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क्षण भर का स्पर्श-सुनीता डी.प्रसाद

क्षण भर का स्पर्श -सुनीता डी. प्रसाद
प्रेम में डूबी अच्छी कविताओं का संग्रह
समीक्षक-राज बोहरे
वर्तमान समय में जब चारों ओर नफरत औऱ दुश्मनी की आग बरस रही हो, तब प्रेम की शीतल धार और प्यार की खुशबूदार हवा मन व मस्तिष्क को ठंडक पहुंचाती है। सुप्रसिद्ध कवि विष्णु सक्सैना ने लिखा है-
तपती हुई ज़मीं है जलधार बांटता हूं ।
पतझर के रास्तों में मैं बहार मांगता हूं।
यह आग का है दरिया जीना है बहुत मुश्किल ,
नफरत के दौर में भी मैं प्यार बांटता हूं ।
कवयित्री सुनीता डी. प्रसाद भी ऐसे ही बैर व नफरत भरे माहौल में प्रेम की कविता लिखती हैं और समाज में चारों और प्रेम का इत्र फैलाती रहती हैं व समाज को सुगंधित करने का प्रयत्न करती रहती हैं।
पिछले दिनों बोधि प्रकाशन से सुनीता डी. प्रसाद का कविता संकलन 'क्षण भर का स्पर्श' प्रकाशित होकर आया है। सुनीता डी. प्रसाद फेसबुक पर लंबे समय से प्रेम संबंधी अनुभूतियों की कविताओं को पोस्ट करती आरहीं, इनकी वे प्रेम कविताएं खूब लोकप्रिय रही हैं। वे एक ऐसी कवयित्री हैं, जो मूलतः प्रेम पर हिंदी लिखती हैं ।
इस संग्रह की कविताओं से गुजरने के बाद हमको एहसास हो जाता है कि भले ही यह उनका पहला कविता संग्रह है, लेकिन सभी कविताएं बड़ी परिपक्वता लिए हुए हैं। इस संग्रह की कविताओं में प्रेम के विविध पक्ष आए हैँ। स्त्री के नजरिए से प्रेम का क्या अर्थ होगा, प्रेम का दार्शनिक पक्ष क्या होगा? अगर प्रेम नही होगा तो कविता में क्या होगा, जैसे सवाल की गहराई इन कविताओं में बेलौस अंदाज में प्रकट होती है। इन कविताओं से यह सिद्ध होता है कि कवयित्री ने प्रेम की भावना का हृदय की गहराई से अनुभव किया है, प्रेम के मनोविज्ञान का भी अध्ययन किया है और प्रेम के सारे पक्षों पर गहराई से विचार किया है । सुनीता कम शब्दों में अपनी बात कहती हैं। बहुत छोटी-छोटी कविताएं लिखती हैं, लेकिन उनके अर्थ गहरे होते हैं। इनकी कविता विचार सूत्र की तरह होती हैं । सँग्रह में कुछ कविताएं ऐसी हैं जिनमें वे कविता का मूल अर्थ ही प्रेम मानती हैं और हर कविता के लिए प्रेम को ही जरूरी समझतीं हैं ।
प्रेम शीर्षक की उनकी छह कविताएं है। इसमें वे प्रेम का महत्व,प्रेम के पर्याय,प्रेम के प्रतिलोम और प्रेम के जरूरी तत्व बताती हैं। अपने प्रिय आधिकारिक विषय की इस कविता में सुनीता लिखती हैं -
(एक)
सर्वाधिक...
लिखे जाने वाला विषय
प्रेम ही रहा...!
जहां नहीं लिखा गया... प्रेम
वहां लिखे गए
युद्ध, वितृष्णा और छल-कपट।।
( दो)
प्रेम को समझना हो तो
बुनते देखना
बया को कभी
उसका 'घोंसला'...!
(तीन)
प्रेम ...
संसार में
किया जाने वाला
सबसे महान और
लोकप्रिय व्यवसाय रहा...!
यह भी कभी
एक तरफा नहीं चला....!
(चार)
प्रेम भी
होता है
जंगली दूब-सा ही
'निर्लज्ज'
पनप उठता है
पाते ही
जरा-सी
'अनुकूलता'...!!
(पांच)
सुना है....
जहां प्रेम होता है
वहां शब्दों की आवश्यकता
नहीं पड़ती...
पर जहां प्रेम नहीं रहता,
वहां पर भी तो
शब्दों की कोई आवश्यकता
नहीं रहती...!!
