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राहगीर

तमिल कहानी उमा जानकीरामण द्वारा लिखी व एस.भाग्यम शर्मा द्वारा अनूदित

वेंकटशन मदुराई में उतर कर, दो घण्टे बस में सफर कर तूतूकुडी में आकर उतरे। उनका मन व शरीर दोनों इस शहर की मिट्टी में पैर रखते ही कांप सा गये। तीन साल पहले जो घटना घटी थी उस कारण से, यहां से जाने के बाद, उनका मन बहुत दुखी है। पहले तो वे चारू को देखने जब-तब कांचीपुरम से रवाना होकर आ जाते। एक पीले थैले में शर्ट व धोती, दूसरे थैले में बहुत सी मिठाईयां, फूल आदि के साथ चारू के घर के सामने आकर खड़े होते।

चारू जो अन्दर काम कर रही होती इनको देखते ही साड़ी के पल्ले से हाथ पोछती हुई भाग कर आती। उसका उत्साह व खुशी  से स्वागत करती। उसकी आँखों को देख कर ही उनकी यात्रा से हुई पूरी थकावट दूर हो जाती। उनके दामाद का काम तूतूकुड़ी के बंदरगाह में हिसाब लिखने का है।

हमेशा नमकीन हवा लगते रहने के कारण ही शायद उनकी बातों में हमेशा चिड़चिड़ापन, गुस्सा व तेजी मिली रहती है।

उस छः फुट ऊँचे, गंभीर व सुन्दर नाक-नक्षे वाले सुदर्शन नवयुवक को देख ‘मेरा दामाद’ कहने में उन्हें बहुत खुशी होती थी।

पर थोड़ा-थेाड़ा कर जब उसका असली रूप सामने आया तो मन पीड़ा से भर उठा। चारू तो उस पर अपार प्रेम लुटाती थी। लड़कियां अपने होने वाले पति के लिए थोड़ा-थोडा कर प्रेम, प्यार को इकट्टा कर रखती हैं। चारू मेरा पति कह बड़े गर्व से उसके पीछे-पीछे भागती फिरती है, पर दामाद शंकर उसे कोई महत्व नहीं देता। इसके बावजूद अपने पति पर प्यार लुटाने में चारू ने कोई कमी नहीं छोड़ी। यदि वेंकटेशन उसकी कोई बुराई करें या गलती बताए तो वह बोलती ‘‘ऐसी बात नहीं है अप्पा। सभी एक समान हो तो जीवन का क्या अर्थ है ?’’

उसकी पसंद का ध्यान रख कर उसके हिसाब से चपाती व भुर्ता बना कर रखती।

‘‘मैं खाना बाहर ही खाकर आया हूं।’’ वह ऐसा बोल चला जाता तो वेंकटेशन को बहुत गुस्सा आता।

‘‘उससे तू पूछ तो सही क्यो ऐसा किया ?’’

‘‘जाने दो अप्पा। ऑफिस में जाने कितना काम करना होता है। घर पर हम और टेन्शन दें। चपाती तो कल काम में आ जाएगी।’’ ऐसे भुनभुनाते हुये उसे ढ़क कर रख देती।

मौसी की लड़की की शादी के लिये खुशी-खुशी वह पति के साथ आई थी। रिश्तेदार सब बड़े प्रेम से मिलकर बातचीत कर रहें थे। सब उसके आने से प्रसन्न थे।

जैसे ही नाश्ता करने बैठे वैसे ही अचानक जाने के लिये तैयार हो गया शंकर। चारू बोली ‘‘ठहर कर चलेगे।’’

‘‘अरे !’’ उसको जोर से गर्जन-तर्जन के साथ चिल्लाते देख चारु डर कर खड़ी हो गई ।

ये ही नहीं छोटे-मोटे जाने कितनी वेदनाएं व पीड़ायें उसे भुगतनी पड़ी थी।

चारू ने बहुत सी परेशानियों व पीड़ाओ को जो न कह सकने वाली हैं को अपने मन के अंदर ही बंद कर रखा हुआ था।

समय के साथ-साथ चारू दुबली होकर दिन प्रतिदिन कमजोर होती गई।

वेंकटेशन को सन्देह होता तो वह अपने अप्पा से कहती कि ‘‘मैं व्रत रख रही हूं।’’

‘‘क्यों’’

‘‘मेरे पति के लिए।’’

