dainik jivanchryam-apeksjit shlokah in Hindi Human Science by ramgopal bhavuk books and stories PDF | दैनिक जीवन चर्चायाम् -अपेक्षितः श्लोकाः

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दैनिक जीवन चर्चायाम् -अपेक्षितः श्लोकाः

दैनिक जीवन चर्चायाम् अपेक्षितः श्लोकाः सूक्तियश्च।

रामगोपाल भावुक

संस्कृत भाषा देववाणी है। यह वैदिक एवं लौकभाषा हैं। वैदिक संस्कृत साहित्यिक होने के कारण कठिन लगती हैं, इसलिये लौकिक संस्कृत अधिक प्रचलन में हैं। आजकल तो संस्कृत के साहित्यकार अपने प्रचलन की भाषा के शब्दों को इससे जोड़कर इसे सरल बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

पुराने समय में पढ़े-लिखे लोग संस्कृत में ही बातचीत करते थे। इसके प्रमाण स्वरूप हमारे चारों वेद,शास्त्र एवं उपनिशद संस्कृत में लिपि बद्ध हैं। वेदों में मानव जीवन के कर्तव्य और अकर्तव्य को भलीभाँति परिभाषित किया गया है। आज विश्व के प्रत्येक हिस्से में इसी आध्यात्म की चर्चा है। षट दर्शन इसी आध्यत्म का ही प्रतिनिधित्व करते हैं। महर्षि वालमीकि द्वारा लिखित रामायण एवं महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखित महाभारत के ग्रंथ संस्कृत भाषा की धरोहर हैं।

महाकवि कालीदास,भास,अश्वघोस, वाणभट्ट,भारवि और भवभूति ने तो संस्कृत को विश्व के पटल पर प्रतिस्थापित करने में अपनी भूमिका का निर्वाह किया है। अभिज्ञान शाकुन्तलम्,उत्तर रामचरितम् व कादम्बरी इत्याहि विश्वस्तर पर चर्चित ग्रंथ हैं।

संस्कृत के मुहावरे,सूक्तियाँ एवं सुभाषित वाक्य जन-जन में प्रचलित हैं। यह एक वैज्ञानिक भाषा है। इसकी खास विशेषता यह है कि हम जो बोलते हैं वही लिखते भी है। आधुनिक युग में कम्पूटर पर यह लिखी- पढ़ी जा सकती है। इसकी महत्वपूर्ण बात यह है कि संस्कृत की शब्दावली को देश की अधिकांश प्रान्तिय भाषाओं ने अपने में समाहित कर लिया है। देश में कई भाषाओं की जननी संस्कृत भाषा है। वर्ष 1999 ई. को संस्कृत वर्ष के रूप में याद किया गया है।

संस्कृत सरस व रस युक्त भाषा है। सारे देश को एकता के सूत्र में बाँधने की छमता संस्कृत भाषा में है। संस्कृत भाषा हमारी संस्कृति की भाषा है। अतः भारत की प्रतिष्ठा संस्कृत भाषा में समाहित है।

आज के परिवेश में जन-जन में प्रचलित सूक्तियों की चर्चा करना यहाँ उचित लग रहा है। ओनामासी धम वाप पढ़े ना हम। अर्थात् ऊँ नमः सिद्धम्। की सूक्ति अपना रूप बदलकर जन जीवन में समाहित हो गई है कि उसके मूल रूप को इससे पहचानना ही कठिन हो रहा है।

आज देश में ऐसी बहुत सी सूक्तियों का प्रयोग चलन में आ गया है। इसके अतिरिक्त कुछ सूक्तियाँ सरल संस्कृत में जन-जन में प्रचलित हैं जैसे-पितृ देवो भव, न मातु परं देवताम्, हस्तस्य भूषणम् दानम्, लोभ पापस्य कारणम् और अतिथि देव भव जैसी अनेक सूक्तियाँ दैनिक व्यवहार में प्रचलित हैं।

हमारे किसानों के घरों में अन्नं बहु कुर्वीत सुना जा सकता है। यदि किसी की बुद्धि ने विनाश के समय उचित निर्णय नहीं लिया तो विनाश काले विपरीति बुद्धि एवं पर पीड़ा का महत्व व्यक्ति करने के लिये परोपकारः पुण्याय पापाय पर पीड़नम् जन-जन से सुना जा सकता है।

श्रद्धा के महत्व के लिये-श्रद्धावान लभते ज्ञानम्। लोगों की वीरता थपथपाने के लिये- वीर भोग्या वसुन्धरा। और धरती माता का महत्व प्रदर्शन करने के लिये-जननी जन्म भूमश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

