों की निंद्रा भंग हो जाए,रानी जलकुम्भी बोली।।
अब ये तो ज्ञात नहीं कि तुम्हें ये समाचार कैसा लगेगा, परन्तु मुझे तो ये सुनकर अत्यधिक प्रसन्नता हुई थी,अम्बालिका बोली।।
अब शीघ्रता से बोल भी दो,जब इतने संकट पहले से है ही तो एक और सही, जलकुम्भी बोली।।
वो समाचार ये हैं कि राजकुमारी सूर्यप्रभा का राजकुमार स्वर्णमहल ना जाने कौन सा कार्य पूर्ण करने आया था और मेरे सैनिकों ने उसे बंधक बना लिया,मैं शीघ्र ही स्वर्णमहल जाकर उससे मिलना चाहती हूँ, अम्बालिका बोली।।
और तुमसे मैं आशा ही क्या कर सकतीं हूँ, एक आशा की किरण दिखाई दी थी अब वो मार्ग भी बंद होता दिखता है, हे ईश्वर! क्या लिखा है मेरे भाग्य में,जलकुम्भी ये कहते कहते रो पड़ी।।
अब ये तो सब तुम्हारे राजा का किया कराया है, ईश्वर भी अब कुछ नहीं कर सकता,अच्छा अब मैं स्वर्णमहल जा रही हूँ और इतना कहकर अम्बालिका वाटिका से चली गई।।
तब तक सूर्यप्रभा भी जाग उठी थी और उसकी आँखो से अश्रुओं की जलधारा बह निकली,उसे भालचन्द्र के विषय मे सुनकर अत्यधिक कष्ट हो रहा था,उसे ये डर था कि ना जाने अब अम्बालिका राजकुमार के संग कैसा व्यवहार करें, सूर्यप्रभा को देखकर रानी जलकुम्भी ने उसे सान्त्वना देकर शांत करवाया और बोली____
शांत हो जा पुत्री! तेरे राजकुमार को कुछ नहीं होगा,देखना वो वहाँ से सकुशल भागने में सफल होगा,वो बहुत साहसी है और हो सकता हो कि इसके पीछे राजकुमार की कोई योजना हो और ये सुनकर सूर्यप्रभा को कुछ ढ़ाढ़स बँधा और वो शांत हुई।।
इधर अम्बालिका ने स्वर्णमहल में प्रसन्नता के साथ प्रवेश किया और कारागार जा पहुँची भालचन्द्र से भेंट करने और पूछा___
कैसे हो ?राजकुमार भालचन्द्र! सब कुशल मंगल है ना! अगर कोई कष्ट हो तो बता देना।।
तुम्हें कबसे अपने शत्रुओं के कष्ट की चिंता होने लगीं,अम्बालिका! आज तो तुम्हें प्रसन्न होना चाहिए, तुम्हारी मंशा जो पूरी हो गई, राजकुमार भालचन्द्र बोला।।
किसने कहा कि मैं प्रसन्न नहीं हूँ?मैं अत्यधिक प्रसन्न हूँ राजकुमार भालचन्द्र! परन्तु तुम्हें यहाँ कारागार में कैसा प्रतीत हो रहा है? अम्बालिका ने भालचन्द्र से पूछा।।
एक बंधक को करागार मे भला कैसा लग सकता है? वैसे मैं अधिक समय तक यहाँ रह नहीं पाऊँगा, मेरे साथी अवश्य मुझे यहाँ से छुड़ाने का प्रयास करेंगें,भालचन्द्र बोला।।
ऐसा कोई स्वप्न ना देखों जो कभी भी पूरा ना हो सकें, अम्बालिका बोली।।
मैं स्वप्न देखता हूँ और उन्हें पूर्ण करनेका प्रयास भी करता हूँ, भालचन्द्र बोला।।
चलो देखेंगें कि तुम्हारा ये स्वप्न पूरा होता है या नहीं,अम्बालिका बोली।।
अवश्य पूर्ण होगा और तुम एक ना एक दिन पराजित होगी,भालचन्द्र बोला।।
ये तो आने वाला समय समय बताएगा, मैं अभी यहाँ से जाती हूँ, तुम्हारी सूर्यप्रभा को ये सूचना दूँगी कि अभी भी तुम्हारे राजकुमार का साहस बचा है, अम्बालिका बोली।।
और ये साहस तुम कभी भी कम नहीं कर पाओगी, अम्बालिका! राजकुमार बोला।।
अब देखते हैं कि सूर्यप्रभा को देखकर तुम्हारा साहस क्या कहता है? मैं शीघ्र ही सूर्यप्रभा को यहाँ लाऊँगी, अब से वो तुम्हारे समक्ष ही रहेगी और मैं उसे प्रताणित किया करूँगीं, तब तुम्हारे साहस की परीक्षा होगी और मैं शीघ्र ही उसे यहाँ लेकर लौटूँगी और ऐसा कहकर अम्बालिका कारागार से चली गई।।
