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भूतो का गाँव....

वीरान इलाका और अमावस्या की अँधेरी रात ,संजय और दीपक एक सड़क से होकर गुजर रहे थें,रह रहकर जानवरों की आवाजें आ रही थी,कहीं पेड़ो से चमगादड़ लटक रहे थे तो कहीं उल्लू अपनी बड़ी बड़ी आँखों के साथ अपने कोटरों में बैठे हर आने जाने वालों को घूर रहे थे,दोनों को थोड़ा डर भी लग रहा था,इसलिए अपनी कार के शीशे चढ़ाकर तेज रफ्तार में चले जा रहे थे कि कैसें भी करके शहर तक पहुँच जाएं,
किसी दोस्त की बर्थडे पार्टी थी शहर से दूर उसके फार्महाउस पर,खूब मस्ती हुई आपस में,दारू-शारू भी चली,सारे दोस्तों ने ज्यादा चढ़ा ली थी इसलिए वें तो फार्महाउस में ही रूक गए लेकिन संजय और दीपक के घरों से हिदायतें मिल गई थी कि जल्दी लौट आना,इसलिए उन्होंने ज्यादा नहीं पी और पार्टी करने के बाद घर को लौट चले,जबकि दोस्तों ने मना किया कि इतनी रात गए वापस मत जाओ,लेकिन दोनों नहीं माने और चल पड़े घर की ओर।।
दोनों ने कार में हल्का म्यूजिक चला रखा था,कार का ए.सी. भी चल रहा था और दोनों दोस्त बातें करते हुए चले जा रहे थे,दीपक कार ड्राइव कर रहा था तभी एकाएक कार रूक गई,तो संजय ने दीपक से पूछा...
यार! दीपू ! क्या हुआ तूने कार क्यों रोकी?
यार! संजू! मैने नहीं रोकी,खुदबखुद कार रूक गई,दीपक बोला।।
अब क्या करेगें यार!इतनी अँधेरी रात ऊपर से सुनसान जंगल ,संजू बोला।।
तू डरता बहुत है,मैं उतर कर देखता हूँ कि कार में क्या हुआ है?दीपक बोला।।
हाँ! यार! देख ले,शायद कोई बात जाए नहीं तो सारी रात इस जंगल में बितानी पड़ेगी,हम इतनी दूर से चले आ रहे हैं लेकिन रास्ते में कोई भी गाड़ी नहीं मिली,इसका मतलब है कि ये रास्ता भी कम ही चलता है,संजय बोला।।
और फिर दीपक ने कार से उतर कर अपने मोबाइल की रोशनी से कार चेक की लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया कि कार में क्या प्राब्लम है वो क्यों रूकी?तब संजय बोला...
यार मैं घर फोन करता हूँ शायद कोई बात बन जाएं,
लेकिन संजय ने देखा कि उसके फोन में नेटवर्क ही नहीं था,उसने दीपक से पूछा कि तेरे फोन में नेटवर्क है लेकिन दीपक के फोन में भी नेटवर्क नहीं आ रहा था,अब दोनों सोच में पड़ गए कि क्या होगा? इतनी रात को इस जंगल में क्या करेगें?
तभी वहाँ से एक चरवाहा निकला अपनी दो बकरियों के साथ और उसने पूछा....
का हुआ है बाबूसाहब! तुम्हार गाड़ी खराब हुई गई का।।
उस चरवाहे को देखकर दीपक और संजय ने चैन की साँस ली और फिर संजय बोला....
हाँ! भाई! कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करें? फोन भी नहीं लग रहा।।
कौन्हू बात नाहीं,बाबू साहब! हमार गाँव इ रहा,वो उजाला देखत हो,हमार गाँव से ही आ रहा,तुम दोनों वहीं चलो,रात को ठहरने का सब बंदोबस्त हुई जाई,वो चरवाहा बोला।।
क्या नाम ही तुम्हारा? दीपक ने चरवाहे से पूछा।।
पूरन नाम है हमारा,चरवाहा बोला।।
और दोनों उस चरवाहे के साथ उसके गाँव की ओर चल पड़े,कुछ ही देर में दोनों गाँव पहुँच गए,लालटेन की रोशनी में दोनों ने देखा कि गाँव की चौपाल में बैठकर कुछ लोंग हुक्का पी रहे हैं और हँसी मजाक कर रहे हैं,उनमें से एक ने पूरन से पूछा....
पूरन! ई कौन लोंग हैं,हमारे गाँव में काहें आएं हैं?
