Pal Pal Dil ke Paas - 5 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पल पल दिल के पास - 5

पल पल दिल के पास - 5

भाग 5

अग्नि पथ

पूर्व के भाग में आपने पढ़ा, नियति और मयंक दोनो ही गंभीर रूप से घायल होते है। नियति की चोट बाहरी थी, वहीं मयंक की चोट अंदरूनी थी। ऊपर से देखने पर मयंक बिलकुल ठीक लग रहा था, पर इन चोटें ने उसे अंदर से बहुत ज्यादा घायल कर दिया था।

फल स्वरूप दूसरे दिन मयंक इस दुनिया से …..सदा... सदा…...के लिए चला गया। नियति की स्थिति ठीक नहीं होने के बावजूद उसकी मां उसे लेकर उसके ससुराल पहुंचती है। नियति को अंदर से किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी। पढ़े आगे क्या हुआ जब नियति अपने घर पहुंची?

मां की बातों से नियति को यकीन होने लगा की कुछ न कुछ गड़बड़ जरूर है। ऑटो रुकते ही उसके बीमार, घायल शरीर में पता नही कहां से इतनी ताकत आ गई। घर के साथ वाली सड़क पर घुसते ही वहां के वातावरण में एक अजीब सी मंहुसियत उसे महसूस होने लगी। जैसे हर पेड़, उसका हर पत्ता पत्ता उसे बताना चाह रहा हो की, "नियति तुम्हारी जिंदगी में एक बहुत बड़ा तूफान आ चुका है। तुम अभी जिसके साथ चंद घंटे पहले हसती खिलखिलाती बेटी का बर्थ डे मना रही थी। जो हर पल तुमपे कुर्बान हुआ जाता था। वही अब तुम्हे अकेला छोड़ गया है।"

नियति पल भर के लिए भूल गई की मां भी साथ में है। उन्हे वहीं छोड़ वो लगभग दौड़ती हुई सी घर का मेन गेट खोल अंदर दाखिल हो गई। जैसे ही वो अंदर गई। नीता मौसी दिखीं । वो उनकी ओर बढ़ी। उसे देख नीता का सब्र टूट गया । नीना देवी ने ही सिर्फ अपना बेटा नहीं खोया था। नीता की भी गोद सूनी हुई थी। मयंक उसका बेटा, भांजा सब कुछ ही तो था। ये बात अलग थी की वो खुद पर नियंत्रण नहीं को रही थी। अभी तक नीता ने भी अपने आंसू जज्ब कर रक्खे थे। नियति को देखते ही बड़ी कोशिश से रोका गया सब्र खत्म हो गया। अब वो पूरी वेग से बह जाने को आतुर था।

नियति के पास आते हीं वो उसे गले लगा कर फूट फूट कर रोने लगीं। नियति का दिल बैठा जा रहा था।

नीता मौसी को यूं रोते देख उन्हे खुद से अलग किया और तेज आवाज में चीख उठी, "मौसी क्या हुआ मयंक को? आप ऐसे रो क्यों रही है?"कह कर वो अंदर अपने कमरे की ओर देखने जाने लगी। नीता ने उसे अंदर जाने से रोक लिया और उसे गले लगाते हुए रो कर बोली, "नियति बेटा हमारा मयंक अब हमारे साथ नहीं है। वो हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया।"

ये शब्द नियति के कानो में ऐसे उतरे जैसे किसी ने गर्म शीशा उड़ेल दिया हो। वो तड़प गई। "मौसी ये आप क्या कह रही है? ऐसा नही हो सकता! मेरा मयंक अपनी नियति को यूं अकेले छोड़ कर नही जा सकता।"

नीता उसे समझती हुई बोली, पर बेटा ऐसा अनर्थ भगवान कर चुके हैं। तुम संभालो खुद को।"

नियति के कदम लड़खड़ा गए। वो खुद पर नियंत्रण नही रख सकी। नीता उसे सहारा देकर उसके कमरे तक ले गई, और बेड पर लिटा दिया।

