Premchand (Review) books and stories free download online pdf in Hindi

प्रेमचंद (समीक्षा)



"न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही
खिलौने हैं वह जैसे चाहे नचाती है।"

कोई भी साहित्यकार युगीन परिस्थितियों से निश्चित रूप से प्रभावित होता है ,लेकिन उसके व्यक्तिगत जीवन की घटनाएं भी उसके सहित्य पर अनजाने में ही अपनी प्रतिच्छाया डालती हैं जिस तरह प्रेमचंद का रहा है प्रेमचंद का निजी जीवन निरंतर संघर्षमय रहा है।
प्रेमचंद का जन्म एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में बनारस से 5 मील दूर लमही गांव में शनिवार 31 जुलाई 1880 को हुआ पिता अजायबलाल श्रीवास्तव जो डांक मुंशी थे। उन्होंने अपने पुत्र का नाम 'धनपतराय' रखा।
प्रेमचंद की माता का नाम आनंदी देवी था जो संग्रहणी की पुरानी मरीज थी। प्रेमचंद जब 8 वर्ष के थे, तब उनकी माता का देहांत हो गया था ।तथा उसके 2 वर्ष पश्चात उनके पिता ने पुनर्विवाह कर लिया इन सभी परिस्थितियों ने प्रेमचंद को जीवन के प्रति गहन सूझबूझ तथा विशिष्ट जीवन दृष्टि प्रदान की। इन प्रसंगों की स्पष्ट छाप प्रेमचंद की कहानियों एवं उनके उपन्यास में देखने को मिलती है।
प्रेमचंद यथार्थवादी कलाकार थे उनके कथा साहित्य में जनजीवन की खूबियां और खामियों के चित्रण से यह साफ जाहिर होता है ,कि उनको अपने समय और समाज की हर एक धड़कन की गहरी पहचान थी। यह उनकी रचनाओं में स्पष्ट झलकता है ।
'गोदान' उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में से एक है जो 1936 में प्रकाशित हुई। वे अपनी रचनाओं के नायक को अमीर या रहीस न दिखाकर के समाज के उस वर्ग को चुनते है जो सबसे ज्यादा संघर्ष मय रहा है जिस तरह ' गोदान ' में उन्होंने किसान समस्या को केंद्रित कर उन्होंने किसान जीवन की हरेक बारीकी को 'होरी' नाम के किसान के जीवन से स्पष्ट किया है , उसी तरह उनकी एक कहानी 'सद्गति' इसमे भी उन्होंने निम्न वर्ग की मजबूरी को स्पष्ट किया है जिसे पढ़कर पाठक की आत्मा तक सहम उठेगी। प्रेमचंद में अपने देश के गरीब, शोषित एवं पीड़ित लोगों के प्रति गहरी तड़प और सहानभूति दिखाई देती है, इसलिए उन्होंने अपने कथा साहित्य मैं अनेक वर्गों के पात्रों होने की पारस्परिक सामाजिक संबंधों को बेहद आत्मीयता के साथ दिखाया है प्रेमचंद की रूचि आम आदमी के सहज मनोविज्ञान में है, जिसे समझने के लिए ग्रंथों की नही परिपक्वता की आवश्यकता होती है। प्रेमचंद ने अपने सहित्य में 'दलित विमर्श' को विशेष आधार प्रदान किया है। अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि प्रेमचंद ने हिंदी , कहानी व उपन्यास की कर्मभूमि ही नहीं बदली बल्कि उनका काया कल्प भी कर दिया है। स्त्री, किसान , कमजोर वर्ग उनके सहित्य की प्रमुख चिंताए रही हैं।
प्रेमचंद ने ग्रामीण जीवन को जिया और उसे करीब से देखा भी । और शहरी जीवन का उन्हें अनुभव था। जिसकी बजह से समाज का कोई भी कोना उनकी रचनाओं में छूटा नहीं। इसलिए उन्हें कलम का सिपाई भी कहते हैं । उनके लेखन में सही तर्क और तथ्य के साथ - साथ प्रमाणिकता
भी स्पष्ट नज़र आती है।
प्रेमचंद का निधन - 8 अक्टूबर 1936 को सुबह 7बजे के आस पास प्रेमचंद जी ने अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया था।प्रेमचंद एक महान लेखक थे अतः वो अपनी रचनाओं में हमेशा सूरज की तरह चमकते रहेंगे।

'' खाने और सोने का नाम जीवन नही हैं , जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का। ''