वेंकटेशन को लगता ‘‘क्या वह इसके इस प्यार के लायक है !’’ वे सोच में पड़ जाते।

एक बार बिना बोले अचानक तूतूकुड़ी जा पहुंचे तो, चारू की आँखें, चेहरा सूजा हुआ देख अप्पा को संदेह हुआ कि कहीं उसने हाथ तो नहीं उठाया ! चारू से पूछा और उसके मना करने पर भी उन्होंने महसूस किया कि वह झूठ बोल रही है।

चारू को बुखार आया। अचानक उसका बुखार तेज हो जाता व उसका शरीर कांपता। उसकी भूख बिलकुल मर गई। जैसे ही वेंकटेशन को पता चला वे वहां पहुंच गये। चारू को बहुत सी गोलियां व दवाईयां दी। डॉक्टरों ने कई नई-नई बिमारियों के नाम भी बताये । इन सब परेशानियों के साथ एक साल रह फिर इन्हें अनाथ बना चली गई।

चारू के मरते ही उसी दिन रात को बस से वेंकटेशन एक थैला लेकर रवाना हो गये। काशी, रामेशवरम इस तरह पता नहीं कहां-कहां दूर-दूर घूम फिर कर बाहर का खाना खाते परदेशी जैसे अपने जीवन को बिताया ............

एक हफ्ते पहले ही कांचीपुरम आये। आते ही उन्हें पता चला कि शंकर ने दूसरी शादी कर ली है।

खबर सुनते ही उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया।

चारू को कष्ट न हो सोच कर ही उनके पास जो छोटा सा खेत था उसे बेच कर एक नई कॉलोनी में एक छोटा सा घर पुत्री चारू के लिये लेकर दिया था।

वह मकान उनके ही नाम पर ही था।

पहले तूतूकुडी जाकर उन दम्पति को उस घर से निकालना ही होगा। ऐसी बात सोच कर वेंकटेशन तुरन्त वहां से रवाना हो गये। गणेश मन्दिर की गली में घुसते ही उनका मन वेदनाओं से भर गया। आखिर में इस गली से ही चारू को चार लोग कंधे पर उठा कर ले गये थे।

अचानक वर्षा की बूंदे शुरू हो गई। उन्होंने सोचा तेज-तेज चलकर मकान में पहुंच जायेगे। इतने में बरसात तड़ातड़ तेजी से शुरू हो गई।

ये लाल ग्रिल वाला मकान ही उनका है। उस दिन भी ऐसे ही बरसात में उस ग्रिल को पकड़ कर रो रहें थे। वहां बाहर आकर बड़े संकोच से खड़े हुए थे।

‘‘अन्दर आईये ना !’’

‘‘अंघेरा होने लगा है।’’ वह लड़की बगल से आई।

‘‘वो ....... वो ........ ’’

‘‘कुछ न बोलो जी ! बारिश भयंकर हो रही है। पहले अन्दर आईये।’’

अन्दर जाकर बाहर के पैड़ी पर बैठते ही, उनके लिये टोवल लाकर दी। उसे वंकटेशन ने व्यंग्य से देखा।

‘‘नहीं चाहिए बेटी।’’

‘‘अरे पहले सिर को पोछिये। अब तो अचानक कभी भी बरसात होने लगती है। कभी भी बाहर निकलो तो छाता रखना जरूरी हो गया है।’’

बात करते हुए अन्दर जाकर लाइट जला आई।

‘‘आप कहां। से आ रहे हैं ?’’

‘‘मदुराई से बेटा।’’

“आप अन्दर आकर बैठिये। वर्षा की बौछार यहां भी आ रही है।’’

‘‘रहने दो ठीक हूं।’’

‘‘अरे ! आईये भी इसमें क्या संकोच।’’

दूसरा उपाय न देख अन्दर जाकर बेंत की कुर्सी पर बैठ गये।

‘‘तुम्हारा पति कब आयेगा ?’’

‘‘एक घण्टा और बाकी है उनके आने में।’’

वेंकटेशन ने हिसाब लगाया कि अब इस एक घण्टे के अन्दर  इससे अपना परिचय करवाना पडे़गा और घर के बारे में भी बताना ही पडेगा। मैं कैसे शुरू करूं ! उनके मन में लम्बी योजनाये चल रही थी। इतने में वह लड़की चाय लेकर आ गई।

‘‘अदरक डाल कर चाय बना कर लाई हूं। ठण्ड़ में फायदा करेगी। लीजियेगा।’’

‘‘तुम कहां की रहने वाली हो ?’’

