Pal Pal Dil ke Paas - 13 in Hindi Love Stories by Neerja Pandey books and stories PDF | पल पल दिल के पास - 13

पल पल दिल के पास - 13

भाग 13

काश ये पल ठहर जाए…!

मैं नियति को छोड़ने उसके घर जा रहा था। रास्ता ज्यादा लंबा नहीं था। मैं चाहता था ये रास्ता खत्म ही नहीं हो। धीरे धीरे गाड़ी ड्राइव कर रहा था। मेरी गाड़ी चलाने की रफ्तार देख कर नियति असमंजस में थी कि मैं गाड़ी चलाने में नौसिखिया तो नहीं हूं। और मैं उसकी उलझन को इंजॉय कर रहा था। हल्की फुल्की बातें कर मैं उसका तनाव कम करने की कोशिश कर रहा था।

नियति के बताए अनुसार मैंने उसके घर के सामने पहुंच कर गाड़ी खड़ी कर दी। वो चाहती थी मैं जल्दी और बाहर से ही चला जाऊं। पर गाड़ी की आवाज सुनकर उसके छोटे मामा बाहर निकल आए। नियति को एक सजीले युवक के साथ देख उनके मन में कई विचार एक साथ आ गए।

मामा के चेहरे पर प्रश्न पूर्ण भाव देख कर नियति ने मामा का परिचय मुझसे करवाया। बोली, "मामा ये यहां की बहुत बड़ी कार्पोरेट कंपनी में लॉयर है। मेरा इनसे परिचय हैदराबाद के सफर के दौरान हुआ था। जब मैं जॉब के इंटरव्यू के लिए गई थी। पिछली पेशी में ये अचानक से कोर्ट में मिल गए थे। अपना केस देखने वाला वकील रस्तोगी इनका परिचित है। आज उसी से मीटिंग थी। इन्होंने रस्तोगी को केस की भली भांति पैरवी करने को कहा है।"

मामा जी हंसते हुए बोले, "अरे!.... अरे… बेटा आगा पीछा सब तो बता दिया। पर इस भले मानस का नाम तो बताओ।"

इतना कह कर मामाजी खुद ही आगे बढ़ कर मुझसे हाथ मिलाया और बोले, "हेलो… मैं नियति का छोटा मामा हूं।"

प्रणय ने भी हाथ मिलाते हुए कहा, " हेलो मामा जी मैं प्रणय...।"

नियति झेपते हुए पीछे हट गई। मामा जी ने अंदर आकर चाय पीने का ऑफर दिया। जिसे मैंने समयाभाव होने के बावजूद भी स्वीकार कर लिया।

मामाजी ने मुझे बिठाया और खुद बैठ कर मुझसे बातें करने लगे। नियति से जल्दी से चाय की व्यवस्था मामी से करवाने को बोला।

चाय के साथ ही नियति के पूरे परिवार से मेरा परिचय हो गया। दोनो मामा बहुत ही मिलनसार लग रहे थे। नानाजी तो इस उम्र में भी गजब की फिटनेस रखते थे। जय और श्रेया परदे के पीछे ही छुपे रहे। मैंने भी अपने परिवार और जॉब के बारे में बताया। साथ ही उन सभी को आश्वस्त किया की थोड़ा समय चाहे लग जाए पर नियति को मिनी की कस्टडी जरूर मिल जायेगी। ये वादा भी किया की हर डेट पर मैं रस्तोगी के साथ कोर्ट जरूर जाऊंगा। मेरी तथ्य पूर्ण बातों से सभी प्रभावित थे। उन्हे भरोसा हो रहा था की मैं जो कह रहा हूं उसे जरूर साकार करूंगा। कुछ देर तक रुक कर मैंने सभी बड़ों से अभिवादन कर विदा ले लिया। सभी मुझे बाहर गाड़ी तक छोड़ने आए, बस नियति को छोड़ कर।

प्रसन्न मन से सब से विदा ले मैं घर की ओर चल पड़ा। मेरा दिल आज फूल सा हल्का महसूस हो रहा था। जिसकी खुशबू से मेरे आस पास का माहौल सुगंधित महसूस हो रहा था। गुनगुनाता हुआ मैं तेजी से घर की ओर गाड़ी ले कर चल पड़ा। मुझे बेताबी थी की कितनी जल्दी मां से मैं सब कुछ बता दूं।

घर पहुंचने में शाम हो गई थी। मैं घर पहुंचा तो आवाज लगता हुआ अंदर घुसा, "मां…. मां…..।" मेरी आवाज सुन कविता आ गई। उसने मुझे बताया कि, "मां पूजा रूम में है। वो संध्या पूजन कर रही है। आपको कुछ दूं भैया…..?"

