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मैं और राजनैतिक विचारधारा

राजनीति :-
मैं एक विचारधारा से जुड़ा हूँ जो हमें देश की सेवा के लिए तत्पर रहने की सीख देती है। जो राष्ट्र को सर्वप्रथम मानती है। ये विचारधारा पिछली सदियों में देशविरोधी समाज विरोधी विचारधाराओं के प्रतिउत्तर में स्थापित हुई है। पिछले वर्षों में ये मजबूती से सम्पूर्ण देश में उभरी है। हमारी विचारधारा सांस्कृतिक भारत का समर्थन करती है पूजती है। देश के सभी समाजों को साथ लेकर चलना सिखाती है जिससे राष्ट्र अक्षुण बना रहे, देश विरोधियों का प्रतिकार कर सकें उसकी शिक्षा भी मिलती है।
विचारधारा ही राजनैतिक तन्त्र को जन्म देती है चुकीं देश में प्रजातंत्र को चलाने के लिए राजव्यवस्था होती है। अब विभिन्न राजनीतिक दल अलग अलग मुद्दों पर अपनी नीव रखते है। ये दल अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए समाज में जातिवाद धर्मवाद,भाषा व प्रांतवाद जैसी विषैली इस्थितियों को जन्म दे देते हैं। फिर भी प्रत्येक व्यक्ति परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से किसी न किसी राजनैतिक समूह से जुड़ा हुआ है।
मैं:-
हम सभी एक सामान्य व्यक्ति है। जीवनयापन करने के लिए जो आवश्यक है उनकी पूर्ति करने के भिन्न-भिन्न तरीके अपनाते है। स्वार्थ से अछूता रहना बढ़ी साधना की बात है। जिनकी वैचारिक स्थिति अच्छी है जो समाज में दिखने की कोशिश में हो या जो अपने देश,समाज,धर्म के लिए विशेष चाहता है वो राजनीतिक सत्ता भी अपनी विचाधारा की ही चाहता है।
जिसके लिए वो मेहनत भी करता है और समाज को जागरूक भी।
प्रत्येक व्यक्ति के पीछे अपना परिवार जुड़ा है जिनका जीवनयापन करने के लिए संसाधनों की आवश्यकता होती है जो धनार्जन से जुड़ी है। अब जो व्यक्ति विचारधारा को भी सत्ता में देखना चाहता है और धनार्जन भी तो वो अपने किसी करीबी को ही उम्मीदवार चाहता है। जिससे उसकी सारी उम्मीदें जुड़ी होती हैं।
आज वो दिन है जिसकी मुझे बड़ी ही व्याकुलता से प्रतीक्षा थी, चुकीं आज राजनीतिक पार्टी हमारे क्षेत्र से अपना उम्मीदवार तय कर रही है। मुझे पूरा विश्वास है प्रत्याशी वही होगा जिसके लिए हमारा पूरा संघठन लगा है। सबकुछ ठीक ठाक है परंतु जैसे ही नेतृत्व द्वारा उम्मीदवार का नाम पुकारा गया सब सन्न रह गए जो नाम पुकारा गया वो व्यक्ति भृष्ट है, बेईमान है,वैचारिक नही है बस दबंग है इसलिए पार्टी ने उसे चुना जबकि जिसे लोग और हम चाह रहे थे वो ईमानदार व सज्जन व्यक्ति है।
अब लोगों के पास दो रास्ते बचे या तो विपरीत विचार वालों को वोट किया जाए या इसी व्यक्ति को जो अपने कार्यकाल में हमें हानि करेगा।
जबाब एक ही होता है व्यक्ति नही राष्ट्रप्रथम इसलिए जो पार्टी ने निर्णय किया वो मान्य होगा। क्या ये प्रत्येक बार? जबाब - हाँ
पर क्यूँ तुम्हें ऐसा रटाया गया है।
हर व्यक्ति का एक व्यक्तिगत परिवार है जिसके पालन का भार उस पर है जिसे न तो समाज करेगा और न ही विचारधारा फिर वो क्यों बंधा है कि जो पार्टी कहे संघठन कहे वही सर्वोपरि है, व्यक्ति को जीवन मिला है आभाव में क्यों जिए, यदि कोई अन्य आभाव दूर कर दे तो उससे समझौता क्यों नही। समझौते से किसी अन्य को हानि न हो बस। क्या हमारे आभाव में जीने से समाज को अपना शिर्षत्व मिल जाएगा यदि हां तो मैं आभाव में क्यों,और नही तो भी मैं आभाव में क्यों?
तो क्या मैं स्वार्थी हूँ-तो ऐसा कौन जो स्वार्थी नहीं
हर बार निचले कार्यकर्ता को ही क्यों पीसा जाता है शायद इसलिए कि वो हर बार समझौता करता है? अपनी जरूरतों का गलाघोटता है विचारधारा और पार्टी के नाम पर,
उसे कौन संभाले वो उसकी अपनी जिम्मेदारी है।
यदि है तो फिर समझौता ही नही किया जाना चाहिए। अपने हक के आगे कोई नही यदि हक विशुद्ध हो।