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आजाद रामपुरी -कृतित्व और व्यक्तित्व

आजाद रामपुरी कृतित्व और व्यक्तित्व कथाकार के आइने में

रामगोपाल भावुक

आपका मूल नाम तो पं. शिवदयाल शर्मा हैं। आपकी पत्नी श्रीमती कमला देवी सहज सरल सेवा भावी महिला रही है। कुछ ही समय पहले वे संसार छोड़कर चली गईं है। आजाद जी की साहित्य साधना में उन्हें बराबरी का हिस्सेदार कहें।

वर्तमान में आप 27 अलका पुरी ग्वालिर मे रह कर साहित्य साधना में लीन हैं। इन दिनों आपकी दो पुस्तकें कमला देवी प्रकाशन से प्रकाशित होकर आईं हैं।

ये पुस्तकें बाल साहित्य की धरोहर के रूप में माँ श्रीमती करई बाई की स्मृति में ‘बंदर बैठा रेल में’ तथा दूसरी कृति धर्मपत्नी कमला देवी की स्मृति में ‘हम हैं सूरज जग के’ प्रकाशित होकर आई हैं।

बन्दर बैठा रेल में अठ्ठाइस बाल कविताओं का संग्रह है। इसकी सभी कवितायें देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं- में प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्हें ही इस संकलन में स्थान दिया गया है। इसकी भूमिका में पं. आजाद रामपुरी लिखते हैं कि पूर्व में ‘एक खेलों की कहानी’ एवं दूसरी कृति ‘आविष्कारों की कहानी’ के बाद ‘बन्दर बैठा रेल में प्रस्तुत कर रहा हूँ। ये रचनायें बाल मन में जिज्ञासा उत्पन्न करने में सहायक होगीं।

इस तरह रामपुरी जी ने बाल साहित्य की श्री वृद्धि में अपना योगदान दिया है। छोटे- छोटे बच्चे जो केवल पढ़़ना सीख गये हैं यदि उन्होंने इसे पढ़ने का प्रसास किया तो पूरी कुति पढ़े बिना नहीं छोड़ पायेंगे।

बन्दर बैठा रेल में

मौज मजे के खेल में।

इसको बच्चों की कथा के रूप में बाल मन पढ़ने में लगा रहे-

आ बोला यों फेरी वाला

खाओं गर्म पकोड़े लाला।

चाहे जिसकी जितनी हस्ती

तुलवा लो खा कर के हंसती

जला लिया मुँह बंदर ने खा-

तले पकौड़े तेल में।।

इस तरह इन कविताओं में कथ्य को समाहित करके रोचक बना दिया है।

चाहे कौए की चतुराई हो, बंदर की ठसक हो चाहे इक्यानवे के बूढ़े बाबा हों अथवा गधा पच्चीसी वाली कवितायें हों सभी में हल्की कथा के अंश छिपे हैं। जिससे बाल मन बंधा रहे।

चाहे श्रावण सा मेहमान हो,उफनती नदिया हो, जाडे की फुलवारी हो अथवा दही बड़े का आनन्द लेना हो तो- इसमें नमक मिर्च है डाल,

और डला है गर्म मसाला।

मीठी चटनी डाल के खाना,

देखे तो जायका बढ़े।।

चाहे होता सबसे बडा गुरू है हो, राजा बनना खेल नहीं अथवा चूहे का कैमरा हो बाल मन उसे पढ़कर ही रहेगा।

इस कृति से पहले आपने बाल काव्य में ही ‘रुचिर कथा श्री राम की’ भी प्रकाशित हारे चुकी है। उसमें भगवान श्री राम के जन्म से लेकर उनके राम राज्य तक के प्रसंगों पर बालोपयोगी रचनायें संकलित हैं। कृति पठनीय एवं संग्रहणीय है।

अब हम उनकी अभी दूसरी प्रकाशित कृति पर भी दृष्टि डालें- हम हैं सूरज जग के में बाल उपयोगी एवं प्रेरणा देने वालीं रचनायें समाहित की गईं हैं।

