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गुल्लक 

दीपावली का समय था, पार्वती एक वर्ष पहले ही अवंती के घर काम करने के लिए लगी थी। वह बहुत मन लगाकर अच्छी तरह सब काम करती थी। सुबह नौ बजे से शाम छः बजे तक रुकती थी और उसे आठ हज़ार रुपए महीना मिलता था। महंगाई के इस दौर में इतने पैसों में भला क्या होता है। उसका पति भी एक ऑफिस में काम करके लगभग उतना ही कमा लेता था। किसी तरह से उनका गुज़ारा हो जाता था। थोड़े समझदार थे वे दोनों, इसलिए एक बच्चे में ही उन्होंने संतोष कर लिया था। आठ साल की थी उनकी बेटी मीना, जो कई बार अपनी माँ के साथ काम पर आ जाती थी।

अवंती के दो बच्चे थे दस साल की बेटी रूहानी और बारह वर्ष का बेटा युवान। रूहानी कई बार मीना से बातें करती, अपने रबर, पेंसिल, कलर पेंसिल भी उसे दे दिया करती थी। रूहानी के घर ज़ोर शोर से दीपावली की तैयारियाँ चल रही थीं। जैसे-जैसे दीपावली पास आ रही थी, खरीददारी भी ख़ूब हो रही थी। यह सब देखकर मीना का मन भी ललचा जाता। उसे लगता काश यह सब उसे भी मिल पाता किंतु वह जानती थी कि वह गरीब घर की बेटी है। उसके माता-पिता इतना सब नहीं कर सकते। पर हाँ उसे इतनी आशा तो अवश्य ही थी कि दीपावली पर उसे भी नए कपड़े, पटाखे और मिठाई तो ज़रूर ही मिलेगी। पार्वती उम्मीद लगाकर बैठी थी कि अब उसके हाथ में भी बड़ा-सा बोनस का पैसा आएगा। उसी पैसों से वह भी अपनी बिटिया को पटाखे, नए कपड़े सब कुछ लाकर देगी ताकि वह भी त्यौहार में ख़ुश रह सके और त्यौहार मना सके।

एक दिन मीना ने अपनी माँ से पूछा, "माँ मुझे भी नए कपड़े, पटाखे दिलाओगी ना?"

"हाँ बेटा क्यों नहीं, बस जैसे ही मैडम बोनस के पैसे देंगी वैसे ही मैं तुम्हें सब कुछ दिला दूँगी।"

देखते-देखते दो दिन गुजर गए, अगले दिन दीपावली थी। उससे पहले वाली शाम को अवंती ने एक मिठाई का डब्बा पार्वती को देते हुए कहा, "यह लो पार्वती हमारी तरफ़ से यह मिठाई।"

पार्वती हाथ आगे बढ़ा कर डब्बा लेते समय अवंती की तरफ़ देख रही थी कि अभी वह पैसे भी देंगी। किंतु अवंती ने मिठाई का डब्बा देकर अपनी पीठ दिखा दी। तब पार्वती ने कहा, "मैडम जी मुझे बोनस दीजिए ना।"

"बोनस, कैसा बोनस? किस बात का बोनस? त्यौहार है, तुम्हें मिठाई दी तो है मैंने और क्या चाहिए?"

"मैडम बोनस में तो सब लोग एक माह की पगार देते हैं।"

"यह क्या कह रही हो पार्वती, अभी एक वर्ष पहले ही तो काम पर लगी हो। यह कोई ऑफिस नहीं है, तुम रोज़ का काम करती हो और उसके बदले हर माह पैसे भी ले लेती हो। मैंने दीपावली पर तुमसे कोई साफ़-सफाई भी नहीं करवाई है फिर तुम और अधिक पैसे क्यों मांग रही हो?"

पार्वती उदास हो गई उसने ऐसा तो कभी नहीं सोचा था। मीना की आँखों में आँसू थे। उसने अपनी माँ की तरफ़ देख कर कहा, "माँ अब मुझे कुछ भी नहीं मिलेगा ना? अब हम दीपावली नहीं मनाएंगे ना?"

