Ek bund Ishq - 14 books and stories free download online pdf in Hindi

एक बूंद इश्क - 14

१४.दही हांडी



दही हांडी फोड़ कर जन्माष्टमी मनाने का वक्त हों गया था। सब लोग बाहर आ गए। रुद्र के दोस्त, रुद्र और आसपास के लड़के मिलकर दही हांडी फोड़ने वाले थे। बाहर आते ही सब घेरा बनाकर दही हांडी फोड़ने की मेहनत करने लगे। घर के सभी लोग सब को चियर अप कर रहे थें। अपर्णा दादाजी के पास खड़ी मुस्कुराते हुए रुद्र को देखें जा रही थी। रुद्र का ध्यान भी उसी तरफ था। इस चक्कर में उसकी वज़ह से एक बार तो सब लोग गिर गए।
"बरखुरदार! पहले दही हांडी फोड़ लिजिए। नैना बाद में लड़ा लेना।" विक्रम ने रुद्र को छेड़ते हुए कहा।
रुद्र ने उसे आंखें दिखाई और वापस से सब मिलकर घेरा बनाने लगे। इस बार रुद्र ने सब से ऊपर पहुंचकर दही हांडी फोड़ ही दी। सब तालियां बजाने लगे। लेकिन रूद्र का ध्यान तो अपर्णा की ओर ही था। जो रुद्र ने दही हांडी फोड़ दी। इस वज़ह से खिलखिलाकर हंस रही थी। आज़ बहुत सालों बाद वह सब के साथ मिलकर इस तरह से त्योहार मना रही थी। इसलिए काफी खुश थी। रुद्र भी उसे देखकर खुश हो रहा था।
दही हांडी फोड़ने के बाद सावित्री जी ने सब को मक्खन और लड्डु का प्रसाद बांटा। फिर सब खाना खाने के लिए अंदर आ गए। रुद्र के कपड़े दही वाले हो गए थे। इसलिए वह नहाने के लिए अपने कमरे की ओर चल दिया। अंदर आकर सब लोग अपर्णा से बातें करने में व्यस्त हो गए। दादाजी और अपर्णा के दादाजी की दोस्ती को हर कोई जानता था। इसलिए सब अपर्णा से मिलकर खुश थे। लेकिन रणजीत जी किसी सोच में डूबे थे।
सब लोग अपर्णा को घेरकर बैठे थे। उस वक्त रुद्र नहाकर नीचे आया। उसने अपर्णा को अपने परिवार के साथ ऐसे बातें करता और खुश देखा तो उसके चेहरे पर लंबी मुस्कान तैर गई। जब दादाजी ने उसे ऐसे मुस्कुराते हुए देखा तो उसके पास आकर उसके कंधे पर हाथ रखकर कहने लगे, "अपर्णा बिटिया के साथ मैंने ज्यादा वक्त नहीं बिताया। जब ये दो साल की थी। तब इसे आखरी बार देखा था। उसके बाद आज़ देख रहा हूं। लेकिन पता नहीं इसकी आंखें देखकर मुझे ऐसा लगा कि मैं इसे पहले से जानता हूं। मेरा इससे कोई गहरा नाता है। फिर इसने बताया ये मोहन की पोती है तो मैं सब समझ गया। इसकी आंखें बिल्कुल मोहन जैसी है। गहरी और मोहक! जो भी देखे बस देखता ही रहे।"
"सच कहा आपने दादाजी, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था।" रुद्र ने खोए हुए स्वर में कहा।
"क्या कहा तुमने?" दादाजी की कुछ समझ नहीं आया तो उन्होंने पूछा।
"क क कुछ नहीं।" रुद्र ने कहा।
"एक बात पूछूं? सच सच बताएगा?" दादाजी ने पूछा।
"पूछिए ना दादाजी।" रुद्र ने कहा। उसका ध्यान अभी भी अपर्णा पर ही था।
"तुझे अपर्णा कैसी लगती है?" दादाजी ने पूछा।
"क्या कहा आपने दादाजी? फिर से कहिए जरा।" रुद्र जैसे नींद से जागा हो ऐसे बर्ताव करने लगा।
