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मेरी बेटी

चिराग और आशा ने एक ऐसे गरीब परिवार में जन्म लिया था, जहाँ पर लक्ष्मी जी का आशीर्वाद भले ही ना हो लेकिन माँ सरस्वती का आशीर्वाद उन्हें ज़रूर मिला था। यदि वे मेहनत करें तो लक्ष्मी जी का आशीर्वाद भी उनकी झोली से लेकर आ सकते थे। उनके पिता घनश्याम माली थे और एक बगीचे की देखरेख किया करते थे। उस बगीचे के सामने की सोसाइटी में अक्षय और अनामिका रहते थे। अक्षय नौकरी के साथ ही एक समाज सुधारक का काम भी करते थे। अनामिका एक स्कूल में टीचर थी। उनका बेटा था युवान जो अक्सर बगीचे में अपने दोस्तों के साथ खेलने जाया करता था।

चिराग उस बगीचे के माली का बेटा था, वह छः साल का था। एक दिन खेलते समय युवान बहुत ज़ोर से गिर गया। उसके दोस्तों का ध्यान नहीं था। सब पकड़ो-पकड़ो खेल रहे थे। तब चिराग दौड़ कर आया और युवान का हाथ पकड़ कर उसे उठने में मदद करते हुए पूछा, "तुम्हें कहीं ज़ोर की चोट तो नहीं लगी?"

युवान ने संभलते हुए कहा, "नहीं-नहीं" और उठ कर खड़ा हो गया।

युवान ने पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है?"

"मेरा नाम चिराग है। मेरे पापा यहाँ माली का काम करते हैं।"

"अच्छा थैंक यू"

"थैंक यू क्यों?"

"तुमने मेरी मदद जो की।"

उसके बाद चिराग रोज़ युवान को देखकर मुस्कुरा देता था। कभी-कभी उन दोनों की बात भी होने लगी थी। एक दिन युवान के दोस्त बगीचे में नहीं आए। युवान उस दिन अकेला था। तब उसने चिराग को देखा वह एक किताब लेकर कुछ पढ़ रहा था। युवान उसके पास गया और पूछा, "चिराग तुम कौन-सी कक्षा में पढ़ते हो?"

"मैं स्कूल नहीं जाता"

"अरे क्यों? स्कूल क्यों नहीं जाते?"

"अब जाऊँगा"

"तो तुम्हें अब तक पढ़ना, लिखना, गिनती कुछ नहीं आता?"

"गिनती और पहाड़ा आते हैं ना।"

"पर कैसे?"

"मेरे पापा ने दीपावली पर पटाखे लाने के लिए मुझे सौ रुपये दिए थे। तब मैंने पटाखे के साथ-साथ गिनती की किताब भी खरीदी थी। बस कोशिश करके, थोड़ा पापा से पूछ कर मैं सीख गया। मैं तुम्हें पहाड़ा सुनाऊँ?"

"हाँ सुनाओ"

चिराग ने युवान को ख़ुश होते हुए दो का पहाड़ा सुनाया।

"अरे वाह तुमने तो बिल्कुल सही बोला, चिराग क्या तुम्हें पढ़ते भी आता है?"

"नहीं, अभी नहीं आता। जब मेरे पापा मुझे स्कूल भेजेंगे तब सीख लूँगा।"

"मैं तुम्हें सिखाऊँ?"

"हाँ"

"अच्छा तो कल मैं तुम्हारे लिए स्लेट, क़लम और पुस्तक लेकर आऊँगा।"

"ठीक है युवान।"

युवान ने दूसरे दिन उसे स्लेट, क़लम लाकर दिया और उसे हिन्दी की पूरी वर्णमाला सिखाई।

इसके बाद युवान ने कहा, "इसे तुम अपने घर पर और पढ़ना। इन शब्दों को पहचानने लगोगे तब तुम्हें पढ़ना आ जाएगा और लिखने की प्रैक्टिस करोगे तो लिखना भी आ जाएगा।"

उसके बाद एक सप्ताह तक युवान बगीचे में नहीं आया। चिराग उसका रास्ता देखता रहता।

जब युवान बगीचे में आया तब चिराग दौड़ कर उसके पास आया और बोला, "ऐ युवान इतने दिन तक आया क्यों नहीं?"

