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सहारा

लघुकथा ( सहारा 📚✒)
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किशोर ने दफ़्तर से आते ही ब्रिफकेश सोफे पर रखा, हाथ मुँह धोयें इतनी देर में पल्लवी उसके लिए चाय बना लायी ।
किशोर ---- सच तुम्हारे हाथों की चाय पिकर दिनभर की सारी थकान दूर हो जाती है ।

पल्लवी इस पर मुस्करा दी ।
किशोर ---- दफ़्तर में इतना काम होता है ऊपर से बाॅस सर पर ही मंड़राते हैं ।मजाल है कोई दो घड़ी साँस ले ले ।उनका बस चले तो लंच ब्रेक पर भी बैंन लगा दे ।

पल्लवी इस बात पर खिलखिला पड़ी , फिर कुछ सोचकर बोली --- क्या तुमने छुट्टी के लिए कहा बाॅस से ।

किशोर --- तुमसे पहले ही कहा हैं कि मैंने अगर अब छुट्टी ले ली फिर अगले महिने नही मिलेगी और अगले महिने मुझे अपने दोस्तों के साथ घूमने जाना हैं ।

पल्लवी --- और परसो जो मामा जी के लड़के की शादी है उसका क्या ?

किशोर --- रहने देते हैं क्या जरुरत है जाने की ।

पल्लवी --- आजकल ये शादी वगैरह की फग्शन ही होते है जहाँ हम एक दूसरे से मिलजुल सकते है वर्ना किसके पास वक्त है और इन फग्शन में भी शामिल न होना मतलब बिल्कुल ही मेलमिलाप बंद और वैसे भी आपसे कोई कुछ नहीं कहता सब मुझे ही सुनाते हैं ।घर से नहीं निकलती , कही आती जाती नहीं , शादी के बाद बिल्कुल बदल गई है ।अभी दो साल ही हुये है आगे न जाने कितना बदल जाएगी वगैरह वगैरह ।उन्हें कैसे बताऊँ शादी के बाद मैं नहीं बदली बस परिस्थितीयाँ बदल गई है ।आप कही लेकर नहीं जाते ।

किशोर --- अच्छा तुम्हारे कहने का मतलब है मैंने तुम्हे पिंजरे की मैना बना दिया है ।

पल्लवी --- जी बिल्कुल यही होता है किसी मर्द पर अधीन रहने पर ।

किशोर --- हाँ तो मत रहो अधीन , चले जाना अकेली लेकिन जाओगी कैसे , दो कदम भी चलने के लिए तुम नारियों बेचारियों को मर्द के सहारे की जरुरत पड़ती है ।

पल्लवी --- अच्छा और आप मर्दो को बस बातें बनानी आती है ।अगर एक दिन भी घर सम्भालना पड़ जाये तो नानी याद आ जाती है ।मैं कल ही निकलती हूँ शादी के लिए आप सँभालना अपना घर ।

किशोर --- हाँ - हाँ सँभाल लेंगे रोब किसे दिखा रही हो ।

अगले दिन जब किशोर सोकर उठा तब पल्लवी नदारद थी ।रसोईघर में जाकर देखा तो नाश्ता तैयार था और लंचबाॅक्स भी ।लंचबाॅक्स खोलकर देखा तो उसमे हमेशा की तरह एक गुलाबी पर्ची रखी थी और वही तीन शब्द " अपना ख्याल रखना " ।रोज ऐसी ही पर्ची दफ़्तर में पढ़ने को मिलती थी लंचटाइम में लेकिन वह आज भी नहीं भूली ।वह जाते - जाते भी इतना ख्याल रख गई और मैं अपने अहं में साथ जाना तो दूर स्टेशन तक छोड़ने भी नहीं गया ।इतनी सुबह कैसे गई होगी वो , क्या कोई टेक्सी मिली होगी या नहीं उसे । ये सब सोचकर किशोर का मन भारी हो गया ।

उसने गाड़ी निकाली और स्टेशन की तरफ चल पड़ा ।वह जानता था गाड़ी एक घंटा पहले ही छूट चुकी होगी लेकिन उसके कदम और मन बस उसी दिशा में जाना चाहते थे ।

स्टेशन पर जाकर पूछा तब वही जवाब मिला जिसकी उसे उम्मीद थी कि गाड़ी एक घंटा पहले ही जा चुकी है लेकिन दूसरी ख़बर दिल दहलाने वाली थी कि वही गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो गई है ।
वह वही बैठ कर फूट - फूट कर रोने लगा ।तभी उसके कँधे पर किसी ने हाथ रखा ।उसने सर उठाकर देखा तो पल्लवी थी ।

किशोर ने उसे गले लगाते हुये कहा --- तुम यही हो ?
पल्लवी --- घर से सोचकर तो यही निकली थी लेकिन कदम नही बढ़ रहे थे आगे ।न जाने क्यों आपको छोड़कर जाने का दिल नहीं कर रहा था ।

किशोर ने आँसू पोछते हुए कहा --- अच्छा है तुम नहीं गयी ।

पल्लवी --- हाँ जा भी कैसे सकती थी , कभी अकेले कही गई नहीं ना और मर्द के सहारे की आदत भी हो गई है ।

किशोर ---- नहीं पगली, मैं तुम्हारा नहीं बल्कि तुम मेरा सहारा हो ।

यह बात सुनकर पल्लवी मुस्करा उठी और दोनों ने घर की राह ली ।

Pushp Saini