(छह)
प्रेम
कई अनुत्तरित प्रश्नों का
उत्तर रहा...।
परंतु
यह स्वयं
अनुत्तरित ही रहा
( पृष्ठ 20)
संग्रह के आरंभ में 'स्पर्श' शीर्षक से कवयित्री ने छोटी-छोटी चार कविताएं रखी हैं , जो प्रेम और कविता के अंतर्संबंध प्रकट करती हैं-
( एक)
तुम्हारा स्पर्श...
मेरे जीवन की
सर्वाधिक
संवेदनात्मक
'कविता' बना ...!
(दो)
प्रेम में...
थोड़ा झुका आसमान
थोड़ी उठी धरा...!
जहां किया
दोनों ने
एक -दूजे को स्पर्श ...!
वहीं एक कविता पूरी हुई...!!
(तीन)
लिखने के पश्चात
रख देती हूं
कविताओं पर
अपनी हथेलियां...!
ताकि ...बनी रहे उनमें
मेरे स्पर्श की
'ऊष्मा'...!!
(चार)
पढ़ने से पूर्व
क्षणभर का स्पर्श...!
कर देता है
उस कविता के
शब्दों को भी
'स्पंदित'...!!
(पृष्ठ16)

कविता "कविता/ प्रेम' में लिखती हैँ-
कविता लिखना
उतना ही जटिल
और सहज रहा
जितना कि प्रेम...!
बस डूबना
और बहना भर ही हो तो
है...कविता
या फिर प्रेम
फिर भी
न जाने क्यों...
हर लिखने वाला
कवि ना हुआ
और हर प्रेम करने वाला
प्रेमी...?
(पृष्ठ 80)
एक अन्य कविता"अधूरी कविताएं" में भी लिखती हैं-
तुम जब भी आना
मेरी कविताएं ही बन कर आना!
पर, तुम मत आना
बनकर मेरी बहुचर्चित-कविताएं !
जिनमें उतारा है मैंने सत्य किसी का
या जिन्हें छू गया है मर्म किसी का
जिन्हें सजाया है मैंने अलंकारों से
जिन्हें बांधा है मैंने छंदों में
जो हो गई है, सबकी प्रिय
और बस गई है, सबके हिय
इसलिए
तुम जब आना प्रिये !
तो बन कर आना मेरी अधूरी- कविताएं !
जिन्हें मैं नहीं कर पाया पूरी कभी
जो बिखरी है पन्नों पर
आज भी अव्यवस्थित यहीं
जिन्हें मैं समझ ना पाया शब्दों में कभी
तो आज भी हैं मेरे अव्यक्त सी चुपचाप कहीं मौन खड़ी
(पृष्ट 74)
एक व्यक्तिगत अनुभूति को समष्टि की अनुभूति बन जाने की प्रक्रिया 'कवि/कविताएं ' में लिखती हैं- (एक)
कविता
कवि की
व्यक्तिगत यात्रा रही।
परंतु...
अनुभूति के स्तर पर
वह...
व्यष्टि से समष्टि हुई।।
( दो ).
जो कविताएं...
हृदय तक बना पाई
'सेतु'...!
वहीं अधिकतर पूरी
पढ़ी भी गई थी!!
( प्रष्ठ 31)
एक कविता ' मिलना चाहूंगी' में कविता के विभिन्न रूप रच रहे लोगों से कवयित्री की लालसा अलग अंदाज में प्रकट होती है-
अपने मिलने के क्रम में
मैं सबसे पहले मिलना चाहूंगी
प्रेम पर लिखने वाले कवियों से
ताकि साक्ष्य बन सकूं...
उनकी कविताओं से
प्रस्फुटित होते अथाह प्रेम
और एकाकीपन की

फिर मैं मिलना चाहूंगी
नित्य रसोई पकाती उन स्त्रियों से
ताकि चूम सकूं
रोज एक नई कविता कहते
उनके खुरदरे हाथों को
जो बिखेर देते हैं, अपने स्वाद से
एक मुस्कान, अपनों के चेहरे पर।।
***
मैं जारी रखूंगी. ..
मिलने के इस क्रम को
ताकि मिल सकूं...
हर उस दूसरे व्यक्ति से
जो लिख देता है रोज...
एक अनूठी कविता
अपनी ही अद्भुत शैली में
( पृष्ठ 22)
'शेष हैं कविताएं' कविता में कवयित्री लिखती है-
शेष हैं कविताएं क्योंकि
संवेदनाएं अभी अशेष हैं ।
रूप बदलेगा ..
