Pal Pal Dil ke Paas - 9 books and stories free download online pdf in Hindi

पल पल दिल के पास - 9

भाग 9

सफर

पिछले भाग में अभी तक आपने पढ़ा की नीना देवी के कहने पर नियति की मां उसे लेकर अपने घर आ जाती है। मिनी को नीना देवी ने नियति के साथ नही जाने दिया। नियति किसी तरह नीता के समझाने पर मिनी को छोड़ कर आने को तैयार हुई। जब नीता ने उससे वादा किया की नीना देवी की जानकारी के बिना ही वो मिनी से उसे बराबर मौका मिलते ही मिलवाती रहेगी, तथा फोन से बात करवाती रहेगी। मामा के घर नियति का खुले दिल से स्वागत हुआ। अब आगे पढ़े।

मामा के घर कुछ दिन बीतने के बाद नियति सामान्य होने लगी। हर वक्त दोनो मामी और मामा नियति का ध्यान अपनी बेटी की तरह रखते। उनके इस साथ और सद्भाव से नियति का दुख खत्म तो नहीं पर कम जरूर हो गया। उनकी प्रेरणा और संबल ने नियति को आगे की ओर सोचने की दिशा दी। उस ने जिंदगी की शुरुआत एक नए सिरे से करने का फैसला किया। उसका पहला कदम था आत्मनिर्भर बनना, दूसरा किसी भी हालत में अपनी बच्ची मिनी को हासिल करना। मयंक और उसके प्यार की आखिरी निशानी मिनी से दूर वो भला कैसे रह सकती थी?

एमबीए की डिग्री तो थी ही उसके पास वही उसका सहारा बनी। उसके पास डिग्री तो थी पर एक्सपीरियंस नहीं था। इस कारण जल्दी नौकरी मिलने में प्रॉब्लम हुई। कुछ वक्त भटकने के बाद उसे वही शहर में काम मिल गया। पहले अपने शहर की ही एक छोटी फाइनेंस कंपनी में काम किया। सैलरी तो कम थी पर उसने स्वीकार कर लिया की उसे पढ़ाई किए चार साल हो चुके है और इस समय में काफी कुछ बदल चुका था। हर जगह एक्सपीरियंस की मांग होती थी जो उसके पास नहीं था। भले ही सैलरी कम थी पर आगे के लिए एक्सपीरियंस तो हो जा रहा था।

लगभग छः महीने एक्सपीरियंस होने पर उसे हैदराबाद से ऑफर आया। पहले तो मां और मामा सभी ने उसे हैदराबाद जाने से मना किया। पर छोटी मामी ने सभी से कहा, "जिंदगी में पिछला सब कुछ भूलने के लिए, जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए जगह बदलना सबसे कारगर होता है। वो नई जगह जायेगी, नए लोगों से मिलेगी। इससे उसकी आगे की जिंदगी की दिशा तय हो जाए ऐसा हो सकता है।"

ये छोटी मामी के समझाने पर बाकी घर वाले भी उसे हैदराबाद भेजने पर तैयार हो गए। नियति की अभी सिर्फ तेईस वर्ष की थी। उसके चेहरे की मासूमियत देख कर कोई नहीं कह सकता था कि वो शादी शुदा और एक बच्ची की मां है। जब से वो जॉब करने लगी थी अपनी सारी चिंता और दुख को अंदर समेट लिया था। अपने चेहरे और होठों पर मुस्कान को जगह दी दीi थी। जो जरूरी था उसके जॉब के लिए। क्योंकि अपने क्लाइंट से वो मातमी चेहरे के साथ कैसे डील कर पाती..? उसकी सफलता के लिए मुस्कान उसके जॉब की मांग थी।

हैदराबाद उसी इंटरव्यू के लिए वो जा रही थी तभी ट्रेन में उसकी मुलाकात प्रणय से हुई थी। प्रणय उसे भला इंसान लगा। पर इन अड़तालिस घंटे में नियति ने महसूस किया की प्रणय बिना उसके वर्तमान और अतीत के बारे में जाने ही कुछ ज्यादा ही जुड़ गया था। वो नही चाहती थी कि ये सिलसिला आगे बढ़े और बाद में नियति के जीवन का सच जान कर।प्रणय के दिल को कोई ठेस पहुंचे। इस कारण उसने आगे मुलाकात के सारे रास्ते को यत्न पूर्वक बंद कर दिया था। इस यत्न की एक वजह ये भी थी की प्रणय की सज्जनता और हंसमुख अंदाज ने नियति को भी प्रभावित किया था। आगे मुलाकात होने पर कही वो कमजोर न पड़ जाए ।