उधर भोर हुई और विभूतिनाथ जी स्नान ध्यान करके सबके संग तलघर पहुँचे और उन्होंने उस गिद्ध की अस्थियों की विभूति को अपारशक्ति के पुतले पर छिड़काव किया और कुछ समय उपरांत ही अपारशक्ति अपने पूर्व रूप में वापस आ गए, उन्होंने विभूतिनाथ जी और वैद्यनाथ जी को देखा तो शीघ्र ही पहचान लिया और उन्होंने पूछा कि मैं कहाँ हूँ? मेरे इस अवस्था के आने के उपरांत शीशमहल में क्या क्या हुआ?मैं कितने सालों से इस अवस्था में हूँ? मुझे शीशमहल से वापस कौन लाया? ना जाने कितने ही प्रश्न उन्होंने पूछ डालें,तब वैद्यनाथ जी बोले___
महाराज! तनिक धैर्य रखें ,आपके सभी प्रश्नों के उत्तर मिले जाते हैं।।
धैर्य ही तो नहीं होता वैद्यनाथ! मै कब से इस अवस्था में हूँ , मेरी रानी भी ना जाने किस दशा में होगी और मेरी पुत्री प्रभा भी ना जाने कैसी स्थिति में होगी।।
तब वैद्यनाथ जी ने राजा अपारशक्ति को सारी घटनाएं कह सुनाई,सब सुनकर राजा अपार हतप्रभ होकर बोले_____
इतना सब कर दिया उस दुष्ट अम्बालिका ने,अब समय आ गया है कि अब उसके किए कर्मों का दण्ड उसे मिलें,मेरी पुत्री को उसने मैना बना दिया भालचन्द्र को भी बंधक बना लिया,अब उसके पापों का घड़ा भर चुका है,अब हमें शीघ्र ही कोई रणनीति बनानी होगी ताकि हम उस पर आक्रमण कर सकें।।
और महाराज अपारशक्ति ने रणनीति बनानी प्रारम्भ कर दी,ये तय किया गया कि कौन कहाँ सर्वप्रथम जाकर शीशमहल को घेरेगा जिससे हम रानी जलकुम्भी और सूर्यप्रभा को मुक्त कराने में सफल हो सकें।।
महाराज अपार के इस कथन पर सभी सहमत थे क्योंकि वे सभी चाहते थे कि पहले रानी और राजकुमारी को मुक्त कराया जाए उसके उपरांत राजकुमार भालचन्द्र को क्योंकि रानी और राजकुमारी के मुक्त हो जाने के पश्चात शीशमहल में कुछ भी नहीं रहेगा और उसे हम किसी भी विधि द्वारा विस्फोट करके उसे नष्ट कर देगें जिससे कि वो श्रापित शीशमहल सदैव के लिए नष्ट हो जाएं और आगें भविष्य में किसी भी शत्रु के लिए वहाँ आसरा लेने का स्थान शेष ना बचे।।
नागदेवता बोले,मैं और नागरानी आज ही शीशमहल जाकर ज्ञात करते हैं कि अम्बिका और अम्बालिका इस समय शीशमहल में वास कर रहीं हैं या स्वर्ण महल में क्योंकि सम्भवतः यदि राजकुमार स्वर्णमहल में बंधक है तो अवश्य ही अम्बालिका स्वर्णमहल मे वास कर रही होगी और अम्बिका शीशमहल में और अम्बिका के समक्ष नागरानी अम्बालिका का रूप धरकर उसे स्वर्णमहल जाने का आदेश देगी, इस प्रकार जब अम्बिका शीशमहल से चली जाएंगी तब हमारा कार्य सरल हो जाएगा और हम रानी और राजकुमारी को सरलता से मुक्त करवा सकते हैं।।
आपकी योजना अति उत्तम है नागदेवता! आज रात्रि ही इस कार्य को सफल करने का प्रयास करना होगा, महाराज अपार बोले।।
जी,महाराज! अब अस्थियों का क्या किया जाएं,सोनमयी ने पूछा।।
पुत्री सोनमयी! इन्हें सुरक्षित रखों और जब हम स्वर्णमहल में प्रवेश में करेगें तब इन्हें अपने संग ही रखना,हो सकता है कि इनकी आवश्यकता पड़ जाएं, महाराज अपार बोले।
जी,महाराज! जो आज्ञा, सोनमयी बोली।।
सोनमयी को देखकर अपार ने विभूतिनाथ जी पूछा__
पुरोहित जी! क्या मेरी सूर्यप्रभा भी ऐसी ही बातें करती होगी।।
हाँ,महाराज! ऐसी ही होगी, हँसमुख और चंचल,मैने भी तो राजकुमारी को नहीं देखा,परन्तु मै ये विश्वास के संग कह सकता हूँ कि वो बहुत ही विशाल हृदय वाली होगी, आपके जैसे,पुरोहित जी बोले।।
जी,मैं आज रात्रि ही उन्हें शीशमहल से छुड़ाने का प्रयत्न करता हूँ, अपारशक्ति बोले।।
रात्रि हुई, नागदेवता और नागरानी सबकी सहमति से शीशमहल की ओर चल पड़े और वाटिका में प्रवेश किया,उन्हें देखकर जलकुम्भी ने प्रसन्न होकर पूछा___
महाराज कैसे हैं? नागरानी!
