Pal Pal Dil ke Paas - 2 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पल पल दिल के पास - 2

पल पल दिल के पास - 2

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उस दिन के बाद किसी भी तरह नियति को तलाशना मेरे जीवन का मकसद बन गया। हर महीने मैं हैदराबाद आता और जहां भी उम्मीद होती, लगभग हर संभावित जगह नियति को तलाशता। समय बीतता जा रहा था पर नियति तो क्या उसकी परछाई भी नही मिल पा रही थी।

मैं परेशान हो एक पल के लिए भी नियति को नहीं भूल पाता । मेरी तलाश चलती रही , समय ना किसी के लिए रुका है न रुका। पर समय के साथ मेरे दिल में नियति की यादें धूमिल होने की बजाय गहरे तक घर कर गई। भले ही नियति ने अपना कोई भी पदचिन्ह न छोड़ा हो। खुद को दूर से मिलने का कोई माध्यम नही छोड़ा हो, परंतु मेरा मन ये मानने को तैयार नही था की नियति से उसका रिश्ता बस दो पल का ही था।

धीरे धीरे कर के पूरा एक वर्ष बीत गया।

मैं एक मल्टी नेशनल कंपनी का लीगल एडवाइजर था। जहां कही भी कोई केस होता मुझे उसी जगह पैरवी के लिए जाना पड़ता। ऐसे ही एक केस के सिलसिले में मुझे दिल्ली जाना पड़ा दिल्ली में काफी समय लग गया मुझे केस को सुलझाने में। केस में कोई दम नहीं था, कंपनी ने सिर्फ अपना नुकसान कम से कम हो इस लिए मुझे ये काम सौंपा था।पर मैंने पूरी बाजी ही पलट दी । ना सिर्फ जालसाजी से मुआवजा वसूलने की दूसरी पार्टी के मनसूबे को विफल किया। अपनी कंपनी पर लगा दाग भी धो दिया। कंपनी मेरी कार्यकुशलता से इतनी प्रभावित हुई की मुझे दिल्ली में ही प्रमोशन दे कर रोक लिया। मैंने यही अपनी मां को भी बुला लिया। एक छोटा मगर सुसज्जित सा फ्लैट ले लिया जिसमे मां बेटा रहने लगे। मां को नियति के बारे में पहले तो मैंने नही बताया था, पर जब मां ने शादी की जिद्द ही पकड़ ली तब उसे सब कुछ बताया नियति के बारे में। मां ये सब जानकर बहुत दुखी हुई। उस समय तो कुछ नहीं कहा । उन्हे पता था की समय हर जख्म को भर देता है। मैं भी कुछ समय बाद सब कुछ भूल जाऊंगा। जब भी मैं हैदराबाद जाता मेरी आंखो में उम्मीद की किरण देख मां मुझे समझती, "बेटा अगर उसे तुझसे रिश्ता रखना ही होता तो क्या इस तरह से बिना एक बार भी मिले या बिना फोन नंबर दिए चली जाती। तू भूल जा सब कुछ एक सपना समझ कर। इतने बड़े हैदराबाद शहर में तू कहां ढूढता फिरेगा? जिंदगी में आगे बढ़। मैं कब तक जिऊंगी ? मेरे बाद कोई तो होना चाहिए इस दुनिया में तेरा।" पर मुझ पर मां की बातों का कोई असर नही होता। उसकी मिलने की उम्मीद जरा सी भी धूमिल नही होती। बल्कि और भी पक्का हो जाता नियति को ढूंढने का निश्चय।

मैं मां के गालों को सहलाते हुए कहता , "मां आप चिंता मत करो, मैं अकेला नही रहूंगा । मां ! अगर सच में मैने दिल की गहराईयों से नियति को चाहा है तो जैसे वो हवा के शीतल झोंको की तरह मुझसे मिली थी, 

उसी तरह फिर मुझे मिल जायेगी।

मां की तो पूरी दुनिया ही मुझ पर टिकी थी। वो मुझे हताश, निराश नही देख सकती थी। बिना कुछ कहे मंद मंद मुस्काती हुई सर हिलाती और मेरे यकीन पर अपना भी यकीन जाहिर करती।

नियति की जिंदगी जो रेगिस्तान के वीराने से भी ज्यादा वीरान थी, कुछ पल के लिए ही सही लेकिन उसकी जिंदगी मुस्कुराई थी। पर वो अपनी बदकिस्मती की छाया प्रणय पर नही डालना चाहती थी। इस कारण नियति ने बात शुरू होने से पहले ही खत्म करने का फैसला किया।