युवान ने कहा, "स्कूल में टेस्ट था, उसकी तैयारी कर रहा था। चिराग तुम्हें वर्णमाला पूरी समझ में आ गई है। पहचान सकते हो अब सारे शब्द?"

"हाँ युवान सारे शब्द पहचान गया हूँ। तुम जो भी बोलोगे मैं तुम्हें लिख कर भी दिखाऊँगा।"

"अरे वाह तो तुमने लिखना भी सीख लिया इतनी जल्दी?"

"हाँ मुझे बहुत अच्छा लग रहा था वह सीख कर।"

इतने में युवान के दोस्त भी आ गए और एक ने कहा, "चल छोड़ ना यार युवान तू क्या यहाँ बगीचे में क्लास लगाकर बैठ गया है। चल खेलते हैं, तू कहाँ इसके साथ लगा हुआ है।"

"तुम चलो मैं आता हूँ," युवान ने कहा।

"अच्छा यह लो चिराग आज मैं तुम्हारे लिए यह पुस्तक भी लाया हूँ और उस स्लेट पर बिना देखे वर्णमाला लिख कर मुझे दिखाओ?"

"ठीक है," कह कर युवान के हाथ से ख़ुश होते हुए चिराग ने किताब ले ली। वह दौड़ता हुआ अपने कमरे में चला गया। युवान अपने दोस्तों के पास आ गया।

तब उसके एक दोस्त ने कहा, "युवान उसके साथ क्यों बात करता है तू? अपन यहाँ खेलने आते हैं। तू क्या उसे पढ़ाने चला गया था।"

"ऐसा क्यों बोल रहा है अरुण? गरीब है वह इसलिए ना? वह बहुत होशियार है। मैंने एक दो बार उसे वर्णमाला सिखाई थी। वह उसके बाद एक सप्ताह में ही पूरी वर्णमाला सीख गया।"

"ऐसे तो कितने गरीब बच्चे हैं युवान, क्या तू एक-एक को ऐसे ही सिखाने जाएगा?" कहकर युवान के सब दोस्त हँसने लगे।

"हँसो मत, इसके बदले तुम्हें यह कहना था कि चल एक-एक को हम भी लिखना पढ़ना सिखा देंगे, तब कोई बात होती पर तुम लोग तो . . . और जैसे तुम सब मेरे दोस्त हो वैसे ही चिराग भी मेरा दोस्त है। वह बहुत ज़्यादा अच्छा है।"

दूसरे एक हफ़्ते में युवान ने उसे ए बी सी डी भी सिखा दी। चिराग बहुत ख़ुश था।

आज युवान ने अपने घर जाकर उसके पापा को चिराग के बारे में सब कुछ बता दिया। उसके पापा अक्षय तो थे ही समाज सुधारक जो आदिवासी और पिछड़े तबके के लोगों के लिए हमेशा कुछ ना कुछ करते ही रहते थे। जैसा पिता होता है, उन्हीं के नक्शे कदम पर बेटा भी चलता है। इसलिए शायद युवान भी दयालु, सहिष्णु, मेहनती और बहुत ही अच्छा लड़का था।

युवान के पापा ने कहा, "यदि वह पढ़ना चाहता है और होशियार भी है तब तो हम उसे किसी स्कूल में पहली कक्षा में पढ़ने के लिए डाल सकते हैं। अभी नए सत्र के लिए तीन माह बाकी हैं। तब तक वह कुछ सीख ले तो उसे स्कूल में प्रवेश भी मिल जाएगा।"

"पापा मैं उसे पढ़ाऊँगा ना?"

"नहीं बेटा, इस काम के लिए तुम अभी बहुत छोटे हो। तुम बगीचे में खेलने जाते हो ना वह तुम्हारा शारीरिक व्यायाम है बेटा। वह भी बहुत ज़रूरी होता है। तुम्हें उस समय केवल खेल पर ही ध्यान देना चाहिए।"

"पर पापा फिर उसे लिखना पढ़ना कौन सिखाएगा?"