नियति कुछ देर बाद संयत हुई तो देखा मां भी उसके पास ही बैठी है। नीता मौसी और मां को देख कर नियति के अंदर का तूफान फट पड़ा। वो बर्दाश्त नही कर पा रही थी कि उसको किसी ने मयंक के आखिरी दर्शन कराना भी जरूरी नही समझा। वो नीता से पूछने लगी, "मौसी क्या ये भी भगवान की ही इच्छा थी कि मैं उसे आखिरी बार भी ना देखूं! ऐसा क्यों हुआ मौसी आपने मुझे मयंक के आखिरी दर्शन से क्यों वंचित रक्खा?" नीता के पास उसके इन सारे प्रश्नों ना कोई उत्तर नही था। वो क्या कहती नियति से की मैने कोशिश की थी लेकिन जीजी ने तुम्हे नही बुलाने दिया।नीता भले ही खुद बुरी बन रही थी पर सास बहू के बीच दूरियां पैदा नही करना चाह रही थी। इस कारण बोली, "नही बेटा तेरी तबीयत नही ठीक थी, इसी वजह से तुझे हम नही लाए। डॉक्टर से तुझे स्ट्रेस लेने से मना किया था। अभी भी तेरी तबीयत ठीक नहीं है बेटा तू आराम कर।" कह कर नीता ने उसे लिटा दिया। नीता शुक्र मना रही थी कि बाहर ही जीजी नही मिल गई वरना वो शायद ही नियति को घर में घुसने देती। थोड़ा काम तो हो गया था, अब बड़ी बहन को शांत कर नियति को रहने देने की बारी थी। नीना का सर दर्द हो रहा था। वो ऊपर के कमरे में दवा खा कर सो रही थी। शांता को नियति का ध्यान रखने को बोल कर वो दबे कदमों से बहन के पास ऊपर गई। घर में जो रिश्तेदार थे उनकी निगाह इसी बात पर लगी थी की अब देखे नीना देवी क्या करती है? बहू को रखती है या घर से निकल देती है। रहने देगी इसकी आशा तो न के बराबर थी। जिस तरह वो नियति से खफा थीं। ये जानने पर की नियति आ गई है, एक तूफान आना तय था। कमरे से कोई आहट ना पाकर नीता वहीं इंतजार करने लगी बहन के जागने का। जितनी देर तूफान टला रहे उतना ही अच्छा हो।

जब से नियति की मां घर के अंदर आई थीं उनकी निगाहें मिनी को ही ढूंढ रही थी, पर वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी। शांता से पूछा तो वो बोली, "अभी ले आती हूं।" इसके थोड़ी देर बाद मिनी को नहला धुला कर शांता ले आई। उसे नानी के पास दे दिया। पर नानी को इतने दिन बाद देखने के कारण मिनी उनके पास रोने लगी, तो नियति की मां ने उसे नियति के पास लिटा दिया। मिनी का स्पर्श पाते ही नियति ने उसे सीने से चिपका लिया। जिस मिनी को एक पल के लिए भी अपनी आंखो से ओझल नहीं करती थी, आज पांचवा दिन था उससे दूर हुए। अब वही मेरे जीने का सहारा है। ऐसा ख्याल मन में आते हीं मिनी को सीने से भींचे नियति की आंखे नम होने लगी।

करीब दो घंटे बाद नीना जागी। बाहर बैठी नीता को जब आभास हुआ की जीजी जग गई है तो वो अंदर चली गई और बोली, "अब सर दर्द कैसा है जीजी?"

नीना बोली, "आराम है अब तो। पहले बड़ा ही भयंकर दर्द उठा था। दवा खा कर नींद आ गई। तब जाकर दर्द से राहत मिली। मिनी कहां है? इस दर्द की वजह से मै अपनी बच्ची का भी ध्यान नहीं दे पाई।"

नीता बोली, "मिनी नहा कर सो रही है दीदी आप उसकी चिंता मत करो। आप अपनी तबीयत पर ध्यान दो। जीजी चाय बनी है आप बैठो मैं तुरंत ले कर आती हूं।" इतना कह नीता नीना को कमरे में बिठा कर चली गई। नियति के बारे में बात करने को नीता को कुछ वक्त चाहिए था, जब वह बिना किसी बाधा के आराम से बहन को समझा सके। चाय पीने में कुछ वक्त तो लगेगा ही इस समय में वो दीदी को समझाने का प्रयास करेगी कि वो नियति को यहीं रहने दे। वैसे ही वो इतनी दुखी है। इस समय नही रहने दिया घर में तो वो बिचारी कैसे जिएगी?

जल्दी से एक कप चाय लेकर नीता बहन के पास गई। नीना को सच में चाय की जरूरत थी। अपनी बहन को अपनी इच्छा समझते देख नीना का दिल छू गया। बात तो बहुत छोटी सी थी पर अपना इतना ध्यान रखना उसके मन को छू गया। नीता के हाथ से कप लेते हुए नीना बोली, 

"नीता तू कैसे जान गई की मुझे चाय की इच्छा हो रही है!" चाय पीते हुए नीना ने नीता के सर पे हाथ फेर कर बोली, "सदा खुश रह मेरी बहन, तू मेरा कितना ध्यान रखती है! इस दुख की घड़ी में तू मेरे साथ न होती तो मैं क्या करती? तूने और चंचल ने मिल कर सब संभाल लिया। वरना पता नहीं क्या होता?"