नियति के पिता की मृत्यु तभी हो गई थी जब वो मात्र दो वर्ष की थी। जब नियति की मां को ससुराल में हक और सम्मान ना मिला तो मजबूर हो कर मायके चली आई थी। मायके में भी रिटायर पिता, मां और दो भाई भाभी थे। तंगी अपना साथ बड़ी ही वफादारी से निभाती थी। पर नियति के मां की आंखो में नियति के लिए अलग ही सपने थे। वो नही चाहती थी की जो कुछ उनके साथ हुआ ऐसा कुछ उनके बेटी के साथ भी हो । वो नियति को एक आधार देना चाहती थी। वो अपने पैरो पर खड़ी हो। किसी की आश्रित ना हो। इसके लिए पैसों की जो कमी हो रही थी वो अब खत्म हो गई। नियति ने बीए फाइनल ईयर के साथ ही एमबीए का इंट्रेंस भी तैयारी करके दिया। परिणाम अभी आने ही वाला था की उसके पहले ही साथ पढ़ने वाले मयंक के घर से रिश्ता आ गया। मयंक बेहद संस्कारी बड़े घर का बेटा था। उसकी मां ने पहले तो बेटे की पसंद जानकर खूब हाय तौबा मचाई पर जब बेटा टस से मस नहीं हुआ अपने निश्चय से तो इकलौते बेटे की खुशी की खातिर झुक गई। मयंक जो नियति की खूबसूरती और भोलेपन पर फिदा था। बिना उससे कोई बात किए अपनी पढ़ाई पूरी होने का इंतजार किया । फिर उसके बाद हमेशा हमेशा के लिए उसे अपना बनाने की पहल को। वो अपने इकलौते बेटे की शादी किसी रईस घर की बेटी से करना चाहती थी। पर उनकी ये मंशा मयंक की वजह से पूरी नही हुई । पर इसकी जिम्मेदार वो मयंक की बजाय नियति और उसकी खूबसूरती को मानती थी। मयंक की मां नीना देवी बेमन से ही सही बेटे के लिए रिश्ता लेकर गईं। मयंक के घर में उसके पिता की कुछ वर्ष पहले ही बीमारी से मौत हुई थी। मां नीना देवी कम पढ़ी लिखी भले ही थी, लेकिन पति का साथ छूटने से पहले इतना कारोबार संभालना सीख लिया कि जब तक मयंक की पढ़ाई पूरी ना हो जाए तब तक वो काम चलाऊ इसे संभाल सके। बेसमय पति के विछोह ने जरूरत से ज्यादा कठोर बना दिया था। अपने कारोबार और चल अचल संपत्ति की रक्षा के लिए वो हमेशा ही सख्त रुख अपनाए रहती। पर बेटा मयंक के लिए वो मक्खन सी मुलायम हो जाती। इसी वजह से वो नियति के रिश्ते के लिए मान गई थीं।

नियति के नानाजी और मां ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की इतने बड़े घर से नियति के लिए रिश्ता आ जायेगा। उन्होंने इस रिश्ते के लिए हां करने में अपना सौभाग्य समझा। नियति की मां और नाना जी ने जहां जहां से भी संभव था रुपए का इंतजाम कर, मयंक के परिवार के हैसियत के मुताबिक शादी की तैयारी की। शीघ्र ही मयंक बड़े धूम धाम से बारात लेकर आया और नियति को दुल्हन बना कर अपने घर ले आया।