मैंने मना कर दिया। बोला, "मां के साथ ही चाय पियूंगा । "

जूते उतार कर मैं मां के पास पूजा रूम में चला गया। मां ने आने की आहट से मेरी ओर देखा, और इशारा कर मुझे पास बुला लिया और पास के आसन पर बैठने का इशारा किया। मैंने मां के पास आसन पर बैठ कर हाथ जोड़ लिए। मैं अपनी आंखे बंद कर मां के साथ भगवान का ध्यान करने लगा। मैं कभी पूजा नही करता था। पर आज मैं दिल से भगवान को याद कर रहा था। मैं उस हर बात के लिए भगवान का शुक्रिया अदा करना चाहता था जिससे आज उसे खुशियां मिल रही थी।

मेरा प्रभु पर विश्वास डगमगा गया था जब अचानक मेरे पिता का देहांत हो गया था। उन संघर्ष के दिनों में हर कदम पर चुनौतियों का सामना करना पड़ता। पापा की पेंशन से किसी तरह बस जरूरी खर्चे ही पूरे हो पाते। बाकी चीजों के लिए बस अनंत इंतजार ही करना होता की शायद कोई रिश्तेदार मदद कर दे। और रिश्तेदार तो दूर दूर तक दिखाई नही देते थे। पिता के जाने के बाद वो ऐसे गायब हुए जैसे कभी वो हमारे संपर्क में थे ही नहीं। इन सब हालातों ने मुझे नास्तिक बना दिया था। मैं अक्सर मां से प्रश्न करता, "मां तुम क्यों इतना पूजा करती हो? क्या भगवान होते तो आज हम ऐसे बेसहारा होते? मां आपकी मांग सूनी कर और मेरे सर से पिता का साया छीन कर तुम्हारे भगवान को कौन सा सुख मिल गया?"

मां मुझे समझाती, " बेटा…. ऐसा नहीं बोलते….."

पर मुझे मां की बातें समझ नहीं आती। मैं उनकी बातों से असहमत ही रहता। पर प्रत्यक्ष में कुछ ज्यादा बोल कर मां को दुखी नहीं करना चाहता। आज मुझे अपना टूटा हुआ विश्वास जुड़ता महसूस हो रहा था। अगर ईश्वर नहीं चाहता तो मैं नियति से दुबारा नहीं मिल पाता। ये ऊपर वाला ही सब कुछ मेरी जिंदगी में ठीक कर रहा था। इससे मेरी आस और जाग गई थी। नियति से यूं मुलाकात मेरी अनवरत प्रार्थना का ही असर था।

कुछ देर बाद मां ने पूजा खत्म की। वो जानती थी की मैं उतावला हूं नियति से हुई मीटिंग के बारे में बताने को। मुझसे सब्र नही हुआ तभी मैं उनके पास पूजा रूम में चला आया। वो मुझको आरती के बाद प्रसाद देकर साथ में बाहर आ गई। लॉबी में आकर मैं मां के साथ सोफे पर बैठ गया। मां मंद मंद मुस्काई और बोली, "मैं जानती हूं तू उतावला हो रहा है नियति के साथ हुई मुलाकात के बारे में सब कुछ बताने को। बता अब मैं सुन रही हूं।" मां का हाथ अपने हाथों में ले कर बोला, "मां आज नियति से रेस्टोरेंट में मुलाकात के बाद मैं उसे छोड़ने उसके घर चला गया था। मां ! वहां मैं बाहर से ही आ रहा था पर नियति के मामा ने मुझे बाहर से नहीं आने दिया। वो आग्रह कर के मुझे अंदर घर में ले गए। मैं सब से मिला। मां ! मैं क्या बताऊं? उसके घर में सभी इतने सज्जन है की पूछो ही मत। सब मिल कर बहुत अच्छा लगा। उन्होंने मुझसे मेरी फैमिली के बारे में भी पूछा। मां…! मैने कह दिया की मेरी पूरी दुनिया एक ही इंसान से शुरू हो कर उन्ही पर खत्म होती है। वो मेरी मां है।" इतना कहते हुए मैं लाड से मां की गोद में सर रख दिया। मां भावुक हो गई। उनकी आंखे भर आई। वो प्यार से मेरे बालों में उंगली फेरने लगीं। मां बेटा एक दूसरे का सहारा और संबल थे। ये भावुक पल उनको अंदर तक तृप्त कर गया।

मां बोली, "तारीफ तो मैं लंबे समय से सुन रही हूं नियति की। अब तक तो मिलना संभव नहीं था। पर अब तो संभव है। अब तो मिलवा सकता है। ले आ उसे घर किसी दिन।

मैं बोला, "मां बस थोड़ा समय और इंतजार कर लो। अब वो दिन दूर नहीं जब नियति को तुमसे मिलवाने लाऊंगा। मां ने मेरी बातों में सहमति जताई।

नियति से मेरी अगली मुलाकात कब और कैसे हुई? क्या मोड़ आया मेरी ओर नियति की जिंदगी में ? पढ़े अगले भाग में।

Rate & Review

Qwerty

Qwerty 3 months ago

Neelam Mishra

Neelam Mishra 6 months ago

Rita Mishra

Rita Mishra 6 months ago

very nice part

Anushka P.

Anushka P. 8 months ago

very nice part

Ramesh Pandey

Ramesh Pandey 11 months ago