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अम्मा ! मैंने झूठ बोल दिया

उमा जानकीरामन के तमिल कहानी का अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा

अलार्म जोर से बजा तो उसे बंद कर, ज्योति करवट लेकर लेट गई। पता नहीं क्यों आज बिस्तर से उठने का मन नहीं हो रहा था।

कल रात अनु बिना सोए यहां- वहाँ भागती रही। जब वह सोने आई तब शेखर ने ‘सिर दर्द’ का कारण बता कर काफी की फरमाइश की। सबको निपटा कर सोने जाते-जाते साढें ग्यारह से भी ज्यादा समय हो गया था।

दूसरी बार शेखर का अलार्म बज कर बंद हुआ।

इसके बाद लेटना नहीं हो सकता सोच ज्योति चादर हटाकर उठकर बैठी। दूध का पैकेट जो बाहर रखा था उसे उठा कर लाई व गरम किया व काफी के फिल्टर में पानी डाला। चपाती का आटा लगाया तो समय सात से ऊपर हो चुका था।

अनु के स्कूल की वैन ठीक आठ बजे आ जाती है। बाहर जाकर तैयार खड़े न रहें तो हार्न बजाता रहेगा। अनु को पसंद है इसीलिए ज्याति छोटे-छोटे एप्पल कल दुकान से ले आई थी। उसे ब्रेक के समय अनु शौक से खायेगी। कुकर चढ़ा कर अनु को उठाने गई।

अनु,.... अनु बेटा, उठ जा रे, अनु पलंग के कोने में उलटी लेटी सिमटी हुई पड़ी थी। ज्योति ने उसके पास जाकर उठाने का प्रयत्न किया।

उसे डर लगा, क्यों कि अनु का शरीर तप रहा था। कल तक बिना किसी समस्या के बच्ची खेल ही तो रही थी ? थर्मामीटर लेने कमरे में गई तो वहां शेखर पेपर पढ़ता हुआ दिखा। ‘‘अनु को बुखार है। डॉक्टर के पास जाना ही पडे़गा’’

‘‘उसके लिए क्या करना है ?’’ ऊँची आवाज में शेखर के पूछते ही वह समझ गई कि वह अपने को बचाने का एक साधन ढू़ंढ रहा है।

‘‘आज मैं छुट्टी नहीं ले सकती। पिछली बार तुम्हारी उमा आई थी तो दो दिन मैंने छुट्टी ली। मेरा प्रोजेक्ट पूरा होने को है। आज मुझे जाना ही पड़ेगा प्लीस समझो।’’

‘‘मुझसे भी नहीं होगा ज्योति। मैनेजर से बात कर, कुछ कर लो।’’ कह कर बात खतम कर शेखर चला गया।

‘‘अम्मा ......अम्मा’’ कहते हुए अनु आवाज देती हुई पलंग पर उठ बैठी । ‘‘तुम्हें बुखार है बेटी। आज तुम स्कूल मत जाओ।’’  ‘‘फिर तुम ?’’

‘‘मैं भी नहीं जाऊँगी । आज मैं पूरे दिन अपनी लाडली के साथ ही रहूंगी ।’’ कह कर ज्याति ने अनु को गले लगाया । अनु अपने को सुरक्षित पा हसँने लगी । अनु एल.के.जी. में पढती है। बारह बजे स्कूल छूटते ही वैन ड्राइवर उस ले जाकर किडस् केयर  सेन्टर में उतार देता है। ज्योति को इल्ट्रानिक सिटी से अपने घर पहुंचने में रात के आठ बज जाते हैं।

शेखर बैंक में नौकरी करता है अतः कभी कभी अपने काम को खतम कर अनु को लेकर आ जाता है। अधिकतर तो ज्योति के आफिस से घर आने तक तो अनु सो जाती है।

‘‘अम्मा, अम्मा बोल रही थी |’’ शेखर के ऐसा बोलते ही ज्योति अपने को दोषी मान कर पछताने लगती।

‘‘कुछ खाया था क्या ?’’ ‘‘हुंम.... ब्रेड रखा था उसे मक्खन लगाकर दे दिया।’’

‘सैंडविच बना कर दे देते ! बच्ची को बहुत पसंद है।’ बोलने का मन करता पर मुश्किल से दबा मौन रहती।

