Pal Pal Dil ke Paas - 6 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पल पल दिल के पास - 6

पल पल दिल के पास - 6

भाग 6

तुम बिन कैसे जिऊं?

अभी तक की कहानी में आपने पढ़ा, मयंक की मृत्य के बाद नियति की मां उसे लेकर उसके ससुराल आतीं है। वहां पहुंच कर नीता मौसी उसे बताती है की मयंक उससे दूर जा चुका है। नियति को देखते ही नीना देवी आपे से बाहर हो जाती है, और उससे चले जाने को कहती है। पर नीता अपनी बहन को ऊंच नीच समझती है। समाज और रिश्तेदारों के सामने इज्जत की दुहाई देती है। और मयंक की तेरहवीं तक नियति को रुकने देने की विनती करती है। उसके समझाने से नीना देवी मान जाती है। पर सख्त हिदायत के साथ की उनके सामने नियति न पड़े।

अब आगे पढें।

मिनी को सीने से लगा नियति ने जी भर रो कर अपना पहाड़ सा दुख थोड़ा सा हल्का किया। मिनी नानी से कुछ हिल मिल गई थी अब। मां को देख मिनी बहुत खुश थी। कुछ देर मिनी नानी के पास रहती तो फिर तुरंत ही नियति के गोद में चढ़ जाती। बाल सुलभ चंचलता देख नियति का अपने गम से राहत महसूस हो रही थी। मिनी सोकर उठी थी कुछ खाई नही थी। इस कारण भूख लगने पर रोने लगी। शांता ने उसका रोना सुना तो उसके लिए दलिया ले कर आई। नियति की मां ने उसे खिलाने की कोशिश की पर नटखट मिनी बार बार मुंह फेर लेती। हार कर वो नियति से बोली, "ले बेटा तू ही इसे खिला दे .. देख तो कैसे शैतानी कर रही है ।" कह कर कटोरी नियति के हाथ में पकड़ा दी उन्होंने। वो कोशिश करती तो उनके हाथ से मिनी खा सकती थी। पर वो नियति का ध्यान भी मिनी पर ही केंद्रित करना चाहती थी । इस कारण ज्यादा प्रयास नहीं किया। अभी नियति मिनी को पूरी दलिया खिला भी नही पाई थी कि नीना और नीता नीचे हॉल में आ गई।

नीना ने जोर से आवाज लगाई, "शांता.. ओ शांता... मिनी कहां है?" नीना की आवाज सुन शांता तेज कदमों से नीना के पास आई। आते हुए उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। जब से मयंक भैया गए थे तब से उसने नीना का नियति के प्रति व्यवहार में जमीन आसमान का अंतर आते देखा था। नीना के तेज स्वर से रूष्टता साफ झलक रही थी। उसे ऐसा लग रहा था कि कहीं मिनी को नियति के पास दे देने से नीना नाराज ना हो जाए।

शांता नीना के पास गई और बोली, "जी … दीदी वो मिनी बेबी बहू रानी के पास है।"

जैसा अनुमान था नीना का वही हुआ। गुस्सैल तो नीना पहले भी थी, लेकिन जब से मयंक का घर बस गया था और मिनी जैसी प्यारी पोती उसके आशियाने में आ गई थी। उसका स्वभाव कुछ बदल सा गया था। जब तक कोई बड़ी बात ना हो वो गुस्सा नहीं होती थी। पर मयंक के जाने के बाद तो जैसे उसे सारी दुनिया ही दुश्मन लगने लगी थी। हर एक बात पर चिढ़ी सी रहती, बिना वजह सभी पे नाराज होती रहती। शांता के मुंह से बहू

रानी सुनते ही आपे से बाहर होने लगीं, सीधा नियती

को कुछ न कहते हुए बोली, "मैं जरा देर आराम करने क्या चली गई… तू उसे संभाल नहीं सकी! नहीं... कर सकती हो तो बोल दिया होता मैं अपने साथ उसे ले जाती। इतने समय से काम करते करते तेरा दिमाग खराब हो गया है!" शांता चुप चाप खड़ी सुनती रही। उसे पता था कि एक मां के गोद से सुरक्षित स्थान बच्चे के लिए कोई नही होता। उसने नियति के पास ही तो मिनी को छोड़ा था। इसमें कुछ भी गलत नहीं किया था। पर नीना की मनोदशा वो समझ रही थी। इकलौता बेटा खोया था उन्होंने इस कारण उनकी मनःस्थिति का खयाल कर वो नीना की हर नाराजगी को अनदेखा कर देती थी। इस कारण चुप रहना ही उचित समझा।

नीना बोली, "अब खड़ी क्यों है?.. जा मिनी को ले कर आ।"

"हां दीदी अभी ले आती हूं।"कह कर शांता जाने लगी।

अभी कुछ ही कदम चल पाई थी शांता कि नीना उठ कर खड़ी हो गई बोली, "अच्छा तू रहने दे मैं खुद ही ले आती हूं।"