रूहानी यह सब कुछ देख रही थी, सुन भी रही थी। उसे उसकी मम्मी का ऐसा व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। वह अवंती से कुछ कहना चाहती थी किन्तु अवंती के गुस्से वाले चेहरे को देख कर वह कुछ भी ना कह सकी। उसका दिल रो रहा था, उसे मीना की आँखों के आँसू देख कर बहुत बुरा लग रहा था। वैसे भी वह मीना को अपनी दोस्त मानती थी।

रात को वह अपने बिस्तर पर उदास पड़ी थी तभी उसके बड़े भाई युवान ने उसे इस तरह देखा। वह उसके पास आया और पूछा, "क्या हुआ रूहानी?"

रूहानी ने आँखों देखा पूरा किस्सा उसे सुना दिया। वह अपना गुल्लक उठा कर ले आई और कहा, "भैया यह मेरा गुल्लक तोड़ दो। मैं मेरे सारे पैसे मीना को दे दूँगी। यदि मीना दीपावली नहीं मना पाएगी तो मैं भी नहीं मनाऊँगी। मम्मा ने यह बिल्कुल सही नहीं किया। हमारे पास तो कितने सारे पैसे हैं। क्या मम्मा थोड़े से पैसे उन्हें नहीं दे सकती थीं?"

"चिंता मत कर रूहानी।"

रूहानी की बातें सुनकर युवान भी अपना गुल्लक ले आया। दोनों गुल्लक में से लगभग पाँच हज़ार रुपए निकले। रूहानी बहुत ख़ुश थी। उसने कहा, "भैया कल मैं यह पैसे मीना को दे दूँगी। हम मम्मा को बिल्कुल नहीं बताएंगे वरना वह हमें मीना को पैसे नहीं देने देंगी।"

"हाँ ठीक है रूहानी दे देना, जिससे वह भी अच्छे से दीपावली मना सके। जब मम्मा कुछ काम में रहेंगी तब दे देना।"

"ठीक है भैया।"

दूसरे दिन सुबह पार्वती और मीना जब आए तब अवंती नहाने गई हुई थी। यह मौका अच्छा था, रूहानी तुरंत ही पैसे लेकर मीना के पास आई और कहा, "मीना ये देख कितने सारे पैसे हैं, तू जल्दी से रख ले। इससे तेरे लिए पटाखे, नए कपड़े सब आ जाएँगे। जल्दी कर मेरी मम्मा को मत बताना।"

लेकिन तब तक अवंती नहा कर बाहर आ चुकी थी। पर्दे की ओट से वह यह सब देख रही थी। वह जानना चाह रही थी कि अब पार्वती और मीना क्या करते हैं। रूहानी के दिए पैसे पार्वती चोरी से रख लेगी या लौटा देगी? पार्वती ललचाई नज़रों से उन पैसों की तरफ़ देख रही थी, जिनमें उसे अपनी बिटिया की ख़ुशी दिखाई दे रही थी। वह कुछ सोचे, कुछ निष्कर्ष पर पहुँचे, उससे पहले उसके कानों में आवाज़ आई।

"नहीं रूहानी मुझे तुम्हारे पैसे नहीं चाहिए यह चोरी है। मैं तो यह पैसे कभी नहीं लूँगी। मेरी माँ हमेशा कहती है, जितनी चाहे मेहनत करो, अपनी मेहनत से कमाकर खाने में ही सच्चा सुख और अच्छी नींद मिलती है। कोई बात नहीं, इस साल मैं अच्छे से दीपावली नहीं मनाऊँगी। मेरे पापा ने कल एक डब्बा फुलझड़ी का लाए हैं, मेरे लिए इतना ही बहुत है," मीना ने कहा।

पार्वती अपनी बेटी का जवाब सुनकर बहुत ख़ुश हो रही थी। वह जैसा चाहती थी मीना ने बिल्कुल वैसा ही किया।

पार्वती ने कहा, "रूहानी बेटा तुम्हारे पैसे तुम अपने गुल्लक में वापस डाल दो। तुम्हें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए। अपनी मम्मा से झूठ नहीं बोलना चाहिए।"