कहीं की बात कहीं जाकर खतम होगी ऐसा सोच कर वह मौन ही रहती।

डॉक्टर नंदिनी के क्लिनिक में भीड़ कुछ ज्यादा ही थी। बारह नम्बर का टोकन उसे मिला था। अनु उसकी गोद में सो गई थी। बीच में मैनेजर ने एक बार फोन किया। वह अपनी बच्ची के बारे में विस्तार से बताने लगी तो बीच में ही ‘ओ.के सी यू टुमॅारो’ कह कर फोन रख दिया था।

क्लिनिक में बहुत से लोग खांस रहे थे।

बगल में बैठी औरत ने इसको देखकर पूछा ‘एक ही लड़की है क्या ? ज्योति ने कहा- हाँ।  इस एक लड़की को देखने में ही इतनी तकलीफ उठानी पड़ रही है।

दो साल तक तो उसे देखने कभी अम्मा कभी सास आकर रहीं थीं। बीच बीच में बच्चे को देखने के लिए एजेन्सी से लड़कियां, बुजुर्ग आकर जान ही ले लेते थे।

एक लड़की से बच्ची अच्छी तरह हिल-मिल जाती तो दूसरे दिन दूसरे नए चेहरे को देख बच्ची जोर से चिल्लाती।

दो साल के बाद पता नहीं कितनी ही घटनायें घटती चली गई। यूनिफॅार्म पहन कर स्कूल जाने को तैयार हो गई बच्ची।

स्कूल जाना शुरू होते ही नई-नई समस्यायें, लड़ाई, स्कूल जाकर मुरझाई सी आती बच्ची को देख मन बहुत दुखी होता है।

‘‘ये कैसी नौकरी है ?’’ ये सोच असंतुष्टि होती है।

नौ बजे घर वापस आने पर कितनी ही थकावट हो फिर भी बच्ची ‘अम्मा’ कह कर भाग कर आकर गोदी में चढ़े तो बच्ची को झटक कर दूर नहीं कर सकते हैं। इतनी बड़ी बच्ची को गोदी में लेकर ही ज्योति कुकर रख कर सांभार बनाती है। वैसे ही कटोरी में डाल कर  स्वयं भी खाती है। अप्पा लोग ऐसे नहीं हैं। शेखर भी अनु को थोड़ी देर ही देखते है फिर बोलते है- ‘देख तेरी लड़की बहुत तंग कर रही है।’

‘टोकन नः 12’ आवाज सुन अनु के साथ उठ कर ज्योति गई।

डॉक्टर ने ‘वाईरल ‘इन्फेक्शन’ कह कर दवाई, गोलियां लिख कर दीं। ऑटो पकड़ कर घर आकर पहुंचते पहुंचते एक बजे से अधिक समय हो गया है।

‘कामवाली बाई आ कर चली गई होगी क्या ?’ इस फिक्र के साथ दरवाजा खोला।

‘‘अम्मा कार्टून नेट वर्क चलाओ ना” अनु के बोलते ही उसने चैनल चला कर उसे दवा दी। अन्दर आकर स्वयं काफी बना कर पीने लगी तो खिड़की से वसन्ती काम वाली बाई का चेहरा देखते ही उसे ऐसा लगा मानो देवी साक्षात सामने आकर खड़ी हो गई हो।

‘‘अम्मा तुम भी मेरे साथ आकर टी. वी. देखो ना।’’ बच्ची के बुलाते ही उसके पास बैठ कर टी.वी. देखने लगी फिर पूजा के आले की सफाई की।

रोज जल्दी-जल्दी खाना बनाना पड़ता है अतः किराने के सामान वैसे ही पेकेट में ही खुले पड़े हुए थे, सबको उठा कर डब्बों में बंद कर रखा।

बीच-बीच में जाकर अनु को छू-छू कर देखा। कल शेखर छुट्टी लेगा क्या ! ये फिक्र रह-रह कर उसके मन को परेशान कर रही थी।

पिछली बार में ऐसे ही दूसरा उपाय न होने से थोड़ा सा बुखार था तो कॉलपॉल सिरप देकर भेज दिया था। सात बजे अनु को फिर लेकर आते समय शरीर आग जैसे तप रहा था। बेसुध पड़ी बच्ची को कंधे पर उठा कर लाते समय सोचा नौकरी छोड़ दूं। पर तुरन्त नौकरी को लात मार नहीं सकते हैं।