वे ठीक हैं,रानी जलकुम्भी और आप दोनों से शीघ्र ही भेंट करेंगे, कदाचित आज रात्रि ही,नागरानी ने जलकुम्भी से कहा।
तभी उसी समय किसी के आने की आहट का स्वर सुनाई दिया ,नागदेवता और नागरानी वहीं छुप गए, सबने देखा की अम्बिका वाटिका में देखने आई थी कि माँ और पुत्री बंधक हैं या नहीं एवं जलकुम्भी से बोली__
और रानी कैसी हो?सुना है राजकुमार भालचन्द्र को स्वर्णमहल में बंधक बना लिया गया है, अम्बालिका को इसी कारण स्वर्णमहल में रहना पड़ रहा है इसलिए आज वाटिका में मुझे आना पड़ा,तुम दोनों को देखने।।
कितने दिन और बंधक बना पाओगी राजकुमार को,शीघ्र ही तुम दोनों का पतन होने वाला है, तुम्हारा पाप का कुम्भ भर चुका है, जलकुम्भी बोली।।
तुम्हारा निर्रथक वार्तालाप सुनने नहीं आई थी मैं,अब जाती हूँ, अम्बिका यह कह कर जाने लगी।।
तभी नागरानी को एक युक्ति सूझीं और वो वाटिका से बाहर निकल गई और मुख्य द्वार से अम्बालिका बन प्रवेश किया।।
और शीघ्रता से वाटिका आ पहुँची और अम्बिका से बोली,मैं आज रात्रि यहीं पर हूँ तुम स्वर्णमहल चली जाओ,
परन्तु क्यों अम्बालिका! और तुम इतनी शीघ्रता से यहाँ आ पहुँची,अम्बिका ने पूछा।
बस,ऐसे ही मुझे शीशमहल में आवश्यक कार्य है, मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि अपारशक्ति का पुतला कृत्रिम है इसलिए शंकावश शीशमहल चली आई,अम्बालिका बनी नागरानी बोली।।
तो ये मै ही परख लेती,तुम्हें यहाँ आने की क्या आवश्यकता थी,अम्बिका बोली।।
ऐसे ही अब तुम जाओ,मै तनिक पुतले को देखकर आती हूँ, अम्बालिका बनी नागरानी बोली।।
अच्छा तो मैं जाती हूँ और इतना कहकर अम्बिका स्वर्णमहल चली गई।।
अम्बिका के जाते ही नागदेवता ने पूर्व रूप मे आकर कहा कि ये सूचना देने मुझे स्वयं शीघ्र ही जाना होगा ताकि महाराज अपार यहाँ आ सकें क्योंकि दोनों बहनें यहाँ नहीं हैं और इस महल को भी नष्ट करना है, किन्तु नागरानी आप दोनों के ही संग रहेंगीं।।
नागदेवता वायु के वेग से महाराज अपार के निकट पहुंँचे और ये समाचार दिया,वहाँ से सभी शीशमहल की ओर चल पड़े सैनिकों सहित, कुछ ही समय में महाराज ने शीशमहल मे प्रवेश किया और वाटिका जाकर सर्वप्रथम रानी की बेड़ियों को तोड़कर उन्हें मुक्त कराया,इसके पश्चात रानी और राजकुमारी को शीशमहल के बाहर लाकर सैनिकों को आदेश दिया की इस श्रापित शीशमहल को नष्ट कर दो और यही किया गया ,कुछ ही क्षण में श्रापित शीशमहल अग्नि की लपटों में धूँ धूँ करके जल रहा था और अपार के मस्तिष्क से आज बहुत बड़ा भार उतर गया।।
और उसी समय तय किया गया कि वे सब अब स्वर्णमहल पर आक्रमण करके भालचन्द्र को भी मुक्त कराएंगे क्योंकि यही अवसर है, जब दोनों बहनें साथ में होंगीं चूँकि अब शीशमहल भी नष्ट हो गया है इसलिए अब उन्हें और भी कोई स्थान नहीं मिलेगा छिपने के लिए सिवाय स्वर्णमहल के।।

क्रमशः___
सरोज वर्मा...