दीदी का मूड ठीक देख नीता को बल मिला। अब वो अंदर से मजबूत पा रही थी खुद को। नियति आई है और उसने बिना उन्हें बताए उसे घर में रोक लिया है। जो अब तक बताने में डर रही थी। जीजी की बातों से साहस आ गया था। नीता बहन के और पास खिसक आई और उनका हाथ अपने हाथ में ले सहलाते हुए बोली, "जीजी भगवान ने पता नहीं क्यों इतना बड़ा अनर्थ कर दिया कुछ समझ नहीं आता। मैने आपका ध्यान रख कर कोई एहसान नही किया। आप मेरी बड़ी बहन हो और मयंक मेरे लिए बेटे से जरा भी कमतर नहीं था।"

जरा सा रुक कर फिर कहना शुरू किया, "दीदी हम सब लोग तो फिर भी सब्र कर लें, पर जरा नियति का तो सोचो!... उस बिचारी ने अभी अपनी जिंदगी में देखा ही क्या था? अभी अभी तो उसने अपने जीवन की शुरुआत की थी। वो इस सदमे को कैसे सहेगी! बिचारी ने मायके में भी जीवन सिर्फ काटा ही था। जीना तो उसने मयंक से शादी के बाद शुरू किया था। वो कैसे मयंक के बिना जिएगी? फिर हमने उसे मयंक के आखिरी दर्शन भी नहीं करने दिया। दीदी..!, आपसे एक बात कहनी है, जो हुआ सो हुआ पर अब हमें नियति का साथ देना चाहिए।"

मनुहार करते हुए स्वर को अत्यधिक कोमल बनाते हुए नीता बोली, "दीदी नियति अभी कुछ देर पहले अपनी मां के साथ आई है। प्लीज उसे कुछ मत कहना। उसे रहने दो।"

नीना के चेहरे का भाव बहन की बातें सुन कर बदल गया। अपना हाथ छुड़ा कर उठ खड़ी हुई और बोली, " तू भूल सकती है मैं नहीं। उसकी वजह से ही आज मैं अपने इकलौते बेटे को खो चुकी हूं। वो यहां नही रह सकती। मुझे और कुछ नहीं सुनना।"

नीता बोली, "दीदी जरा तो सोचो रिश्तेदार, मित्र, समाज में सारे लोग क्या कहेंगे ! बेटे के जाते ही बहू को घर से निकाल दिया।" नीता भी उठ कर बहन के पास गई और उसके कंधे पर अपने हाथ रख कर बोली, "ठीक है दीदी… तुम्हे नियति को नही रहने देना है तो मत रहने दो.. पर उसे अभी ना जाने की कहो। काम से कम मयंक की तेरहवीं तक उसे रहने दो। फिर जो तुम्हारे जी में आए करना मैं नहीं रोकूंगी। बस दीदी मेरी इतनी बात मन लो… इज्जत रह जायेगी तुम्हारे घर की, और नियति को भी थोड़ा सा चैन मिलेगा इस कठिन वक्त में।" इतना कह कर नीता ने नीना के सामने अपने दोनों हाथ जोड़ दिए।

नीता की बातों ने नीना के मन पर असर किया। वो सच कह रही थी। अभी तक जो भी परिचित, रिश्तेदार आते सबसे पहले नियति के बारे में ही पूछते। सभी की संवेदना नियति के साथ थी। उनके पूछने पर की नियति कहां है ? जवाब देना मुश्किल होता..। शक भरी नजरों से सब उन्हें देखते। उनको लगता की वो अन्याय कर रहीं हैं नियति के साथ। नीना ने कुछ देर सोचा फिर फैसला ले लिया। नियति को अभी रहने देते है। सारे कर्म काण्ड निपटने के बाद इस बारे में वो कोई कदम उठाएगी। नीना ने नीता की ओर देखा और बोली, " ठीक है नीता तू कहती है इस लिए उसे रहने दे रही हूं पर सिर्फ सारे क्रिया कर्म निपटने तक। पर उसके बाद मुझसे कोई उम्मीद मत रखना मैं उसकी शक्ल बर्दाश्त नहीं कर सकती! और हां ध्यान रखना वो मेरी नजरों से दूर ही रहे।" इतना कह कर वो बाहर जाने लगीं।

नीता ने आभारपूर्ण नजरों से नीना को देखा और बोली, "हां दीदी जैसा आप चाहेंगी वैसा ही होगा। वो आपके सामने न आए इसकी पूरी कोशिश करूंगी।"

दोनों बहने बाहर आ गई।

ऐसा क्यों होता है ? एक सास अपनी बहू को अपना क्यों नहीं समझती? क्या सिर्फ इस लिए की उसे उनके बेटे ने खुद पसंद किया था….? क्या जिस घर में नियति ब्याह कर आई उस पर उसका सारा अधिकार पति के जाते ही खत्म हो गया…? नीना देवी ने तो अपना बेटा खोया था, पर नियति का तो वो पूरा जीवन आधार ही था। आगे पढ़े नियति ने आगे आने वाली मुश्किलों का सामना कैसे किया? क्या वाकई नीना देवी इतनी निष्ठुर हो गांव की नियति को घर से निकल दिया…! पढ़े अगले भाग में।

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Qwerty

Qwerty 3 months ago

Neelam Mishra

Neelam Mishra 6 months ago

Rita Mishra

Rita Mishra 6 months ago

very nice story

Shaurya Pandey

Shaurya Pandey 10 months ago

Ramesh Pandey

Ramesh Pandey 11 months ago