शब्दों पर भावों का भार लटकेगा।
बहेंगे रक्त से जब कवि के आँसू
तब कहीं जाकर...
समुद्र का क्षार कुछ घटेगा ।।
शेष है कविताएं क्योंकि
अव्यक्त 'अभी' भी अशेष हैं।
अनुपात बदलेंगे...
अनुभूतियों पर व्यक्तता नपेगी ।
स्पंदित हो जब कवि का कवित्व स्वयं बहेगा
तब कहीं जाकर
नदी का भी कुछ थमेगा
(पृष्ठ 17)
सुनीता यह मानती हैं कि सुन्दरता नहीँ उसका आभास ही खास है। कविता सुंदरता में वे लिखती हैं-
सुंदर होने से अधिक सुंदर है
सुंदरता का आभास
***
इसीलिए ही
अभी तक जीवित है...
कलाकार !
और जीवित हैं उसकी
कलाकृतियां...!!
(पृष्ठ37)
अगर कहीं प्रेमी है और प्रेम की चर्चा हो रही है ,तो प्रेमिकाओं की जरूरत होगी,लेकिन कवि की प्रेमिकाएँ स्त्री नहीँ! ।कवयित्री ने प्रेमिकाएँ कविता में लिखा है-
(एक)
कविताओं को कभी
गौर से देखना...।
उनमें दिखेंगी तुम्हें
प्रतीक्षारत प्रेमिकाएं
प्रेमिकाएं
जिन्होंने
सहर्ष स्वीकार किया
शब्दों में उतरकर
आजीवन कारावास।
और फिर वे हो गईं
सदा के लिए
किसी कवि की
कविताएं...!!
( दो )
कुछ कविताएं...
अजंता-एलोरा -सी
भव्यता लिए
छोड़ जाती हैं
मन मस्तिष्क पर
अपना प्रभाव...।
ऐसी कविताओं को
अक्सर ही पढ़ते समय
मैं सोच में पड़ जाती हूं
कि क्या...
ये केवल कविताएं ही थीं
या थीं...
कवि की...
अनाम प्रेमिकाएं...?
(पृष्ठ47)
प्रेम से जुड़ी कुछ कविताओं में एक और महत्वपूर्ण कविता है- संभावनाएं/ विकल्प। कवयित्री का मत है कि प्रेम में अगर बिलगाव होता है तो वापसी में सबकुछ वैसा नहीं रहता।
(एक)
सुना है प्रेम
एक दिन लौटकर
आता अवश्य है
पर वह जैसा जाता है
वैसा लौट नहीं पाता ...!
जाना कभी भी
कठिन नहीं रहा
कठिन रहा है तो
ठहरना...!
तभी होने और
ठहरने के मध्य
प्रेम कई बार जीता है
और कई बार मरता है ...!
या फिर
जीने वाली
रहती होंगी... संभावनाएं ।
और मरने वाले
होते होंगे...विकल्प!
(पृष्ठ 71)
कविता लिखना बहुत संतुलन और अनुभूति का काम है। एक और कविता "उसकी कविताएँ" में सुनीता ने लिखा है-
वह लिखता है कविताएं ऐसे
मेरी मां
पसंद का व्यंजन
पकाती थी जो मेरे लिए जैसे।
वह शब्दों और भावों में,
बैठा है बैठाता है सामंजस्य ऐसे।
मेरे पिता सीमित आय और
खर्चों में बिठाते थे जैसे ।
(पृष्ठ 73)
'पहला प्रेम-पत्र' कविता में सुनीता ने लिखा है -
पहला प्रेम पत्र लिखते समय
मैं अंजुलि भर शब्दों में
बांध लेना चाहती थी-
हवा, पानी, मिट्टी
और दिन के...
आठों पहर।
मैं लिखना चाहती थी-
जंगलों से उठती
मिश्रित सुवास को
और जल के अतिरेक से अनियंत्रित हो आई
नदी को ।
मैं लिखना चाहती थी-
समुद्र किनारे...
नन्ही नन्ही हथेलियों से बनी
रेत की आकृतियों को
और फिर...
एक तेज लहर पर
उन आकृतियों के बह जाने पर
बच्चों की रेत से सनी
परन्तु...
रिक्त हथेलियों को
मैं लिखना चाहती थी-
आंधियों के पहले
और बाद के
मौन को ...।
पर मेरा
वह पहला' प्रेम-पत्र'
आज भी अधूरा ही है।
(पृष्ठ 49)
अपनी कविता 'लौटना आसान नहीं रहा' में कवि ने लिखा है -
लौटना आसान नहीं होता
यह बताया मुझे
किनारों से लौटती
अपने अस्तित्व के लिए
जूझती लहरों ने ।
कितना कठिन रहा होगा उनके लिए
अपने अस्तित्व को पाकर
अस्तित्वहीनता की ओर लौट जाना।
(पृष्ठ 86)
लौटने से ही संबंधित एक अन्य कविता "रास्ते"में सुनीता लिखती हैं -
(एक)
रास्ते ...
जाने-आने के
एक ही रहे ...!
पर जाने वाला
कभी भी
वैसा नहीं लौट पाया
जैसा वह कभी गया था..!!
(दो)
जो रास्ते...
आगे की ओर
बढ़ जाते हैं ...!
वे बिना मोड लिए
वापस नहीं लौट पाते...!!
(तीन)
सँकरे रास्ते
चौड़े रास्तों में
आसानी से मिल गए
चौड़े रास्ते ....
सँकरे रास्तों में फंस कर
दम तोड़ गए।।
( पृष्ठ 64)
इस तरह सुनीता डी प्रसाद ने कविता का मुहावरा अपने तरीके से विकसित किया है। वे प्रेम की कवयित्री हैं । वे प्रेम से जुड़ी संवेदना व अनुभूतियों और दार्शनिकता की कवयित्री हैं। इस दुर्धर्ष समय में प्रेम की बात करना, प्रेम पर कविता लिखना बड़ा कठिन और दुर्गम है । इस संग्रह में कवयित्री के मन में धीरे-धीरे पकती अनुभूतियां कविता के रूप में सामने आती हैं, लेकिन वे सतही बयानबाजी नहीं होती। सतही या देहप्रेम की शब्दावली की कविता नहीं होती, बल्कि भीतर से निकली सीधी सीधी प्रेमिल अनुभूति होती है। अभी भी दुनिया में प्रेम सबसे बड़ी शय है, यह मानने वाली सुनीता का यह संग्रह सुखद अनुभूति देता है ।इस संग्रह में अनेक ऐसे वाक्य हैं जो कवयित्री की अपनी सोच को दार्शनिक विचार की तरह सार्वजनिक रूप से प्रकट करती हैं। वे कविताओं को भी जीवित मानती हैं। वे रास्तों पर जाते हुए आदमी को लौटते हुए ज्यों का त्यों आया हुआ नहीं देखती, रास्ते कविता में भी यही कहती हैं कि जो जैसा गया था वैसा नहीं लौटता । वह दो पंक्तियों में कहे गए के बीच अव्यक्त कहे हुए में बताती हैं कि आने वाला जाने क्या छोड़ कर आया है, जाने क्या अपने व्यक्तित्व में जोड़ कर आया है, वह ज्यों का त्यों तो कभी नहीं लौटा। कवयित्रीत जब प्रेम पर लिखने वाले कवियों से भेंट करना चाहती है, तो उनसे भी मिलना चाहती है जो कविता की तरह रसोई बनाती हैं, रसोई रचती हैं और उससे अपने स्वाद के रूप में सबके चेहरों पर मुस्कान बिखेर देती हैं । वे प्रेम को शब्दों की आवश्यकता नहीं मानती, प्रेम दुनिया में सर्वाधिक लिखे जाना शब्द है, दुनिया के जरूरी भाव मे वे प्रेम ही मानती हैं। वे बया के द्वारा बुने जाते घोंसले को भी प्रेम की तरह बुनना मानती हैं। प्रेमियों के बीच जब मौन आ ने लगता है तो कवियत्री का कहना है कि यह प्रेम की समाप्ति का लक्षण है।
ऐसे में जब मनुष्यता दम तोड़ रही हो, युद्ध और हिंसा का वातावरण हो, ऐसे में प्रेम की कविता लिखना - खासकर देह से परे प्रेम पर कविताएं लिखना- उनकी खुशबू बिखेरना, उसकी अनुभूतियो को साझा करना केवल सुनीता डी प्रसाद जैसी संवेदनशील कवयित्री या ऐसे संवेदनशील कवियों के ही बस में हैं । सुनीता डी प्रसाद का यह संग्रह उन्हें प्रेम की कवयित्री के रूप में एक अलग स्थान दिलाएगा और उन्हें यश प्रदान करेगा।
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