दो जनों की नौकरी की वजह से ही जो सोचते है उसे खरीदने में सक्षम हैं।

अभी जिस मकान में रह रहें हैं वह छोटा है, थोड़ा बड़ा मकान बुक किया है उसके लोन के पैसे जमा करने पड़ते हैं। दूसरे दिन सुबह अनु का बुखार कम न हुआ, तो हमेशा की तरह शेखर ने छुट्टी न ली। ऑफिस को फोन कर ज्योति ने एक साथ दो दिन की छुट्टी ले ली व उसके बदले शनि व इतवार को पूरे दो दिन काम करके उस प्रोजेक्ट को पूरा करने का वायदा किया।

उस दिन कॉम्पलेक्स के अन्दर पार्क में जाने के लिए अनु जिद करने लगी तो ज्योति उसे लेकर वहां गई।

‘‘अम्मा ये सब मेरे वैन के दोस्त है’’ बोली अनु। अनु ने जहां हाथ से इशारा किया वहां बहुत से बच्चे खेल रहे थे। तरह-तरह के बच्चों के चेहरे, उनकी तोतली आवाजें व शब्द मन को सन्तुष्ट कर रहे थे। ‘अम्मा ये सब रोज यहां आकर खेलते है।’ अनु की आवाज में एक उदासी थी। जिसने ज्योति के मन को परेशान किया।

तीसरे दिन अनु का बुखार उतर गया।

ज्योति ने अनु की दो चोटियां बना उसमें फूल लगाये। अनु शीशे में दोनों तरफ मुड़-मुड़ कर अपनी चोटियों को देख खुशी से अपनी अम्मा के गले लगी। फिर देानों बालकनी में गेंद खेलने लगे। अनु तुतला कर बच्चों के जैसे कुछ-कुछ कहती रही। जब शेखर आफिस से लौटा ‘‘वाह ! मेरी लाडली का बुखार उतर गया’’ कह कर उसे गोदी में उठा कर चलने लगा तो उसे कुछ नया-नया लगा।

तीन दिन बाद ऑफिस जाने के कारण बहुत सा काम इसका इन्तजार कर रहा होगा। दूध गरम कर, हॅारलिक्स डाल अनु को उठाने की सोची  तो पीछे छाया दिखी, मुडकर देखा अनु है ! अनु को हॅारलिक्स दिया। उसी समय मुझे याद आया कि वैधिस्वरन मन्दिर का प्रसाद उसके अप्पा ने अभिषेक करवा कर भभूति भेजी थी।

‘‘अनु भगवान के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर भभूति को लगाने से, अब तुम्हें बुखार ही नहीं आयेगा। ज्योति अनु के पास आकर उसके माथे में भभूति लगाने लगी तो अनु ने आँखें बंद कर ली। फिर बोली ‘‘प्रार्थना कर ली’’ आँखें खोल कर हंसने लगी।

अनु का बुखार ठीक हुआ तो ज्योति ने राहत की सांस ली। ब्रेड को निकाल कर टोस्टर में डालने लगी तो अनु ने पीछे से आकर ज्योति के साड़ी के पल्ले को खींचा। हिचकिचाते हुए बोली-अम्मा।  ज्याति ने पूछा ‘‘क्या बात है बेटा ?’’

‘‘अम्मा ! मैंने आपसे झूठ बोला।’’

‘‘क्या कह रही हो !’’

‘‘अम्मा ! भगवान से मैंने ठीक होने की नहीं बल्कि बीमार रहने के लिए प्रार्थना की थी।’’

‘‘पर क्यों ?’’

‘‘तभी तो तुम हमेशा मेरे साथ रहोगी !’’ इन शब्दों को सुन भ्रमित होकर खड़ी रही ज्योति। कुछ समय पहले किसी पत्रिका में पढ़ी हुर्ह एक कविता उसको याद आई।

जिस नन्हें होने का किया नौ माह इन्तज़ार,

आज उसे पा, माँ हो गई निहाल।

नन्हें की मोहक मुस्कान ने दिया सारा दर्द बिसार।

जी भर कर प्यार किया, देख-देख हुई निहाल।

खिल उठा रोम-रोम, बुने सपने हजार।

पूरा करने सपनों को, उतरना पड़ता है कठोर धरती पर,

कमाना पड़ता है पैसा, औरों के लिए घोटना पड़ता है गला ममता का।

करना पड़ता है जिगर के टुकड़े को खुद से अलग,

छोड़नी पड़ती हैं वो प्यारी खुशियाँ खुद को करना पड़ा है लाल से दूर।

ये माँ कितनी है मजबूर-मजबूर-मजबूर।“

उमा जानकीरामन के तमिल कहानी का अनुवाद एस. भाग्यम शर्मा

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