Pal Pal Dil ke Paas - 4 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पल पल दिल के पास - 4

पल पल दिल के पास - 4

भाग 4

अलविदा...

पूर्व के भाग में आप सभी ने पढ़ा की बेटी मिनी के बर्थ डे केक लेकर लौटते समय मयंक जल्दी घर पहुंचने के लिए तेज स्पीड गाड़ी चला रहा था। मयंक सामने से आ ट्रक से बचने के चक्कर में संतुलन खो बैठा और एक पेड़ से जा टकराया। घायल मयंक और नियति को हॉस्पिटल पहुंचाया जाता है। तीसरे दिन सुबह ही मयंक की हालत अचानक ही बिगड़ जाती है। डॉक्टर की सारी कोशिश नाकाम होती है। अब आगे पढ़े।

डॉक्टर की झुकी नजरे देख नीना देवी का दिल बैठा जा रहा था। सुबह खाली हॉस्पिटल का सन्नाटा और भी भयावह प्रतीत हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे ये किसी तूफान आने के पहले का सन्नाटा है।

अनजाने डर से नीना देवी कांप उठी, डॉक्टर को झकझोरते हुए बदहवास सी हो गई। डॉक्टर के मुंह से निकला दो शब्द, "आई एम सॉरी" नीना को निःशक्त कर गया। वो गिरने को हुई

"आई एम सॉरी " कह खुद को छुड़ा डॉक्टर थके कदमों से चले गए।डॉक्टर के मुंह से निकला दो शब्द, "आई एम सॉरी" नीना को निःशक्त कर गया। वो गिरने को हुई

पर नर्स ने आगे बढ़ कर थाम लिया।

नीना देवी को संभालते हुए दिलासा दिया और बोली, "खुद पर काबू रक्खे मैडम आपकी बहू भी घायल है। अभी आपको बहू को भी आपको संभालना है। वो भी घायल है।"

इतना सुनते ही वो बिफर उठी, "नाम मत लो उस मनहूस का, ये सब उसकी वजह से हीं हुआ है।"

नीना देवी का इस तरह गुस्सा देख नर्स भी घबरा गई। आज के जमाने में जब लोग बहु और बेटी में कोई फर्क नहीं करते। उस जमाने में इतने दुख की घड़ी में अपनी बहू को सहारा देने की बजाय वो उसे ही बेटे की मृत्य का कारण मान रहीं है। ये कैसी सास है? नर्स को उनकी बुद्धि पर तरस आया। वो नीना देवी को चंचल के सहारे छोड़ नियति के पास उसकी देख भाल करने चली गई। उसे महसूस हुआ की नियति के पास इस वक्त उसका कोई अपना नहीं है। जो अपना है भी वो दुश्मन जैसा बर्ताव कर रहा है।

मयंक के जाने की मनहूस खबर ने नीना देवी के होशो हवास उड़ा दिए। वो बदहवास सी चिल्लाने लगी। नियति ही उन्हे अपने इकलौते पुत्र की कातिल लग रही थी। उनका बस चलता तो मयंक के साथ नियति को भी मार डालती। वो खफा इस बात से थी कि उन्होंने तो उसे केक के लिए पता करने को बोला था, वो मयंक को साथ लेकर क्यों गई? ना मयंक को साथ लेकर जाती, ना ही मयंक उन्हे छोड़ कर जाता। नर्स ने उनकी बात सुन कर समझाते हुए कहा, "वो मैडम तो खुद भी बहुत घायल है। आप प्लीज खुद पर कंट्रोल रखिए।"

फिर साथ रही मयंक की मामी चंचल ने उनका सर अपने कंधे से लगा लिया और रोते हुए बोली, "जिज्जी मै सब जानती हूं पर इस तरह बाहरी लोग के सामने कहने से क्या फायदा? आप धैर्य रखो जिज्जी ।" यह सब कह चंचल नीना के गालों से आसूं पोछने लगी।

इतनी बुरी खबर सुन कर सारे दोस्त रिश्तेदार सब हॉस्पिटल आ गए। पर किसी ने भी नियति या उसके परिवार वालों को मयंक के जाने की खबर नहीं दी। मयंक को हॉस्पिटल से घर लाने की तैयारी होने लगी। आखिरी यात्रा पर निकलने से पहले कुछ तैयारियां करनी थी।