पर नियति को अंदाजा भी नही था की इस सफर के दौरान उसने प्रणय की जिंदगी में क्या स्थान बना लिया है! उसकी क्या अहमियत प्रणय की जिंदगी में हो गई है। नियति को लगा था की प्रणय उसे और इस मुलाकात को जल्दी ही भूल जायेगा। समय इस मुलाकात को भुला देगी। पर उसे नहीं पता था कि इस सफर की याद प्रणय के दिल में धुंधली होने की बजाय स्थाई घर बना चुकी है। उसकी तलाश में वो हैदराबाद की खाक छानेगा। हर गली, हर होटल, हर कंपनी के चक्कर काटेगा। उसकी तलाश में जमीन आसमान एक कर देगा।

हैदराबाद वाली कंपनी में नियति अपने बॉस से रिक्वेस्ट कर अपनी जानकारी किसी भी ऑफिस के बाहरी व्यक्ति को देने के लिए मना लिया। वो अपनी पहचान बिना शेयर किए कुछ दिन काम की। जैसे ही एक महीना हुआ वो दिल्ली के एक बड़े फर्म में अप्लाई करती है। योग्यता की कमी तो थी नही उसमे।

उसका सलेक्शन हो जाता है। और वो दिल्ली शिफ्ट हो जाती है। फिर कुछ समय बाद मामा का भी ट्रांसफर दिल्ली होने पर उसका पूरा परिवार भी दिल्ली शिफ्ट हो गया। नियति दिल्ली में काम करने लगती है। प्रणय भी अपनी मां के साथ आकर दिल्ली में ही नौकरी करने लगता है।

अब नियति की जिंदगी में एक ठहराव आ चुका था। वो अपने पैरो पर खड़ी थी। अब वो इस स्थिति में थी कि मिनी को वापस पाने की कोशिश कर सके। पहला कदम अपने पैरो पर खड़ा होना जिसमें वो सफल हो गई थी। अब दूसरी मंजिल थी मिनी को हासिल करना। इसी सिलसिले में वो कई वकीलों से मिलती है। बाद में किसी के सुझाव पर वो रस्तोगी को अपना केस सौपती है। रस्तोगी की काफी धाक थी कोर्ट में। वो अपने क्षेत्र का जाना माना वकील था। रस्तोगी ने नियति को विश्वाश दिलाते हुए कहा था की, "इस केस में तो कोई दम ही नहीं है। मां का ही पहला हक होता है बच्चे पर अठारह साल तक। जब तक वो बालिग ना हो जाए। मैं चंद पेशी में ही फैसला आपके पक्ष में करवा दूंगा। आपको बच्ची की कस्टडी लेने से कोई रोक नहीं सकता। आप मेरा यकीन करिए नियति जी।"

रस्तोगी से कंसल्ट कर नियति केस फाइल करती है। अब आज वकील रस्तोगी ने उसे मिनी कस्टडी से संबंधित कुछ पेपर के साथ उसे बुलाया था। उसे ही लेकर नियति बाहर कोर्ट के बरामदे में बेंच पर बैठ कर वकील की प्रतीक्षा कर रही थी।

वो कहते है ना की जब ख्वाहिश दिल से की जाती है तो ईश्वर भी मजबूर हो जाता है उसे पूरा करने के लिए। आज ऐसा ही कुछ होने वाला था। शायद प्रभु को मेरे ऊपर तरस आ गया था। वो मेरा विश्वास नहीं टूटने देना चाहते थे। मैने जिस तरह नियति की तलाश की थी शायद लंबा इंतजार करवा कर वो मेरे धैर्य की परीक्षा ले रहा था। क्या मेरा प्यार और तलाश अडिग है नियति के लिए या वक्त के साथ बदल जाएगा? मेरे निश्चय में रत्ती भर भी परिवर्तन न देख आज ऊपर वाला मुझ पर मेहरबान होने वाला था।

मेरा एक क्लाइंट संतोष का, जो मेरे दोस्त सरीखे ही हो गया था, उसकी पत्नी से तलाक का मुकदमा चल रहा था। मैं इस तरह के केस तो नहीं देखता था पर उसने सपोर्ट के लिए मुझे साथ चलने को राजी कर लिया। पहले मैंने उसे मना किया पर जब उसका चेहरा उतर गया तो मैंने साथ चलने की हामी भर दी। उसकी पत्नी ने उस पर ऐसे ऐसे इल्जाम लगाए थे जिसके बारे में वो सपने में भी नही सोच सकता था। संतोष उन आरोपों का सामना करने से बहुत घबरा रहा था। उसे मेरे साथ रहने से संबल मिलता इसी लिए वो मुझसे साथ चलने की रिक्वेस्ट कर रहा था। अपने बिजी शिडयूल से टाइम निकालना मुश्किल था काफी। पर उसके इस संकट की घड़ी में साथ देना मुझे जरूरी लगा। इस लिए अपने सारे काम छोड़ छाड़ कर मैं उसके साथ चलने को तैयार हो गया। मैं और वो कोर्ट के मेन गेट पर पहुंचे। देर हो रही थी इस कारण लंबे लंबे डग रखते हुए हम दोनो कोर्ट रूम की ओर चल दिए।