रूहानी ने कहा, "मीना यदि तुम दीपावली नहीं मनाओगी तो मैं भी नहीं मनाऊँगी। तुम्हारी भी तो इच्छा होती है ना, नए कपड़े पहनने की। तुम भी तो छोटी हो। उस दिन तुम अपनी माँ से कह रही थीं ना कि तुम्हें भी नए कपड़े और पटाखे चाहिए। लेकिन मेरी मम्मा ने तुम्हें पैसे नहीं दिए पर मैं दे रही हूँ, मना मत करो ले लो। यह पैसे मेरे कुछ काम के नहीं। मैं तो जो माँगती हूँ मेरी मम्मा सब दिला देती हैं।"

पार्वती ने कहा, "रूहानी बेटा यह चोरी है और चोरी करना तो बहुत गंदी बात होती है। हमें ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए।"

अंजलि यह सब सुनकर अपने किए पर पछता रही थी। अपनी बेटी के मुँह से ऐसी बातें सुन कर उसकी आँखें डबडबा गईं। वह सोच रही थी उनके पास तो कितना है। इतनी मेहनत और ईमानदारी से काम करने वाली पार्वती को क्या वह एक माह का वेतन दीपावली के उपहार के तौर पर नहीं दे सकती थी। अपनी डबडबाई आँखों से आँसू पोंछते हुए वह बाहर निकल आई। अपनी मम्मा को देखकर रूहानी डर गई।

अंजलि ने कहा, "पार्वती यह लो तुम्हारे बोनस के पैसे। मैं बहुत ख़ुश हूँ कि मेरे घर में इतनी ईमानदारी से काम करने वाली तुम हो। कोई और होता तो शायद रूहानी के हाथ से यह पैसे ले लेता और मुझे पता भी नहीं चलता। तुमने और इस छोटी-सी मीना ने जो ईमानदारी दिखाई है, उसके लिए तुम्हें इनाम तो मिलना ही चाहिए।"

पैसों के साथ ही अवंती ने ढेर सारे पटाखे भी मीना को दिए और कहा, "मीना तुम भी ख़ूब पटाखे जलाना, नए कपड़े पहनना और यदि तुम्हारा मन करे तो यहाँ आ जाना रूहानी के साथ पटाखे जलाना।"

पार्वती अपनी बच्ची की ईमानदारी पर गर्व महसूस कर रही थी।

रूहानी अवंति का ऐसा व्यवहार देखकर बहुत ख़ुश हो गई। वह आकर उससे चिपक गई और कहा, "थैंक यू मम्मा, आई लव यू। मम्मा मुझे माफ़ कर दो। मैं आपसे पूछे बिना..."

अवंती ने रूहानी से पूछा, "बेटा तुम्हारी गुल्लक में इतने सारे पैसे थे?"

"नहीं मम्मा, युवान भैया ने भी अपनी गुल्लक खाली कर दी थी। इसमें से आधे पैसे उनकी गुल्लक के हैं।"

तब तक युवान भी वहाँ आ चुका था। अवंती ने उसकी तरफ़ देखा तो वह मुस्कुरा रहा था।

उसने कहा, "सॉरी मम्मा मैं अपनी बहन की आँखों में आँसू नहीं देख पाया और वह अपनी दोस्त मीना की आँखों में आँसू नहीं देख पाई बस इसीलिए आपसे बिना पूछे, बिना बताए हम ऐसा कर रहे थे।"

"कोई बात नहीं बेटा तुम लोगों ने ग़लती ज़रूर की किंतु किसी अच्छी वज़ह के लिए, किसी अच्छे काम के लिए। तुम्हारे ऐसा करने से मुझे मेरी ग़लती का एहसास हो गया इसलिए मैंने भी अपनी ग़लती सुधार ली। थैंक यू और सॉरी तो मुझे कहना चाहिए। पूरे साल इतनी मेहनत और ईमानदारी से काम करने के बाद उनका इतना हक़ तो बनता ही है। हमें उनका हक़ ख़ुशी के साथ उन्हें देना चाहिए।"

इस तरह इस वर्ष दीपावली पर मीना और उसके परिवार ने भी छोटी छोटी-सी ख़ुशियाँ बटोर कर त्यौहार मनाया।

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक