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बदलते सपने 

अजय एक विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्यरत था। उसकी पत्नी वैशाली घर पर ही सिलाई-बुनाई करके घर के ख़र्च में हाथ बटाती थी। कम आमदनी होने के बाद भी उन्होंने कभी परिवार नियोजन का ध्यान नहीं रखा। हर साल डेढ़ साल में वैशाली गर्भवती हो जाती। इसका परिणाम यह हुआ कि घर में चार-चार बेटियों का आगमन हो गया। काट कसर कर घर चलाना पड़ता था। फिर भी जैसे-तैसे गुज़ारा हो ही जाता था। सबसे बड़ी बेटी थी रश्मि, बाक़ी तीन में भी उम्र का ज़्यादा अंतर नहीं था। धीरे-धीरे चारों बेटियाँ एक साथ बड़ी हो रही थीं। रश्मि अब 12वीं कक्षा में थी, अजय के मन में यह ख़्याल आने लगा कि क्यों ना रश्मि के हाथ पीले कर दिए जाएँ।  
 
अजय ने वैशाली से कहा, "वैशाली चार-चार बेटियाँ हैं हमारी। रश्मि 18 की हो गई है, उसका विवाह कर देते हैं। यदि उसका विवाह देर से करेंगे तो बाक़ी तीनों भी एक साथ ही विवाह योग्य हो जाएंगी। पैसों का इंतज़ाम भी तो धीरे-धीरे ही होगा ना।"  
 
"हाँ तुम ठीक कह रहे हो।"  
 
रश्मि ने अपने पिता की बातें सुन ली और कहा, "पापा आप यह क्या कह रहे हैं? मुझे आगे पढ़ाई करना है, आपका हाथ बटाना है। तीनों बहनों को भी तो अच्छे से पढ़ा कर उनकी शादी करनी है। आप अकेले यह सब कैसे कर पाएंगे?"  
 
"रश्मि बेटा तुम्हारा जीवन? तुम्हारे भविष्य का क्या होगा ? सबका अपना-अपना जीवन होता है। आज तुम सब के लिए त्याग कर दोगी पर कल जब हम नहीं रहेंगे तब तुम अकेली रह जाओगी। सब अपने-अपने परिवार में रम जाएंगे। मैं तुम्हें ऐसा कभी नहीं करने दूंगा।" 
 
"नहीं पापा ऐसा नहीं है, बाद में मैं भी शादी कर लूंगी ना। मैं उसके लिए इंकार कहाँ कर रही हूँ।"  
 
कई तरह से रश्मि ने अजय को समझाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं माने और लड़का ढूँढना शुरू कर दिया। रश्मि का पढ़ाई करके अपने पैरों पर खड़ा होने का सपना टूट गया, वह निराश हो गई। आलोक के साथ सात फेरे लेते समय प्रज्वलित अग्नि की लपटों के बीच रश्मि को अपने सारे सपने जलते हुए दिखाई दे रहे थे। उसी समय उसकी नज़र जैसे ही उसके और आलोक के बीच बंधे हुए गठबंधन पर गई तब उसे एक आशा की किरण दिखाई देने लगी। उसे लगा हो सकता है आगे पढ़ाई करके अपने पैरों पर खड़े होने का उसका सपना आलोक ही पूरा कर दे।  
 
विवाह के कुछ दिन पश्चात एक दिन रश्मि ने आलोक से कहा, "आलोक मेरे पीछे मेरी तीन छोटी बहनें हैं। इसी कारण पापा को मेरी शादी जल्दी करनी पड़ी और मेरी पढ़ाई बीच में ही छूट गई। काश पापा-मम्मी ने दो बच्चों वाला सिद्धांत माना होता तो यह दर्द मुझे नहीं झेलना पड़ता। यदि हम दो ही होते तो क्या पापा मेरे सपने टूटने देते? मैं चाहती हूँ कि मैं अपनी पढ़ाई पूरी करके नौकरी कर लूँ।"  
 
"कैसी बात कर रही हो रश्मि तुम ? अब पढ़ाई करोगी? घर से बाहर जाओगी और घर का पूरा काम माँ करेंगी? तुम्हारे सपने पूरे करने में मेरी माँ पिस जाएगी। नहीं, रश्मि यह मुमकिन नहीं है।"  
 
"क्यों मुमकिन नहीं है आलोक ?  मैं अपनी सारी जवाबदारी निभाऊंगी ना। माँ को बिल्कुल तकलीफ़ नहीं होने दूँगी । मैं जल्दी उठकर घर का सारा काम निपटा कर फिर जाऊँगी।"  
 