मेरी किस्मत क्या करवट लेने वाली है इसका मुझे रत्ती भर भी आभास नहीं था। कोर्ट रूम में जाने से पहले लॉबी पड़ती थी। हम दोनो लॉबी से गुजर रहे थे। जल्दी में आस पास निगाहे डाले बगैर हम आगे बढ़े जा रहे थे।

कुछ आगे बढ़ गए तब मुझे एहसास हुआ कि बेंच पर कोई बैठा हुआ है जिसे मैं शायद जनता हूं ! एक बार तो सोचा की होगी कोई मुझे क्या? उसने भी तो मुझे देखा होगा। आखिर मैं बिल्कुल सामने से गुजरा था। जब उसने नहीं आवाज दी तो मैं क्यों जाऊं? फिर मेरा मन नहीं माना। अपना संशय दूर करने के लिए मैंने वापस लौटने का सोचा। संतोष से कहा, "अरे !!! यार संतोष तू चल मैं बस दो मिनट में आया।" उसके चेहरे पर सवालिया भाव आए की मैं कहा जा रहा हूं? पर उसने कुछ पूछा नही। मैने उसे सांत्वना दी की "बस तू पहुंच मैं बस ये गया, वो आया।" मैं लॉबी में पीछे लौट पड़ा।

जहां किसी परिचित के होने का आभास हुआ था। वहां पहुंचा तो मेरे हैरानी और खुशी की कोई सीमा ही नही थी! फाइल हाथ में लिए, एक लड़की उसे उलट पलट रही थी। वो अपने आप में इतनी गुम थी की उसे अपने आस पास की कोई खबर नहीं थी। वो कोई और नही बल्कि नियति ही थी। मैं बिना अपनी उपस्थिति का एहसास कराए खड़ा हो कर बिना पलक झपकाए उसे देखता रहा। हल्के पीले रंग के सलवार सूट में नियति बिल्कुल वैसी ही ट्रेन वाली नियति लग रही थी। अपने बालों को उसने यत्न पूर्वक बांध रक्खा था, फिर भी एक जिद्दी लट बार बार माथे पर झूल जा रही थी। जिसे हटाने की असफल कोशिश वो निरंतर कर रही थी। मैने पूरे तीन साल नियति की तलाश बिना हार माने की थी। अब उस पल को कैद कर लेना चाहता था।

सच ही कहा गया है कर भला हो भला। अभी तक मुझे इस बात पर विश्वास था, पर आज तो पक्का यकीन हो गया था। ना मैं संतोष की मदद के लिए कोर्ट आता ना ही मुझे नियति मिलती।

मैं खड़ा उसे देख ही रहा था की मेरे मित्र एडवोकेट रस्तोगी अचानक सामने आकर मुझसे हाथ मिलाने लगे, 

वो बोले, "अरे!!! यार प्रणय तुम यहां कैसे! क्या मेरे पेट पर लात मारने का इरादा है, जो कार्पोरेट जगत की नौकरी छोड़ कर यहां सेंध मारी कर रहे हो।"

मैं भी नियति से ध्यान हटा कर रस्तोगी से गर्मजोशी से मिला मैंने कहा, "ना … ना… मेरा ऐसा कोई इरादा नहीं है, तुम्हारी रोटी में हिस्सा बटाने का! वो तो मैं अपने एक दोस्त के सहयोग के लिए चला आया था।" रस्तोगी और मेरी बात चीत सुन कर नियति का ध्यान हमारी ओर हो गया। रस्तोगी ही उसके वकील थे। वो उनकी ओर आई। पर साथ मुझे देख न तो उससे आते बन रहा था , ना वो जा ही पा रही थी। रस्तोगी ने नियति को देख कहा, "सॉरी नियति जी आपको मेरा इंतजार करना पड़ा। वो मैं थोड़ा लेट हो गया।"

फिर मेरा परिचय नियति से करवाया बोला, "प्रणय ये मेरी क्लाइंट नियति जी है। इनका केस मैं लड़ रहा हूं।"

क्या नियति प्रणय से मिलती है? उसका क्या रिएक्शन होता है प्रणय से मिलने के बाद? क्या प्रणय उसे मदद करता है? और वो उसे वो स्वीकार करती है? क्या रंग लायेगी आगे प्रणय और नियति की ये मुलाकात। पढ़े अगले भाग में।