नीना का मिनी को लेने जाने के पीछे एक मकसद था, वो नियति को हिदायत दे देना चाहती थी जो वो सोच चुकी थी। नीता के आगे पीछे समझाने पर वो नियति को रहने दे रही थी, पर आगे वो उसे नहीं घर में बर्दाश्त नहीं करेंगी। अपना फैसला वो नियति पर जाहिर कर देना चाहती थीं। नीना नियति के कमरे में पहुंची, देखा तो नियति के गोद में बैठी मिनी दलिया खाने के बाद सीने से ऐसे चिपकी थी जैसे उसे डर हो की कही फिर ना उसकी मां उससे दूर हो जाए। पास ही बैठी नियति की मां अपनी बेटी और नातिन को निहार रही थीं, और मन ही मन सोच रही थी, समय ने ये कैसा खेल खेला ? जो अबोध बच्ची कुछ समझ भी नही पाई की उसने क्या खो दिया है….?

ऐसे ही नियति ने एक दिन अपने पिता को खोया था।

मिनी जब बड़ी होगी तो कोई भी पिता की याद उसके दिल में नही होगी। उसे लाड करने वाला पिता उससे बहुत दूर चला गया है। जहां से कोई वापस लौट कर नहीं आता। इन सब बातों से परे मिनी मां से लिपटी प्यार जता रही थी।

नीना जैसे ही नियति के कमरे में पहुंची, मिनी को नियति से लिपटे देखा। साथ ही पास बैठी नियति की मां पर भी नजर गई। वो झटके से नियति के पास गई और मिनी को बल पूर्वक नियति से अलग कर अपनी गोद में ले लिया। अचानक सास को सामने देख नियति कुछ समझ नहीं पाई। वो खुद को नियंत्रित कर सास के गले लग कर अपने दर्द का गुबार निकालना चाहती थी।

उठ कर जैसे ही नीना के गले लगना चाहा, उसे नीना ने परे धकेल दिया। क्रोधित स्वर में बोली, "दूर रह मुझसे…

मेरे बेटे को मार कर चैन नहीं आया जो वापस लौट आई।"

नियति तो खुद ही इतनी दुखी थी सास की कड़वी बातें उसे और भी दुखी कर रही थी। वो बोली, "मम्मी जी मैने क्या किया? आपने ही तो मुझे केक लाने भेजा था। मुझे किसी ने मयंक का चेहरा भी आखिरी बार दिखाना उचित नहीं समझा!"

दहाड़ते हुए नीना बोली, "तेरी क्या गलती बताऊं तुझे? तेरी सबसे बड़ी गलती है, मैने तुझे अकेले जाने को बोला था। तू मयंक को क्यों साथ ले गई ..? ना तू उसे ले कर जाती … ना ये एक्सीडेंट होता होता, ना मेरा बेटा मुझे छोड़ कर इस दुनिया से जाता!"

"पर मम्मी जी मैं अकेले ही जा रही थी वो ड्राइवर नही दिख रहा था तो मयंक खुद ही मेरे साथ चले गए थे। मैने तो मना किया था।" नियति बोली।

"हां ... हां...तू तो मना ही करती थी अपने पीछे आने से ! वो ही बावला था जो तेरे पीछे पीछे घूमता रहता था।

अपने रूपजाल में फसा कर शादी कर ली, और अब उसे खा गई। तूने तो कुछ किया ही नही..!" नीना आखें तरेरते हुए बोली।

नियति एक तो अभी एक्सीडेंट से पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी, उस पर ये कड़वी बातें उसके दिल के टुकड़े टुकड़े कर रही थी। वो चुप चाप खड़ी सारे आक्षेप सुन कर खून के आंसू रो रही थी।

फिर नीना नियति की मां से बोली, "मुझे आपकी बेटी से कोई सरोकार नही है। वो तो मैं मयंक की खुशी की खातिर इससे शादी करने की इजाजत दे दी थी। उसकी इच्छा को टाल नहीं सकी। मयंक की खातिर इसे स्वीकारा था, और अब जब वो चला गया तो इसकी भी जरूरत मुझे नहीं है। ये तो नीता के कहने पर मैं इसे मयंक की तेरहवीं तक इसे रुकने दे रही हूं। उसके बाद कृपा कर के आप अपनी बेटी को यहां से ले जाएं। मुझे इस बारे में और कोई बात नहीं करनी। मिनी मेरे बेटे का अंश है इस लिए इसे मैं अपने साथ रखूंगी।"

इस तरह झटके से मां से अलग होकर और दादी की तेज आवाज सुनकर मिनी डर गई और रोने लगी। उसे कंधे से लगा कर नीना चुप कराने लगी। बाहर जाते हुए फिर बोली, "आराम से चली जाओगी तो हर महीने तुम्हारा खर्च पहुंचवाती रहूंगी, नहीं तो धक्के मार कर बाहर निकाल दूंगी।" तल्ख स्वर में बोल कर नीना मिनी को लेकर चली गई।