"मैंने पूछा अपर्णा तुम्हें कैसी लगती है?" दादाजी ने शब्दों को अलग-अलग करके कहा।
"मुझे तो पहले ही दिन से अच्छी लगती है। लेकिन मैंने एक बहुत बड़ा कांड कर दिया है।" रुद्र के चेहरे पर खुशी और दुःख दोनों के मिले-जुले भाव दिखने लगे।
"क्या मतलब?" दादाजी ने हैरानी से पूछा। तो रुद्र ने उन्हें बनारस, ट्रेन और ऑफिस में जो हुआ। वो सब बता दिया। सब सुनकर दादाजी हंसने लगे।
"आप ऐसे क्यूं हंस रहें हैं? मैंने कोई जोक थोड़ी ना सुनाया है।" रुद्र ने मासूम सी शक्ल बनाकर कहा।
"अरे बेटा! तुने बात ही ऐसी कही कि खुद को हंसने से रोक नहीं पाया। लेकिन जानकर अच्छा लगा कि अपर्णा की आंखें ही नहीं उसका स्वभाव, बातें सब मेरे दोस्त के जैसा है। ये जानकर खुशी हुई कि उसमें एक भी बात अपने मम्मी-पापा जैसी नहीं है। बस काम अपनी माँ की तरह करती है। जो भी काम हो शिद्दत से करना ये उसकी माँ के खून में था।" दादाजी ने कहा।
"तो अब मैं क्या करूं? आपने तो जैसा कहा था। बिल्कुल वैसा ही हो रहा है। मुझे आखिर ऐसी लड़की मिल ही गई जिसे मैं तो पसंद करता हूं। लेकिन वो मुझे पसंद नहीं करती।" रुद्र ने मुंह लटकाकर कहा।
"तुझे पता है, मैं उसे सोने की चेन देकर क्यूं आया था?" दादाजी ने जैसे वो जादू की छड़ी घुमाकर सब ठीक कर देनेवाले हो इस तरह पूछा।
"नहीं, लेकिन इसमें सोने की चेन कहा बीच में आ गई?" रुद्र ने चिढ़कर कहा।
"क्यूंकि वो ही असली राज़ है। जब तुम्हारी माँ पेट से थी। उसके दो महिनों बाद मुझे मोहन का फोन आया था। उसने मुझे कहा कि उसकी बड़ी बहू भी पेट से है। मोहन की इच्छा थी कि उसे बेटी ही चाहिए। फिर सात महिनों बाद हमारे घर तुम्हारा जन्म हुआ। तभी हम दोनों ने तय किया था कि अगर उसके घर बेटी हुई। तो वहीं हमारे घर की बहू बनेगी। मोहन ने भी खुशी-खुशी हामी भर दी और वाकई में उसके घर बेटी हुई। लेकिन मोहन को कहां पता था कि उस बेटी को इतने दुःख सहने पड़ेंगे। लेकिन मैं अपनी इच्छा पर अटल था। इसलिए जब मैं मोहन के घर से आया तब उसकी चाची को चेन देकर आया था। ये चेन उसी रिश्ते के सगुन के तौर पर दी हुई चेन है। जो अभी अपर्णा ने पहन रखी है।" दादाजी ने पूरी कहानी बताते हुए कहा।
"इसका मतलब अपर्णा सालों से मेरी ही है।" रुद्र ने खुश होकर कहा।
"हां, लेकिन मैं उसे ये सब नहीं बताऊंगा। वो तुम्हे पसंद करें। इसके लिए तुम्हें खुद मेहनत करनी होगी। उसने बहुत दुःख सहे है। अगर तू उसे खुशियां देने में कामयाब हुआ। तो ही अपर्णा से तेरी शादी होगी।" दादाजी ने कहा।
"तो फिर तय रहा दादाजी! आज़ से मेरी ख्वाहिशों की लिस्ट में मैं अपर्णा का नाम भी जोड़ देता हूं। वो मुझे पसंद करें या ना करे। लेकिन मैं उसे वो सारी खुशियां दूंगा। जो वो पहले से डिजर्व करती है।" रूद्र ने दादाजी के दोनों हाथ थामकर कहा। रुद्र के मुंह से ये सब सुनकर दादाजी को बहुत खुशी हुई।


(क्रमशः)

_सुजल पटेल