ससुराल आकर नियति कुछ दिन तो बड़ी ही असहज रही। उसके और मयंक के परिवार के रहन सहन में जमीन आसमान का अंतर था। परंतु मयंक के सहयोग से नियति ने सब कुछ जल्दी ही सीख लिया। नियति की सास नहीं चाहती थी की वो अपनी एमबीए की पढ़ाई पूरी करे । परंतु मयंक वाकिफ था की नियति ने कितनी मेहनत से ये परीक्षा पास की है। उसकी मेहनत वो जाया नही होने देने चाहता था। अपनी मां और परिवार वालों के विरोध के बावजूद उसने नियति की पढ़ाई नही रुकने दी। नियति की जिंदगी में खुशियां ही खुशियां छा गई थी। मयंक जैसा जीवन साथी मिलना नियति का सौभाग्य था। सास के ताने और जली कटी बातें उसे जरा भी दुख नही पहुंचती। मयंक के साथ के सहारे वो हर ताने का हंस कर सामना करती। इसी बीच नियति और मयंक की जिंदगी में एक नई खुशी ने दस्तक दी । नियति मां बनने वाली थी। इस खुशखबरी से सिर्फ मयंक और नियति ही नही बल्कि पूरा परिवार खुशी से झूम उठा । नीना देवी का व्यवहार भी इस खुशखबरी को सुन कर नियति के प्रति बदल गया। वो भी नियति का खयाल रखने लगी। दादी बनने की खुशी का वो बेसब्री से इंतजार करने लगी। नियति को वो खुद कॉलेज अपने साथ कॉलेज ले कर जाती, और क्लास के बीच बीच में कुछ न कुछ खिलाती पिलाती रहती। इतना प्यार देकर नियति निहाल हो जाती। जो एक जरा सी कमी थी वो भी भगवान ने पूरी कर दी थी।

शादी के ठीक एक वर्ष बाद नियति ने फूल सी कोमल, परियों सी सुंदर बच्ची को जन्म दिया। मयंक तो ऑफिस से आने ओर जाने के पहले और बाद का समय बच्ची के देख भाल में ही बिताता। बच्ची का नाम प्यार से मिनी रक्खा गया। मिनी में पूरे घर की जान बसती थी। एक महीने बाद ही नियति की सेमेस्टर परीक्षाएं होने लगी। बच्ची को सास के देख भाल में छोड़ वो अपनी पढ़ाई में जुट गई।

समय थोड़ा आगे बीता। नियति की आखरी सेमेस्टर की परीक्षा खत्म हुई। उसने चैन की सास ली की अब पढ़ाई खत्म हुई। अगले हफ्ते ही मिनी का पहला बर्थडे था। बड़े जोर शोर से तैयारियां चल रही थी। मयंक ने बहुत बड़ी, बेहद शानदार पार्टी रक्खी थी। ढेर सारे मेहमानों को पार्टी में आमंत्रित किया गया था। नियति की सास सभी मेहमानों की आगवानी बड़े ही उल्लास से कर रही थी। कुछ करीबी रिश्तेदार दो तीन दिन पहले ही आ गए थे। जिनमें मयंक की बुआ फूफा, मौसी मौसा, ताई जी ताऊ जी आदि शामिल थे।सारी तैयारियां हो चुकी थी, बस केक ही नहीं आया था। नियति ने स्पेशल अपनी नियति और मिनी की फोटो वाली केक बनवाई थी। उसे आने में देर हो रही थी। सास नियति पर गुस्सा होना शुरू कर दिया और बोली, " अरे! नियति तूने किस जगह केक का ऑर्डर दे दिया जो अभी तक नहीं आया। जा... जरा ड्राइवर के साथ जा कर पता कर क्यूं नहीं आया?"

नियति "जी मम्मी जी " कहती हुई बाहर गाड़ी की ओर बड़ी।

बाहर गाड़ी के पास आकर देखा तो ड्राइवर नदारत था। शायद वो भी अंदर पार्टी की तैयारियों में सहयोग कर रहा था। वो उलझन में खड़ी थी की क्या करे?

मां को डांटते हुए मयंक ने सुना था। नियति को बाहर निकलते हुए भी मयंक ने देख लिया था। इस लिए पीछे पीछे वो भी आ गया नियति को परेशान देख बोला, " तुम परेशान मत हो , मै चल रहा हु देखता हूं अभी तक केक लेकर क्यो नही आया। "इतना कह कर मयंक ने गाड़ी का दरवाजा खोला और ड्राइविंग सीट पर बैठ गया। नियति भी साथ बैठ गई । मयंक ने गाड़ी केक के दुकान की ओर घुमा दी।

आगे के भाग में पढ़े क्या हुआ जब नियति और मयंक केक लेने पहुंचे? अभी तक केक लेकर क्यो नही आया था? आगे क्या हुआ जो नियति जिंदगी की राह में अकेली रह गई?

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Qwerty

Qwerty 3 months ago

Neelam Mishra

Neelam Mishra 6 months ago

Rita Mishra

Rita Mishra 6 months ago

very nice story..

Shaurya Pandey

Shaurya Pandey 10 months ago

Ramesh Pandey

Ramesh Pandey 11 months ago