नियति सास की बाते सुन वही धम्म से बैठ गई। उसे चारो ओर अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था।क्या मयंक तक ही उसका अस्तित्व इस घर में था? क्या वो इस घर की कुछ भी नहीं..? वो तो अपना सब कुछ इस घर परिवार पर निछावर कर चुकी थी…! कभी सास को मां से कम नहीं समझा…! मां ने ये सीख दे कर विदा किया था की "बेटी अब तेरे पति का घर ही तेरा घर है। तेरी डोली जहा जा रही है उसी घर से तेरी अर्थी भी उठनी चाहिए।" उसने भी मां की सीख गांठ बांध ली थी। पर अब वो इसी घर से बाहर निकाली जा रही। है। वो कैसे इस घर को छोड़ कर जा पाएगी? हर कोने में उसके और मयंक के सुखी जीवन की यादें बसी है। कम से कम इस घर में मयंक की यादे ही उसके जीने का सहारा बनेंगी। पर मम्मी जी उससे ये सहारा भी छीन लेना चाहती हैं।

नियति की मां उसके पास आई और उसे समझाते हुए बोली, "बेटा तू दुखी मत हो इस वक्त उनका जख्म ताजा है इस कारण वो ऐसा बोल रही है। बाद में समय के साथ सब ठीक हो जायेगा।"

नियति जो चुप चाप बैठी सोच रही थी, दर्द में डूबे स्वर में बोली, "नहीं ...मां … जिस घर को अपना सब कुछ समझा, जिस परिवार को अपना सब कुछ समझा…

जब वही मेरे अस्तित्व को नकार रहा है तो उस घर में रह कर मैं क्या करूंगी ….? मां क्या करूंगी उस घर में रह कर…! जिस घर के लोग की आंखो में मैं खटकने लगी हूं अब । मैं अधिकार नहीं प्यार की खातिर यहां थी। अब जब मैं यहां स्वीकार्य नही तो मैं यहां नहीं रहूंगी।"

वो मां से सवाल कर रही थी कि "क्या पति के जाते ही उससे जुड़े रिश्ते भी पराए हो जाते है? जो मम्मी जी मयंक के सामने मेरी हर छोटी बड़ी खुशी की परवाह करती थी, उसके जाते ही मैं उन्हें सबसे बड़ी दुश्मन क्यों नजर आने लगी।" अनेक सवाल थे नियति के पर उसकी मां के पास उनका कोई जवाब नही था। क्या कहती वो ऐसा ही कुछ तो वो भी भोग चुकी थी थी। ये तो लगभग पूरे समाज की विधवा स्त्रियों का दर्द था। विरले ही कोई ऐसा अपवाद दिखता होगा जहां पति के जाने के बाद पत्नी को ससुराल में पूरा सम्मान मिला हो। नियति की मद्धिम आवाज जैसे कोसो दूर से आ रही हो।

ऐसे ही ख्याल उनके मन में उमड़ घुमड़ रहे थे कि नियति की मां के मुंह से अनायास ही निकल गया, "पर बेटी तू जायेगी कहां?"

नियति को ऐसा लगा कि मां को लग रहा वो उनके साथ तो कहीं नहीं रहेगी! शायद वो भी उसके रहने से घबराती हो! नियति को अब तक मां का सहारा अपना मजबूत स्तंभ लग रहा था, सिर्फ एक वाक्य से ही वो धराशाई हो गया। मां से ऐसे वक्त में इस वाक्य की अपेक्षा नहीं की थी उसने। वो बोली, "चिंता मत करो मां मैं तुम पर भी बोझ नहीं बनूंगी । मैं अपना और अपनी मिनी का भरण पोषण खुद कर सकती हूं।"मां से हाथ छुड़ा वो बुदबुदाती हुई, "मां तुम चिंता मत करो… मां तुम चिंता मत करो…" कहती हुई बिस्तर में जाकर निढाल सी पड़ गई।

नियति की मां अपनी जबान को कोस रही थी कि कैसे उनके मुंह से ये शब्द निकल गया..? वो ग्लानि से कुछ नहीं समझ पा रही थी कि कैसे वो नियति की समझाए कि उनके कहने का ये मतलब नहीं था। इकलौती औलाद भी कहीं बोझ हो सकती है अपनी मां पर..! नियति के पिता के जाने के बाद वो उसी को देखकर तो जी रही थी। बेटी की खुशी ही उनके जीने का मकसद था। पर वो कहते है ना की हाथ से फेका हुआ पत्थर और जबान से निकली बात वापस नहीं हो सकती। अब वो सिवाय अफसोस के कुछ नहीं कर सकती थी।

क्या नीना मिनी को उसकी मां से अलग करने में कामयाब होगी? नियति आगे क्या फैसला लेगी? क्या वो मयंक के घर में ही रहेगी या अपनी मां के साथ मायके चली जायेगी? या अकेले ही अपने जीवन को खुद के दम पर गुजारेगी? पढ़िए पल पल दिल के पास के अगले भाग में।

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Neelam Mishra

Neelam Mishra 6 months ago

Rita Mishra

Rita Mishra 6 months ago

very nice story

Ramesh Pandey

Ramesh Pandey 11 months ago

Shivani

Shivani 11 months ago