जो घर कुछ घंटो पहले तक खुशियों में डूबा था, जश्न की तैयारियां चल रही थी, भगवान ने ऐसा पहिया घुमाया की वो मातम में बदल गया। मयंक की बॉडी घर आते ही पूरा घर करुण – चीत्कार में डूब गया।

जिन रिश्तेदारों को मयंक ने खुशी में शामिल होने के लिए बुलाया था, वो अब उसे आखिरी विदाई दे रहे थे। सब की आंखे नम थी। मयंक की मौसी चाहती थीं की कैसे भी कर के नियति को लाया जाए और मयंक के आखिरी दर्शन करवा दिया जाय। इतना तो हक नियति का बनता ही था, आखिर वो उसकी पत्नी थी। पर नीना देवी के डर से किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। दबी जुबान में नीता ने कहने की कोशिश भी की, "दीदी मयंक नियति का पति है, उसे भी आखिरी बार देखना चाहिए। वो जब ठीक होकर आएगी तो ये सदमा कैसे बर्दाश्त कर पाएगी! उसे बताने दो दीदी। मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूं।"

बहन के मुंह से ये सुन कर जिन आग्नेय नेत्रों से नीना ने देखा की नीता ने चुप रहने में ही भलाई समझी। नीता की सारी कोशिश नाकाम हो गई। वो नियति को लाने में असफल हो गई थी।

मिनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि अचानक उसकी मां कहा चली गई? जो उसे दिख नही रही। उसके डैडी इतने खामोश से लेटे क्यों है? ना तो उसे गोद में ले रहे हैं ना उसे पुचकार कर खेला रहे है। वो अबोध कुछ भी समझ नहीं पा रही थी। कुछ समझ न आने पर बस रोए जा रही थी। उसे नीता और घर की पुरानी नौकरानी शांता संभाल रही थी।

वो अपने नन्हे कदमों से गिरते लड़खड़ाते मयंक के पास तक जाती और उसकी चादर खींच कर उठाने की कोशिश करती। अपने नन्हे हाथों से मयंक का चेहरा छूती। जो मयंक मिनी के जरा से रोने पर वो सब कुछ करने को तत्पर हो जाता जिससे उसके आंखों में आंसू न आए। वही मिनी आज फर्श पर उसके पास बैठी रो रही थी, और मयंक निश्चल लेटा हुआ था।

आखिरी विदाई का समय भी हो गया। रोती कलपती नीना को किसी तरह मयंक से अलग किया गया। बड़ा ही मुश्किल था उन्हे मयंक से अलग करना। नीना देवी की लाख कोशिश के बाद भी ये मनहूस खबर नियति के मायके से छुप ना सकी जैसे ही नियति की मां को पता चला वो भाई को साथ ले खबर की सच्चाई परखने के लिए नियति के ससुराल को निकल पड़ी। मयंक को ले गए करीब दो घंटे हो चुके थे जब वो लोग मयंक के घर पहुंचे।

मयंक को जब सब रिश्तेदार और आस पड़ोस के लोग आखिरी यात्रा पर ले कर चले गए, तुरंत ही स्नान की परंपरा निभाने नीना को भाभी चंचल ले कर चली गई। किसी तरह चंचल ने स्नान करवाया और लाकर बरामदे में पड़े तख्त पर बिठा दिया। रोती हुई नीना तख्त पर रक्खे तकिए के सहारे अधलेटी सी हो गई। अब घर की बाकी औरते और बच्चे स्नान और बाकी काम निपटाने में लग गए। अभी कुछ ही देर हुए थे की गेट खुलने की आवाज के साथ किसी के रोने की आवाज आई। निगाहे उठा कर देखा तो नियति की मां और मामा थे। उन्हे देखते ही नीना देवी के तन बदन में आग से लग गई।

