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उजाले की ओर ---संस्मरण

उजाले की ओर ---संस्मरण 

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 नमस्कार मित्रो 

      ज़िंदगी के सफ़र में  गुज़र जाते हैं जो मकाम ,वे फिर कभी वापिस लौटकर नहीं आते | बात तो यह सभी जानते हैं लेकिन सम्झना नहीं चाहते | 

किसी की खुशी या दर्द में शामिल होने पर हम उस पर अहसान नहीं करते बल्कि यह हमारी खुशी होती है जिसे हम बांटते हैं | 

अभी पिछले दिनों एक बात से मेरा मन बहुत दुखी हुआ | 

वर्षों से पहचान है ।मैं पति-पत्नी दोनों की दीदी हूँ | 

कोई भी बात होती है ,समाया होती है वे मुझसे सलाह लेते हैं | 

स्वाभाविक होता है कोई किसी से तभी सलाह लेता है जब वह उसका सम्मान करता है या फिर उसे उस पर विश्वास हो ,स्नेह हो ,प्रेम हो | 

हल में वो यू.के रहते हैं | बच्ची का विवाह करने दक्षिण आए थे | वहाँ से माँ को मिलने अहमदाबाद भी आए | 

माँ इस हालत में नहीं थीं कि वे विवाह में जा सकतीं | अत: ग्रांडमाँ को मिलकर वे सब वापिस लौट गए | 

दो दिनों बाद माँ की तबीयत ख़राब  हो गई ,उन्हें पहले भी कई बार  अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा था | 

जब भी उन्हें अस्पताल में भर्ती होना पड़ता ,बेटी आ जाती | बेटे के साथ एक दुखद घटना हो चुकी थी ,उसका एक पैर जिसमें चला गया था | 

ऐसा कुछ होता तो वह नर्वस  हो जाता इसलिए और भी बहन और उसके पति को वहाँ से भागना पड़ता | बच्चे अपना कर्तव्य पूरी तरह से निभा रहे हैं | 

यहाँ पर उनके संबंधी बहुत कम हैं | आसपास में रहने वाले ही संबंधी हो जाते हैं | 

अपना व्यवहार मनुष्य के संबंध  बना देता है और बिगाड़ भी देता है | 

चार दिन पहले माँ से मिलकर जाने के बाद भी माँ के न रहने का समाचार सुनकर पति-पत्नी वापिस आए आईयूआर यज्ञ आदि करवाकर माँ की स्मृति में भोज रखा | 

बहुत सुंदर कार्यक्रम हुआ | सुंदर यज्ञ फिर भोजन | 

एक बंदा बेटे की ससुराल का था | 

"हमारी तरफ के ही हैं सब लोग ,इंका है कौन ?" बैठा हुआ खाना खा रहा था | डकार लेते हुए बोला | 

उन दोनों भाई-बहन को बहुत दुख हुआ | 

यदि तुम अपने को संबंधी नहीं मानते तो दिखावा करने की ज़रूरत क्या थी | 

बेटा बेचारा एक तरफ कुर्सी पर बैठकर रोने लगा | तब भी वह आदमी चुप नहीं हुआ | 
"अगर हमारे यहाँ के लोग नहीं आते तो अकेले खड़े रहा जाते --" वह बेकार की बकवास करके अपनी महत्ता झाड़ता रहा | 

"अच्छा ! अगर तुम इस परिवार का संबंधी मानते हो तभी आए हो न ?" उन दोनों भाई-बहनों की पीड़ा देखकर मुझसे तो रहा नहीं गया | 
"हाँ,तो --हम तो इसलिए आ गए कि यहाँ तो अधिक लोग होंगे नहीं तो अकेले पद जाएँगे ये लोग !"

मुझे  वास्तव में बहुत खराबा लगा | 

"मैं ,हम सब जो भी यजन यज्ञ में और भोजन में शामिल होने आए हैं ,इनके अपने हैं | " मैंने उत्तर दिया | 

"हम तो इसलिए आ गए थे ---" मैं जानती थी कि वह फिर से अपनी इंपोर्टेन्स दिखाने की चेष्टा का रहा था | 
" आप कौनसी इनकी रिश्तेदार हैं ---" उसने मुझसे कहा | 

"हाँ,मैं तो हूँ रिश्तेदार ,तुम अहसान दिखाने आए हो तो नहीं आना चाहिए था ---" मुझसे रहा नहीं गया | 

अपनी माँ को खोलर वैसे ही बहन भाई काफी नर्वस थे | 

पता चला ,कोई बड़ा पैसे वाला अमीर आदमी था ,अपना रौब मरने की कोशिश कर रहा था | 


"मुझे तो लगता है ,आपके पास अगर सहानुभूति ,प्यार और आश्वासन के शब्द भी नहीं हैं तो आप सबसे गरीब हो |" मैंने कहा | 

वह मुझे घूर रहा था और मैं उसके अहं से भरे व्यक्तित्व को पहचानने का प्र्यत्न कर रही थी | 

हम किसीके लिए कुछ न करें लेकिन कहीं जाकर प्यार व सहानुभूती के दो श्बद तो बोल ही सकते हैं | 

सस्नेह 

डॉ.प्रणव भारती