"नहीं रश्मि यह सब कहने सुनने की बात है। घर के बाहर जाओगी, फिर आकर पढ़ाई भी करोगी। समय तो चाहिए ना इसके लिए।"  
 
"आलोक तुम इसे मेरा अकेले का सपना क्यों समझ रहे हो? घर में चार पैसे आएंगे तो हम सभी के ही काम आएंगे । कल हमारे बच्चे होंगे उन्हें अच्छे से अच्छी शिक्षा देना, उनका सुंदर भविष्य बनाना हमारी ही ज़िम्मेदारी तो होगी ना। एक बार फिर ठंडे दिमाग़ से सोचो प्लीज़। अच्छा क्या मैं प्राइवेट..."  
 
"अरे मना किया ना रश्मि, तुम घर संभालो, बच्चों की पढ़ाई की चिंता मत करो, वह मैं देख लूँगा। रात को मैं थका हारा घर आऊंगा और तुम्हारा मन अपनी पढ़ाई में लगा रहेगा।" 
 
बहुत मिन्नतें करने पर भी आलोक नहीं माना। एक बार फिर रश्मि का सपना टूट कर परिवार की ज़िम्मेदारी की बलि चढ़ गया। रश्मि अपने सपनों को तिलांजलि देते हुए परिवार में मन लगाने की कोशिश करने लगी। उसके लिए अपने सपनों को यूँ टूटता हुआ देखना बहुत मुश्किल था । धीरे-धीरे उसके सपने उसके सीने में दफन हो गए या यूँ समझ लो कि रश्मि के सपनों की मौत ही हो गई।  
 
अब रश्मि की आँखों में अपने पति के सपने पलने लगे।  अब वह अपने सपनों में आलोक का प्रमोशन और उसकी तरक्क़ी देखने लगी। समय बीतता गया लेकिन आलोक का प्रमोशन अब तक ना हो पाया था। उसने प्रमोशन के लिए विभागीय परीक्षा भी दी लेकिन वह उसमें उत्तीर्ण नहीं हो पाया।  
 
रश्मि की सासु माँ रुदाली बहुत ही समझदार और सुलझी हुई महिला थीं। उन्होंने रश्मि के दुख को और आने वाले समय में परिवार की ज़रूरतों को समझते हुए रश्मि से कहा, "बेटा तुम्हारी शादी को एक वर्ष बीत गया है। तुम चाहो तो पढ़ाई कर सकती हो। हम आलोक को नहीं बताएंगे।"  
 
रुदाली की बातें सुनकर रश्मि को नया जीवन मिल गया। उसके दिल में जो सपने दफ़न हो चुके थे मानो उनमें फिर से जान आ गई ।  वह रुदाली के गले लग गई और कहा, "थैंक यू माँ"  
 
रश्मि सुबह जल्दी उठकर काम कर लेती और आलोक के ऑफिस जाने के बाद पढ़ाई भी कर लेती। देखते ही देखते तीन वर्ष बीत गए और रश्मि ग्रैजुएट हो गई। अब रश्मि ने एम. ए. करने का मन भी बना लिया। जहाँ चाह होती है, राह मिल ही जाती है। रुदाली के सहयोग से उसने एम. ए. भी कर लिया। आलोक को रश्मि के इस तरह पढ़ाई करने की बात की कानों कान ख़बर ना लग पाई। आलोक से यह बात छिपाना मुश्किल ज़रूर था पर रश्मि की इच्छा शक्ति और रुदाली का साथ मिलने से यह संभव हो पाया। 
 
विवाह के छः वर्ष बाद रश्मि ने एक साथ दो सुंदर-सी बेटियों को जन्म दिया। उन्होंने बेटियों का नाम सीमा और गरिमा रखा। बेटियाँ होते ही रश्मि के मन में यह डर पलने लगा कि कहीं उसकी बेटियों के साथ भी वही सब ना हो जो उसके साथ हुआ है। वह अपनी दोनों बच्चियों को ख़ूब अच्छे स्कूल में पढ़ा-लिखा कर बहुत ही अच्छा भविष्य देना चाहती थी। बेटियों के दुनिया में आते ही रश्मि की आँखें उनके लिए भी सपने बुनने लगीं।  
 
रश्मि की ही तरह आलोक भी अपनी दोनों बेटियों के लिए चिंतित था। वह ख़ुश तो बहुत था लेकिन पैसों की कमी अब आलोक के मन में घबराहट बन कर जन्म ले रही थी। देखते ही देखते सीमा और गरिमा ढाई वर्ष की हो गईं। उनको स्कूल में प्रवेश दिलाने की योजनाएँ बनने लगीं। जहाँ भी प्रवेश दिलाने का सोचते, भारी-भरकम फीस उन्हें अनुमति नहीं देती। भले ही अपनी पत्नी को आलोक ने पढ़ने नहीं दिया पर वह अपनी बेटियों को अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहता था। वह चाहता था कि भविष्य में उन दोनों को उसकी तरह कम वेतन में गुज़ारा ना करना पड़े। अपनी इच्छाओं को मारना ना पड़े। अपने जीवन में वे दोनों वह सब कुछ हासिल कर पाएँ जो उनका मन चाहे।  
 
आज पहली बार आलोक अपनी पुरानी ग़लती के लिए मन ही मन पछता रहा था। वह सोच रहा था, "काश उसने रश्मि को नौकरी करने दी होती तो आज पैसों की कमी के कारण उसे अपनी बेटियों को यूँ छोटे से स्कूल में पढ़ाने की बारी नहीं आती। काश उसने अपने अहं को छोड़ा होता और रश्मि के  सपनों को ना तोड़ा होता। आख़िर वह सपने उसके अकेले के कहाँ थे। वह सपना तो पूरे परिवार के लिए ही देख रही थी।"  
 
यह बातें आलोक को अंदर ही अंदर खाए जा रही थीं, वह उदास रहने लगा। उसकी ऐसी हालत देखकर एक दिन रश्मि ने पूछा, "आलोक क्या हुआ, इतने उदास क्यों हो?"  
 
आलोक ने बिना कुछ भी छिपाए कहा, "रश्मि तुम सही थीं और मैं ग़लत"  
 
"यह क्या कह रहे हो आलोक?"  
 
"रश्मि मुझे कहने दो, काश मैंने उस समय तुम्हारी बात मान कर तुम्हें पढ़ाई कर लेने दी होती तो आज सीमा और गरिमा को हम भी किसी बड़े, बहुत बड़े स्कूल में पढ़ा पाते। मैंने तुम्हारे साथ अपनी दोनों बेटियों के भविष्य को भी बिगाड़ दिया। अब मैं क्या करूं, मैं बहुत पछता रहा हूँ रश्मि।"  
 
"अभी भी देर नहीं हुई है आलोक, तुम यदि हाँ कहो तो मैं आज भी नौकरी कर सकती हूँ।"  
 
"रश्मि तुम सिर्फ़ 12वीं पास हो, अच्छी नौकरी कौन देगा तुम्हें?"  
 
तभी रुदाली भी कमरे में आ गई और उन्होंने कहा, "आलोक कौन कहता है कि मेरी बेटी सिर्फ़ 12वीं पास है। उस परिवार में किसी वज़ह से उसकी पढ़ाई पूरी ना हो पाई तो क्या? यहाँ भी तो उसकी एक माँ है जिसे अपनी पढ़ाई न कर पाने का दुख जीवन भर रहा। इस महंगाई के दौर में यदि कमाने वाले चार हाथ हों तभी परिवार सुख-सुविधाओं के साथ जीवन यापन कर सकता है।"  
 
"माँ आप यह क्या कह रही हो? साफ-साफ कहो मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है।"  
 
"आलोक तुमने तो मुझे ही खलनायिका बना दिया था। याद करो रश्मि को यह कह कर पढ़ने से रोक दिया था कि तुम्हारे सपने पूरे करने में मेरी माँ पिस जाएगी। यह मेरे प्रति तुम्हारा स्नेह था आलोक लेकिन मेरा भी कर्त्तव्य था कि मैं तुम्हारी इस विचारधारा को ग़लत साबित करूँ। मैं चाहती थी कि रश्मि को पढ़ाई करने का अवसर ज़रूर मिलना चाहिए ताकि भविष्य में तुम्हारा हाथ बटाने के लिए, उसका सहारा भी मिल जाए। हाँ आलोक तुम्हें यह जानकर बहुत आश्चर्य होगा कि रश्मि ने बड़ी मेहनत करके एम ए कर लिया है और वह भी बहुत अच्छे नम्बरों के साथ।"  
 
"माँ मुझे यक़ीन नहीं हो रहा, क्या यह सच में सच है?"  
 
