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सरस प्रीत -सुरेश पाण्डेय सरस

सरस प्रीत के रचनाकार सुरेश पाण्डेय सरस ।

समीक्षात्मक टिप्पणी

रामगोपाल भावुक

सुरेश पाण्डेय सरस की कृति सरस प्रीत सामने है। सरस मन का स्वप्नों भरा संसार जब उजड़ता है तब उसका वेदना से भरा हृदय पिघलकर बहने लगता है, उससे जो धारा प्रवाहित होती है वह सभी के लिये कल्याणकर ही होती है फिर कवि हर प्रतिमा के सामने नमन नहीं करता-

मेरा वह मन नहीं कि

हर प्रतिमा के आगे नमन हो गया।

कवि ने काँटों से प्यार किया है तभी वह कह पा रहा है-

फूलों से प्यार सभी करते हैं

काँटों से प्यार करो तो जानें।

कवि की रचना, लगता है मधुमास आ गया। जीवन में उत्साह का संचार कर रही हैं। ऐसी रचनायें आदमी के जीवन में उत्साह का संचार कर नीरसता दूर करने में समर्थ होतीं हैं।

सरस जी की कविताओं में मानवता के लिए ऐसी तड़फ-

मनुजता का गला घुटता सो रहा है आदमी।

सत्ता पाने के लिए आदमी स्वार्थी हो जाता है-

सत्ता की लड़ाई स्वार्थ के अस्त्र से लड़ी जाती रही है।

इस वजह से ही स्वार्थी अब हो रहा है आदमी।

जीवन में मधुमास के बाद जब प्यासा श्रावण आता है, तब वे गा उठते हैं-

मधुमास लगता है पतझड़ सा मुझको।

और कवि के दिल की वीणा बजती है जब वह ये पक्तियाँ गुनगुनाने लगता है-

दिल की वीणा का

झंकृत है हर तार तार

सच्चा है मेरा प्यार यार।

कवि कविता, दीपक, सविता, उदियाचल, अस्ताचल, जैसे प्रतीकों का सहारा लेकर कविता में सच्चे प्यार का पाठकों को अहसास करा देता है। उनकी ऐसी रचनाओं को जब- जब गोष्ठियों में सुना है स्मृति से हटतीं नहीं हैं।

तुम अट्टालिकाओं में पड़े हो

मदहोश हो पीकर सुरा

फिर बताओ गरीबों की

व्यथा किसको सुनाऊँ।

र्दा के भीगे हुए यह गीत में किसको सुनाऊँ।

शहीद चन्द्र शेखर आजाद कविता की पक्तियाँ बारम्बार दोहराने का मन करता है- जिनकी आँखों की दिव्य चमक को देख लोग भय खाते थे।

उस वीर ब्रह्मचारी के सम्मुख, हर मानी जन झुक जाते थे।।

ऐसी ही देश भक्ति से परिपूर्ण यह रचना-

कवियो तुम्हें देश भक्ति के गीत गाना है।

इस तरह हम देखते है कि कवि केवल श्रंगार का ही कवि नहीं है। उसमें देशभक्ति का भी लवालव भरी है।

इस रचना में कवि की सधर्ष शीलता देखी जा सकती है-

मेरे जीवन नील गगन पर

दुःख के वादल जमकर छाये।

हम भी डरे नहीं विघ्नों से,

बड़ी खुशी से जा टकराये।।

और चलो चलें दूर कविता में -

आशा से आसमान आशा की भाषा है,

मिलना तो होगा जरूर चलो चलें दूर कहीं।

चर्चा ये आम हो गई में कवि ने व्यंग्य का सहारा लेकर व्यवस्था की शल्य क्रिया की है- दोष भगवान का इसमें क्या

जनता नीलाम हो गई।

कवि राजनीति को विष की बेल मानता है-‘

राजनीति स्वार्थ भरी विष की है बेल ।

लूटना गरीबों का, इसका बना खेल।।

सुबह जली है शाम जली है में कवि का जनवादी दृष्टि कोण भी उजागर हो रहा है-

फूल चढ़ाने आया ताज पर आँखों में आँसू हैं आज।

यहाँ नहीं दफना है प्यार,यहाँ कलाकार की कलम जली है।।

विधवा बहनों की व्यथा से भी कवि दुःखी है-

सामाजिक बन्धन के आगे बूढ़ी हुई जवानी।

देखिये कैसी व्यथा कैसी कहानी।।

अन्त में इतना ही कहना चाहूँगा कि सरस जी श्रंगार के कवि तो हैं लेकिन वे देशभक्त भी हैं। व्यंग्य के माध्यम से व्यवस्थ की शल्य क्रिया करने में पूरी तरह समर्थ हैं।

अब तो मेरे साथ चलेगा समय मित्र।

प्रीति, वीरता,शक्ति सुमन की बगिया मुस्कायेगी।

इसी कारण-

मेरी हर साँस प्रिये, प्रीति प्रीति कहती है।

इन दिनों आप लम्बे समय से अस्वस्थ चल रहे हैं। हम प्रभु से प्रार्थना करते हैं आप जल्द स्वस्थ हो जिससे कुछ नया सृजन सामने आ सके। ऐसे रचनाकार को वन्दन, अभिनन्दन। उन्हें जरूर पढ़ा जाना चाहिए।

पुस्तक : सरस प्रीत

लेखक : सुरेश पाण्डेय सरस 36 पंतनगर महलगाँव ग्वालियर 474002

पुस्तक समीक्षा : रामगोपाल भावुक

पता- कमलेश्वर कॉलोनी (डबरा) भवभूति नगर, जिला ग्वालियर म.प्र. 475110 मो 0 -09425715707