हम हैं सूरज जग के में-

धरती माँ के पूत लाड़ले, हम हैं पक्के प्रहरी कल के। जैसे भावों से ओत प्रोत रचना है।

देश हमारा में-मातृभूमि के हम सपूत हैं इसकी शान बढ़ाने आतुर,

चाहे इसकी बलि वेदी पर, हो ले बलिदान हमारा है।

जैसे भावों को बाल मन में भरती रचना को स्थान दिया है।

चाहे सर्दी आयी रचना हो , चाहे आम वाली रचना हो अथवा मौसम जादूगर का हो, गेयता के साथ बालमन को प्रेरित करने वाली रचनायें हैं।

अब हम ‘बात ज्ञान की’ रचना की करें। यह रचना गुजरात प्रान्त के राज्य शाला पाठयक्रम में कक्षा सात में स्थान पा चुकी है।

घिसी- पिटी, गाथायें छोड़ो, बात करो अब ज्ञान की।

पहुंचा व्यक्ति चन्द्रमा ऊपर, विजय हुई विज्ञान की।।

नटखट चुहिया हो,बुलबुल हो,चिड़िया हो अथवा श्रेष्ठ ऊँट है सभी में इनकी जानकारी देने के साथ इनके माध्यम से बाल मन को प्रात्साहित करने का प्रयास किया गया है।

हंसते रहते हर दम होंठ,देश हंस रहा रेलों में तथा गदेह का इलेक्शन में बच्चों को गुदगुदाने का प्रयास किया गया है।

सर्दी के दिन छोटे छोटे में, पुजता जैसे मन्दिर है में अथवा वे आगे बढ़ पाते हैं में प्राकृतिक सुन्दरता का मनोहारी वर्णन है।

गुड़ि़या की कहानी में तो तरह- तरह से सुसज्जित गुड़ियाओं की कहानी लिख डाली हैं। भारतीय रेल पर लम्बी कविता बच्चों का मन मोह लेती है।

इस संकलन की सभी रचनायें भी देश की पत्र-प़ित्रकाओं में प्रकाशित रचनाओं को ही रखा गया है।

इस तरह आप बाल साहित्य में चर्चित साहित्यकार के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। आप बाल मन के पारखी रहे हैं। आपका स्वभाव बाल मन से प्रभावित, सीधे सच्चे रचनाकार हैं। छल कपट से कोसों दूर हैं। जो बात मन में आती है सरलता से कह जाते हैं।

इसके अतिरिक्त उनके अनेक ग्रंथ हैं। मन्थन- एक प्रबन्ध काव्य है। गीता- चौपाई तो गीता जैसे ग्रंथ का सहज सरल भाषा में चौपाई करण किया है। यह कृति मेरे दैनिक पाठ में लम्बे समय तक समाहित रही। इसके लिये मैं रामपुरी जी का आभारी हूँ। गीता आपके जीवन में रची बसी है। आपका जीवन इसी धारा से प्रवाहित हो रहा है।

मान न मान मैं तेरा मेहमान एक व्यंग्य लेख संग्रह हैं। व्यंग्य से सरावोर कृति के लिये बधाई।

आपकी क्षणिका उद्भव और विकास एक समालोचनात्म कृति है। यह आपके अध्ययन मनन का परिणाम है।

इसके अतिरिक्त आप लघुकथाकार के रूप में भी अपनी पहचान बना चुके हैं। आपकी लधुकथायें चुटीली बात सामने रखने में समर्थ हैं।

आज भी आपकी कलम चल रही हैं। मैं प्रभु से आपकी लम्बी उम्र की कामना करता हूँ।

धन्यवाद

सम्पर्क- रामगोपाल भावुक कमलेश्वर कालोनी डबरा भवभूति नगर जिला ग्वालियर म. प्र. 475110 मो0 9425715707