आदमी के साहस में वृद्धि करने के लिये इस सूक्ति का प्रयोग बहुत ही चलन में है-साहसे खलु श्रीः वसति। हितकारी और मन को अच्छे लगने वाले बचनों के लिये-हितं मनोहारि च दुर्लभं बचः। प्रयोग में लाये जाते हैं। जहाँ नारी की पूजा होती है वहाँ-यत्र नार्यास्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।

इस तरह संस्कृत भाषा की ये सूक्तियाँ संस्कत भाषा के अवदान में वृद्धि कर रही हैं।

प्रभु की वंदना के लिए बहुत ही अल्प पढ़े -लिखे लोगों के मुख से यह श्लोक सुनने को मिल सकता है-

त्वमेव माता च पिता त्वमेव।

त्वमेव वन्धुश्च सखा त्वमेव।।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।

त्वमेव सर्वम् मम् देव देव।।

गुरु देव के महत्व तथा उनकी वंदना में, हमारे देश के ग्वालों के मुख से यह श्लोक सुना जा सकता है-

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णू गुरुर्देवों महेश्वरः।

गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

सुखी जीवन रहे इसके लिये यह श्लोकार्ध जन-जन में प्रचिलित है-

सर्वे भवन्तु सुखिनाः सर्वे सन्तु निरामयाः।

मनोरथ करने सये ही कार्य सिद्ध नहीं होते उनके लिये प्रयास करना पड़ता है- उधमेन हि सिद्धन्ति,कार्याणि न मनोरथैः।

इसी तरह विद्या विनय देती है, अल्प पढ़े लिखे परिवारों में ये सूक्तियाँ सुनने को मिल जायेगीं- विद्या ददाति विनयम् एवं विद्वान सर्वत्र पूज्यते।

साधु संतों से यह सूक्ति सुन सकते हैं-नास्ति त्यागं समं सुखम्।

और चरित्र का महत्व इस वाक्य से-शीलम् सर्वत्र वै धनम्। इसी तरह आलस्य करने वालों को विद्या कहाँ- आलस्य कुतो विद्या।

धन और मान की तुलना इस श्लोक में-

अधमाःधनं मिच्छति,धनं मानं च मध्यमाः।

उत्तमाः मानं इच्छति, मानोहि महतां धनम्।।

मानव के गुण प्रदर्शन के लिए यह श्लोक-

नरस्या भरणं रूपं,रूपस्या भरणं गुणाः।

गुणास्या भरणं ज्ञानं, ज्ञानस्या भरणं क्षमाः।।

उदार व्यवहार के महत्व लिये यह श्लोक देखिये-

अयं निजः परोवेति गणना लधु चेतसाम्।

उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।

देश के शहीदों में यह भावना समाहित रहती है-

नरके गमनं श्रेष्ठं दावाग्नौ दहनं परम्।

वरं प्रवतनं चाब्धौ न वरं परशोषपरम्।।

विद्याा का महत्व प्रदर्शन के लिये यह श्लोक जन -जन में लोक प्रिय है-

येषां न विद्या तपो न दानं। ज्ञानम् न शीलम् गुणो न धर्मः।।

ते मर्त्य लोके भुवि भार भूता। मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति।।

एक गुणी पुत्र का महत्व प्रदर्शन के लिये इस एक श्लोक को तो जन जन तक पहुँचाने की आवश्यकता है।

वरमेको गुणी पुत्रो न च मूर्ख शतान्यपि।

एकश्चन्द्रो स्तनो सन्ति न च तारागणो अपि वा।।

इन सब उदाहरणों के माध्यम से इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि हम सब का दायित्व है कि इन सूक्तियों और श्लोकों का जितना हो सके प्रचार प्रसार करने में लग जायें।

दुःख का विषय तो यह है कि हम इनका सहजता से प्रयोग तो कर जाते हैं लेकिन उस बात पर विचार नहीं करते। इसी कारण संस्कति के रक्षक ये महत्वपूर्ण श्लोक निश्क्रिय होकर समाज में विचरण कर रहे हैं। ये उपदेशकों की मात्रा भाषा बन कर रह गये हैं।

सार की बात यह है कि हम इन श्लोकों के माध्यम् से संस्कृत भाशा को जन जीवन के निकट ला सकते हैं। हम अपनी प्रान्तिय भाषाओं को भी संस्कृत के निकट ला सकते है। तभी हमारा देश और हमारी संस्कृति संरक्षित हो सकेगी । धन्यवाद।

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पता- कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा)

भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110