"उसे एक घंटे के लिए अपने घर बुला लो। तुम्हारी मम्मी जब ट्यूशन में दूसरे बच्चों को पढ़ाती हैं वैसे ही उसे भी पढ़ा देंगी।"

"लेकिन पापा उसके पास इतने पैसे . . . "

"अरे युवान पैसे नहीं चाहिए बेटा।"

युवान ख़ुश हो गया और अगले ही दिन बगीचे में जाकर उसने चिराग से कहा, " चिराग कल से तुम मेरे घर पढ़ने के लिए आ जाना। मेरी मम्मी तुम्हें पढ़ायेंगी। "

"लेकिन युवान मेरे पापा के पास इतने पैसे नहीं हैं।"

"चिंता मत करो चिराग, वह पैसे भी नहीं लेंगी।"

चिराग ख़ुश होकर दौड़ता हुआ अपने कमरे में गया और अपने पिता से बोला, "बापू वह मेरा दोस्त है ना युवान। कल से उसकी मम्मी मुझे भी पढ़ायेंगी। मैं कल से उसके घर जाऊँ?"

"नहीं बेटा उनकी फीस . . . "

"नहीं बापू उन्हें पैसे नहीं चाहिए।"

"बेटा वहाँ सब बड़े घर के बहुत होशियार बच्चे आते होंगे। उनके बीच में तुम क्या करोगे।"

चिराग उदास हो गया। उसने वापस आकर युवान से कहा, "युवान मेरे पापा ने मना कर दिया। वह कह रहे थे बड़े-बड़े घर के होशियार बच्चों के बीच तू क्या करेगा?"

यह बात युवान ने घर जाकर अपने पापा को बताई।

अक्षय ने कहा, " कोई बात नहीं, कल मैं भी तुम्हारे साथ बगीचे में चलूंगा और उसके पापा को समझा लूँगा। "

दूसरे दिन शाम को अक्षय और अनामिका दोनों बगीचे में गए। चिराग के पिता को उन्होंने समझाते हुए कहा, "आप भेजिए चिराग को, डरने की कोई बात नहीं है। सब बच्चे उसे भी अपना दोस्त ही मानेंगे।"

"नहीं साहब यहाँ शाम को बहुत से बच्चे खेलने आते हैं। कितने ही बच्चों की माँ उन्हें हमारे बच्चों के साथ खेलने के लिए मना कर देती हैं। मैंने कितनी ही बार सुना भी है और देखा भी है।"

"अरे सब लोग ऐसे नहीं होते। आपका बच्चा होनहार है, उसे पढ़ने का मौका ज़रूर मिलना चाहिए।"

"ठीक है साहब, आपकी मेहरबानी।"

चिराग पढ़ाई करने युवान के घर आये उससे पहले ही अनामिका ने उसके पास आने वाले बच्चों को समझाते हुए कहा, " बच्चों हमारे साथ एक नया बच्चा पढ़ने के लिए आने वाला है। उसका नाम है चिराग। तुम सब उसके साथ अच्छा व्यवहार करोगे। उससे दोस्ती भी करोगे समझे।"

"अपनी टीचर की बात मानकर बच्चों ने चिराग से दोस्ती कर ली और वह रोज़ अनामिका से पढ़ने के लिए आने लग गया।"

लेकिन दो-तीन बहुत ही बड़े घर के लड़के अनामिका के पीठ पीछे हमेशा चिराग का मजाक उड़ाया करते थे। एक दिन एक लड़के ने कहा, " ऐ राहुल देख इसे अपने पापा का माली का काम पसंद नहीं है। अब यह शायद डॉक्टर बनेगा।"

यह सुनकर उसके दोस्त हँसने लगे लेकिन चिराग उदास हो गया। उसने यह बात किसी को भी नहीं बताई।

अनामिका ने जब उसे पढ़ाना शुरू किया तो उसे भी पता चला कि चिराग तो काफी होशियार है। सब कुछ जल्दी सीख लेता है और उसमें पढ़ाई के प्रति रुचि भी बहुत ज़्यादा है।