घबराई सी नियति की मां उसके ससुराल पहुंचती है, वहां का माहौल देख कर कुछ भी पूछने को बाकी नहीं रह जाता। वो देखते ही समझ गई कि जो विष उनके जीवन को मृत्यु समान बना गया था। वही अब एक बार फिर से उनकी आखों के सामने बीत रहा है। इस बार उनकी अपनी बेटी की जिंदगी उजड़ गई है। नियति के दुर्भाग्य को प्रत्यक्ष देख वो तड़प उठीं।

जैसे ही नियति की मां रोते हुए नीना देवी की ओर बढ़ी, "अरे!!!बहन जी ये क्या हो गया?हमें कुछ पता ही नही चल पाया। अभी किसी से सुना तो यकीन नही हुआ, पता करने चले आए।" नियति की मां ने कहा।

नियति की मां की बातों को अनसुना करते हुए वो उठ खड़ी हुई बोली, "आपको जैसे भी पता चला हो उससे मुझे कोई सरोकार नहीं, आप की हिम्मत कैसे हुई यहां आने की। मेरे घर में आपके लिए, आपकी बेटी के लिए कोई जगह नही है। मयंक के साथ ही ये रिश्ता भी खत्म हो गया।" पास खड़ी चंचल, नीना के और पास आ गई । अपनी ननद का समर्थन करती हुई बोली, "हां जिज्जी बिल्कुल ठीक कह रही है। आप दोनो हॉस्पिटल से नियति को भी अपने घर ही ले जाइएगा।"

असहाय से नियति की मां और मामा खड़े थे। तभी आवाज सुन कर अंदर से नीता भी आ गई। उसने बहन और भाभी को नियति के मामा और मां का अपमान करते हुए सुन लिया था। वो नीना के पास आकर कंधे से पकड़ कर तख्त पर बिठा दिया, और समझाते हुए मंद स्वर में बोली, "जीजी वो भी दुखी हैं। ये वक्त ऐसी बातों का नही है। आप शांत हो जाओ।" फिर नियति की मां और मामा को बरामदे में राखी कुर्सियों पर बैठने को कहा।

उनके बैठते ही नीना देवी उठ खड़ी हुई और गुस्से से घूरते हुए अंदर के कमरे में चली गई। नीता ने उन्हे बिठाया कुछ बातें करना चाहती ही थी कि अंदर से नीना ने "नीता" कह का आवाज लगाई।

बेबस सी नीता उन्हे बैठा ही छोड़ कर अंदर चली आई। दुखी बहन को वो कुछ नही कह सकती थी। करीब एक घंटे यूं ही बैठे रहे दोनो भाई बहन । फिर नियति के मामा ने कहा, "चलो दीदी हॉस्पिटल नियति के पास चले, यहां बैठने से कोई फायदा नही। ये पत्थर दिल लोग हमारा दुख क्या समझेंगे? हमारी बच्ची तो हॉस्पिटल में पड़ी है। उसे तो पता भी नही कि उसकी दुनिया उजाड़ हो गई है। हमारी उसे जरूरत है।"

अंदर से मिनी के रोने की आवाज भी आ रही थी। उसे वो साथ ले जाना चाहते थे पर किससे इजाजत लेते! मन मसोसकर बहन का हाथ पकड़ नियति के मामा वहां से बाहर निकल पड़े। रोड पे आकर ऑटो किया और हॉस्पिटल की ओर चल पड़े।

वहां पहुंच कर देखा तो नियति बेसुध सी सो रही थी। नर्स से पूछा तो बोली, "मैडम होश में आई थीं, पर बार बार अपने पति के बारे में पूछ रही थी। मैं अगर सच बताती तो इनकी भी हालत बिगड़ सकती थी, सदमा लग सकता था इसलिए उन्हें कुछ नही बताया। बेहतर होगा उन्हे सच्चाई का पता उन्हें अपने घर वालों से ही चले।" इतना कह कर नर्स बाहर चली गई।