मुखिया जी! शहरी बाबू हैं, रास्ते में इनकी गाड़ी बिगड़ गई तो हमने कहा कि हमारे साथ चलो,रात भर के ठहरने का बंदोबस्त हो जाएगा तो इ लोंग आ गऐ,पूरन बोला।।
ठीक किया पूरन! चलो कोई मेहमान तो आया हमारे ई गाँव में,मुखिया जी बोलें।।
चलो! बाबू साहब! कुएंँ पर चलकर हाथ मुँह धो लों,हम अपनी बहन चंपा से कहते हैं कि खाना लगा दे.....
ना...ना..हम खाना नहीं खाऐगें,बस रात बिताने के लिए थोड़ी सी जगह चाहिए,संजय बोला।।
ठीक है,हम अभी चंपा को बुलाएं देते हैं वो तुम दोनों को कोठरी में ले जाएगी,वहीं दो चारपाई पड़ी हैं,बिछौना बिछाकर लेट जाओ,पूरन बोला....
तभी मुखिया जी बोले....
पूरन! मेहमानों की खातिरदारी में कोई कमी नहीं होनी चाहिए....
हाँ! मुखिया जी! नाहीं होगी,पूरन बोला।
इतना कहकर चंपा ने पूरन को आवाज़ दी ,चंपा घूँघट काढ़े ,हाथ में लालटेन लेकर बाहर आई तो पूरन ने कहा कि दोनों बाबू साहब को कोठरी मे ले जाओ,दोनों चारपाई में बिछौना बिछा देना....
चंपा ने सिर हिलाकर हाँ मे जवाब दिया और दोनों को कोठरी में ले गई,चारपाई पर बिछौना बिछा दिए,फिर उसने इशारों में कहा कि लेट जाइए,दोनों लेट गए,दीपक तो जल्दी सो गया लेकिन संजय को नींद नहीं आ रही थी,उसे बाहर से कुछ कुछ डरावनी-डरावनी सी आवाजें आ रहीं थीं और कुछ देर में उनकी कोठरी की लालटेन बुझ गई ,संजय और भी डरने लगा और उसने अपना मोबाइल जलाकर कोठरी में रोशनी कर ली,
उसे बाहर पूरन की आवाज़ सुनाई दी जो चंपा से पूछ रहा था ,सो गए क्या दोनों?
हाँ! भाई जी! लगता है सो गए,चंपा बोली।।
ये सुनकर संजय और भी डर गया,अब उसके मोबाइल की बैट्री भी डिस्चार्ज होने वाली थी,इसलिए उसने मोबाइल बंद कर दिया और कुछ ही देर में उसकी आँख लग गई....
तभी आधी रात के वक्त.....
दीपक जोर से चीखा,दीपक की चीख सुनकर संजय जागा,उसने फौरन मोबाइल आँन करके देखा तो दीपक डरा हुआ सा अपनी चारपाई में बैठा है संजय ने उससे पूछा....
क्या हुआ भाई?
यार! मुझे लगता है कि मेरी चारपाई के नीचे कोई है,दीपक बोला।।
संजय ने अपने मोबाइल की टार्च जलाई तो देखा सचमुच वहाँ कोई पीठ के बल लेटा था ,संजय धीरे से उठा और उसे पलटाया तो वो तो दीपक था उसके पेट में और सीने में बहुत से घाव थे जिनसे खून रिस रहा था और जो चारपाई पर उसने बैठे देखा था तो वहाँ अब घूँघट ओढ़े चंपा बैठी थी,उसने अपना घूँघट उठाया तो उसका भयानक चेहरा देखकर संजय डर गया और बाहर की ओर भागा,
वो बाहर आया तो उसने देखा कि चंपा चौपाल के पेड़ से लटकी है और जितने भी चौपाल पर लोंग पहले बैठे थे उनका चेहरा भी भयानक हो गया था और वें संजय की ओर लपके,संजय भागने लगा,उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें? बस वो सड़क की ओर भागने लगा,वो भाग ही रहा था कि एक पत्थर से उसका पैर टकराया और वो गिर पड़ा फिर वहीं बेहोश हो गया।।
जब उसे होश आया तो सुबह हो चुकी थी,वो वापस उस जगह गया तो वो जगह बिल्कुल सुनसान सी लगी उसे ,लेकिन पास में ही पुलिस की गाड़ी खड़ी थी और कुछ पुलिसवाले दो लाशों को ले जा रहे थें,उनमें से एक लाश संजय की थी और दूसरी दीपक की और पुलिस वाले कह रहे थे कि....
लगता है कि इन लड़को को पता नहीं था कि ये भूतों का गाँव है तभी तो गाँववालों की बातों में आकर यहाँ रूक गए और अपनी जान गँवा बैठें.....

समाप्त......
सरोज वर्मा....


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