एक दिन युवान ने अपने दोस्त विवेक और राहुल को चिराग का मज़ाक उड़ाते हुए सुन लिया। उसने अपनी मम्मी को यह बात बताई तब उन्होंने कहा, "चिंता मत करो युवान थोड़े ही दिन की बात है।"

युवान और उसके दोस्त अभी तीसरी कक्षा में थे। एक दिन अनामिका ने गणित का टेस्ट लिया जिसमें चिराग को भी बिठाया। अनामिका जानती थी कि चिराग यह सारे प्रश्न हल कर लेगा।

टेस्ट होने के बाद जब अनामिका ने कॉपी चेक करी तब विवेक और राहुल से ज़्यादा अच्छे नंबर चिराग के आए थे। अनामिका ने क्लास में कहा, "देखो बच्चों चिराग तुम सबसे छोटा है लेकिन उसकी मेहनत, पढ़ाई में रूचि और उसकी लगन का यह नतीजा है कि आज वह विवेक और राहुल से भी ज़्यादा नंबर लाया है। मुझे लगता है विवेक और राहुल की पढ़ाई में ज़्यादा रुचि नहीं है। चिराग को तो मैंने यह सिखाया ही नहीं था। तुम्हें सिखाते वक़्त वह अपने आप ही सीख गया। इसे कहते हैं रुचि लेना।"

अभी नया सत्र शुरू होने में दो-तीन माह का समय था। तब तक अनामिका ने उसे इतना सिखा दिया कि उसे आसानी से सीधे पहली कक्षा में ही क्या तीसरी में भी प्रवेश मिल सकता था।

एक दिन अनामिका ने अपने पति से कहा, "अक्षय चिराग को देखकर ऐसा लगता है कि उसी की तरह कितने ही होशियार बच्चे हमारे देश में होंगे ना, जिन्हें पढ़ाई करने का अवसर ही नहीं मिल पाता। कभी माँ-बाप पढ़ाना ही नहीं चाहते और कभी हालात उन्हें पढ़ने नहीं देते। लेकिन आज हमारे युवान की वज़ह से चिराग को एक मौका मिल गया। देखना इसका फायदा वह ज़रूर उठाएगा।"

स्कूल खुलते ही चिराग के बापू ने उसे सरकारी स्कूल में पहली कक्षा में प्रवेश दिला दिया।

एक दिन अनामिका ने चिराग से पूछा, "चिराग तुम्हारे घर में और कौन-कौन है बेटा?"

"आंटी मेरी बहन और माँ-बापू।"

"तुम्हारी बहन तुमसे कितनी छोटी है?"

"छोटी नहीं आंटी वह मुझ से दो साल बड़ी है।"

"तो वह स्कूल जाती है या नहीं।"

"नहीं वह तो अम्मा के साथ बंगले जाती है काम पर। अम्मा बर्तन करती हैं तो वह उन्हें पोछने में मदद करती है।"

अनामिका सोच रही थी आठ-नौ साल की छोटी सी बच्ची काम में मदद करने जाती है। वह बहुत दुःखी हो गई।

अनामिका एक दिन चिराग की मम्मी से मिलने गई और उसने कहा, "आप की एक बेटी भी है ना?"

"हाँ आशा नाम है उसका।"

"आप चिराग के साथ उसे भी मेरे घर पढ़ने क्यों नहीं भेज देतीं? मैं उसे भी पढ़ा दूँगी।"

"नहीं मैडम वह क्या करेगी पढ़ लिख कर? नौ साल की हो गई है। घर का काम काज सीख ले, उतना ही काफी है फिर तो हाथ पीले कर देंगे। अपनी ससुराल जाकर चूल्हा चौका ही तो संभालना है उसे।"

"अरे आप पहले से ही ऐसा क्यों मानती हैं कि चूल्हा चौका ही तो संभालना है। उसे पढ़ा लिखा कर पहले कुछ बनने दो। हो सकता है वह टीचर बन जाए या फिर कुछ और . . . !"