‘‘कुभकोणम की हूं। पिता छोटी उम्र मे ही चले गये।’’

‘‘मेरी अम्मा ने ही बड़े कष्ट व दुख उठा कर मुझे पाल-पोस कर बड़ा किया। घर में रूपये पैसों की हमेंशा तंगी रहती थी। इसी लिये तो मुझे इस आदमी से शादी कराई। इनकी पहले शादी हो चुकी थी पर पत्नी मर गई। अतः बिना ज्यादा खर्च किये ये शादी हो गई।’’

बिना कुछ बात छिपाये सच बात बता दी। उसके भोलेपन ने उन्हें व्यथित किया। वे परेशान भी हुए यह सोचकर कि इस लड़की ने अभावों में बहुत तकलीफ पाई है। मेरी लड़की चारू अपनी अम्मा को खो कर बहुत कष्ट पाई और इस लड़की ने अपने अप्पा को खोकर कष्ट उठाया है।

‘‘तुम्हारा पति कैसा है बेटी ?’’

अभी तो बहुत अच्छे जैसे ही हैं। पहली पत्नी के साथ तो ये ठीक नहीं थे। बहुत गुस्सा करते थे। हाथ में जो होता उस पर गुस्से में फेंक देंते। इनकी पहली पत्नी इनसे बहुत प्रेम करती थी। ये कहते है ‘‘वह मुझे बहुत चाहती थी पर मैंने उसके प्रेम को कभी नहीं समझा व पत्थर बना रहा ।’’ ऐसा ये बार-बार कहते हैं। वह औरत जाते जाते इनके अवगुणों को निकाल कर चली गई।’’

‘‘ऐसी बात है क्या !’’

‘‘जी हां। उसके जाने के बाद ही ये बुरे आदमी से अच्छे आदमी बने। ऐसा ही किस्मत में लिखा था अतः ये मेरे पति बने।’’ वह बातें करती गई। वेंकटेशन ने घर में चारो तरफ अपनी निगाहें दौड़ाई। वे सोच रहे कि इस झूले पर बैठ कर उन्होंने व चारू ने कितनी ही बातें की है।

पीछे की तरफ जो बगीचा दिखाई दे रही है उसमें आम के व नारियल के जो पौधे चारू ने लगाये थे, अब वे बड़े पेड़ बन गये है। जिससे वहां चारों तरफ हरियाली छाई है। वह तो चली गई पर उसकी निशानी पूरे घर में व्याप्त है।

वह अपने अच्छे गुणों को अपनी निशानी बना अपने पति को देकर चली गई क्या ? ये लड़की तीन माह की गर्भवती है। ये भी इसने मुझे बता दिया।

मैं मकान खाली कराऊँ और इन्हें एकदम से मकान न मिले तो इन्हें बहुत कष्ट होगा। वैसे शंकर इतना किराया देकर इसे आराम से रख सकता है क्या ?

किसी अन्य की लड़की के लिये मैं क्यों फिकर करूं ? ये दोनों विचार उसे साथ-साथ आये। ये लड़की भी मेरी चारू जैसे ही है। कितने ही सपने देख दूसरी पत्नी बन कर आई। पहली पत्नी उसके पति को सुधार कर गई इस बात को वह रास्ते चलते एक राहगीर को संध्या के समय बिना किसी छल कपट के बता रही है .........

बाहर बरसात खत्म हो गई। आसमान साफ नजर आया।

‘‘मैं चलता हूं बेटी।’’ वेंकटेशन उठने लगे। बाहर आते समय मोगरे के फूल की खुशबू से उनका मन भर गया उन्हें ऐसा लगा।

वह लड़की पीछे-पीछे आई। ‘‘आप अपना नाम बताये बिना ही जा रहे हैं ?’’

‘‘मुझे एक राहगीर समझो।’’ कह कर वेंकटेशन ने चलना शुरू किया।

राहगीर वैसे ही चला जाये तो ही अच्छा है। गली के नुक्कड़ पर पता नहीं क्यों मुड़ कर देखा अभी भी वह लड़की वहीं बाहर खड़ी उन्हें देख हाथ हिला रही थी।

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तमिल कहानी उमा जानकीरामण द्वारा लिखी व एस.भाग्यम शर्मा द्वारा अनूदित |

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