jankavi mukut viahari saroj in Hindi Moral Stories by ramgopal bhavuk books and stories PDF | जन कवि मुकुट विहारी सरोज

Featured Books
Categories
Share

जन कवि मुकुट विहारी सरोज

चर्चित कवि मुकुट विहारी सरोज जी के सानिध्य में

रामगोपाल भावुक

मुझे डॉ. भगवान स्वरूप चैतन्य जी चर्चित कवि मुकुट विहारी सरोज जी के निवास पर पहली‘ पहली वार लेकर गये थे। इससे पहले मैं अपने नगर में होने वाले कवि सम्मेलन में उनको सुन चुका था-

ये महान है

इन्हें प्रणाम करो ये बडे महान है।

दन्त कथाओं के उद्रगम का पानी रखते हैं।

पूजीवादी तन में मन भूदानी रखते हैं।

इनके जितने भी घर थे सभी आज दुकान हैं।

इन्हें प्रणाम करो ये बडे महान है।

उदघटन में दिन काटें, रातें अखबारों में

ये सुमार होकर मानेंगे अवतारों में

कोई क्या सीमा रेखा नापे इनके अधिकारों की

ये स्वयं जन्म पत्रियां लिखते हैं सरकारों की

ये तो बड़ी कृपा है जो दिखते भर इंसान है।

इन्हें प्रणाम करो ये बडे महान है।

उत्सव के घर जन्मे समारोह ने पाले

इनके ग्रह मुंह में चादी के चम्माच वाले हैं

तुम होगे साधारण ये तो पैदाइसी प्रधान है।

इन्हें प्रणाम करो ये बडे महान है।

इन्हें प्रणाम करो ये बडे महान है।

मैं उसी दिन से उनसे प्रभावित हो गया था।मैं चैतन्यजी के यहाँ जाया करता था। एक दिन चतैन्य जी ने सरोज जी के यहाँ चलने की कहा तो मैं शीध्र तैयार हो गया। जब हम दोनों उनके निवास पर पहुँचे, वे घर पर ही थे। उन दिनों वे ग्वालियर की जनवादी संस्था के अध्यक्ष थे और उनके सचिव के रूप में चैतन्य जी कार्य कर रहे थे।

उनके पास पड़ी कुर्सियों पर हम बैठ गये। चैतन्य जी बोले-‘भावुक जी ने रत्नावली उपन्यास लिखा है।’

सरोज जी बोले- राँगेय राधव जी का उपन्यास‘ रत्ना की बात’ की बात बहुत ही प्रमाणिक कृति है।’ उनकी यह बात सुनकर मैंनें दवी जवान में कहा-‘वह उपन्यास रत्नावली उपन्यास लिखने के बाद पढ़ने को मिल पाया हैं।’ उनसे अधिक कुछ न कह पाया। मन ही मन मन ने कहा, कई स्थानों पर मैं उनके लेखन से सहमत नहीं हो पाया हूँ।

उन्होंने बात आगे नहीं बढ़ाई तो दूसरी बातें चलने लगीं। काव्य के क्षेत्र में उनकें अनुभव संजोते हुए मैं चैतन्य जी के साथ लौट आया था।

मैं 19 अक्टूवर 1998 ई. को मध्यप्रदेश तुलसी अकादमी भोपाल के आमंत्रण पर मानस सम्मान लेने चित्रकूट समय से एक दिन पहले पहुँच गया था। मैं अपने कमरे में आराम कर रहा था, पता चला कि कार्यक्रम की अध्यक्षता करने ग्वालियर से मुकुट विहारी सरोज जी पधारे हैं। यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा कि देश का चर्चित कवि मुकुट विहारी सरोज जी की अध्यक्षता में मुझे यह सम्मान प्रदान किया जावेगा। यह सुन कर ही मैं धन्य हो गया।

मैं समझ गया वे डॉ चैतन्य जी का आग्रह वे नहीं टाल पाये हैं। इसलिये यह संयोग बन गया है।

सुबह के समय मन्दिकिनी में स्नान करते समय मैं भी सरोज जी के निकट ही डुबकी लगा रहा था। डुबकी लगाकर सरोज जी बोले-‘चैतन्य जी मैं ठहरा पूरा नास्तिक, जो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता हूँ किन्तु मन्दाकिनी में डुबकी लगाते समय तो मेरा दृष्टिकोण ही बदल गया। उस समय मुझे लगा है कि कहीं कुछ होता तो है जो अपनी उपस्थिति का विश्वास दिलाता है।

दूसरे दिन 20 अक्टूबर को मन्दाकिनी के पावन तट पर मध्यप्रदेश शासन की तुलसी अकादमी द्वारा प्रमोदबन में यह कार्यक्रम रखा गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुकुट विहारी सरोज जी कर रहे थे। मुख्य अतिथि के रूप में चित्रकूट विश्व विद्यालय के कुलपति विराजमान थे। मच पर ही सरोज जी की धर्मपत्नी श्रीमती गायत्री भी उपस्थित थीं। ग्वालियर के प्रसिद्ध गीतकार श्री रामप्रकाश अनुरागी जी भी मंच पर आसन ग्रहण किये थे। हजारों लोगों की भीड़ इकत्रित थी।

डॉ चैतन्य कार्यक्रम का संचालन कर रहे थे। इस अवसर पर मुझे म.प्र संस्कृति परिषद की तुलसी अकादमी द्वारा मानस सम्मान 1998 प्रदान किया गया था।

वे जो कहते वही उनके जीवन में समाहित भी था। मुझे चैतन्य जी की पुत्री के विवाह में जाना हुआ। सरोज जी भी आये थे। हम दोनों ने साथ- साथ भोजन ग्रहण किया था। लौटते समय मैं भी उनकें साथ ही समारोह भवन से नीचे उतर आया। सामने किसी ने नल खुला छोड़ दिया था। मेरी निगाह उस पर पड़ती सरोज जी की निगाह उस पर पड़ गई। उन्होंने तुरन्त जाकर नल बंद कर दिया। मैं पश्चाताप करता रहा कि मैं यह तत्परता क्यों नहीं दिखा पाया।

ऐसे जीवट व्यक्तित्व को मेरा सत् सत् वार प्रणाम है।

00000

सम्पर्क- रामगोपाल भावुक कमलेश्वर कालोनी डबरा भवभूति नगर जिला ग्वालियर म. प्र. 475110 मो0 9425715707