रश्मि ने कहा, "हाँ आलोक मेरे सपनों को माँ ने पूरा किया है। मेरी इस सफलता का पूरा श्रेय माँ को है। उन्होंने मुझे हिम्मत दी, मेरा हौसला बढ़ाया और इसमें माँ की मेहनत और उनका संघर्ष भी शामिल है।" 
 
रुदाली ने कहा, "आलोक तुम यह ना समझना कि घर का पूरा काम-काज उसने मुझ पर सौंप दिया था। नहीं आलोक उसने एक-एक पल का सदुपयोग किया है। मेरा भी ध्यान रखा है, परिवार की ज़िम्मेदारी भी पूरी की है। यह तो उसके तेज दिमाग़ और चाहत की वज़ह से कम समय में भी उसने अपना लक्ष्य पूरा किया।"  
 
रश्मि रुदाली के गले से लग गई और कहा, "थैंक यू माँ आपने केवल मेरे सपनों को ही साकार नहीं किया, आपने तो सीमा और गरिमा के सपने पूरा करने की राह भी बना दी है ।"  
 
आलोक हैरान था और ख़ुश भी उसने रुदाली से कहा, "माँ आज आपने मेरे दिल से बहुत बड़ा बोझ हटा दिया। पिछले कई दिनों से मैं पश्चाताप की आग में झुलस रहा था कि मैंने रश्मि के साथ कितना बड़ा अन्याय किया है। वह अन्याय आज मेरी बेटियों के जीवन पर भी अपना असर छोड़ रहा है। मैं सोच भी नहीं सकता था माँ कि मेरे पीछे आप दोनों ने मिलकर यह कितना बड़ा काम कर डाला है। मुझे तो भनक तक नहीं लगी, ना ही कभी आप दोनों के व्यवहार से मुझे पता चला, ना ही रश्मि की किताबें नज़र आईं। यह सब कैसे किया आप दोनों ने?"  
 
"आलोक हम दोनों जानते थे कि आने वाले समय में एक की कमाई से सब कुछ नहीं मिल सकता इसीलिए हमने जी जान लगाकर इस काम को अंज़ाम तक पहुँचाया। आलोक मैंने पूरे एक साल तक रश्मि को हर रोज़ कुढ़ते हुए देखा है । मुझे लगा रश्मि का इरादा पक्का है, उसे सिर्फ़ किसी के साथ की ज़रूरत है। मैं ख़ुश हूँ कि उसकी साथी मैं बनी। तुम जवानी के जोश में शायद उस समय यह सब सोच ही नहीं पाए खैर!"  
 
"हाँ माँ मैं ग़लत था पर अब तो हमारी सीमा और गरिमा भी अच्छे से अच्छे स्कूल में पढ़ाई करेंगी और हम उनकी सभी ज़रूरतों को पूरा भी कर सकेंगे।"  
 
रश्मि की तरफ़ देखकर आलोक कुछ कहे उससे पहले रश्मि ने कहा, "प्लीज़ आलोक सॉरी मत कहना, यह समय है ख़ुश होने का और माँ से आशीर्वाद लेने का", दोनों ने रुदाली के पांव छुए और रुदाली ने दोनों को अपने गले से लगा लिया। 
 
रश्मि सोच रही थी जिसे रुदाली जैसी माँ मिल जाए उसका सपना अधूरा कैसे रह सकता है। कुछ ही दिनों में रश्मि को कॉलेज में नौकरी मिल गई फिर हुई एक नई शुरुआत। दोनों बेटियों को जिस स्कूल में वह पढ़ाना चाहते थे, वहाँ उनका प्रवेश करवाया। उनकी सारी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए अब वे सक्षम थे।  
 
एक दिन आलोक ने रश्मि से कहा, "रश्मि तुम इतनी ज़्यादा होशियार हो यार, मुझे तो मालूम ही नहीं था।"  
 
"आलोक मेरे टूटते सपनों को माँ का साथ मिला इसीलिए मेरा सपना साकार हो पाया ।"  
 
आलोक ने कहा, "सबके लिए अपनी आँखों से सपने देखने वाली मेरी रश्मि के सपने यदि टूट जाते तो हमारे परिवार के सपने भी कभी पूरे नहीं हो पाते। आई लव यू रश्मि, तुमने तो सभी के सपने साकार करने की राह बना दी।"  
 
"आई लव यू टू", कहते हुए रश्मि आलोक की बाँहों में समा गई। 


 
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 
 स्वरचित और मौलिक