"नहीं-नहीं मैडम आप रहने दो। हमारी बच्ची ऐसे ही ठीक है।"

अनामिका के लाख समझाने के बाद भी चिराग की अम्मा नहीं मानी। आख़िरकार अनामिका दुःखी होकर वहाँ से वापस लौट आई।

लेकिन अपने भाई को पढ़ता देखकर आशा के मन में भी पढ़ाई करने की लालसा उत्पन्न होने लगी। एक दिन उसने अपनी माँ से कहा, "अम्मा आप मुझे प्यार नहीं करते ना?"

"अरी ऐसा काहे को बोल रही है? इतना प्यार तो करते हैं तुझे।"

"नहीं अम्मा आप चिराग को स्कूल भेज रहे हो लेकिन मुझे नहीं, आख़िर क्यों? इसीलिए ना कि मेरी शादी करके मुझे तो आप और कहीं भेज दोगे लेकिन चिराग तो तुम्हारे ही पास रहेगा ना। वह नौकरी करेगा अच्छी वाली और मैं जीवन भर किसी के घर काम वाली बाई बनकर ही रह जाऊँगी। यदि मुझे भी पढ़ाते तो मैं भी टीचर बन जाती। मैं भी पैसे कमाती फिर मुझे आपकी तरह किसी के घर कचरा बर्तन करने तो नहीं जाना पड़ता ना? आप लोग बहुत बुरे हैं," कहते हुए आशा रोने लगी।

आशा की बातें उसकी अम्मा और पलंग पर लेटे बापू के सीने को छलनी कर गई। उन्हें लगा बिटिया ने क्या ग़लत बोला। सच ही तो बोल रही है। आशा की अम्मा तुरंत ही उठी और बाहर की तरफ जाने लगी।

"अरे लक्ष्मी कहां जा रही हो?" आशा के बापू ने पूछा।

"अभी आती हूँ फिर बताऊँगी," कहते हुए लक्ष्मी सीधे अनामिका के घर पहुँच गई और दरवाज़ा खटखटाया।

अनामिका बच्चों को पढ़ा रही थी। उसे देखते ही अनामिका ने कहा, "अरे आप आओ-आओ लक्ष्मी।"

वह अंदर आई और अनामिका से बोली, "आप मेरी बेटी को भी पढ़ाओगी क्या मैडम जी?"

अनामिका दंग रह गई, उसने कहा, "हाँ-हाँ बिल्कुल पढ़ाऊँगी लेकिन अचानक कल तो तुमने मना कर दिया था।"

"हाँ मैडम जी, आपके जाने के बाद आशा ने कहा . . .।"

"क्या कहा उसने?"

"उसने कहा कि आप लोग मुझे प्यार नहीं करते केवल चिराग को करते हैं। मुझे ब्याह कर कहीं भेज दोगे और मैं भी तुम्हारी तरह जीवन भर किसी के घर काम वाली बाई बनकर काम करती रहूँगी। मैडम जी उसने जो शब्द कहे उन शब्दों में सच्चाई ही तो थी। मैं उसे अपनी तरह काम वाली बाई नहीं बनाना चाहती। क्या आप उसे . . ."

"हाँ-हाँ लक्ष्मी चिंता मत करो। मैं उसे ज़रूर पढ़ाऊँगी। हम थोड़ा लेट ज़रूर हो गए हैं लेकिन इतने भी नहीं कि वह पढ़ ना सके।"

अनामिका के हाँ बोलने के बाद लक्ष्मी अपने घर गई और आशा से कहा, "आशा अब कल से तू भी मैडम जी के पास पढ़ने जाएगी। फिर वह तुझे सिखाने के बाद चिराग की ही तरह स्कूल में भी डलवा देंगी। चिराग की ही तरह तुझे भी जितना पढ़ना हो उतना पढ़ना। मैं तेरा ब्याह भी जल्दी नहीं करुँगी। अब तो मेरी बेटी भी पढ़ेगी लिखेगी और आगे बढ़ेगी। मैं मेरी बेटी को काम वाली बाई बिल्कुल नहीं बनने दूँगी।"

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)

स्वरचित और मौलिक