मां पास बैठी रही। नियति का सर सहलाती रही। पर बेसुध नियति को कुछ भी आभास नही था कि उसके साथ कुदरत कितना बड़ा अन्याय कर चुकी है। नियति की मां से जो कुछ भी नीना देवी ने कहा था, उसकी चिंता में वो घुटी जा रही थीं। जो अन्याय कुदरत ने किया था उस पर तो किसी का वश नहीं था, पर जो कुछ नीना देवी ने कहा था उसे नियति कैसे सह पाएगी? नीना देवी के रुख को देख कर ये नही लग रहा था कि वो नियति को घर में रहने देगी। समय अपने को दोहरा रहा था। उन्हे भी नियति के पिता के ना रहने पर इन्ही हालातो का सामना करना पड़ा था।

नियति का ससुराल जाना जरूरी था, चाहे नीना देवी चाहें या ना चाहे ।

चौथे दिन से नियति की तबीयत सुधरने लगी। सारे हालत से वाकिफ करा कर डॉक्टर से डिस्चार्ज की परमिशन ले ली गई। हालत को समझते हुए डॉक्टर ने जाने को बोल दिया । पर साथ में कुछ हिदायत भी दी। नियति का खास ख्याल रखना होगा। सारी बाते समझ कर नियति की मां उसे लेकर जाने की तैयारी करने लगी। बार बार नियति मां से मयंक के बारे में पूछती, मिनी कैसी है ? उसके बारे में पूछती, पर वो कहती, "अब तो चल ही रही है खुद हीं देख लेना।मिनी से भी मिल लेना।" नियति हैरान थी की घर में इतने सारे लोग है , पर कोई भी उससे मिलने नही आया। आज वो घर जा भी रही है तो कई गाड़ियां होते हुए भी वो ऑटो से क्यों जा रही है? पर दवा के असर ने उसे कुछ सुस्त सा कर दिया था। इस कारण वो बस थोड़ा ही बोल पा रही थी। ऑटो में बैठ कर नियति की मां ने उसे परिस्थिति से अवगत कराने का निश्चय किया। वो बोली, "बेटा तुझे पता है ना इंसान का सोचा हुआ कुछ भी नही होता। हम सोचते कुछ हैं पर होता वही है जो वो ऊपर बैठा चाहता है। जिन बातों पर हमारा वश ना हो उसे अपनी तकदीर समझ कर स्वीकार कर लेना चाहिए। बेटा इस जमीन पर सभी के जन्म के साथ ही मृत्यु का समय भी ईश्वर तय कर देते है। इसमें किसी का वश नही चलता। और जिन बातों में हमारा कोई अख्तियार ना हो उसके लिए लिए हम अपनी जान दे कर भी कुछ नही कर सकते।" नियति को जैसे कुछ सुनाई हीं नहीं दे रहा था। वो आंखे बंद किए सर टिकाए बैठी थी। मां ने उसके हाथ पर अपना हाथ रख कर पूछ, "बेटा तू सुन तो रही है! मैं क्या कह रही हूं?"

नियति ने धीरे से "हूं" कह सर हिलाया। "पर मां तुम ये सब मुझसे क्यों कह रही हो?" नियति ने थके हुए स्वर में कहा।

"बेटा घर पर तुम्हारे जो भी परिथिति हो खुद पर काबू रखना।" अब नियति को कुछ अनिष्ट की आशंका होने लगी।

वो मां को झिझोरते हुए पूछने लगी , "मां मुझे कुछ ठीक नही लग रहा।

क्या हुआ मयंक को?"

अभी वो पूछ हीं रही थी कि घर आ गया। नियति की मां ने ऑटो को रुकने ले लिए बोला।

क्या हुआ जब वो घर पहुंची? क्या नियति को उसकी सास नीना देवी ने घर में घुसने दिया? क्या गुजरा नियति पर जब उसे पता की मयंक इस दुनिया से उसका सब कुछ उजाड़ कर जा चुका है। क्या नीता कुछ मदद नियति की कर पाई..? नियति के संघर्ष की आगे की कहानी पढ़े अगले भाग में।

Rate & Review

Qwerty

Qwerty 3 months ago

Neelam Mishra

Neelam Mishra 6 months ago

Rita Mishra

Rita Mishra 6 months ago

very nice story.

Shaurya Pandey

Shaurya Pandey 10 months ago

Ridhima Saini

Ridhima Saini 11 months ago